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200+ हिंदी कहावतों की लिस्ट और उनके अर्थ (List of 200+hindi kahavaten)

200+ हिंदी कहावतों की लिस्ट: “कहावतें” हिंदी भाषा में एक प्रमुख साहित्यिक और सांस्कृतिक घटक हैं। ये लोकप्रिय, संक्षिप्त और सारगर्भित वाक्यांश होते हैं जो समाज, संस्कृति, नैतिक मूल्यों और जीवन के अनुभवों पर आधारित होते हैं। कहावतें अक्सर ज्ञान, अनुभव, और जीवन की सच्चाइयों को संक्षेप में बताने का काम करती हैं।

कहावतें क्या होती हैं?

भारतीय समाज में, कहावतें सदियों से मौखिक परंपरा का हिस्सा रही हैं। ये न केवल भाषा की समृद्धि को दर्शाती हैं, बल्कि ये हमें समाज के इतिहास, संस्कृति, धार्मिक विचारधाराओं, और मानवीय व्यवहार के बारे में भी गहराई से बताती हैं। ये कहावतें अक्सर पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचारित होती हैं, जिससे वे समय के साथ और भी अधिक प्रासंगिक और परिपक्व हो जाती हैं।

कहावतों का उपयोग भाषण, साहित्य, शिक्षा, और यहां तक कि रोजमर्रा की बातचीत में भी किया जाता है। ये अक्सर जटिल विचारों और भावनाओं को सरल और आकर्षक तरीके से प्रस्तुत करने का एक माध्यम होती हैं। कहावतें संक्षेप में सामाजिक सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों को प्रस्तुत करती हैं, जिससे वे शिक्षण और सीखने के उपकरण के रूप में बेहद महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

कहावतें अक्सर लोककथाओं, पौराणिक कथाओं, और इतिहास से जुड़ी होती हैं। ये विभिन्न पात्रों, प्राणियों, और प्राकृतिक तत्वों का उपयोग करके जीवन के सबक और सिद्धांतों को समझाती हैं। कई बार, कहावतें विडंबना, हास्य, और सूक्ष्म व्यंग्य का भी उपयोग करती हैं ताकि संदेश को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

उदाहरण के लिए, “बूंद-बूंद से सागर भरता है” यह कहावत छोटे-छोटे प्रयासों के महत्व को दर्शाती है। इसी तरह, “नेकी कर दरिया में डाल” यह कहावत बताती है कि अच्छे कार्य करने के बाद उसका प्रचार नहीं करना चाहिए। ये कहावतें सरल शब्दों में जीवन के गहरे सबक को प्रस्तुत करती हैं।

आधुनिक युग में, कहावतों का महत्व अभी भी बना हुआ है। ये हमें हमारे पूर्वजों की बुद्धिमत्ता और अनुभवों से जोड़ती हैं और हमें नैतिकता, सामाजिक मूल्यों, और जीवन के सार के बारे में सिखाती हैं। इस तरह, कहावतें न केवल भाषा की समृद्धि को दर्शाती हैं, बल्कि वे हमें हमारे सांस्कृतिक धरोहर से भी जोड़ती हैं।

कहावतें कैसे बनती हैं?

कहावतें भाषा, संस्कृति, और समाज की अभिव्यक्ति का एक अनूठा रूप हैं। ये छोटे वाक्यांश या वाक्य होते हैं जो जीवन के अनुभवों, नैतिकता, और ज्ञान को संक्षेप में प्रस्तुत करते हैं। कहावतों का निर्माण और विकास कई प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है। आइए जानते हैं कि कहावतें कैसे बनती हैं:

  1. सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियां: कहावतें अक्सर उन समाजों और संस्कृतियों से उभरती हैं जिनमें वे पैदा होती हैं। विशेष सामाजिक परिस्थितियां, जैसे कृषि, शिकार, युद्ध, या पारिवारिक संबंध, कहावतों के निर्माण का आधार बनती हैं।
  2. लोककथाएँ और पौराणिक कथाएँ: कई कहावतें लोककथाओं, पौराणिक कहानियों, और इतिहास के घटनाक्रमों से जुड़ी होती हैं। ये कहानियां और उनके पात्र, कहावतों के रूप में ज्ञान को संक्षेपित करने का माध्यम बनते हैं।
  3. प्राकृतिक परिवेश और वातावरण: कहावतों का निर्माण अक्सर प्राकृतिक परिवेश और मौसम के परिवर्तनों के अनुभवों से प्रभावित होता है। जैसे, कृषि संबंधित कहावतें फसलों, मौसम, और प्राकृतिक चक्रों पर आधारित होती हैं।
  4. सामाजिक और नैतिक मूल्य: कहावतें समाज के नैतिक मूल्यों और धारणाओं को दर्शाती हैं। वे समाज के अच्छे और बुरे, सही और गलत के बारे में ज्ञान प्रदान करती हैं।
  5. अनुभव और ज्ञान का संचार: कहावतें अनुभवों और ज्ञान को संक्षेप में प्रस्तुत करने का एक माध्यम होती हैं। वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान के संचार का काम करती हैं।
  6. लोकप्रिय वाक्यांशों का प्रचलन: कुछ कहावतें लोकप्रिय वाक्यांशों से विकसित होती हैं जो विशेष अवसरों या परिस्थितियों में बार-बार उपयोग होते हैं।
  7. भाषाई विकास: भाषा के विकास के साथ कहावतों का निर्माण और परिवर्तन भी होता है। नई भाषाई अभिव्यक्तियां और शब्द संयोजन कहावतों के रूप में स्थायी बन सकते हैं।
  8. मानवीय भावनाएँ और संवेदनाएँ: कहावतें मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त करती हैं। खुशी, दुःख, प्रेम, क्रोध, और अन्य भावनाएं कहावतों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  9. व्यंग्य और हास्य: कहावतें कई बार व्यंग्य और हास्य का उपयोग करती हैं ताकि जीवन के विचित्र पहलुओं को प्रकट कर सकें।
  10. मौखिक परंपरा और लोकगीत: कहावतें अक्सर मौखिक परंपरा और लोकगीतों के माध्यम से प्रचलित होती हैं। ये लोकगीत और कथाएं कहावतों के रूप में समृद्ध होती हैं।
  11. सामाजिक परिवर्तन: समाज में आने वाले परिवर्तन और नई विचारधाराएँ कहावतों के निर्माण में प्रभाव डालती हैं।

1. कहावत – डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ
अर्थ: कहावत का सार यह है कि किसी का नाम या उपाधि भले ही प्रभावशाली हो, लेकिन असली शक्ति या क्षमता कुछ और हो सकती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब हम किसी की खोखली प्रतिष्ठा या दिखावटी शक्ति का वर्णन करना चाहते हैं।
उदाहरण: एक व्यापारी जिसका नाम बड़ा प्रसिद्ध था, लेकिन जब व्यापारिक संकट आया, तो वह डर गया और सही निर्णय नहीं ले पाया।

2. कहावत – डायन को भी दामाद प्यारा
अर्थ: कहावत का तात्पर्य है कि यहाँ तक कि सबसे कठोर और निर्दयी व्यक्ति भी अपने प्रियजनों के प्रति प्रेम और स्नेह रखते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि प्रेम और लगाव की शक्ति सभी के हृदय में होती है, चाहे व्यक्ति कितना भी कठोर क्यों न हो।
उदाहरण: एक व्यापारी जिसे लोग उसकी कठोरता के लिए जानते थे, अपने दामाद के प्रति बेहद स्नेही और दयालु था।

3. कहावत – ठुमकी गैया सदा कलोर
अर्थ: कहावत का तात्पर्य यह है कि छोटे कद वाले व्यक्ति या जानवर अक्सर उनके वास्तविक आयु या परिपक्वता से छोटे प्रतीत होते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि अक्सर बाहरी आकार वास्तविकता को छुपा लेता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक छोटे कद का व्यक्ति जिसकी उम्र 30 साल है, लेकिन वह अपने कद के कारण अक्सर 20 साल का युवा लगता है।

4. कहावत – टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए
अर्थ: इस कहावत का तात्पर्य यह है कि कुछ लोगों का काम केवल उनकी दैनिक जरूरतों को पूरा करता है और उन्हें अतिरिक्त सुविधाएं या आराम प्रदान नहीं करता।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग आर्थिक संकट और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कठिन परिश्रम करने वाले लोगों की स्थिति को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक दिहाड़ी मजदूर दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन उसकी कमाई सिर्फ उसके और उसके परिवार के खाने की जरूरतों को ही पूरा कर पाती है। उसके पास नए कपड़े खरीदने की भी सामर्थ्य नहीं होती।

5. कहावत – टका सर्वत्र पूज्यन्ते, बिन टका टकटकायते
अर्थ: इस कहावत का सारांश यह है कि जिसके पास धन है, वह समाज में पूजनीय है, जबकि बिना धन के व्यक्ति की समाज में कोई कद्र नहीं होती।
प्रयोग: स कहावत का उपयोग अक्सर उस स्थिति में किया जाता है जब धन के आधार पर किसी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और महत्व को दर्शाना हो। यह यह भी दिखाता है कि कैसे समाज में व्यक्तिगत मूल्यों को धन से जोड़ा जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति जो पहले बहुत धनी था, उसे समाज में बहुत आदर मिलता था। लेकिन जब वह दिवालिया हो गया, तब उसी समाज ने उसकी अनदेखी की। यह उदाहरण इस कहावत की सच्चाई को दर्शाता है।

6. कहावत – टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे
अर्थ: कहावत का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति अपनी समस्याओं को हर किसी के सामने लगातार प्रकट करता है, वह अंततः अपनी विश्वसनीयता और सम्मान खो देता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग व्यक्तिगत समस्याओं को सार्वजनिक रूप से बार-बार बताने की प्रवृत्ति और इसके नकारात्मक परिणामों को समझाने के लिए किया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी जो बार-बार अपने व्यापार में हुए नुकसान की बात हर किसी से करता है, लोग उसके प्रति सहानुभूति की बजाय अविश्वास और उपेक्षा का भाव रखने लगते हैं।

7. कहावत – ठग मारे अनजान, बनिया मारे जान
अर्थ: इस कहावत का तात्पर्य यह है कि एक ठग अजनबियों को धोखा देता है, जबकि एक व्यापारी अक्सर उन लोगों को धोखा देता है जिन्हें वह जानता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग यह दिखाने के लिए किया जाता है कि धोखाधड़ी किसी भी रूप में हो, यह अनैतिक है और इसके विभिन्न रूप हो सकते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए, एक बाजार में एक ठग नकली सोना बेचकर अनजान लोगों को धोखा देता है। दूसरी ओर, एक बनिया अपने नियमित ग्राहकों को कम तौलकर या घटिया सामान बेचकर धोखा देता है।

8. कहावत – टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में
अर्थ: “टका” यानी पैसा या मुद्रा, और इस कहावत का अर्थ है कि जिसके पास धन होता है, वह समाज में उच्च स्थान पर माना जाता है। धन के आधार पर ही व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा और उसकी जाति का निर्धारण होता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब हम समाज में धन की महत्वपूर्णता और उसके प्रभाव को व्यक्त करना चाहते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए, एक गाँव में एक धनी व्यक्ति रहता है। उसकी संपत्ति और धन के कारण गाँव के लोग उसे बहुत आदर और सम्मान देते हैं। इसके विपरीत, एक गरीब व्यक्ति को वही सम्मान और आदर नहीं मिलता, भले ही उसके चरित्र और गुण अच्छे हों।

9. कहावत – टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा,
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि एक ‘टट्टू’ या कम समझ वाले व्यक्ति को नियंत्रित करने के लिए कठोर उपाय की आवश्यकता होती है, जैसे कि कोड़े का प्रयोग। दूसरी ओर, ‘ताजी’ या बुद्धिमान व्यक्ति केवल एक संकेत या इशारे से ही समझ जाता है और उचित कार्य करता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग अक्सर शिक्षा, प्रबंधन, और पालन-पोषण के संदर्भ में किया जाता है जहाँ विभिन्न व्यक्तियों को समझाने के लिए विभिन्न तरीकों की आवश्यकता होती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक शिक्षक के पास दो विद्यार्थी हैं – एक बहुत तेज और एक औसत। तेज विद्यार्थी को केवल निर्देशों का पालन करने के लिए एक इशारा काफी होता है, जबकि औसत विद्यार्थी को समझाने के लिए अधिक प्रयास और समय की जरूरत होती है।

10. कहावत – टाट का लंगोटा नवाब से यारी
अर्थ: कहावत का सार यह है कि जब एक गरीब व्यक्ति धनी व्यक्ति से मित्रता करने की कोशिश करता है, तो उसे अक्सर सामाजिक और आर्थिक अंतर के कारण उपेक्षा और असमानता का सामना करना पड़ता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग समाज में वर्गीकरण और आर्थिक विभाजन को समझाने के लिए किया जाता है। यह समाज में मौजूद असमानताओं और वर्ग भेदभाव को उजागर करता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक गरीब किसान जो अपने खेतों में कड़ी मेहनत करता है, वह अपने गाँव के एक धनी जमींदार से मित्रता करना चाहता है। परंतु, जमींदार उसे हमेशा उसकी आर्थिक स्थिति के कारण नीचा दिखाता है और उसकी उपेक्षा करता है।

11. कहावत – ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय
अर्थ: इस कहावत का भावार्थ है कि जैसे-जैसे कोई व्यक्ति अधिक ऋण लेता जाता है, उसके ऊपर बोझ उतना ही बढ़ता जाता है।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर उस समय प्रयोग में लाई जाती है जब किसी को ऋण लेने के परिणामों के प्रति सचेत करना होता है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति ने कुछ व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए बड़ी मात्रा में ऋण लिया और उसे चुकाने में असमर्थ रहा। धीरे-धीरे उसका कर्ज बढ़ता गया और उसके लिए बोझ बन गया।

12. कहावत – झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जब एक व्यक्ति छोटे या सीमित परिवेश में होता है, तो उसकी महत्वाकांक्षा और प्रभाव अधिक महसूस की जा सकती है। यहाँ बिल्ली, जो वास्तव में शेर नहीं है, छोटे जंगल में शेर की तरह प्रभावशाली हो जाती है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब होता है जब किसी व्यक्ति को उसके छोटे समूह या समाज में अधिक महत्वपूर्ण दिखाया जाता है, लेकिन वह व्यापक संदर्भ में उतना प्रभावशाली नहीं होता।
उदाहरण: एक छोटे गाँव का सरपंच, जो गाँव में बहुत प्रभावशाली है, लेकिन शहर में उसकी कोई खास पहचान नहीं है, इस कहावत का एक उदाहरण हो सकता है।

13. कहावत – झूठ के पांव नहीं होते
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि झूठ एक अस्थायी और कमजोर आधार पर टिका होता है और जब उसकी परीक्षा होती है, तो वह टिक नहीं पाता। यह सिखाती है कि सच्चाई का मार्ग ही दीर्घकालिक सफलता और सम्मान का मार्ग है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग में लाई जाती है जब किसी व्यक्ति का झूठ सामने आता है और वह अपने झूठे बयान के साथ खड़ा नहीं रह पाता। इसका इस्तेमाल यह बताने के लिए होता है कि झूठ अंततः उजागर हो ही जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति ने अपने बॉस को झूठ बोला कि वह बीमार है, लेकिन बाद में पता चला कि वह छुट्टी पर घूमने गया था। जब उसका झूठ पकड़ा गया, तो उसे अपने झूठ के लिए खेद प्रकट करना पड़ा। यहाँ “झूठ के पांव नहीं होते” कहावत सटीक बैठती है।

14. कहावत – झूठ बोलने में सरफ़ा क्या
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि झूठ बोलना आसान है और इसमें तात्कालिक रूप से कोई वित्तीय या भौतिक खर्च नहीं होता। इस कहावत के माध्यम से यह भी समझाया जाता है कि झूठ बोलने के बावजूद अक्सर लोग इसे सहजता से करते हैं।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर उस समय प्रयोग में लाई जाती है जब किसी व्यक्ति को बिना किसी लागत के झूठ बोलते देखा जाता है या जब कोई व्यक्ति अपने फायदे के लिए झूठ बोलता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी अपने उत्पाद की गुणवत्ता को लेकर झूठ बोलता है ताकि अधिक बिक्री हो सके। इस स्थिति में, यह कहावत इस्तेमाल हो सकती है क्योंकि व्यापारी के लिए झूठ बोलने में कोई तत्काल खर्च नहीं है।

15. कहावत – झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि झूठ बोलने वाले को सही दिशा दिखाने की जिम्मेदारी समाज पर है। जब कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, तो उसे विवाद या तर्क के माध्यम से सत्य की ओर ले जाना चाहिए।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी झूठे व्यक्ति को सत्य का अहसास कराने की आवश्यकता हो। यह उस स्थिति को भी दर्शाती है जहां झूठ के खिलाफ लगातार प्रयास किए जाते हैं ताकि अंततः सच्चाई की जीत हो।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कार्यस्थल पर कोई व्यक्ति अपने सहकर्मी के खिलाफ झूठे आरोप लगाता है। इस स्थिति में, पीड़ित सहकर्मी को तर्क और साक्ष्य के माध्यम से झूठे आरोपों का सामना करना चाहिए, ताकि अंत में सत्य की जीत हो।

16. कहावत – टंटा विष की बेल है
अर्थ: इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि झगड़े या विवाद विष की बेल के समान हैं, जो जहरीले होते हैं और जिनका अंततः हानिकारक प्रभाव पड़ता है। यह कहावत यह भी बताती है कि विवाद से किसी को भी लाभ नहीं होता, बल्कि इससे सिर्फ नुकसान ही होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी झगड़े या विवाद के दीर्घकालिक और विनाशकारी परिणामों पर चर्चा करनी हो।
उदाहरण: मान लीजिए, दो पड़ोसियों के बीच छोटी सी बात को लेकर विवाद हो जाता है, जिससे उनके बीच दुश्मनी पनपने लगती है। इससे न केवल उन दोनों के बीच तनाव बढ़ता है, बल्कि उनके परिवारों और समुदाय पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में “टंटा विष की बेल है” कहावत उपयुक्त होती है।

17. कहावत – टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायका
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि ‘टका’ (एक प्रकार का सिक्का) के द्वारा किए गए कर्म (कर्ता), उसे नष्ट करने वाले (हर्ता), और मोक्ष प्राप्ति में सहायक (मोक्ष विधायका) सभी एक ही होते हैं। यह कहावत धन की सीमित शक्ति और अंतिम उद्देश्य की ओर इशारा करती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब यह दर्शाना हो कि धन की शक्ति सीमित है और अंततः सच्चे उद्देश्य की प्राप्ति में इसका अधिक महत्व नहीं होता।
उदाहरण: मान लीजिए, एक धनी व्यक्ति अपने धन के बल पर बहुत से कार्य करता है, लेकिन जब वह अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँचता है, तो उसे यह एहसास होता है कि उसका धन उसे मोक्ष या आत्मिक शांति नहीं दिला सकता। इस स्थिति में, “टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायका” कहावत सार्थक होती है।

18. कहावत – ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े
अर्थ: इस कहावत का भाव यह है कि आर्थिक संपन्नता के साथ ही व्यक्ति को अपने खर्चों पर अधिक नियंत्रण रखना चाहिए और अधिक सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर तब प्रयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति को अपनी बढ़ती आय के साथ मितव्ययिता और सावधानी के महत्व को समझाना होता है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति की आमदनी में अचानक वृद्धि हो जाती है। इस स्थिति में, वह यदि अपने खर्चों में अनावश्यक वृद्धि कर देता है, तो यह कहावत उसे सावधान करती है कि आय बढ़ने के साथ ही खर्चों पर नियंत्रण रखना चाहिए।

19. कहावत – ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध
अर्थ: इस कहावत का तात्पर्य यह है कि जब किसी व्यक्ति की खामियों या गलतियों को उजागर किया जाता है, तो वह अक्सर गुस्से में या अपमानित महसूस करता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग में आती है जब किसी को उनकी गलतियों का आईना दिखाया जाता है और वे इस पर क्रोधित या असहज महसूस करते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति ने कोई गलती की और जब उसे उसकी गलती का अहसास कराया गया, तो उसने क्रोध में उत्तर दिया या बहाने बनाने लगा।

20. कहावत – झगड़े की तीन जड़, जन, जमीन, जर
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि अधिकांश संघर्ष और विवाद इन तीन मूल कारणों से उत्पन्न होते हैं। यह जीवन के तीन महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाता है जो अक्सर संघर्ष का कारण बनते हैं।
प्रयोग: यह कहावत संघर्षों की जड़ों को समझने में मदद करती है और इसका उपयोग सामाजिक, राजनीतिक या व्यक्तिगत विवादों के मूल कारणों को समझाने के लिए किया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, दो परिवारों के बीच जमीन को लेकर विवाद होता है, या दो व्यक्तियों के बीच धन संबंधी मतभेद होते हैं, या फिर दो समुदायों के बीच महिला संबंधी मामलों पर विवाद होता है, तो यह कहावत उनके झगड़ों के मूल कारण को बताती है।

21. कहावत – झट मँगनी पट ब्याह
अर्थ: जल्दी सगाई होना और फिर तुरंत विवाह हो जाना। यह व्यक्त करता है कि कैसे कभी-कभी जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय बिना बहुत अधिक विचार-विमर्श के जल्दी में लिए जाते हैं।
प्रयोग: यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है, जब कोई तेजी से और बिना पर्याप्त समय लिए किसी महत्वपूर्ण काम में निर्णय लेता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक युवक और युवती ने मात्र कुछ ही मुलाकातों के बाद विवाह का निर्णय ले लिया और बिना ज्यादा समय बर्बाद किए शादी कर ली। इस प्रकार के निर्णय के लिए लोग कहेंगे, “झट मँगनी पट ब्याह हो गया।”

22. कहावत – झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी
अर्थ: इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब किसी काम को बहुत तेजी और जल्दबाजी में किया जाता है, तो उसका परिणाम अधूरा और असंतोषजनक होता है। यहाँ ‘आधा तेल आधा पानी’ से तात्पर्य है कि काम न तो पूरी तरह से सही होता है और न ही पूरी तरह से गलत, बल्कि अधूरा और असंगत होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग में आती है जब हमें यह समझाना होता है कि किसी काम को बिना पर्याप्त समय और ध्यान दिए करने से उसका परिणाम संतोषजनक नहीं होता।
उदाहरण: मान लीजिए, एक छात्र ने परीक्षा की तैयारी जल्दबाजी में की और परीक्षा में उसे औसत अंक मिले। यहाँ कहा जा सकता है कि छात्र की तैयारी ‘झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी’ थी।

23. कहावत – जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ
अर्थ: इस कहावत का तात्पर्य है कि बाहरी दिखावे या प्रतीकात्मक वस्त्रों से व्यक्ति के आंतरिक ज्ञान या योग्यता का पता नहीं चलता। असली आध्यात्मिकता और साधना आंतरिक उद्देश्य और प्रयासों से जुड़ी होती है।
प्रयोग: यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है, जब व्यक्ति केवल बाहरी रूप से अपनी छवि बनाने की कोशिश करता है, परंतु उसके वास्तविक गुण या ज्ञान में कोई गहराई नहीं होती।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति जो जोगी के वस्त्र पहनता है और बाहरी तौर पर आध्यात्मिक दिखता है, पर अगर उसमें योग की गहरी समझ और आत्म-साधना का अभाव है, तो वह असली जोगी नहीं कहला सकता।

24. कहावत – जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि शक्तिशाली लोगों के झगड़े में अक्सर निर्दोष और कमजोर लोग पीस जाते हैं। यह एक सामाजिक विडंबना को दर्शाता है जहाँ बड़े लोगों की लड़ाई में छोटे लोगों को नुकसान होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब दो शक्तिशाली गुटों या व्यक्तियों के बीच के विवाद में छोटे और निर्दोष लोग प्रभावित होते हैं। इसका उपयोग राजनीति, सामाजिक विवाद, या यहाँ तक कि पारिवारिक झगड़ों में भी होता है।
उदाहरण: अगर दो बड़ी कंपनियां आपस में मुकदमेबाजी में लग जाएं, तो इसका नुकसान उनके कर्मचारियों और ग्राहकों को होता है, जिन्हें इस झगड़े का कोई सीधा लेना-देना नहीं होता।

25. कहावत – जोरू चिकनी मियाँ मजूर
अर्थ: इस कहावत का भाव यह है कि जीवनसाथी के बीच बाहरी रूप, सामाजिक स्थिति, या आर्थिक स्थिति में असमानता हो सकती है।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर तब प्रयोग में लाई जाती है जब दंपत्ति के बीच दिखाई देने वाली असमानताओं को उजागर करना होता है, खासकर जब ये असमानताएं बाहरी या आर्थिक होती हैं।
उदाहरण: मान लीजिए एक गाँव में एक दंपत्ति हैं, जहाँ पत्नी अत्यंत सुंदर है लेकिन पति साधारण दिखने वाला और कम आय वाला मजदूर है। इस स्थिति में लोग अक्सर कहते हैं कि “जोरू चिकनी मियाँ मजूर”।

26. कहावत – जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी
अर्थ: इस कहावत का मतलब है कि एक पत्नी अपने पति के आर्थिक संसाधनों में रुचि रखती है, जबकि एक माँ की पहली चिंता उसके बेटे की भौतिक और शारीरिक भलाई होती है।
प्रयोग: यह कहावत आमतौर पर तब प्रयोग की जाती है जब पारिवारिक संबंधों और उनमें निहित प्राथमिकताओं की चर्चा होती है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति अपने काम से थक कर घर आता है। उसकी पत्नी उससे पहला सवाल करती है कि उसने आज कितना कमाया, जबकि उसकी माँ उसके खाने और स्वास्थ्य की जाँच करती है।

27. कहावत – जोरू न जांता, अल्लाह मियां से नाता
अर्थ: कहावत का मतलब है कि जब कोई व्यक्ति पूरी तरह अकेला होता है और उसके पास कोई पारिवारिक या सामाजिक सहारा नहीं होता, तो वह ईश्वर में आस्था और विश्वास रखता है।
प्रयोग: यह कहावत आमतौर पर उन परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है जहां कोई व्यक्ति सामाजिक या पारिवारिक संबंधों से वंचित होता है और उसका एकमात्र सहारा ईश्वर होता है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति जिसका कोई परिवार नहीं है और वह समाज से भी अलग-थलग है, वह अपनी मुश्किलों में ईश्वर से प्रार्थना करता है और उनमें ही अपना सहारा ढूंढता है।

28. कहावत – जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि जो लोग निरंतर यात्रा करते हैं और कहीं स्थिर नहीं होते, उनसे स्थायी संबंध या गहरी मित्रता बनाना कठिन होता है। जोगी और कलंदर यहाँ उन व्यक्तियों के प्रतीक हैं जो सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर जीवन जीते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग अक्सर उस स्थिति में किया जाता है, जब किसी व्यक्ति की अस्थिर जीवनशैली या लगातार परिवर्तनशीलता की ओर इशारा करना हो। यह उन लोगों के लिए एक व्यंग्य हो सकता है जो स्थायी संबंध नहीं बना पाते या जो लगातार यात्रा में रहते हैं।
उदाहरण: एक व्यापारी जो अपने कार्य के लिए अक्सर शहर से शहर जाता है, उसे अपने परिवार और दोस्तों से गहरे संबंध बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में यह कहावत प्रासंगिक होती है।

29. कहावत – जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में
अर्थ: इस कहावत का सीधा अर्थ है कि जो आनंद और संतोष व्यक्ति को अपने घर में मिलता है, वह दुनिया के किसी भी अन्य स्थान पर नहीं मिल सकता।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर तब प्रयोग में लाई जाती है, जब किसी व्यक्ति को यह समझाना होता है कि विदेश या बाहरी स्थानों में जाने का आकर्षण भले ही हो, परंतु अपने घर का आनंद सर्वोपरि है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति विदेश में नौकरी करता है और वहां उसे सभी सुविधाएं और ऐश्वर्य मिलता है, परंतु वह अपने घर और परिवार को याद करता है। इस स्थिति में, यह कहावत प्रासंगिक होती है क्योंकि इससे यह समझ आता है कि घर का सुख और आत्मीयता किसी भी बाहरी सुख से बड़ी है।

30. कहावत – जो बोले सो कुंडा खोले
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जो व्यक्ति किसी कार्य को करने का तरीका बताता है, उसे उस कार्य की जिम्मेदारी भी सौंप दी जाती है। यह उस विचार को दर्शाता है कि जिसके पास किसी कार्य के लिए विचार या योजना है, उसे ही उसे क्रियान्वित करना चाहिए।
प्रयोग: यह कहावत विभिन्न संदर्भों में उपयोगी होती है, जैसे कि कार्यस्थल पर, परियोजना प्रबंधन में, और सामाजिक एवं पारिवारिक संगठनों में, जहां लोगों को उनकी सुझावों के आधार पर कार्य सौंपे जाते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कर्मचारी ने अपनी कंपनी के लिए एक नई विपणन रणनीति का सुझाव दिया। उसके बाद, प्रबंधन ने उसे इस रणनीति को लागू करने की जिम्मेदारी सौंप दी। इस परिस्थिति में, “जो बोले सो कुंडा खोले” कहावत लागू होती है।

31. कहावत – जो टट्टू जीते संग्राम, तो क्यों खरचैं तुरकी दाम
अर्थ: इस कहावत का मूल अर्थ है कि यदि छोटे या साधारण संसाधनों से किसी कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है, तो महंगे और विशाल संसाधनों पर धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।
प्रयोग: यह कहावत व्यापारिक निर्णयों, प्रबंधन रणनीतियों, और यहां तक कि व्यक्तिगत जीवन में भी लागू होती है, जहां संसाधनों का समझदारी से उपयोग करने की बात कही जाती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक छोटी कंपनी ने सीमित संसाधनों के साथ एक बड़ी परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया। इस स्थिति में, “जो टट्टू जीते संग्राम, तो क्यों खरचैं तुरकी दाम” कहावत प्रासंगिक होती है।

32. कहावत – जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है
अर्थ: इस कहावत का मूल अर्थ है कि जो व्यक्ति दूसरों के लिए बुराई या नुकसान की योजना बनाता है, अक्सर वह स्वयं उसका शिकार बन जाता है। यह जीवन के न्याय और कर्म के सिद्धांत को दर्शाता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग सामाजिक जीवन, नैतिक शिक्षा और न्याय के संदर्भ में किया जाता है। यह व्यक्ति को दूसरों के प्रति बुराई करने से रोकने का एक प्रबल संदेश देती है।
उदाहरण: किसी व्यक्ति ने अपने प्रतिद्वंद्वी के लिए धोखाधड़ी की योजना बनाई, लेकिन अंत में वह स्वयं उसी योजना का शिकार हो गया। यहाँ पर यह कहावत सटीक बैठती है।

33. कहावत – जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि यदि किसी चीज़ के नष्ट होने की संभावना है, तो उसका एक हिस्सा व्यय कर देना चाहिए और शेष हिस्सा बचा कर रखना चाहिए। यह धन के प्रबंधन और संरक्षण की सीख देती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग आर्थिक योजना बनाते समय, वित्तीय निवेश के निर्णयों में, और संपत्ति के संचय एवं उसके वितरण में किया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति को अचानक बड़ी राशि की प्राप्ति होती है। इस कहावत के अनुसार, उसे इस धन का कुछ हिस्सा वर्तमान जरूरतों या इच्छाओं पर खर्च कर देना चाहिए और शेष भाग को भविष्य के लिए सुरक्षित रखना चाहिए।

34. कहावत – जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवे
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जो व्यक्ति प्रयास करता है, वही सफलता प्राप्त करता है, जबकि जो निष्क्रिय रहता है या प्रयत्न नहीं करता, वह अवसर खो देता है।
प्रयोग: यह कहावत सामान्य जीवन, शिक्षा, करियर, और व्यापारिक उद्यमों में लागू होती है, जहाँ सतत प्रयास और सक्रियता महत्वपूर्ण होती है।
उदाहरण: उदाहरण के तौर पर, एक छात्र जो पढ़ाई में लगातार मेहनत करता है, वह अच्छे अंक प्राप्त करता है, जबकि जो छात्र पढ़ाई से विमुख रहता है, वह पिछड़ जाता है।

35. कहावत – जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग दरबारी या विदेशी बन जाते हैं, उनका धर्म और सांसारिक कर्तव्यों के प्रति समर्पण समाप्त हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि जब व्यक्ति सत्ता या अन्य बाहरी प्रभावों में फंस जाते हैं, तो वे अपने मूल सिद्धांतों और जड़ों से दूर हो जाते हैं।
प्रयोग: यह कहावत सामाजिक और नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूकता और सावधानी बरतने के संदर्भ में प्रयोग की जाती है। यह व्यक्तिगत नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारियों के महत्व को रेखांकित करती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति जो पहले अपने समाज और परिवार के प्रति समर्पित था, लेकिन जब वह उच्च पद पर पहुंचा तो उसने अपने मूल सिद्धांतों और जड़ों को भुला दिया।

36. कहावत – जो गुड़ खाय वही कान छिदावे
अर्थ:इस कहावत का मतलब है कि यदि आपको जीवन में कुछ अच्छा प्राप्त करना है, तो उसके लिए आपको कुछ कष्ट या मेहनत भी करनी होगी।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जहां व्यक्ति को कुछ पाने के लिए कठिनाई या परिश्रम करना पड़ता है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति ने अपने व्यापार में सफलता पाने के लिए दिन-रात मेहनत की। उसकी सफलता इस कहावत का एक उदाहरण है कि “जो गुड़ खाय वही कान छिदावे”।

37. कहावत – जो गुड़ देने से मरे उसे विष क्यों दिया जाए
अर्थ: इस कहावत का सीधा अर्थ है कि यदि किसी विवाद या समस्या को मधुर वचन या सकारात्मक प्रलोभन से हल किया जा सकता है, तो फिर कठोर उपायों का प्रयोग क्यों किया जाए।
प्रयोग: यह कहावत व्यापार, पारिवारिक जीवन, या सामाजिक संबंधों में उपयोगी होती है, जहां समस्याओं को हल करने के लिए सौम्य और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी का अपने ग्राहक के साथ मतभेद हो गया। उस व्यापारी ने समझदारी से काम लेते हुए, ग्राहक को कुछ विशेष छूट और सौजन्यता प्रदान की, जिससे विवाद सुलझ गया। इस स्थिति में, “जो गुड़ देने से मरे उसे विष क्यों दिया जाए” कहावत प्रासंगिक होती है।

38. कहावत – जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच
अर्थ: इस कहावत का सीधा अर्थ है कि समान गुणवत्ता या स्वभाव वाले लोग या चीजें आपस में आकर्षित होते हैं। यह उस सिद्धांत को दर्शाता है जिसमें कहा गया है कि ‘समान वस्तुएं एक-दूसरे को आकर्षित करती हैं।’
प्रयोग: यह कहावत अक्सर तब प्रयोग की जाती है जब कोई देखता है कि दो समान स्वभाव वाले लोग या वस्तुएं एक-दूसरे के साथ अच्छी तरह से मेल खा रहे होते हैं।
उदाहरण: यदि दो व्यक्ति जो बहुत धनी हैं और उनके पास समान रुचियाँ और आदतें हैं, वे एक-दूसरे के अच्छे मित्र बन जाते हैं, तो इसे “जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच” कहावत से व्याख्यायित किया जा सकता है।

39. कहावत – जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग अधिक संकट और कठिनाइयों का सामना करते हैं, वे ही सच्चे सुख और आराम की महत्ता को समझते हैं।
प्रयोग: जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक कठिनाइयों से जूझता है और फिर उसे सुख का अनुभव होता है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण: एक किसान जो दिन-रात मेहनत करके फसल उगाता है, जब उसे अच्छी फसल का परिणाम मिलता है, तो वह इस कहावत के अनुसार सुख का अनुभव करता है।

40. कहावत – जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की
अर्थ:इस कहावत का सामान्य अर्थ है कि यदि कोई व्यापार या वित्तीय लेखा-जोखा में गलती करता है, तो उसे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह व्यापारिक सावधानी और सटीकता की महत्वपूर्णता को दर्शाता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग आमतौर पर व्यापारिक या वित्तीय संदर्भ में होता है, जहां सटीकता और सावधानी बहुत जरूरी होती है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यापारी ने अपने खातों में गलती की और उसे बाद में अपने ग्राहकों और आपूर्तिकर्ताओं को अधिक पैसे देने पड़े। इस स्थिति में “जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की” कहावत का प्रयोग किया जा सकता है।

41. कहावत – जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन
अर्थ: इस कहावत का मतलब है कि शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद कुछ लोग सामाजिक तौर पर संवाद, चाल-ढाल और बैठकी (मीटिंग या सम्मेलन में बैठने का तरीका) में कमी रखते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग अक्सर उन परिस्थितियों में किया जाता है जहाँ व्यक्ति की शिक्षा और उसके व्यवहारिक गुणों में असंगति दिखाई देती है।
उदाहरण: मान लीजिए एक गांव का व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है लेकिन जब वह शहर में लोगों से मिलता-जुलता है, तो उसके बोलने की शैली, चलने का तरीका और बैठने की मुद्रा में सामाजिक असंगति नजर आती है।

42. कहावत – जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि परिस्थितियों के अनुसार अपनी रणनीति और कार्य योजना को ढालना चाहिए। यह हमें सिखाती है कि जैसे-जैसे परिस्थितियाँ बदलती हैं, हमें भी अपने निर्णय और कार्यशैली में लचीलापन लाना चाहिए।
प्रयोग: यह कहावत व्यापार, शिक्षा, या व्यक्तिगत जीवन के निर्णयों में उपयोगी होती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमें स्थिति के अनुसार अपनी रणनीति बनानी चाहिए।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी बाजार की प्रवृत्तियों के अनुसार अपने उत्पादों की रणनीति बदलता है, तो इसे “जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट” कहावत के अनुसार कार्य करना कहा जा सकता है।

43. कहावत – जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि व्यक्ति के क्रियाकलाप और व्यवहार उसकी स्थिति, परिस्थितियों या सामर्थ्य के अनुरूप होते हैं। यह यह भी सुझाव देती है कि लोग अपनी क्षमता और संसाधनों के अनुसार ही कार्य करते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग व्यक्ति की स्थिति और उसके कार्यों के बीच के संबंध को समझाने के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग व्यापार, सामाजिक संबंध, और नैतिकता के संदर्भ में किया जा सकता है।
उदाहरण: उदाहरण के लिए, यदि एक छोटे किसान की क्षमता के अनुरूप ही उसकी खेती होती है, तो यह कहावत उस स्थिति को व्यक्त करती है।

44. कहावत – जैसी तेरी तोमरी वैसे मेरे गीत
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि आप जिस प्रकार का व्यवहार दूसरों के साथ करते हैं, उसी प्रकार का व्यवहार आपको भी वापस मिलता है। यह एक प्रकार का नैतिक सिद्धांत है जो यह बताता है कि अच्छाई और बुराई का फल व्यक्ति को इसी जीवन में मिलता है।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर तब इस्तेमाल की जाती है जब कोई व्यक्ति दूसरों के साथ अच्छा या बुरा व्यवहार करता है। इसे लोग समझाने के लिए उपयोग करते हैं कि हर व्यक्ति को वैसा ही व्यवहार मिलता है, जैसा वह दूसरों के साथ करता है।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति अपने मित्रों के साथ हमेशा मददगार और सहयोगी रहता है, तो संकट के समय में उसे भी उसी प्रकार की सहायता और समर्थन मिलता है। इसी तरह, यदि कोई व्यक्ति दूसरों के साथ कठोर या नकारात्मक व्यवहार करता है, तो वह भी भविष्य में उसी प्रकार के व्यवहार का सामना कर सकता है।

45. कहावत – जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि एक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने घर में और विदेश में एक समान व्यवहार करे। यह सिखाता है कि चाहे कोई अपने घर में हो या किसी अन्य स्थान पर, उसका आचरण समान होना चाहिए।
प्रयोग: यह कहावत तब इस्तेमाल की जाती है जब व्यक्ति अपने घर और बाहरी जगहों पर भिन्न व्यवहार दिखाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति को हर जगह एक समान और संतुलित व्यवहार करना चाहिए।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति अपने घर में बहुत सज्जन और विनम्र होता है, लेकिन बाहरी जगहों पर असभ्य और अनुचित व्यवहार करता है, तो यह कहावत उसे यह याद दिलाती है कि उसे हर जगह एक समान व्यवहार करना चाहिए।

46. कहावत – जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम, दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुरूप ही परिणाम मिलते हैं। यह बताता है कि यदि आप अच्छे कर्म करते हैं तो अच्छे परिणाम मिलेंगे, और यदि बुरे कर्म करते हैं तो बुरे परिणाम मिलेंगे।
प्रयोग: यह कहावत तब इस्तेमाल की जाती है जब कोई व्यक्ति यह जानना चाहता हो कि उसके कर्मों का परिणाम क्या होगा। इसे अक्सर नैतिकता और न्याय के संदर्भ में उपयोग किया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति दूसरों की बहुत मदद करता है, तो जब वह स्वयं मुश्किल में होता है तो उसे भी मदद मिलती है। इसी तरह, यदि कोई दूसरों के साथ बुरा व्यवहार करता है, तो भविष्य में उसे भी बुरा अनुभव होता है।

47. कहावत – जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि परिवार के मुखिया के व्यवहार का प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है। यदि मुखिया लबार मतलब झूठ बोलता है तो परिवार भी झूठ बोलेगा, यदि मुखिया अच्छे गुणों वाला होता है, तो परिवार भी उसी तरह का आचरण करता है।
प्रयोग: यह कहावत तब उपयोग में लाई जाती है जब परिवार के सदस्यों का आचरण उनके मुखिया के आचरण से मेल खाता हो।
उदाहरण: मान लीजिए एक परिवार के मुखिया सामाजिक कार्यों में बहुत सक्रिय होते हैं, तो उनके बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य भी सामाजिक कार्यों में रुचि रखते हैं।

48. कहावत – जैसा कन भर वैसा मन भर
अर्थ:“जैसा कन भर वैसा मन भर” का अर्थ है कि थोड़े से नमूने से हम बड़ी चीज़ के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यह कहावत यह भी सुझाव देती है कि छोटे परीक्षण से पूरे का मूल्यांकन किया जा सकता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब हमें छोटे नमूनों या अंशों के आधार पर बड़ी चीज़ों की गुणवत्ता या मूल्य का अंदाजा लगाना होता है।
उदाहरण: किसी व्यक्ति के छोटे से व्यवहार से उसके सम्पूर्ण चरित्र का आकलन किया जा सकता है, या किसी उत्पाद के एक नमूने को देखकर उसकी पूरी गुणवत्ता का निर्धारण किया जा सकता है।

49. कहावत – जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे
अर्थ: इस कहावत का अर्थ यह है कि जैसे कपड़े या परिस्थिति होते हैं, उसी के अनुरूप व्यक्ति को अपना व्यवहार और कार्य करना चाहिए। यह कहावत यह भी सुझाव देती है कि स्थिति के अनुसार लचीलापन और समायोजन महत्वपूर्ण है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब यह दर्शाना होता है कि व्यक्ति को अपने पहनावे या सामाजिक स्थिति के अनुरूप आचरण करना चाहिए।
उदाहरण: उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति औपचारिक वस्त्र पहने हुए है, तो उसे औपचारिक और शिष्टाचारपूर्ण व्यवहार करना चाहिए।

50. कहावत – जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी
अर्थ: कहावत का सीधा अर्थ है “जैसा व्यवहार तुम करोगे, वैसा ही व्यवहार मैं भी करूँगा”। यह बताती है कि लोग अक्सर उसी तरीके से प्रतिक्रिया देते हैं, जैसा उनके साथ व्यवहार किया जाता है।
प्रयोग:यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जहाँ पारस्परिक व्यवहार की बात हो, और यह दिखाना हो कि किसी के कार्यों का प्रतिफल समान रूप से वापस मिलता है।
उदाहरण: मान लीजिए, यदि कोई व्यक्ति दूसरे के प्रति सम्मान और मित्रता का व्यवहार करता है, तो उम्मीद है कि उसे भी वैसा ही सम्मान और मित्रता प्राप्त होगी।

51. कहावत – जैसा देश वैसा वेश
अर्थ: कहावत का अर्थ है कि जिस देश या संस्कृति में आप होते हैं, उसके अनुरूप ही आपको अपना पहनावा और व्यवहार ढालना चाहिए। यह सांस्कृतिक समर्थन और अनुकूलन की बात कहती है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग में लाई जाती है जब किसी को नई सांस्कृतिक परिस्थितियों में समायोजित होने की सलाह दी जाती है।
उदाहरण: उदाहरण के लिए, यदि कोई भारतीय जापान जाता है, तो उसे वहाँ के रीति-रिवाजों का सम्मान करते हुए उनके अनुसार व्यवहार करना चाहिए।

52. कहावत – जैसा मुँह वैसा तमाचा
अर्थ:कहावत का अर्थ है कि जैसा व्यवहार या बातचीत का तरीका व्यक्ति का होता है, उसी अनुसार उसे प्रतिक्रिया मिलती है। इसमें यह भी सम्मिलित है कि किसी के आक्रामक या असभ्य व्यवहार का जवाब भी उसी तरह से दिया जाता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब किसी को यह समझाना होता है कि उनके अपने व्यवहार का परिणाम उन्हें वापस मिलेगा।
उदाहरण: उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति अपने सहकर्मी से रूखे और असभ्य तरीके से बात करता है, तो संभावना है कि उसे भी उसी तरह की प्रतिक्रिया मिलेगी।

53. कहावत – जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग
अर्थ: इस कहावत का मुख्य संदेश यह है कि श्रम और सफलता के बीच हमेशा एक सीधा संबंध नहीं होता। कई बार, कठिन परिश्रम करने वाले लोगों को उनकी मेहनत का उचित लाभ नहीं मिल पाता, जबकि दूसरे लोग, जो कम या कोई श्रम नहीं करते, उन्हें अधिक लाभ मिलता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग आमतौर पर उन स्थितियों में किया जाता है जहां श्रमिक वर्ग का शोषण होता है। यह नौकरी के क्षेत्र में, सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को दर्शाने वाली स्थितियों में, या फिर सामाजिक न्याय की बात करते समय प्रयोग की जा सकती है।
उदाहरण: उदाहरण के तौर पर, यदि एक कारखाने के मजदूर दिन-रात कठिन परिश्रम करते हैं, लेकिन कारखाने का मालिक ही सभी मुनाफे का लाभ उठाता है, तो इस स्थिति को इस कहावत के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है।

54. कहावत – जेठ के भरोसे पेट
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जब एक पुरुष इतना गरीब होता है कि उसके लिए अपने परिवार का भरण-पोषण करना कठिन हो जाता है, और उसकी पत्नी को उसके पति के बड़े भाई यानी जेठ के भरोसे रहना पड़ता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग आमतौर पर उन परिस्थितियों में होता है जहां आर्थिक असमर्थता के कारण पारिवारिक सदस्यों को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसे आर्थिक असुरक्षा और पारिवारिक निर्भरता के संदर्भ में उपयोग किया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति अपनी नौकरी खो देता है और आर्थिक रूप से इतना कमजोर हो जाता है कि उसकी पत्नी को पति के बड़े भाई के घर रहना पड़ता है, तब इस स्थिति को “जेठ के भरोसे पेट” कहावत से व्यक्त किया जा सकता है।

55. कहावत – जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार
अर्थ: इस कहावत का मूल भाव यह है कि प्रत्येक मनुष्य की अपनी एक अनूठी सोच और पसंद होती है। इसके द्वारा यह संदेश दिया जाता है कि मानव स्वभाव में गहरी विविधता होती है और हर व्यक्ति अपने-आप में अद्वितीय होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब हमें दूसरों की अलग विचारधाराओं और रुचियों को समझने और स्वीकार करने की आवश्यकता होती है। यह व्यक्तिगत विविधता और स्वातंत्र्य के महत्व को उजागर करती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कक्षा में विभिन्न छात्र हैं और प्रत्येक की रुचि अलग-अलग विषय में है। कुछ को गणित पसंद है, तो कुछ को साहित्य। यहाँ यह कहावत लागू होती है कि “जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार”।

56. कहावत – जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जिस प्रकार ऊँट लंबा होता है और गधा खवास (सेवक) होता है, उसी प्रकार जब दो मूर्ख या कम बुद्धि वाले व्यक्ति एक साथ आते हैं, तो उनका संगम और भी हास्यास्पद या निरर्थक होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग में लाई जाती है जब दो समान रूप से अक्षम या मूर्ख लोग एक साथ कोई कार्य कर रहे होते हैं, और इससे स्थिति और भी बदतर बन जाती है।
उदाहरण: मान लीजिए, दो व्यक्ति जो किसी काम में बिल्कुल भी दक्ष नहीं हैं, वे एक साथ मिलकर वही काम करने की कोशिश करते हैं। नतीजतन, उनका प्रयास व्यर्थ जाता है और वे हास्य का विषय बन जाते हैं। इस स्थिति में यह कहावत प्रयोग में लाई जा सकती है।

57. कहावत – जिसे पिया चाहे वही सुहागिन
अर्थ: इस कहावत का सामान्य अर्थ है कि जिसे उसके स्वामी की कृपा प्राप्त होती है, वही व्यक्ति सफल और सम्मानित होता है।
प्रयोग: यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति को उसके उच्चाधिकारी या गुरु का विशेष समर्थन और स्नेह प्राप्त होता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कंपनी में एक कर्मचारी है जिसे उसके बॉस का विशेष समर्थन प्राप्त है। इस कारण वह कर्मचारी तरक्की करता है और उसे कंपनी में उच्च पद मिलता है।

58. कहावत – जी कहो जी कहलाओ
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि यदि आप दूसरों को आदरपूर्वक ‘जी’ कहकर संबोधित करते हैं, तो लोग भी आपको सम्मान के साथ ‘जी’ कहकर संबोधित करेंगे।
प्रयोग:यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है, जब हम यह बताना चाहते हैं कि सम्मान एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक छात्र अपने शिक्षक को हमेशा ‘सर जी’ कहकर संबोधित करता है। बदले में, शिक्षक भी उसे सम्मान के साथ प्रोत्साहित करते हैं और उसकी प्रगति में मदद करते हैं।

59. कहावत – जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि बिना जरूरत के अधिक बोलने और अनावश्यक खर्च करने से बचना चाहिए। यह सिखाती है कि जीभ (वाणी) और थैली (धन) का संयमित उपयोग बड़े लाभ लाता है।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब किया जाता है जब हमें यह बताना होता है कि सोच-समझकर बोलना और खर्च करना जरूरी है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति जो बिना सोचे-समझे हमेशा बहुत बोलता है और बेतहाशा खर्च करता है, वह अक्सर मुश्किलों में फंस जाता है। वहीं, एक अन्य व्यक्ति जो अपनी बातों और खर्चों पर संयम रखता है, वह अधिक सुखी और संतुष्ट रहता है।

60. कहावत – जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया
अर्थ:कहावत का सामान्य अर्थ है कि किसी व्यक्ति ने कोई कार्य करने में जोखिम उठाया, जैसे कि गर्म भोजन जल्दी से खा लिया, लेकिन उससे उसे न तो संतोष मिला और न ही आनंद। इस तरह, वह नुकसान उठाने के बावजूद लाभ से वंचित रह गया।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति को उसके प्रयासों का उचित परिणाम नहीं मिलता या जब उसे अपेक्षित लाभ के बदले में हानि ही होती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति ने बहुत मेहनत करके किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, लेकिन अंत में उसे न केवल पुरस्कार नहीं मिला, बल्कि उसकी मेहनत भी व्यर्थ गई।

61. कहावत – जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि कुछ लोग अपने जीवित पिता की सेवा और सम्मान नहीं करते, लेकिन जब वे मर जाते हैं, तो उन्हीं लोगों द्वारा उनका श्राद्ध किया जाता है। यह कहावत उनके पाखंड और दिखावे की ओर इशारा करती है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी को उसके जीवनकाल में सम्मान और प्रेम न देकर, उसकी मृत्यु के बाद उसे अनावश्यक रूप से महत्व दिया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक पुत्र अपने जीवित पिता की उपेक्षा करता है और उनकी सेवा नहीं करता। लेकिन जब पिता की मृत्यु होती है, तब वही पुत्र बड़े धूमधाम से उनका श्राद्ध करता है।

62. कहावत – जान है तो जहान है
अर्थ:कहावत का अर्थ है कि जब तक जीवन है, तभी तक इस दुनिया की हर चीज का महत्व है। जीवन ही सबसे बड़ी संपत्ति है और इसके बिना सभी अन्य चीजें व्यर्थ हैं।
प्रयोग:यह कहावत अक्सर उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जब किसी को अपने स्वास्थ्य और जीवन की अहमियत का एहसास दिलाना होता है। यह जीवन की सर्वोपरि महत्ता को दर्शाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति जो अपने काम में इतना व्यस्त है कि अपने स्वास्थ्य की अनदेखी कर रहा है। ऐसे में, उसे “जान है तो जहान है” कहकर यह समझाया जा सकता है कि उसका स्वास्थ्य ही सबसे महत्वपूर्ण है।

63. कहावत – जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि छोटी-मोटी परेशानियों या डर के कारण अपने महत्वपूर्ण कार्य या जिम्मेदारियों को छोड़ना नहीं चाहिए। जूँ का डर मामूली होता है और गुदड़ी यानी कंबल को फेंकना उसका अनुपातहीन प्रतिक्रिया है।
प्रयोग: यह कहावत तब इस्तेमाल की जाती है जब किसी को यह समझाना होता है कि छोटी-छोटी बाधाओं या डर से विचलित न होकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहना चाहिए।
उदाहरण: मान लीजिए, एक विद्यार्थी परीक्षा के तनाव के कारण पढ़ाई छोड़ने का विचार कर रहा है। ऐसे में उसे यह कहावत याद दिलाई जा सकती है कि “जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती” यानी छोटी-मोटी परेशानियों के कारण बड़े लक्ष्य से पीछे नहीं हटना चाहिए।

64. कहावत – बाप से बैर, पूत से सगाई
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जिनका विश्वास ईश्वर में होता है, वे जीवन में किसी भी तरह की कमी या अभाव को महसूस नहीं करते।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग उन परिस्थितियों में किया जाता है जब किसी की गहरी आस्था और विश्वास उन्हें संकटों में भी संबल प्रदान करता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक गरीब किसान जो बहुत ही धार्मिक है और अपनी हर समस्या का समाधान भगवान राम में ढूंढता है। उसकी इस आस्था के कारण, वह अपने जीवन की कठिनाइयों को भी सहजता से स्वीकार कर लेता है।

65. कहावत – छप्पर पर फूंस नहीं, ड्योढ़ी पर नाच
अर्थ: इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि घर का छप्पर (छत) तो खाली है, लेकिन घर के मुख्य द्वार पर नाच-गाना चल रहा है। यह दिखाता है कि बाहरी दिखावे पर जोर दिया जा रहा है, जबकि आंतरिक रूप से खालीपन है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग उन स्थितियों में किया जाता है जहाँ दिखावटी आडम्बर के पीछे असली मूल्य या सामर्थ्य की कमी हो। यह उन लोगों या संस्थानों पर लागू होता है जो बाहरी आकर्षण और प्रदर्शन पर ध्यान देते हैं लेकिन उनकी वास्तविक स्थिति खोखली होती है।
उदाहरण:मान लीजिए एक कंपनी अपने उत्पादों का भव्य प्रचार करती है, लेकिन वास्तव में उनके उत्पाद की गुणवत्ता निम्न स्तर की है। यहाँ यह कहावत उस कंपनी की स्थिति को सटीक रूप से दर्शाती है।

66. कहावत – जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि जिस व्यक्ति के पास धन होता है, उसके पास दोस्त और सहयोगी अधिक होते हैं। यह व्यक्ति के सामाजिक प्रभाव और संबंधों के निर्माण में धन की भूमिका को उजागर करता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग उन परिस्थितियों में किया जाता है, जहां व्यक्ति के धन-संपदा के कारण उसके चारों ओर लोगों का समूह इकट्ठा हो जाता है। यह बताती है कि कैसे समाज में धन की उपस्थिति लोगों के आकर्षण और व्यवहार को प्रभावित करती है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति जो पहले साधारण जीवन जीता था, अचानक धनवान बन जाता है। आप देखेंगे कि उसके चारों ओर अचानक दोस्तों और सहयोगियों की संख्या बढ़ जाती है। यह उनके धन के प्रति लोगों के आकर्षण को दर्शाता है।

67. कहावत – योगी था सो उठ गया, आसन रहा भभूत
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जीवन में जो भी आता है, वह एक दिन चला जाता है। यहाँ ‘योगी’ से आशय किसी भी व्यक्ति से है और ‘आसन रहा भभूत’ से तात्पर्य है कि उसके जाने के बाद केवल उसकी यादें या उसके कार्यों की छाप रह जाती है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग जीवन की नश्वरता और सांसारिक चीजों की अस्थायित्व को समझाने के लिए किया जाता है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारा अस्तित्व अस्थायी है और हमें इसकी महत्ता समझनी चाहिए।
उदाहरण: मान लीजिए एक सफल व्यक्ति जिसने अपने जीवन में बहुत कुछ हासिल किया हो, लेकिन जब वह इस दुनिया से चला जाता है, तो केवल उसके कार्यों की छाप और यादें रह जाती हैं। उसके बाद की पीढ़ियां उसके द्वारा छोड़े गए निशान को याद करती हैं।

68. कहावत – सूखी तलाईया म मेंढक करय टर-टर
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि एक सूखी हुई तलाईया में भी मेंढक टर-टर करता है, अर्थात् भले ही परिस्थितियां प्रतिकूल हों, लेकिन आशा और सपने हमेशा जीवंत रहते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग उन स्थितियों में किया जाता है जहां वास्तविकता और सपनों के बीच का अंतर अधिक होता है, फिर भी व्यक्ति आशावादी रहता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक छोटे से गांव का व्यक्ति जो अपनी साधारण जिंदगी में बड़े शहर में बड़े सपने देखता है। उसके पास संसाधनों की कमी हो सकती है, लेकिन उसकी आशाएं और सपने उसे हमेशा प्रेरित करते हैं।

69. कहावत – जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे
अर्थ: कहावत का सामान्य अर्थ है कि जिसकी बंदरी होती है, वही उसे नचा सकता है, और अगर कोई और नचाने की कोशिश करता है तो बंदरी उसे काट सकती है। इसका अर्थ है कि किसी काम में व्यक्तिगत रुचि और स्वामित्व होना जरूरी है।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल उन परिस्थितियों में किया जाता है जहाँ किसी कार्य में व्यक्तिगत दिलचस्पी और नियंत्रण का महत्व होता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक कंपनी में कोई परियोजना चल रही है। अगर इस परियोजना का प्रबंधक उसे पूरी तरह से समझता है और उसमें रुचि रखता है, तो वह इसे सफलतापूर्वक पूरा कर सकता है। लेकिन अगर कोई और इसे संभालने की कोशिश करता है, तो परिणाम अच्छे नहीं हो सकते।

70. कहावत – जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे
अर्थ:कहावत का सीधा अर्थ है कि जिसने बिल्ली को पाला होता है, अक्सर वही उसके विद्रोह का शिकार बनता है। यह अकृतज्ञता और विश्वासघात की भावना को दर्शाता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति या चीज़ उसी के खिलाफ विद्रोह करती है जिसने उसे सहारा दिया या सहयोग किया हो।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कंपनी के मालिक ने एक युवा कर्मचारी को प्रशिक्षण दिया और उसे उन्नति के अवसर प्रदान किए। लेकिन, बाद में वही कर्मचारी कंपनी के खिलाफ जा कर उसके प्रतियोगी के साथ मिल जाता है।

71. कहावत – जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जो व्यक्ति धनी नहीं है, समाज उसे अच्छा व्यक्ति नहीं मानता, भले ही उसके अंदर कितनी भी अच्छाइयां क्यों न हों।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग उस स्थिति में किया जाता है जहां धन के आधार पर व्यक्तियों का मूल्यांकन होता है, उनके चरित्र या गुणों के बजाय।
उदाहरण: मान लीजिए, एक गांव में एक धनी व्यक्ति और एक गरीब व्यक्ति रहते हैं। धनी व्यक्ति का व्यवहार अक्सर उद्धत और असभ्य होता है, फिर भी गांव वाले उसे आदर देते हैं। वहीं, गरीब व्यक्ति चाहे कितना भी अच्छा और सहायक क्यों न हो, उसे कम महत्व दिया जाता है।

72. कहावत – घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि घर का जोगी (साधु) लोगों को साधारण लगता है, जबकि दूसरे गाँव का सिद्ध (महान साधु) अधिक सम्मानित माना जाता है। यह विचार यह बताता है कि निकटता के कारण हम अक्सर किसी की क्षमताओं को कम आंकते हैं।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब लोग अपने ही परिवार या समुदाय के सदस्य की तुलना में बाहरी व्यक्ति की प्रशंसा अधिक करते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए, एक गाँव में एक अत्यंत ज्ञानी व्यक्ति रहता है, लेकिन गाँव वाले उसकी कद्र नहीं करते। लेकिन जब वही व्यक्ति किसी अन्य जगह पर जाकर अपना ज्ञान प्रदर्शित करता है, तो लोग उसे बहुत सम्मान देते हैं।

73. कहावत – जिन ढूंढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ
अर्थ: कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जो लोग गहरे पानी में उतरते हैं, उन्हें ही मोती मिलता है। यहाँ ‘गहरे पानी’ का अर्थ है कठिन परिश्रम और गहन खोज।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब किसी को यह समझाना होता है कि कठिन परिश्रम और लगन से ही सफलता प्राप्त होती है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक छात्र ने बहुत मेहनत करके किसी प्रतिष्ठित परीक्षा में उच्च स्थान प्राप्त किया। इस स्थिति में, यह कहा जा सकता है, “जिन ढूंढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ”, अर्थात उसकी मेहनत और लगन सफल रही।

74. कहावत – कोयल होय न उजली, सौ मन साबुन लाई
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि चाहे कोयल को कितना भी साबुन से धोया जाए, उसका काला रंग उजला नहीं होता। यहाँ, ‘कोयल’ का प्रतीकात्मक अर्थ है किसी का अपरिवर्तनीय स्वभाव।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग तब होता है जब किसी के स्वभाव या आदतों में बदलाव लाने के प्रयासों की व्यर्थता को दर्शाना होता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति जो हमेशा झूठ बोलता है, उसे बहुत समझाया जाता है, लेकिन वह अपनी आदत नहीं बदलता। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “कोयल होय न उजली, सौ मन साबुन लाई”।

75. कहावत – चील के घोसले में माँस कहाँ
अर्थ: कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि चील के घोसले में माँस की संभावना नहीं होती, क्योंकि चील माँस को तुरंत खा जाती है। यहाँ, घोसला उन परिस्थितियों का प्रतीक है जहां जीवन या सफलता की संभावना बहुत कम होती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब किसी ऐसे स्थान या परिस्थिति की ओर संकेत करना होता है जहाँ सफलता या जीवन की संभावनाएं बहुत कम होती हैं।
उदाहरण: मान लीजिए, एक छोटा सा व्यवसाय बड़ी कंपनियों के बीच संघर्ष कर रहा है। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “चील के घोसले में माँस कहाँ”। यानी उस व्यवसाय के लिए बड़ी कंपनियों के बीच टिक पाना बहुत मुश्किल है।

76. कहावत – चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब एक पिता और पुत्र मिलकर लड़ते हैं, तो वे दो चोरों को जो लाठियाँ लेकर आए होते हैं, हरा सकते हैं। यहाँ, बाप-पुत की जोड़ी एकता और मजबूती का प्रतीक है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी को यह दर्शाना होता है कि संख्या से ज्यादा महत्वपूर्ण है एकता और ताकत।
उदाहरण:मान लीजिए, एक छोटी सी टीम ने बड़ी टीम को क्रिकेट मैच में हरा दिया। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले”।

77. कहावत – चंदन की चुटकी भरी, गाड़ी भरा न काठ
अर्थ: यह कहावत यह दर्शाती है कि गुणवत्ता की मात्रा उसके मूल्य को निर्धारित करती है, न कि मात्रा। चंदन की छोटी मात्रा भी अपनी सुगंध और औषधीय गुणों के कारण महत्वपूर्ण होती है, जबकि सामान्य लकड़ी की बड़ी मात्रा भी उतनी कीमती नहीं होती।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग अक्सर वास्तु और निर्माण के संदर्भ में किया जाता है। यह बताती है कि एक छोटा लेकिन अच्छी तरह से निर्मित और डिजाइन किया गया घर एक बड़े लेकिन साधारण घर से अधिक मूल्यवान हो सकता है।
उदाहरण:यदि कोई व्यक्ति एक छोटा लेकिन सुंदर और फंक्शनल घर बनाता है, जो वास्तुशास्त्र के अनुसार हो, तो वह एक बड़े, असंगठित और खराब डिजाइन वाले घर से अधिक आनंद और संतोष प्रदान करता है।

78. कहावत – एक आंख से रोना और एक आंख से हंसना
अर्थ:“एक आंख से रोना और एक आंख से हंसना” का सीधा अर्थ है कि एक ही समय में व्यक्ति खुशी और गम दोनों का अनुभव कर सकता है। यह हमारे जीवन के उस द्विविधान्विति भाव को दर्शाता है जहां हम एक ही क्षण में हर्ष और विषाद को महसूस करते हैं।
प्रयोग:यह कहावत अक्सर उन परिस्थितियों में उपयोग की जाती है जहां व्यक्ति दो भावनाओं के बीच झूल रहा होता है। जैसे किसी के विवाह के समय खुशी के साथ-साथ घर छोड़ने का दुःख भी होता है।
उदाहरण: मान लीजिए एक मां जिसका बेटा विदेश में पढ़ने के लिए जा रहा हो, वह एक ओर तो उसकी सफलता पर खुश होती है, वहीं दूसरी ओर उसे दूर जाते देख दुःखी भी होती है।

79. कहावत – एक तवे की रोटी, क्या पतली क्या मोटी
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि एक ही स्रोत से निकले व्यक्तियों या तत्वों में बहुत कम अंतर होता है। चाहे वे रूप या गुण में थोड़े भिन्न क्यों न हों, उनका मूल स्वभाव या सार समान होता है।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर तब प्रयोग की जाती है जब परिवार के सदस्यों या समान मूल के व्यक्तियों के बीच के समानता और एकता की बात की जाती है।
उदाहरण: मान लीजिए एक परिवार में दो भाई हैं, जो स्वभाव से थोड़े भिन्न हैं। एक बहुत शांत और दूसरा थोड़ा चंचल। लेकिन, जब उनके मूल स्वभाव की बात आती है, तो वे दोनों एक जैसे ही हैं, दोनों में समान रूप से प्रेम और समर्पण की भावना है।

80. कहावत – एक न शुद, दो शुद
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि एक परेशानी का अंत होने से पहले ही दूसरी परेशानी शुरू हो जाती है। यह जीवन के उन पलों को दर्शाता है जहां चुनौतियाँ लगातार आती रहती हैं।
प्रयोग:यह कहावत अक्सर तब प्रयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति को लगातार समस्याएं आ रही हों और वह एक के बाद एक समस्या का सामना कर रहा हो।
उदाहरण:मान लीजिए, एक किसान की फसल पहले सूखे से प्रभावित होती है और जैसे ही वह इस समस्या से उबरने की कोशिश करता है, तुरंत ही बाढ़ आ जाती है। यहाँ “एक न शुद, दो शुद” कहावत उसकी स्थिति को अच्छे से व्यक्त करती है।

81. कहावत – एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है
अर्थ: कहावत का अर्थ यह है कि अगर किसी समूह में एक व्यक्ति भी बुरे चरित्र का हो, तो इसका असर पूरे समूह पर पड़ता है। यह दिखाता है कि नकारात्मकता और बुराई का प्रसार कितनी तेजी से हो सकता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग अक्सर उन परिस्थितियों में किया जाता है जहाँ एक व्यक्ति के कारण पूरे समूह या परिवार की छवि खराब हो जाती है। यह व्यक्तियों को यह संदेश देती है कि उनके आचरण का प्रभाव न केवल उन पर, बल्कि उनके आस-पास के लोगों पर भी पड़ता है।
उदाहरण:मान लीजिए एक कार्यालय में काम करने वाला एक कर्मचारी भ्रष्टाचार में लिप्त होता है। इससे न केवल उसकी खुद की छवि खराब होती है, बल्कि पूरे कार्यालय और उसके सहकर्मियों की प्रतिष्ठा पर भी असर पड़ता है।

82. कहावत – एक लख पूत सवा लख नाती, तो रावण घर दीया न बाती
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कितनी भी समृद्धि हो, अगर व्यक्ति सावधानी और विवेक के साथ नहीं चलता, तो वह पतन की ओर बढ़ सकता है। ‘एक लख पूत और सवा लख नाती’ यहाँ अत्यधिक संपन्नता का प्रतीक है, और ‘रावण के घर में दीया ना बाती’ का मतलब है कि इतनी संपन्नता होने के बावजूद भी अंत में सब कुछ नष्ट हो जाता है।
प्रयोग:यह कहावत उन परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है जहाँ अत्यंत समृद्ध व्यक्ति या समाज अपनी संपत्ति और प्रतिष्ठा खो बैठते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए एक बहुत अमीर व्यक्ति है जो अपनी संपत्ति का प्रबंधन सही ढंग से नहीं करता। वह अपव्यय में लिप्त हो जाता है और अंततः उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो जाती है। इस स्थिति को यह कहावत बखूबी व्यक्त करती है।

83. कहावत – ओठों निकली कोठों चढ़ी
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो कुछ भी हम बोलते हैं, वह शीघ्र ही फैल जाता है और उसे छिपाए रखना कठिन होता है। ‘ओठों निकली’ यानी मुंह से निकले शब्द और ‘कोठों चढ़ी’ का अर्थ है कि ये शब्द सभी तक पहुंच जाते हैं।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब हमें यह बताना होता है कि बोले गए शब्दों का प्रभाव व्यापक होता है और इन्हें गुप्त रखना संभव नहीं होता।
उदाहरण: मान लीजिए किसी व्यक्ति ने अपने मित्र से कोई गोपनीय बात कही और वह बात धीरे-धीरे पूरे समुदाय में फैल गई। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि “ओठों निकली कोठों चढ़ी”।

84. कहावत – ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब आप ओखली (एक प्रकार का कूटने का उपकरण) में सिर रख देते हैं, तो फिर मूसल (कूटने का औजार) से डरने की क्या आवश्यकता है। यह कहावत उस स्थिति को दर्शाती है जब कोई संकल्प लेकर किसी चुनौती का सामना करता है और उसके परिणामों से नहीं डरता।
प्रयोग:यह कहावत अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है जहां किसी को बड़ा निर्णय लेना होता है और उसे इस बात का पूरा विश्वास होता है कि वह आने वाली किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है।
उदाहरण:मान लीजिए, कोई व्यक्ति अपनी नौकरी छोड़कर अपना व्यवसाय शुरू करने जा रहा है। इस स्थिति में वह व्यक्ति इस कहावत का प्रयोग कर सकता है, यह दर्शाने के लिए कि वह व्यवसाय में होने वाले जोखिमों से डरता नहीं है।

85. कहावत – और बात खोटी, सही दाल-रोटी
अर्थ: कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जीवन की अन्य सभी बातें गौण हैं, जब तक कि एक व्यक्ति के पास सही और पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो। दाल और रोटी यहाँ आवश्यक और संतुलित आहार का प्रतीक हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग आमतौर पर तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को यह समझाना हो कि जीवन में वास्तविक और मौलिक चीजें ही महत्वपूर्ण होती हैं, जैसे कि भोजन।
उदाहरण:मान लीजिए, कोई व्यक्ति लग्जरी गाड़ियों और अन्य भौतिक संपत्तियों के पीछे दौड़ रहा है, लेकिन उसके पास खाने के लिए सही आहार नहीं है। इस स्थिति में, यह कहावत उसे जीवन की मूलभूत जरूरतों की ओर ध्यान दिलाने के लिए उपयोगी हो सकती है।

86. कहावत – आग लागंते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब एक झोपड़ी में आग लग जाती है, तो जो कुछ भी उस आग से बच कर निकलता है, वह लाभ माना जाता है। यहाँ, ‘आग’ हानि का प्रतीक है और ‘बचना’ उस हानि से जो कुछ भी शेष रह जाता है, उसका।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी विपदा या हानि के समय में जो कुछ भी बचा हो, उसके प्रति आभार और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की बात की जाती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी का गोदाम आग से जल जाता है और उसमें से कुछ सामान ही बच पाता है। ऐसी स्थिति में, व्यापारी यह कह सकता है, “आग लागंते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ”, यानी जो कुछ भी बच गया है, उसे वह अपना लाभ मानता है।

87. कहावत – एक जिन्दगी हजार नियामत है
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जीवन अनेकों अवसरों, संभावनाओं और खुशियों से भरा हुआ है। इसे “हजार नियामत” के रूप में वर्णन करना इसकी अनमोलता को दर्शाता है।
प्रयोग: यह कहावत उन समयों में उपयोगी होती है जब लोग जीवन की कठिनाइयों से घबरा जाते हैं। यह हमें याद दिलाती है कि हर चुनौती, हर मुश्किल के बावजूद, जीवन एक अनमोल तोहफा है।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति जिसे जीवन में कई बाधाएं आईं, लेकिन उसने हार नहीं मानी और आगे बढ़ता रहा। इस कहावत के अनुसार, उस व्यक्ति ने अपने जीवन की हर नियामत का सही उपयोग किया।

88. कहावत – उमादास जोतिष की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाई
अर्थ:इस कहावत का तात्पर्य यह है कि मनुष्य अपनी इच्छानुसार नहीं, बल्कि ईश्वर की मर्जी के अनुसार कार्य करता है। यह बताती है कि हमारे जीवन की घटनाएँ और परिणाम ईश्वर की इच्छा पर निर्भर करते हैं।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग में लाई जाती है जब किसी को यह समझाना हो कि जीवन में हम जो भी करते हैं, उसके पीछे एक बड़ी शक्ति की इच्छा काम कर रही होती है, और हमें हर परिस्थिति को स्वीकार करना चाहिए।
उदाहरण:एक गाँव में एक किसान था जिसने अपनी पूरी मेहनत से खेती की, लेकिन अचानक आई बाढ़ से उसकी सारी फसल बर्बाद हो गई। इस पर उसने कहा, “यह सब उमादास जोतिष की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाई।” इसका मतलब यह है कि हमारे प्रयासों का परिणाम अंततः ईश्वर की इच्छा पर निर्भर करता है।

89. कहावत – उसी की जूती उसी का सिर
अर्थ: इस कहावत का मूल अर्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति दूसरों को धोखा देने की कोशिश करता है, तो अक्सर वह खुद ही उस धोखे का शिकार हो जाता है। यह बताती है कि अपने ही जाल में फंसने का खतरा होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग में लाई जाती है जब किसी को यह समझाना होता है कि दूसरों को धोखा देना अंततः स्वयं के लिए हानिकारक होता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यापारी ने अपने प्रतिस्पर्धी को नुकसान पहुंचाने के लिए एक चाल चली, लेकिन अंत में उसी चाल के कारण उसका व्यापार नुकसान में चला गया। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “उसी की जूती उसी का सिर।”

90. कहावत – ऊंट के गले में बिल्ली
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कभी-कभी दो व्यक्ति या वस्तुएं इतनी अलग होती हैं कि उनका एक साथ होना अस्वाभाविक और अनुपयुक्त लगता है। यह विशेष रूप से उन विवाहों या संबंधों पर लागू होता है जहां जोड़े के बीच में बहुत अधिक भिन्नता होती है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब दो व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच की असंगतता को रेखांकित करना हो। यह अक्सर विवाहित जोड़ों पर लागू होती है जहां व्यक्तिगत लक्षण, मूल्य या सामाजिक स्थिति में गहरा अंतर होता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक बहुत ही साधारण परिवार की लड़की का विवाह एक बहुत ही उच्च वर्गीय परिवार के लड़के से हो जाता है। इस स्थिति में, उनके संबंधों को “ऊंट के गले में बिल्ली” कहा जा सकता है, क्योंकि उनकी सामाजिक स्थिति और जीवन शैली में बहुत अंतर होता है।

91. कहावत – ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जब सक्षम और शक्तिशाली व्यक्ति भी किसी कार्य को नहीं कर पाते, और एक दुर्बल या कम सक्षम व्यक्ति उसी कार्य को करने का दावा करता है, तो यह कहावत प्रयोग में आती है।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जहाँ कोई व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक काम करने का दावा करता है, खासकर तब जब उससे अधिक सक्षम लोग वही काम नहीं कर पाए हों।
उदाहरण: मान लीजिए, एक गाँव में बाढ़ आई और सभी मजबूत और अनुभवी लोग बाढ़ के पानी को पार करने में असफल रहे। इस स्थिति में, एक अनुभवहीन और कमजोर व्यक्ति ने दावा किया कि वह पानी पार कर सकता है। तब लोगों ने कहा, “ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी।”

92. कहावत – ऊंट दूल्हा गधा पुरोहित
अर्थ:इस कहावत में ऊंट को दूल्हा और गधे को पुरोहित के रूप में दर्शाया गया है, जो स्वाभाविक रूप से एक असामान्य और हास्यास्पद स्थिति को बताता है। यह उन परिस्थितियों को व्यंग्यात्मक रूप से प्रस्तुत करता है जहां अयोग्य लोग अन्य अयोग्य लोगों की प्रशंसा करते हैं।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग में आती है जब एक व्यक्ति जो स्वयं किसी विशेष क्षेत्र में योग्यता या ज्ञान नहीं रखता, दूसरे अनुभवहीन व्यक्ति की प्रशंसा करता है। इससे उनकी अज्ञानता और अयोग्यता का परिहास उजागर होता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक गाँव में दो व्यक्ति थे जिनकी समाज में कोई विशेष प्रतिष्ठा नहीं थी। एक ने दूसरे की बड़ाई की और उसे गाँव का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति घोषित कर दिया। इस पर गाँववाले हंस पड़े और कहने लगे, “यह तो ‘ऊंट दूल्हा गधा पुरोहित’ वाली बात हो गई।”

93. कहावत – ऊंट बिलाई ले गई, हां जी, हां जी कहना
अर्थ: कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि एक ऊंट को एक बिल्ली उठा ले गई, जो कि एक असंभव क्रिया है। इसके माध्यम से यह दर्शाया जाता है कि कैसे लोग किसी प्रभावशाली व्यक्ति के अविश्वसनीय दावों का अंधाधुंध समर्थन करते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग आमतौर पर तब किया जाता है जब किसी को अन्धानुकरण या अन्धविश्वास के प्रति चेतावनी देनी हो। यह उन परिस्थितियों में भी लागू होता है जहां लोग सत्ता या प्रभाव के आगे अपनी सोचने-समझने की क्षमता को खो देते हैं।
उदाहरण:मान लीजिए एक कंपनी के निदेशक ने किसी असंभव परियोजना का प्रस्ताव रखा, और उसके सभी अधीनस्थ कर्मचारी, उनके पद की गरिमा के कारण, उस प्रस्ताव का समर्थन करने लगे बिना यह सोचे कि यह व्यावहारिक है या नहीं। यहाँ “ऊंट बिलाई ले गई, हां जी, हां जी कहना” कहावत सटीक बैठती है।

94. कहावत – ऊंट बर्राता ही लदता है
अर्थ:कहावत का सामान्य अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति काम करते समय असंतुष्टि या शिकायत करता है, लेकिन फिर भी काम जारी रखता है। यह उस स्थिति को दर्शाता है जब व्यक्ति अनिच्छा से या डर के कारण काम करता है।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को उसके नाराजगी या शिकायत के बावजूद काम जारी रखने की स्थिति को दर्शाना हो।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कर्मचारी अपने काम से खुश नहीं है और अक्सर इस बारे में शिकायत करता है, परन्तु उसे यह भी पता है कि उसके पास और कोई विकल्प नहीं है। इसलिए, वह बिना इच्छा के भी काम करता रहता है। यहाँ “ऊंट बर्राता ही लदता है” कहावत सटीक बैठती है।

95. कहावत – एक अंडा वह भी गंदा
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि किसी के पास केवल एक अंडा है और वह भी गंदा या खराब है। अतः, यह अपेक्षाकृत कम मूल्य या उपयोगिता को दर्शाता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी को अपनी दुर्दशा या बुरी स्थिति को व्यक्त करना हो।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति का केवल एक ही पुत्र है और वह भी आलसी और अनुपयोगी है। इस स्थिति में वह व्यक्ति कह सकता है, “मेरे पास तो एक अंडा वह भी गंदा है।”

96. कहावत – उधार का खाना और फूस का तापना बराबर है
अर्थ:इस कहावत का तात्पर्य है कि जिस तरह फूस की आग जल्दी बुझ जाती है, उसी प्रकार उधार लेकर खाना भी दीर्घकालिक समाधान नहीं होता। यह दर्शाता है कि उधार पर निर्भर रहना स्थायी रूप से समृद्धि नहीं देता।
प्रयोग:यह कहावत वित्तीय स्थिरता और आत्मनिर्भरता के महत्व को बताती है। यह लोगों को उधार पर निर्भरता के नकारात्मक प्रभावों से आगाह करती है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति जो अपने रोजमर्रा के खर्चों के लिए उधार लेता रहता है, वह अंततः ऋण के जाल में फंस जाता है और उसकी आर्थिक स्थिति और भी दुर्बल हो जाती है।

97. कहावत – ईश रजाय सीस सबही के
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर की इच्छा के सामने झुकना पड़ता है, और सभी मनुष्यों के जीवन में उसकी मर्जी ही सर्वोपरि होती है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति को यह समझना हो कि जीवन की घटनाएँ और परिस्थितियाँ ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही होती हैं।
उदाहरण:एक गाँव में एक किसान था, जो बहुत मेहनती था। उसने अपनी फसलों के लिए दिन-रात काम किया, लेकिन एक अचानक आई बाढ़ ने सारी फसलें बर्बाद कर दीं। इस पर किसान ने कहा, “ईश रजाय सीस सबही के।” उसे समझ आ गया कि कुछ चीजें उसके हाथ में नहीं होतीं और वे ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही होती हैं।

98. कहावत – इहां न लागहि राउरि माया
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि ऐसी जगह जहां इमानदारी और सच्चाई का बोलबाला हो, वहां धोखाधड़ी या छल के प्रयास निष्फल होते हैं।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी स्थान या समुदाय में सच्चाई और ईमानदारी की मजबूत परंपरा होती है और वहां धोखाधड़ी के लिए कोई जगह नहीं होती।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कंपनी में एक नया कर्मचारी अपनी योग्यता से अधिक तारीफ पाने के लिए झूठे दावे कर रहा था। लेकिन कंपनी के अन्य कर्मचारियों की ईमानदारी और पारदर्शिता के कारण, उसकी असलियत सामने आ गई। इस पर उसके सहकर्मी ने कहा, “इहां न लागहि राउरि माया।”

99. कहावत – उधरे अंत न होहि निबाहू । कालनेमि जिमि रावण राहु
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो व्यक्ति धोखाधड़ी करता है, उसका अंत समय पर निश्चित होता है। उस पर अनेक विपत्तियाँ आती हैं, और वह बच नहीं पाता।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब कोई धोखेबाज व्यक्ति अपनी चालाकियों में फंस जाता है और उसका पर्दाफाश होता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी जो अपने ग्राहकों को लगातार धोखा दे रहा था, एक दिन उसकी सच्चाई सामने आ गई। उसके धंधे पर भारी नुकसान हुआ और उसकी प्रतिष्ठा भी खो गई। इस पर लोगों ने कहा, “उधरे अंत न होहि निबाहू । कालनेमि जिमि रावण राहु।”

100. कहावत – ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जीवन में कुछ स्थानों पर सुख होता है तो कुछ में दुख, जैसे कि कहीं धूप होती है तो कहीं छाया। यह ईश्वर की लीला को दर्शाता है जहां हर चीज का अपना एक स्थान और महत्व होता है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब हमें यह समझना हो कि जीवन में अच्छाई और बुराई, सुख और दुख – सब एक साथ चलते हैं।
उदाहरण:एक गाँव में दो पड़ोसी थे – एक अमीर और एक गरीब। अमीर व्यक्ति के जीवन में सुख की धूप थी, जबकि गरीब व्यक्ति के जीवन में दुख की छाया। इस पर गाँव के एक बुजुर्ग ने कहा, “यह सब ईश्वर की माया है, कहीं धूप कहीं छाया।”

101. कहावत – उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि अगर किसी छोटे या नीच स्थान से भी उत्तम विद्या या ज्ञान मिले, तो उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिए। ज्ञान की महत्ता उसके स्रोत से नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता से होती है।
प्रयोग: यह कहावत तब काम आती है जब हमें यह समझाना होता है कि ज्ञान कहीं से भी प्राप्त हो, उसका मूल्य उसकी उपयोगिता और महत्व में होता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक अनुभवी व्यक्ति को एक युवा से किसी नई तकनीक के बारे में ज्ञान मिलता है। यहां, युवा का स्थान नीच माना जा सकता है, लेकिन ज्ञान उत्तम है।

102. कहावत – आया है जो जायेगा, राजा रंक फकीर
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो भी इस दुनिया में आया है, वह एक दिन जाएगा, चाहे वह राजा हो या रंक, या फिर फकीर। यह सिखाती है कि जीवन में हर चीज अस्थायी है और हर किसी को एक दिन इस दुनिया को छोड़ना पड़ता है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब हमें यह दर्शाना होता है कि जीवन की अनित्यता और सामाजिक या आर्थिक स्थिति का कोई भी अंतिम महत्व नहीं है।
उदाहरण: एक समय की बात है, एक राजा था जो अपनी शक्ति और सम्पत्ति पर बहुत इतराता था। लेकिन जब उसका अंत समय आया, तो उसे समझ आया कि उसकी राजसी शक्ति और धन उसके किसी काम नहीं आ सकते। तब उसे इस कहावत का महत्व समझ आया।

103. कहावत – आरत काह न करै कुकरमू
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि एक दु:खी या परेशान व्यक्ति कभी-कभी अच्छे और बुरे कर्मों के बीच का अंतर नहीं समझ पाता। दु:ख और पीड़ा के समय में, मनुष्य की नैतिकता परीक्षण में आ जाती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग उन परिस्थितियों में किया जाता है, जब किसी के कठिन समय या दु:ख के कारण उसके निर्णयों पर प्रभाव पड़ता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति जो गंभीर रूप से परेशान है, वह कठिनाई के समय में गलत निर्णय ले सकता है, जैसे कि अपराध में लिप्त होना या नैतिकता की सीमाओं को लांघना।

104. कहावत – आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए
अर्थ:इस कहावत का सार यह है कि जो व्यक्ति दूसरों की मदद या सहारे की आशा में जीता है, वह वास्तव में अपने जीवन की पूर्णता को नहीं जी पाता।
प्रयोग:यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जब हमें यह दर्शाना होता है कि आत्मनिर्भरता ही वास्तविक स्वतंत्रता और संतोष का मार्ग है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक युवा व्यक्ति जो सिर्फ अपने माता-पिता की संपत्ति पर निर्भर है और खुद कुछ नहीं करता, वह कभी भी खुद की पहचान और सम्मान नहीं पा सकता।

105. कहावत – आस-पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि अक्सर वह व्यक्ति या स्थान जिसे सबसे अधिक आवश्यकता होती है, वह अनदेखा रह जाता है और सहायता या संसाधन उस तक नहीं पहुँचते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग उन परिस्थितियों में किया जाता है जहाँ जरूरतमंदों की अनदेखी हो रही हो और सहायता दूसरों को दी जा रही हो।
उदाहरण:मान लीजिए, एक गाँव में पानी की गंभीर कमी है, लेकिन सरकार और संस्थाएँ आस-पास के क्षेत्रों में पानी की सुविधाएँ बढ़ा रही हैं, जबकि उस गाँव को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

106. कहावत – इक नागिन अस पंख लगाई
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि जब किसी खतरनाक या नुकसानदेह चीज में और भी हानिकारक तत्व जुड़ जाएं, तो स्थिति और भी विकट हो जाती है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी पहले से ही बुरी स्थिति में और बिगाड़ होता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कंपनी पहले से ही वित्तीय संकट में है, और उस पर बड़ा कर्ज भी है। अगर उस समय कंपनी का मुख्य निवेशक भी निवेश वापस ले ले, तो यह “इक नागिन अस पंख लगाई” की स्थिति होगी।

107. कहावत – इन तिलों में तेल नहीं निकलता
अर्थ:इस कहावत का तात्पर्य है कि कुछ लोग या परिस्थितियां ऐसी होती हैं, जहां से कोई लाभ या फल प्राप्त करना असंभव है। विशेषकर जब कंजूसी या कृपणता की बात आती है, तो इस कहावत का प्रयोग होता है।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है, जहां व्यक्ति अपनी कंजूसी के कारण किसी भी तरह का लाभ नहीं उठा पाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी अपने व्यापार में नवीनीकरण या विकास पर पैसा खर्च करने में कंजूसी करता है। इस कारण उसका व्यापार बाजार की नई प्रवृत्तियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाता और अंततः पिछड़ जाता है। यहाँ कहा जा सकता है कि “इस व्यापारी के तिलों में तेल नहीं निकलता।”

108. कहावत – इब्तिदा-ए-इश्क है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि शुरुआती समय में होने वाली परेशानियां और चुनौतियां स्वाभाविक हैं। यह सुझाव देती है कि अभी तो बस शुरुआत हुई है, आगे चलकर स्थितियां बदल सकती हैं।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब कोई नई परियोजना या कार्य शुरू करता है और शुरुआती कठिनाइयों से निराश हो जाता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक युवक ने अपना नया व्यवसाय शुरू किया और शुरुआती महीनों में उसे कई प्रकार की समस्याएँ आईं। ऐसे में, उसके मित्र ने उसे समझाया, “इब्तिदा-ए-इश्क है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या। अभी तो बस शुरुआत है, आगे चीजें बेहतर हो सकती हैं।”

109. कहावत – इसके पेट में दाढ़ी है
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कभी-कभी साधारण दिखने वाले लोगों में असाधारण बुद्धिमत्ता और कौशल होता है। यह दर्शाती है कि बाहरी आवरण से किसी की समझ या योग्यता का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब व्यक्ति अपनी साधारण प्रतीत होती उपस्थिति के विपरीत असाधारण बुद्धिमत्ता या समझदारी दिखाता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक गाँव का एक साधारण किसान, जिसे लोग हल्के में लेते थे, ने अपनी बुद्धिमत्ता से गाँव की एक बड़ी समस्या का समाधान निकाला। इस पर गाँव के मुखिया ने कहा, “हमने सोचा नहीं था, लेकिन लगता है ‘इसके पेट में दाढ़ी है’।”

110. कहावत – इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनि देखत मरि जाहीं
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि किसी को केवल दिखावटी धमकी देखकर डरने की जरूरत नहीं है। अक्सर, डराने वाला व्यक्ति वास्तविक शक्ति या अधिकार से रहित होता है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब कोई अपनी झूठी शक्ति या अधिकार का दावा कर दूसरों को डराने की कोशिश करता है।
उदाहरण: किसी कार्यालय में एक व्यक्ति ने झूठे आधिकारिक तेवर दिखाकर अपने सहकर्मियों को डराने की कोशिश की। लेकिन जब उसके वास्तविक अधिकार की जांच की गई, तो पता चला कि वह वास्तव में उस पद का अधिकारी नहीं था। इस पर एक सहकर्मी ने कहा, “इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनि देखत मरि जाहीं।”

111. कहावत – आप मरे जग परलय
अर्थ:इस कहावत का सार यह है कि किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी जीवन यथावत चलता रहता है। इसका मतलब यह है कि कोई भी व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण नहीं होता कि उसके न रहने पर संसार का क्रम बाधित हो जाए।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी को यह समझाना होता है कि उनके बाद भी जीवन सामान्य रूप से चलता रहेगा और दुनिया में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आएगा।
उदाहरण: एक व्यक्ति जो अपने आसपास की दुनिया को बहुत महत्व देता है और सोचता है कि उसके न रहने पर सब कुछ रुक जाएगा, उसे इस कहावत के जरिए यह समझाया जा सकता है कि जीवन उसके बाद भी अपने सामान्य गति से चलता रहेगा।

112. कहावत – इब्तिदा-ए-इश्क है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि शुरुआती समय में होने वाली परेशानियां और चुनौतियां स्वाभाविक हैं। यह सुझाव देती है कि अभी तो बस शुरुआत हुई है, आगे चलकर स्थितियां बदल सकती हैं।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब कोई नई परियोजना या कार्य शुरू करता है और शुरुआती कठिनाइयों से निराश हो जाता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक युवक ने अपना नया व्यवसाय शुरू किया और शुरुआती महीनों में उसे कई प्रकार की समस्याएँ आईं। ऐसे में, उसके मित्र ने उसे समझाया, “इब्तिदा-ए-इश्क है रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या। अभी तो बस शुरुआत है, आगे चीजें बेहतर हो सकती हैं।”

113. कहावत – आप मियां मांगते दरवाजे खड़ा दरवेश
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है, “जब खुद मांगने वाला व्यक्ति दरवाजे पर खड़ा हो।” इसका भावार्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति स्वयं आर्थिक रूप से कमजोर हो, तो उसके लिए दूसरों की मदद करना कठिन होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब उपयोगी होती है जब किसी को यह समझाना हो कि वे अपनी स्थिति में सुधार किए बिना दूसरों की प्रभावी मदद नहीं कर सकते। यह व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता और स्थिरता की महत्ता को दर्शाता है।
उदाहरण:यह कहावत तब उपयोगी होती है जब किसी को यह समझाना हो कि वे अपनी स्थिति में सुधार किए बिना दूसरों की प्रभावी मदद नहीं कर सकते। यह व्यक्तिगत आत्मनिर्भरता और स्थिरता की महत्ता को दर्शाता है।

114. कहावत – आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम?
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि किसी भी कार्य का मूल्य उसके परिणाम में निहित है, न कि उसके पीछे के अनुष्ठानों या अनावश्यक विवरणों में। यह कहावत यह बताती है कि अंतिम परिणाम ही महत्वपूर्ण है, बजाय उस प्रक्रिया के जो उस परिणाम तक ले जाती है।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी को यह समझाना होता है कि किसी कार्य की वास्तविक सफलता उसके परिणाम में है, न कि उसकी प्रक्रिया में।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यापारी ने बहुत सारे विज्ञापन और मार्केटिंग अभियान चलाए, लेकिन उसकी बिक्री में कोई वृद्धि नहीं हुई। ऐसे में कहा जा सकता है, “आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम?”

115. कहावत – आठों पहर चौंसठ घड़ी
अर्थ:इस कहावत का सामान्य अर्थ है कि कुछ भी जो लगातार और अनवरत चलता रहे। यह निरंतर प्रयास, लगन और समर्पण का प्रतीक है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग उन परिस्थितियों में किया जाता है जहां किसी को अपने काम में लगन और समर्पण दिखाना होता है। उदाहरण के लिए, एक विद्यार्थी जो अपनी पढ़ाई में “आठों पहर चौंसठ घड़ी” लगा रहता है, वह सफलता की ओर अग्रसर होता है।
उदाहरण: एक व्यापारी जो अपने व्यापार को बढ़ाने में “आठों पहर चौंसठ घड़ी” मेहनत करता है, वह अंततः सफलता प्राप्त करता है।

116. कहावत – आठों गांठ कुम्मैत
अर्थ:इस कहावत का प्रयोग उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है जो अत्यधिक चालाक और कुशल होते हैं, जो हर स्थिति में अपने लाभ के लिए तेजी से सोच सकते हैं और योजना बना सकते हैं।
प्रयोग:यह कहावत आमतौर पर उन परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है जहां कोई व्यक्ति अपनी चतुराई और चालाकी से किसी समस्या का समाधान निकालता है या अपने फायदे के लिए किसी परिस्थिति का उपयोग करता है।
उदाहरण:एक व्यापारी जो बाजार के रुख को देखकर अपने व्यापारिक निर्णय लेता है और हर मौके पर लाभ कमाता है, उसे “आठों गांठ कुम्मैत” कहा जा सकता है।

117. कहावत – आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग मौजूदा लाभ को छोड़कर अधिक लाभ की अस्थिर आशा में भागते हैं, वे अक्सर दोनों ही खो देते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को लालच या अत्यधिक महत्वाकांक्षा के कारण हानि होती है।
उदाहरण:एक व्यापारी जो अपने मौजूदा ग्राहकों को छोड़कर केवल नए बाजारों में विस्तार पर ध्यान देता है, अंत में वह अपने पुराने ग्राहकों को भी खो देता है और नए बाजार में भी सफल नहीं हो पाता।

118. कहावत – आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि यदि कोई आपका आदर नहीं करता है, तो उसे या उसके परिवार को भी आपके आदर की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति या समूह आपके प्रति असम्मान दिखाता है, और आप उसे यह दर्शाना चाहते हैं कि वे भी आपके सम्मान के पात्र नहीं हैं।
उदाहरण:मान लीजिए एक कार्यस्थल पर कोई सहकर्मी आपके विचारों और प्रस्तावों का निरंतर अनादर करता है, तो उस स्थिति में आप उस सहकर्मी के प्रति भी समान आदर नहीं दिखा सकते।

119. कहावत – आप जाय नहीं सासुरे, औरन को सिखि देत
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो व्यक्ति स्वयं किसी कार्य को नहीं करता, लेकिन दूसरों को उस कार्य के लिए प्रेरित या निर्देशित करता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति की आलोचना करनी हो कि वह खुद तो कार्य नहीं करता, लेकिन दूसरों को सलाह देने में आगे रहता है।
उदाहरण: कार्यस्थल पर एक प्रबंधक जो खुद तो किसी परियोजना पर काम नहीं करता, लेकिन अपनी टीम को लगातार कार्य करने की सलाह देता रहता है।

120. कहावत – आत्मा सुखी तो परमात्मा सुखी
अर्थ:इस कहावत का मूल अर्थ है कि व्यक्तिगत संतुष्टि और खुशी से ही ईश्वर की सच्ची उपासना और समर्पण संभव है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब हम व्यक्तिगत खुशी और आध्यात्मिक संतुष्टि के बीच के संबंध को समझाना चाहते हैं।
उदाहरण:जब किसी व्यक्ति की बुनियादी जरूरतें पूरी होती हैं, जैसे कि भूख मिट जाती है, तब वह भगवान का धन्यवाद करता है और उसके प्रति अधिक समर्पित होता है।

121. कहावत – आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे
अर्थ:कहावत का सार यह है कि जब एक व्यक्ति खुद तो विलासिता में रहता है, लेकिन उसके घर के अन्य सदस्य, विशेषकर उसकी पत्नी, दुख और कष्ट में जीवन यापन करते हैं।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब पारिवारिक जीवन में असमानता और एकतरफा सुख-सुविधा की ओर इशारा करना हो।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति अपने शौक पर बहुत खर्च करता है, जबकि उसकी पत्नी को घर की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।

122. कहावत – डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि किसी अस्थायी या अनुपयुक्त स्थान पर किसी कार्य को करना बेतुका और अप्रासंगिक होता है। यहाँ ‘डेढ़ पाव आटा’ और ‘पुल पर रसोई’ से अर्थ है कि किसी असुविधाजनक जगह पर अस्थायी तरीके से काम करना।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब कोई व्यक्ति या समूह किसी ऐसे काम को करने का प्रयास कर रहा हो जो उस स्थान या परिस्थिति के लिए अनुपयुक्त हो।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति ने बाजार के बीचोबीच एक छोटी सी जगह पर बड़ी दुकान खोलने का निर्णय लिया। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि “उसका यह प्रयास ‘डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई’ के समान है।”

123. कहावत – डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जब किसी कार्य के लिए मुख्य घटक या आवश्यक संसाधन का अभाव हो, तो उस कार्य को पूरा करना असंभव होता है। यहाँ ‘डोली’ और ‘कहार’ (डोली उठाने वाले) का अभाव और ‘बीबी’ (महिला) के तैयार होने का उल्लेख है, जो योजना और आवश्यक संसाधनों के बीच के असंतुलन को दर्शाता है।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है जहां योजनाएँ तो बनाई जाती हैं लेकिन उन्हें पूरा करने के लिए जरूरी संसाधनों की कमी होती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति ने एक बड़े प्रोजेक्ट की योजना बनाई, लेकिन उसके पास उस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए आवश्यक पूंजी या संसाधन नहीं हैं। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि “उसकी स्थिति ‘डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार’ जैसी है।”

124. कहावत – ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़
अर्थ:इस कहावत का मुख्य संदेश यह है कि परिस्थितियाँ और परिवेश व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यह यह भी सुझाव देती है कि समाज में लोगों के चरित्र का आकलन अक्सर उनके द्वारा चुने गए साथी या स्थान के आधार पर किया जाता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग आमतौर पर तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति का आचरण या चरित्र उसके परिवेश या संगति के कारण प्रभावित होता दिखाई देता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक युवा जो पहले अच्छे ग्रेड प्राप्त करता था और अनुशासित था, लेकिन अब वह खराब संगति में पड़कर अपने अध्ययन में लापरवाही बरत रहा है। ऐसी स्थिति में, कोई कह सकता है, “वह ढाक तले की फूहड़ हो गया है।”

125. कहावत – आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ
अर्थ:इस कहावत का अर्थ यह है कि जीवन में जो भी बीमारियाँ या पीड़ाएं आती हैं, वे हमारे जन्म के साथ आती हैं और हमारे मरणोपरांत ही समाप्त होती हैं। यह उन रोगों और तकलीफों का जिक्र करता है जो व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग बन जाती हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब जीवनभर की बीमारियों या पीड़ाओं का वर्णन करना हो। यह हमें यह सिखाती है कि कुछ दुख और पीड़ाएं ऐसी होती हैं जिन्हें हम अपने जीवन में स्वीकार कर लेते हैं और वे हमारे साथ ही रहती हैं।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यक्ति जो जन्म से ही किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। उसका जीवन इस बीमारी के साथ बीतता है और यह बीमारी उसके जीवन का एक हिस्सा बन जाती है। यहाँ, “आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ” कहावत उसके जीवन की सच्चाई को बयां करती है।

126. कहावत – आ गई तो ईद बारात नहीं तो काली जुम्मे रात
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि किसी भी घटना या स्थिति का अनुभव उसके परिणाम पर निर्भर करता है। यदि परिणाम सकारात्मक होता है, तो वह घटना ईद की तरह खुशियों भरी लगती है, लेकिन यदि परिणाम नकारात्मक हो, तो वही घटना काली जुम्मे की रात जैसी दुःखद और निराशाजनक लगती है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है, जब किसी अनिश्चित या अप्रत्याशित परिणाम की ओर इशारा करना होता है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में परिस्थितियां हमेशा बदलती रहती हैं, और हमें हर परिस्थिति को स्वीकार करना चाहिए।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यापारी जो एक बड़े सौदे की आशा में था, जब वह सौदा सफल हो जाता है, तो वह ईद की तरह खुशी मनाता है। लेकिन, यदि वही सौदा विफल हो जाए, तो उसके लिए वही स्थिति काली जुम्मे की रात जैसी हो जाती है।

127. कहावत – आई मौज फकीर को, दिया झोपड़ा फूंक
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कभी-कभी जब व्यक्ति को अप्रत्याशित खुशियाँ या सुविधाएँ मिलती हैं, तो वह उनका सही तरीके से इस्तेमाल न कर पाने के कारण अंततः नुकसान उठाता है। यहाँ ‘फकीर’ को मिली ‘मौज’ (खुशी) उसके ‘झोपड़े’ को जलाने का कारण बनती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग उन परिस्थितियों में किया जाता है जहां व्यक्ति अपनी अचानक मिली सफलता या सुख को संभाल नहीं पाता और उसके कारण उसे अंततः हानि होती है।
उदाहरण: यदि किसी व्यक्ति को अचानक बहुत सारी दौलत मिल जाए और वह इसे गलत तरीके से खर्च कर दे या अहंकारी बन जाए, तो यह कहावत उसकी स्थिति को दर्शाती है। वह व्यक्ति अपने नए मिले सुख को सही तरीके से संभाल नहीं पाता और अंततः उसकी दौलत और सुख उसके लिए हानिकारक साबित होते हैं।

128. कहावत – आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि कई बार हम किसी उद्देश्य से शुरुआत करते हैं, लेकिन रास्ते में हमारी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं और हम मूल उद्देश्य से भटक जाते हैं। यह कहावत हमें याद दिलाती है कि हमें अपने मूल उद्देश्य पर दृढ़ रहना चाहिए।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब हमें किसी व्यक्ति को यह समझाना होता है कि वे अपने मूल लक्ष्य से भटक गए हैं। यह विशेषकर उन परिस्थितियों में प्रयोग होता है जहां लोग अपने मूल उद्देश्यों को भूलकर अन्य बातों में लग जाते हैं।
उदाहरण:मान लीजिए, एक विद्यार्थी जो पढ़ाई के लिए बड़े शहर गया था, लेकिन वहां जाकर वह मनोरंजन और अन्य गतिविधियों में इतना व्यस्त हो गया कि उसकी पढ़ाई प्रभावित होने लगी। इस स्थिति में यह कहावत पूरी तरह लागू होती है।

129. कहावत – आगे नाथ न पीछे पगहा, खाय मोटाय के हुए गदहा
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने लिए स्वयं कमाता है और उसी में संतुष्ट रहता है, वह न तो किसी के आगे झुकता है और न ही किसी के पीछे चलता है। ऐसा व्यक्ति अपनी आजादी का पूरा आनंद उठाता है, लेकिन कई बार यह स्थिति उसे एकाकी बना देती है।
प्रयोग: यह कहावत उन परिस्थितियों में उपयोगी होती है, जहां व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का महत्व समझता है, लेकिन इसके साथ ही उसे अपनी एकाकीपन की स्थिति का भी आभास होता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक युवा जो अपने परिवार से अलग होकर अकेले रहता है और अपने लिए खुद कमाता है। वह अपनी आजादी का आनंद उठाता है लेकिन कई बार उसे अपने परिवार और दोस्तों की कमी महसूस होती है।

130. कहावत – अमीर को जान प्यारी, गरीब एकदम भारी
अर्थ:“अमीर को जान प्यारी, गरीब एकदम भारी” का अर्थ है कि अमीर लोग अपने जीवन और सुख-सुविधाओं का आनंद उठाते हैं, जबकि गरीब लोगों के लिए उनका जीवन और रोज़मर्रा की चुनौतियां बोझिल और कठिन होती हैं।
प्रयोग:इस कहावत का इस्तेमाल तब होता है जब समाज में आर्थिक असमानता और उसके प्रभावों पर चर्चा की जा रही हो।
उदाहरण:मान लीजिए एक अमीर व्यक्ति जो अपने स्वास्थ्य और सुख-सुविधाओं पर बहुत ध्यान देता है, वहीं एक गरीब मजदूर जिसके लिए रोज़ की रोटी कमाना ही एक बड़ी चुनौती होती है। यहां, “अमीर को जान प्यारी, गरीब एकदम भारी” कहावत इस विषमता को दर्शाती है।

131. कहावत – अरध तजहिं बुध सरबस जाता
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि बुद्धिमान लोग कठिनाई या संकट के समय में अपना आधा नुकसान स्वीकार कर लेते हैं बजाय इसके कि वे अपनी सभी संपत्ति या स्थिति को खो दें।
प्रयोग: यह कहावत आमतौर पर तब प्रयोग की जाती है जब किसी को यह समझाना हो कि कभी-कभी आंशिक नुकसान स्वीकार करना बेहतर होता है बजाय पूर्ण विनाश का सामना करने के।
उदाहरण: उदाहरण के तौर पर, एक व्यापारी जिसका व्यापार नुकसान में जा रहा है, वह अपनी कुछ संपत्ति बेचकर कर्ज को चुका सकता है और बाकी व्यापार को बचा सकता है, बजाय इसके कि वह पूरी तरह से दिवालिया हो जाए।

132. कहावत – मोहरों की लूट और कोयलों पर छाप
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कभी-कभी हम ऐसी चीजों पर समय और संसाधन व्यर्थ करते हैं जिनका कोई महत्व नहीं होता, जैसे कि कोयले पर छाप लगाना। वहीं, महत्वपूर्ण चीजें, जैसे कि मोहरें, अक्सर हमारी पकड़ से बाहर होती हैं।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी को यह समझाना होता है कि उनका ध्यान महत्वहीन चीजों पर केंद्रित है, जबकि वे महत्वपूर्ण अवसरों या संसाधनों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
उदाहरण:मान लीजिए एक कंपनी अपनी मार्केटिंग पर बहुत ध्यान दे रही है, लेकिन उत्पाद की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दे रही। यहाँ, “मोहरों की लूट और कोयलों पर छाप” कहावत इस स्थिति को बखूबी दर्शाती है।

133. कहावत – अशुभस्य काल हरणम्
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि समय के प्रवाह के साथ बुरे या अशुभ समय का अंत हो जाता है। यह आशा और सकारात्मकता का संदेश देती है कि कोई भी दुर्भाग्य या कठिनाई स्थायी नहीं होती।
प्रयोग: यह कहावत अक्सर उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है, जब किसी को यह याद दिलाना होता है कि समय के साथ सब कुछ बदल जाता है और कठिन समय भी बीत जाता है।
उदाहरण:एक युवा उद्यमी, जिसका व्यापार नुकसान में चल रहा था, को उसके मित्र ने समझाया, “तुम्हारे व्यापार में यह बुरा समय भी बीत जाएगा। अशुभस्य काल हरणम्, अर्थात् धैर्य रखो और लगे रहो।”

134. कहावत – अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब आप एक मूर्ख व्यक्ति से बहस में पड़ते हैं, तो यह उसी प्रकार है जैसे आप एक डंडे से अपने दांत तोड़ रहे हों। यह संकेत करता है कि अविवेकी लोगों से विवाद में पड़ने से आपको ही हानि होती है।
प्रयोग:इस कहावत का इस्तेमाल अक्सर तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को यह समझाना होता है कि बेवजह की बहस या अनावश्यक विवाद में पड़ने से बचना चाहिए, खासकर जब विरोधी पक्ष तर्कसंगत न हो।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यक्ति अपने पड़ोसी से बार-बार छोटी-मोटी बातों पर झगड़ता रहता है, जबकि पड़ोसी का व्यवहार बेहद अविवेकी और उत्तेजित होता है। इस स्थिति में, “अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत” कहावत उसे यह समझाती है कि बेवजह के विवाद से दूर रहना ही बेहतर है।

135. कहावत – आंखों के आगे पलकों की बुराई
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कई बार हम अपने सबसे करीबी और महत्वपूर्ण संबंधों या चीजों की कद्र नहीं करते हैं। जैसे पलकें आंखों की सुरक्षा करती हैं, परंतु हम उनके महत्व को अक्सर अनदेखा कर देते हैं।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब हमें किसी को यह समझाना हो कि वे अपने निकटस्थ व्यक्तियों या चीजों की अहमियत को न समझकर उनकी अवहेलना कर रहे हैं।
उदाहरण: एक व्यापारी जो अपने व्यावसायिक सफलता के लिए परिवार और दोस्तों को उपेक्षित करता है, लेकिन जब वह मुश्किल में होता है, तो उसे अपने परिवार और दोस्तों की अहमियत का एहसास होता है। यहां, “आंखों के आगे पलकों की बुराई” कहावत उसके व्यवहार को सटीक रूप से व्यक्त करती है।

136. कहावत – आंखों पर पलकों का बोझ नहीं होता
अर्थ:इस कहावत का मतलब है कि हमारे जीवन में जो लोग या चीजें हमारे सबसे करीब होती हैं, वे हमें कभी बोझ नहीं लगतीं। ठीक वैसे ही, जैसे आंखों पर पलकें होते हुए भी, हमें उनका भार महसूस नहीं होता।
प्रयोग:यह कहावत तब उपयोगी होती है जब हमें यह समझाना हो कि हमें अपने निकटस्थ और प्रिय लोगों की कद्र करनी चाहिए और उन्हें बोझ समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यक्ति अपने परिवार और दोस्तों की उपेक्षा करता है, क्योंकि वह उन्हें अपनी सफलता की राह में बाधा मानता है। लेकिन, जब वह मुश्किल में होता है, तब उसे उनकी अहमियत का एहसास होता है।

137. कहावत – आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब किसी का दुख इतना गहरा होता है कि उसके आंसू एक-दो नहीं, बल्कि अनेक बार बहते हैं, और उसका हृदय (कलेजा) टुकड़ों में बंट जाता है। यह असहनीय दर्द और भावनात्मक पीड़ा का प्रतीक है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी को अपने दुख और पीड़ा को व्यक्त करना होता है, विशेषकर तब जब वह दुख बहुत गहरा हो।
उदाहरण:मान लीजिए एक माँ जिसका एकमात्र पुत्र दुर्घटना में चल बसा, वह अपने दुख का इज़हार करते हुए कहती है, “मेरे लिए तो आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक हो गया है।” यहां यह कहावत उसके असीम दुख और पीड़ा को दर्शाती है।

138. कहावत – अपनी फूटी न देखे दूसरे की फूली निहारे
अर्थ:कहावत का अर्थ है कि लोग अक्सर अपनी नकारात्मक स्थितियों या कमियों (‘फूटी’) को अनदेखा कर दूसरों की सकारात्मक स्थितियों या उपलब्धियों (‘फूली’) को अधिक महत्व देते हैं।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग उन स्थितियों में किया जाता है जब किसी को यह समझाना होता है कि उन्हें अपनी कमियों या समस्याओं को पहचानना और सुधारना चाहिए, न कि केवल दूसरों की सफलताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यापारी अपने व्यवसाय में निरंतर हो रहे नुकसान को अनदेखा कर रहा है और केवल अपने प्रतिस्पर्धियों की बढ़ती सफलता पर नजर रखे हुए है। यहां “अपनी फूटी न देखे दूसरे की फूली निहारे” कहावत उसकी स्थिति का वर्णन करती है।

139. कहावत – अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं
अर्थ:कहावत “अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं” का अर्थ है कि पहले अपनी आंतरिक या निजी समस्याओं को संभालना चाहिए और फिर बाहरी या सामाजिक मुद्दों का समाधान करना चाहिए।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब व्यक्ति को यह समझाने की आवश्यकता होती है कि वे अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को नजरअंदाज न करें और पहले अपने घर या निजी जीवन को संवारें।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति सामाजिक कार्यों में बहुत सक्रिय है लेकिन उसके अपने घर में कई समस्याएं हैं जिनका वह समाधान नहीं कर रहा है। यहाँ, “अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं” कहावत उसे उसकी प्राथमिकताओं का आईना दिखाती है।

140. कहावत – अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता
अर्थ:“अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता” का सामान्य अर्थ है कि लोग अपनी चीजों, विचारों या कार्यों की कमियों को स्वीकार नहीं करते, भले ही वे कमियां स्पष्ट हों।
प्रयोग:इस कहावत का इस्तेमाल तब होता है जब यह दिखाना होता है कि किसी व्यक्ति या समूह को अपनी गलतियां या कमियां नजर नहीं आ रही हैं, और वे अपनी चीजों के प्रति अतिरिक्त लगाव या पक्षपात दिखा रहे हैं।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यापारी अपने उत्पादों की कमियों को नहीं मानता, भले ही ग्राहक उनकी शिकायत करें। वह हमेशा अपने उत्पादों की प्रशंसा करता है और किसी भी आलोचना को नकार देता है। यहां, “अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता” कहावत व्यापारी के इस पक्षपाती रवैये को उजागर करती है।

141. कहावत – अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता
अर्थ:“अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता” कहावत का सामान्य अर्थ यह है कि बिना कठिनाइयों और संघर्षों का सामना किए बिना जीवन के सच्चे आनंद और सफलता का अनुभव नहीं हो सकता।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी को यह बताना होता है कि कठिनाइयाँ और संघर्ष जीवन के अनिवार्य हिस्से हैं और इनसे ही हमारी व्यक्तित्व की मजबूती और विकास होता है।
उदाहरण:मान लीजिए एक छात्र जो हमेशा अध्ययन से बचता है और संघर्ष से दूर भागता है, परीक्षा में असफल होता है। उसे समझ आता है कि बिना मेहनत और संघर्ष के सफलता नहीं मिल सकती। यहाँ “अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता” कहावत उसके जीवन की स्थिति को सटीक रूप से दर्शाती है।

142. कहावत – अभी दिल्ली दूर है
अर्थ:“अभी दिल्ली दूर है” का अर्थ है कि किसी भी महत्वपूर्ण कार्य या लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी और समय और मेहनत की जरूरत है। यह कहावत यह भी बताती है कि सफलता प्राप्त करने के लिए धैर्य और लगन आवश्यक हैं।
प्रयोग:इस कहावत का इस्तेमाल अक्सर तब होता है जब किसी को यह बताना होता है कि उन्हें अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयास और समय देना होगा।
उदाहरण:मान लीजिए एक विद्यार्थी जो अपनी परीक्षा की तैयारी में लगा है, अपने आधे अध्ययन को पूरा करने के बाद यह सोचता है कि वह तैयार है। उसके शिक्षक ने उसे बताया, “अभी दिल्ली दूर है” – यानी अभी और भी तैयारी की जरूरत है।

143. कहावत – अपना घर दूर से सूझता है
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जब हम अपने घर से दूर होते हैं, तब हमें उसकी सच्ची कीमत का एहसास होता है। दूरी हमें सिखाती है कि अपने घर और परिवार का महत्व क्या होता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग उन परिस्थितियों में किया जा सकता है जब किसी को अपने घर और परिवार की याद सता रही हो या जब कोई अपने परिवार से दूर हो। इसे अक्सर उन लोगों को सलाह देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है जो अपने घर और परिवार को नजरअंदाज कर रहे होते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति नौकरी के लिए विदेश चला जाता है। शुरू में तो वह नई जगह और अवसरों का आनंद उठाता है, लेकिन समय के साथ उसे अपने घर और परिवार की याद आने लगती है। यहाँ “अपना घर दूर से सूझता है” कहावत उसकी भावनाओं को सटीक रूप से व्यक्त करती है।

144. कहावत – अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष?
अर्थ:कहावत का सार यह है कि यदि हमारी वस्तु या कार्य में दोष है, तो उसके लिए किसी और को दोषी ठहराना उचित नहीं है। यह हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि कई बार समस्या हमारी खुद की गलतियों से उत्पन्न होती है।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग आमतौर पर तब होता है जब हमें किसी को यह याद दिलाना हो कि उन्हें अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए और दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए।
उदाहरण:मान लीजिए किसी व्यक्ति ने एक व्यापार में निवेश किया और वह असफल रहा। इसके बाद, वह व्यक्ति बाजार की स्थिति या अन्य लोगों को इस असफलता का कारण बताता है। यहां, “अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष?” कहावत उसे यह समझाने के लिए उपयोगी हो सकती है कि असफलता के लिए खुद की गलतियों को भी समझना चाहिए।

145. कहावत – अपना लाल गंवाय के दर-दर मांगे भीख
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब कोई अपने मूल्यवान ‘लाल’ (यहां पर ‘लाल’ से अभिप्राय कुछ कीमती या महत्वपूर्ण से है) को खो देता है, तो उसे बाद में अन्य स्थानों पर भीख मांगनी पड़ती है यानी उसे अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है।
प्रयोग: यह कहावत विशेष रूप से तब प्रयोग की जाती है जब हमें यह दर्शाना होता है कि हमें अपने पास मौजूद संसाधनों की कद्र करनी चाहिए और उन्हें संजोकर रखना चाहिए।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यक्ति के पास बहुत सारी जमीन थी, लेकिन उसने बिना सोचे-समझे उसे बेच दिया। बाद में जब उसे पैसों की आवश्यकता हुई, तो उसे दूसरों से मदद मांगनी पड़ी। यहाँ “अपना लाल गंवाय के दर-दर मांगे भीख” कहावत उसकी स्थिति को बखूबी बयान करती है।

146. कहावत – अपना हाथ जगन्नाथ का भात
अर्थ:“अपना हाथ जगन्नाथ” का शाब्दिक अर्थ है कि अपने हाथों से किया गया कार्य ही सबसे उत्तम है। इसमें ‘जगन्नाथ’ का उपयोग प्रभु या उच्च शक्ति के रूप में होता है, यह दर्शाता है कि अपने प्रयासों से किया गया काम ईश्वरीय आशीर्वाद के समान है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब हमें किसी को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करना होता है या यह दर्शाना होता है कि अपने कार्य स्वयं करने में जो खुशी और संतोष है, वह दूसरों के भरोसे रहने में नहीं।
उदाहरण:मान लीजिए एक छात्र अपने परिवार या ट्यूटर पर निर्भर रहता है अपनी पढ़ाई के लिए। लेकिन जब वह स्वयं पढ़ाई करने लगता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करता है, तो उसे समझ आता है कि “अपना हाथ जगन्नाथ” कहावत का क्या अर्थ है।

147. कहावत – अपनी अक्ल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम पड़ती है
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि व्यक्ति अक्सर अपनी बुद्धि या समझ को सर्वश्रेष्ठ मानता है, भले ही वास्तविकता कुछ और हो। इसी तरह, लोग अक्सर दूसरों की दौलत या संपत्ति को अपनी तुलना में अधिक मूल्यवान मानते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी को यह समझाना हो कि अपनी अक्ल का अतिरेक और दूसरों की दौलत के प्रति अत्यधिक आकर्षण दोनों ही अनुचित हैं।
उदाहरण: मान लीजिए एक व्यक्ति हमेशा अपने निर्णयों को सही मानता है और दूसरों के सुझावों को नहीं मानता, वहीं वह अपने मित्र की संपत्ति और सफलता को देखकर ईर्ष्या करता है। यहां “अपनी अक्ल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम पड़ती है” कहावत उसके व्यवहार को सटीक रूप से व्यक्त करती है।

148. कहावत – ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि छोटी या सामान्य घटना भी कभी-कभी बड़े परिवर्तन या हलचल का कारण बन सकती है। ‘ढेला’ यहां एक छोटी चीज का प्रतीक है, और ‘चील का बोलना’ किसी घटना की शुरुआत को दर्शाता है, जिससे ‘गली-गली में पानी डोलना’ यानी व्यापक प्रभाव या परिवर्तन होता है।
प्रयोग:यह कहावत अक्सर उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है, जहां छोटी शुरुआत से बड़े परिणाम सामने आते हैं। इसे राजनीति, सामाजिक परिवर्तन, व्यापार आदि में देखा जा सकता है।
उदाहरण:किसी छोटे से विरोध प्रदर्शन से बड़ा सामाजिक आंदोलन खड़ा हो जाना, या एक छोटी सी अफवाह से पूरे बाजार में हलचल मच जाना इस कहावत के उदाहरण हैं।

149. कहावत – दर्जी की सुई कभी ताश में कभी टाट में
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि एक कुशल व्यक्ति या पेशेवर विभिन्न परिस्थितियों में अपना काम अनुकूल रूप से बदल सकता है। ‘ताश’ यहाँ महंगे और उच्च श्रेणी के कपड़े का प्रतीक है, जबकि ‘टाट’ साधारण और सस्ते कपड़े का। दर्जी की सुई का इस्तेमाल दोनों प्रकार के कपड़ों में होता है, जो उसकी अनुकूलन क्षमता को दर्शाता है।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल व्यवसाय, नौकरी, या जीवन के अन्य पहलुओं में किया जाता है, जहां व्यक्ति को अलग-अलग स्थितियों में अपनी भूमिका को ढालने की आवश्यकता होती है।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यापारी जो लक्जरी उत्पादों के साथ-साथ साधारण उत्पाद भी बेचता है। वह अपने ग्राहकों की विविधता और उनकी जरूरतों के अनुसार अपनी बिक्री और सेवाओं को ढाल लेता है। यहाँ “दर्जी की सुई कभी ताश में कभी टाट में” कहावत उसकी अनुकूलन क्षमता को व्यक्त करती है।

150. कहावत – पर उपदेश कुशल बहुतेरे
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि लोग दूसरों को तो बहुत आसानी से सलाह दे देते हैं, परंतु जब बात खुद उन्हीं सिद्धांतों पर चलने की आती है, तो वे पीछे हट जाते हैं।
प्रयोग:इस कहावत का इस्तेमाल आमतौर पर तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति दूसरों को उपदेश तो खूब देता है, परंतु स्वयं उन उपदेशों का पालन नहीं करता।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति लोगों को स्वास्थ्य का महत्व समझाता है और व्यायाम करने की सलाह देता है, परंतु खुद व्यायाम नहीं करता। ऐसे में इस कहावत का प्रयोग किया जा सकता है।

151. कहावत – गधा खेत खाए जुलाहा पीटा जाए
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कभी-कभी असली दोषी को सजा नहीं मिलती, बल्कि कोई निर्दोष व्यक्ति ही दंडित हो जाता है। यहाँ ‘गधा’ किसी अन्य की गलती करने वाला है और ‘जुलाहा’ वह निर्दोष व्यक्ति है जो बिना अपराध के दंडित होता है।
प्रयोग: यह कहावत सामाजिक और व्यावसायिक संदर्भों में उपयोग की जाती है, जहां गलत व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है। इसका प्रयोग उस समय किया जाता है जब किसी निर्दोष व्यक्ति को अन्यायपूर्ण तरीके से दोषी बना दिया जाता है।
उदाहरण: यदि किसी कार्यस्थल पर एक कर्मचारी गलती करता है लेकिन सजा किसी अन्य कर्मचारी को मिलती है, तो इस स्थिति को “गधा खेत खाए जुलाहा पीटा जाए” कहावत से व्यक्त किया जा सकता है।

152. कहावत – खेती पाती बीनती और घोड़े की तंग, अपने हाथ सम्भालिये चाहें लाख लोग होय संग
अर्थ:इस कहावत का मुख्य अर्थ है कि महत्वपूर्ण कार्यों में व्यक्तिगत ध्यान और जिम्मेदारी आवश्यक है। यह बताती है कि चाहे आपके साथ कितने भी लोग क्यों न हों, लेकिन अंतिम जिम्मेदारी और सावधानी आपकी ही होती है।
प्रयोग:यह कहावत उन स्थितियों में उपयोगी होती है जहां व्यक्तिगत संलग्नता और प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण होती है, जैसे कि व्यवसाय, पारिवारिक उत्तरदायित्व, या किसी परियोजना में।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यापारी अपने व्यवसाय की जिम्मेदारी अपने कर्मचारियों पर पूरी तरह छोड़ देता है और खुद उसमें ध्यान नहीं देता, तो संभव है कि व्यवसाय में कुछ कमियाँ या गलतियाँ हो जाएँ। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “खेती पाती बीनती और घोड़े की तंग, अपने हाथ सम्भालिये चाहें लाख लोग होय संग।”

153. कहावत – बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख
अर्थ:कहावत का मूल अर्थ यह है कि कभी-कभी अनपेक्षित रूप से बड़ी उपलब्धियां और सौभाग्य मिल जाते हैं, जबकि जब हम कुछ विशेष चीजों की मांग करते हैं, तो वे हमें प्राप्त नहीं होतीं।
प्रयोग: यह कहावत तब उपयोगी होती है जब हमें यह समझाना हो कि जीवन में सब कुछ प्रयत्नों पर निर्भर नहीं करता। कई बार किस्मत और संयोग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उदाहरण:एक व्यक्ति जो बिना किसी उम्मीद के एक प्रतियोगिता में भाग लेता है और पहला पुरस्कार जीत जाता है, वहीं दूसरा व्यक्ति जो बहुत मेहनत करता है लेकिन उसे सफलता नहीं मिलती, इस स्थिति में “बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख” कहावत सटीक बैठती है।

154. कहावत – अति सर्वत्र वर्जयेत्
अर्थ:“अति सर्वत्र वर्जयेत्” का अर्थ है कि किसी भी चीज की अत्यधिकता से बचना चाहिए। अति करने पर स्वस्थ्य, संबंध, कार्य और यहाँ तक की मानसिक संतुलन पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग अक्सर जीवन में संतुलन बनाए रखने के महत्व को बताने के लिए किया जाता है। यह किसी भी चीज के प्रति समझदारी और संयम बरतने की सीख देती है।
उदाहरण:उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति बहुत अधिक काम करता है और आराम नहीं करता, तो वह जल्दी थकान और स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो सकता है। इसे “अति सर्वत्र वर्जयेत्” के अनुसार समझा जा सकता है।

155. कहावत – अस्सी की आमद, चौरासी खर्च
अर्थ:कहावत “अस्सी की आमद, चौरासी खर्च” का शाब्दिक अर्थ है कि अगर आपकी आय अस्सी रुपये है और आप चौरासी रुपये खर्च कर रहे हैं, तो आप अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च कर रहे हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग वित्तीय अनुशासनहीनता को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह व्यक्तिगत या संस्थागत वित्तीय प्रबंधन की खामियों को उजागर करता है।
उदाहरण: उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति हर महीने अपनी सैलरी से ज्यादा खर्च कर रहा है और कर्ज ले रहा है, तो इस स्थिति को “अस्सी की आमद, चौरासी खर्च” कहा जा सकता है।

156. कहावत – अपना रख पराया चख
अर्थ:“अपना रख पराया चख” का मतलब है कि अपने संसाधनों को संभालकर रखें और दूसरों की चीजों का उपयोग करते समय सावधानी बरतें। इससे आपकी चीजें सुरक्षित रहेंगी और दूसरों की संपत्ति का भी सम्मान होगा।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी को यह समझाना होता है कि अपनी चीजों को सहेज कर रखना और दूसरों की चीजों का उपयोग करते समय सम्मान और सावधानी बरतना जरूरी है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति के पास अपनी कार है जिसे वह बहुत संभालकर रखता है, लेकिन जब वह अपने मित्र की कार उधार लेता है, तो उसका ध्यान नहीं रखता। ऐसे में, “अपना रख पराया चख” कहावत का प्रयोग करके उसे समझाया जा सकता है कि दूसरों की चीजों का भी उतना ही सम्मान करना चाहिए जितना अपनी चीजों का।

157. कहावत – अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ
अर्थ:“अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ” का अर्थ है कि यदि आप अच्छी समझ या सलाह चाहते हैं, तो आपको बुजुर्गों से पूछना चाहिए। उनके अनुभव और जीवन की समझ हमें सही दिशा दिखा सकते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब किया जाता है जब जीवन के किसी महत्वपूर्ण निर्णय या समस्या का समाधान खोजने में बुजुर्गों की सलाह की आवश्यकता होती है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक युवक को अपने करियर के चुनाव में कठिनाई हो रही है। वह अपने दादाजी से सलाह लेता है, जिनका जीवन का लंबा अनुभव होता है। दादाजी की सलाह उसे सही दिशा में ले जाती है।

158. कहावत – अब की अब, जब की जब के साथ
अर्थ:“अब की अब, जब की जब के साथ” का मतलब है कि जो काम अभी किया जा सकता है, उसे अभी ही करना चाहिए और जो काम बाद में करने का है, उसे उस समय करना चाहिए। इससे समय प्रबंधन और कार्यकुशलता में सुधार होता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग समय की प्राथमिकता और उसके अनुरूप कार्य करने के महत्व को समझाने के लिए किया जाता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक छात्र को अपनी परीक्षा की तैयारी करनी है, लेकिन वह टालमटोल कर रहा है। यहाँ पर “अब की अब, जब की जब के साथ” कहावत का प्रयोग करके उसे समझाया जा सकता है कि परीक्षा की तैयारी का सही समय अभी है।

159. कहावत – अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना
अर्थ:“अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना” का अर्थ है कि हर व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार सोने और जागने का अधिकार है। यह स्वतंत्रता और स्वावलंबन का प्रतीक है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग व्यक्तिगत निर्णय और आत्मनिर्भरता की अवधारणा को समझाने के लिए किया जाता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक युवक अपने परिवार के दबाव में एक विशेष करियर का चयन करने के बजाय अपनी रुचि का पालन करना चाहता है। यहाँ पर “अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना” कहावत का प्रयोग करके उसे समझाया जा सकता है कि उसे अपने निर्णय स्वयं लेने चाहिए।

160. कहावत – अपने झोपड़े की खैर मनाओ
अर्थ:“अपने झोपड़े की खैर मनाओ” का अर्थ है कि हमें अपनी स्थितियों में संतोष रखना चाहिए और उनकी सराहना करनी चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि अपने पास जो कुछ भी है, उसे स्वीकार करें और उसकी कद्र करें।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी को अपने पास मौजूद चीजों की महत्ता को समझाना होता है और उनमें संतोष रखने की प्रेरणा देनी होती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति हमेशा दूसरों की बड़ी और आलीशान हवेलियों को देखकर अपने छोटे घर की कमियाँ गिनता रहता है। यहाँ पर “अपने झोपड़े की खैर मनाओ” कहावत का प्रयोग करके उसे समझाया जा सकता है कि उसे अपने घर की सराहना करनी चाहिए और उसमें संतोष रखना चाहिए।

161. कहावत – अटका बनिया दे उधार
अर्थ:कहावत का मूल अर्थ यह है कि जब व्यापार में मंदी आती है और व्यापारी को अपने सामान की बिक्री में कठिनाई होती है, तो वह उधार देने का विकल्प चुनता है ताकि अपने व्यापार को चालू रख सके।
प्रयोग: यह कहावत आमतौर पर व्यापार और अर्थशास्त्र के संदर्भ में प्रयोग की जाती है, जब कोई व्यापारी अपने व्यापार की स्थिति को सुधारने के लिए उधार देने लगता है।
उदाहरण:एक व्यापारी जिसका कपड़े का व्यापार था, उसे बाजार में मंदी के कारण ग्राहक कम मिल रहे थे। इसलिए, उसने ग्राहकों को उधार पर सामान देना शुरू कर दिया ताकि व्यापार चलता रहे। यहाँ “अटका बनिया दे उधार” कहावत सटीक बैठती है।

162. कहावत – अति भक्ति चोर के लक्षण
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग अपने भक्ति या वफादारी का अतिरिक्त प्रदर्शन करते हैं, वे अक्सर कुछ छिपाने की कोशिश में होते हैं। यह दिखावटी भक्ति संदेह का कारण बनती है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी के अतिरिक्त प्रदर्शन पर संदेह होता है, या जब किसी व्यक्ति के अत्यधिक प्रेम या भक्ति के पीछे छिपे उलझन को समझना हो।
उदाहरण:मान लीजिए एक कर्मचारी अपने बॉस के प्रति अत्यधिक भक्ति दिखाता है, लेकिन उसकी इस भक्ति के पीछे वास्तव में उसकी पदोन्नति की इच्छा छुपी होती है। यहाँ, “अति भक्ति चोर के लक्षण” कहावत इस स्थिति का वर्णन करती है।

163. कहावत – अधेला न दे, अधेली दे
अर्थ:इस कहावत का मूल अर्थ है कि आंशिक रूप से दी गई मदद या समर्थन अक्सर अपूर्ण होती है और इससे अधिक नुकसान हो सकता है बजाय लाभ के।
प्रयोग:यह कहावत तब इस्तेमाल की जाती है जब कोई व्यक्ति या संस्था किसी की सहायता करने का दावा करती है, लेकिन वास्तव में केवल आंशिक या अपर्याप्त सहायता प्रदान करती है।
उदाहरण: एक व्यक्ति ने अपने मित्र से कुछ धन उधार मांगा, लेकिन उसके मित्र ने केवल आधी रकम ही दी, जो उसके लिए पर्याप्त नहीं थी। यहाँ पर “अधेला न दे, अधेली दे” कहावत उपयुक्त है।

164. कहावत – अनदेखा चोर बाप बराबर
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि बिना पुख्ता सबूत के किसी पर चोरी का आरोप लगाना और उसे अनादरित करना उचित नहीं है। यह न्यायिक प्रक्रिया और निष्पक्षता के महत्व को दर्शाता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जा सकता है जब किसी व्यक्ति पर बिना ठोस सबूत के आरोप लगाए जा रहे हों। यह कहावत व्यक्ति की निर्दोषता की पुष्टि करती है जब तक कि उसके खिलाफ सबूत न हों।
उदाहरण: एक गाँव में, एक व्यक्ति पर चोरी का आरोप लगा लेकिन पुलिस ने उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं पाया। इस स्थिति में, गाँव वालों को “अनदेखा चोर बाप बराबर” कहावत का पालन करना चाहिए और बिना सबूत के उस व्यक्ति का अनादर नहीं करना चाहिए।

165. कहावत – अंधे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि एक अंधा व्यक्ति, जिसे दृश्य रूप से देखने की क्षमता नहीं है, अंधेरे में भी दूर की चीजों को ‘समझ’ लेता है। यह सूचित करता है कि कभी-कभी व्यक्ति अपनी अन्य क्षमताओं के माध्यम से उन चीजों को समझ लेता है जो आमतौर पर संभव नहीं लगती।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब कोई व्यक्ति अपनी शारीरिक या मानसिक सीमाओं के बावजूद असाधारण सोच या समझ दिखाता है।
उदाहरण:यदि कोई व्यक्ति बिना औपचारिक शिक्षा के ही किसी कठिन समस्या का समाधान निकाल लेता है, तो कहा जा सकता है कि “उसने अंधे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी।”

166. कहावत – अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि एक अंधेरी (बिना दिशा की) नगरी में एक चौपट (अयोग्य) राजा होता है, जहाँ सब कुछ एक समान मूल्य पर बेचा जाता है – चाहे वह भाजी (सब्जी) हो या खाजा (मिठाई)। यह अव्यवस्था और असमानता को दर्शाता है।
प्रयोग: जब भी किसी संस्था, समूह या देश में अव्यवस्था और अयोग्य नेतृत्व की बात आती है, तब यह कहावत प्रयोग की जाती है। इसका उद्देश्य यह दर्शाना है कि जब नियम और न्याय की कमी होती है, तो समाज में अराजकता फैलती है।
उदाहरण:यदि किसी कंपनी में नियमों का पालन नहीं होता और सभी कर्मचारियों को बिना उनकी योग्यता या प्रदर्शन के एक समान वेतन दिया जाता है, तो इस स्थिति को “अंधेर नगरी चौपट राजा” से तुलना की जा सकती है।

167. कहावत – अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग
अर्थ:कहावत “अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग” का शाब्दिक अर्थ है कि हर व्यक्ति का अपना एक अनूठा तरीका और सोच होती है। जैसे हर म्यूजिशियन का अपना एक अलग तरीका होता है डफली बजाने का और अपना एक अलग राग होता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग अक्सर उन स्थितियों में किया जाता है जहाँ लोग अपनी-अपनी विशेषताओं और मतभेदों के साथ उपस्थित होते हैं। यह भिन्नता और व्यक्तिगत चुनाव की स्वीकृति को दर्शाता है।
उदाहरण: मान लीजिए एक कक्षा में कई छात्र हैं और प्रत्येक की अपनी-अपनी रुचियाँ हैं। कोई क्रिकेट में रुचि रखता है, तो कोई संगीत में। यहाँ “अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग” कहावत का प्रयोग इस विविधता को दर्शाने के लिए किया जा सकता है।

168. कहावत – अमानत में खयानत
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब किसी को कोई चीज अमानत के रूप में दी जाती है, और उस व्यक्ति द्वारा उसका दुरुपयोग किया जाता है, तो उसे ‘अमानत में खयानत’ कहते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति उस विश्वास को तोड़ता है जो उस पर किया गया हो। यह विशेष रूप से तब प्रयोग की जाती है जब कोई संपत्ति, धन या महत्वपूर्ण जानकारी के दुरुपयोग की बात आती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति ने अपने मित्र को कुछ पैसे भरोसे के साथ सौंपे और उस मित्र ने उन पैसों का गलत इस्तेमाल किया। यहाँ ‘अमानत में खयानत’ होने की बात है।

169. कहावत – नई नाइन बाँस का नैहन्ना
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जब कुछ नया आता है, तो शुरुआत में उसके प्रति बहुत उत्साह और उम्मीदें होती हैं। हालांकि, यह उत्साह कुछ समय बाद कम हो जाता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग में लाई जाती है जब किसी नई चीज या व्यक्ति के प्रति शुरुआती उत्साह बाद में कम हो जाता है या सामान्य हो जाता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक कंपनी में नया मैनेजर आता है, और शुरुआत में सभी कर्मचारी उसके प्रति बहुत उत्साहित होते हैं। लेकिन कुछ समय बाद, जब चीजें सामान्य हो जाती हैं, तब वह उत्साह कम हो जाता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि “नई नाइन बाँस का नैहन्ना”।

170. कहावत – अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि यदि कोई अंधे व्यक्ति के सामने रोता है, तो वह अपनी ही आँखें खो बैठता है, यानी उसे कोई लाभ नहीं होता। यह बताता है कि अपनी भावनाओं या समस्याओं को उन लोगों के सामने प्रकट करना व्यर्थ है जो उन्हें समझ नहीं सकते।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब व्यक्ति को यह समझना होता है कि उसकी बातें या भावनाएँ उस व्यक्ति के लिए महत्वहीन हैं, जिससे वह बात कर रहा है।
उदाहरण:यदि कोई व्यक्ति अपनी परेशानियाँ ऐसे व्यक्ति को बताता है, जिसे उसके संघर्षों की कोई समझ नहीं है, तो इस स्थिति में कहा जा सकता है कि वह “अंधे के आगे रो रहा है, अपना दीदा खो रहा है।”

171. कहावत – छूछा कोई न पूछा
अर्थ:कहावत का सामान्य अर्थ है कि जो व्यक्ति या चीज निरर्थक या बिना मूल्य के होते हैं, उन्हें समाज में कोई महत्व नहीं दिया जाता।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब किसी व्यक्ति या चीज की अनुपस्थिति या अनुपयोगिता को रेखांकित करना हो।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति अपने समुदाय में कोई योगदान नहीं देता है या उसकी कोई पहचान नहीं होती है, तो उसके बारे में कहा जा सकता है, “छूछा कोई न पूछा।”

172. कहावत – गिरे को खरबूजे का ज़रर
अर्थ:कहावत का मतलब है कि जब कोई पहले से ही मुश्किल में हो और उस पर और भी मुसीबतें आ पड़ें, तो उसकी स्थिति और भी बदतर हो जाती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब व्यक्ति पहले से ही कठिनाइयों में घिरा हो और उसके ऊपर और भी समस्याएँ आ जाएँ।
उदाहरण: मान लीजिए, एक किसान पहले से ही सूखे की मार झेल रहा हो और उसके बाद उसकी फसलों में कीट प्रकोप हो जाए, तो कहा जा सकता है कि “गिरे को खरबूजे का ज़रर”।

173. कहावत – बोए पेड़ बबूल का आम कहाँ से होए
अर्थ:इस कहावत का सामान्य अर्थ यह है कि जो कुछ हम बोते हैं, वही हमें मिलता है। यदि हम बबूल का पेड़ लगाएंगे, तो आम की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? इसी तरह, अगर हम गलत कार्य करते हैं, तो हमें अच्छे परिणामों की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग अक्सर तब किया जाता है जब किसी को यह समझाना होता है कि उनके कर्मों के अनुरूप ही परिणाम मिलते हैं।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति ने अपने जीवन में गलत काम किए और बाद में उसे इसका पछतावा हुआ। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है, “बोए पेड़ बबूल का आम कहाँ से होए”।

174. कहावत – ऊँट को निगल लिया और दुम को हिचके
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि कभी-कभी लोग बड़ी और कठिन चुनौतियों को तो हल कर लेते हैं, लेकिन उन्हें छोटी और आसान बाधाओं पर हिचकिचाहट होती है। यह अक्सर विरोधाभासी लगता है।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी को बड़े कार्य को आसानी से करने के बाद छोटे कार्य में अटकते हुए देखा जाता है। यह इंगित करता है कि कभी-कभी हम छोटी बाधाओं को अधिक महत्व दे देते हैं।
उदाहरण:मान लीजिए एक व्यक्ति ने बड़ी परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया, लेकिन वह रोजमर्रा की छोटी जिम्मेदारियों में उलझ जाता है, तो उसे कहा जा सकता है कि “ऊँट को निगल लिया और दुम को हिचके।”

175. कहावत – चोर चोर मौसेरे भाई
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जिनके इरादे या व्यवहार एक जैसे होते हैं, वे आपस में मिल जुलकर काम करते हैं। यहाँ ‘चोर’ शब्द का प्रयोग अक्सर उन लोगों के लिए किया जाता है जो अनैतिक या गलत कामों में लिप्त होते हैं।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब दो या अधिक लोग, जिनके इरादे या कार्य गलत होते हैं, एक साथ मिलकर कोई काम करते हैं या एक-दूसरे का समर्थन करते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए दो राजनीतिक दल जो आमतौर पर एक-दूसरे के विरोधी होते हैं, अगर वे किसी विशेष मुद्दे पर एक साथ आ जाएं और वह मुद्दा सामाजिक रूप से गलत माना जाता हो, तो लोग कह सकते हैं “देखो, चोर चोर मौसेरे भाई।”

176. कहावत – तुम्हारे मुँह में घी-शक़्कर
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि वक्ता यह चाहता है कि जिसके लिए यह कहा जा रहा है, उसे सुख और समृद्धि मिले। यह एक प्रकार का आशीर्वाद है जो किसी के अच्छे भविष्य की कामना करता है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग में लाई जाती है जब कोई व्यक्ति किसी अच्छे काम के लिए जा रहा हो या किसी शुभ अवसर पर।
उदाहरण: मान लीजिए, एक युवक ने अपने परीक्षा के परिणाम के बारे में बताया कि वह टॉप कर गया है, तो उसके परिवारवाले या मित्र उसे कह सकते हैं, “तुम्हारे मुंह में घी-शक्कर”, यानी उनकी खुशी और सफलता की कामना।

177. कहावत – आटे के साथ घुन भी पिसता है
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि जब आटा पीसा जाता है, तो उसमें मौजूद घुन (कीड़े) भी पिस जाते हैं। लाक्षणिक अर्थ यह है कि जब किसी बड़े कार्य या निर्णय का निष्पादन होता है, तो उसके साथ कुछ नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी बड़े निर्णय या कार्रवाई के दौरान छोटे नुकसान भी होते हैं और उन्हें अनिवार्य माना जाता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक कंपनी ने अपनी लागत कम करने के लिए कुछ कर्मचारियों की छंटनी की। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि “आटे के साथ घुन भी पिसता है”, यानी कंपनी के लाभ के लिए कुछ कर्मचारियों को नुकसान हुआ।

178. कहावत – ठेस लगे, बुद्धि बढ़े
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जीवन में जब हमें कोई ठेस लगती है या हमें कोई कठिनाई आती है, तो इससे हमारा अनुभव बढ़ता है और हमारी समझ और बुद्धि में वृद्धि होती है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी को जीवन की कठिनाइयों से सीखने और उससे मजबूत बनने के लिए प्रेरित करना होता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक छात्र जिसने परीक्षा में अच्छे अंक नहीं लाए, उसे उसके शिक्षक ने कहा, “ठेस लगे, बुद्धि बढ़े। इस अनुभव से सीखो और अगली बार और बेहतर करो।”

179. कहावत – आ पड़ोसन लड़ें
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि लोग कभी-कभी बिना किसी ठोस कारण के या छोटी-मोटी बातों पर झगड़ा कर बैठते हैं।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब लोग छोटे मुद्दों पर आपस में लड़ने-झगड़ने लगते हैं, जिसका कोई खास महत्व नहीं होता।
उदाहरण: मान लीजिए, दो पड़ोसी अपने घर के बाहर खड़ी गाड़ी के लिए झगड़ा करने लगे, तो लोग कह सकते हैं कि “देखो, वे ‘आ पड़ोसन लड़ें’ कर रहे हैं।”

180. कहावत – आदमी पानी का बुलबुला है
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि मानव जीवन बहुत ही क्षणिक और अनिश्चित है। हमारा अस्तित्व बहुत ही नाजुक है और किसी भी क्षण बदल सकता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब हमें जीवन की नाजुकता और अनिश्चितता को समझाना होता है।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक घमंड या अहंकार में डूबा होता है, तो उसे यह कहावत सुनाकर समझाया जा सकता है कि “आदमी पानी का बुलबुला है”, अर्थात् उसे अपने अहंकार में नहीं रहना चाहिए क्योंकि जीवन बहुत ही अस्थायी है।

181. कहावत – अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है
अर्थ:कहावत का अर्थ है कि जब व्यक्ति अपने परिचित वातावरण में होता है, तो उसका आत्मविश्वास और साहस बढ़ जाता है, और वह उस स्थान पर अधिक प्रभावशाली बन जाता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग उस समय किया जाता है जब किसी व्यक्ति का परिचित परिवेश में उसका प्रभाव और सामर्थ्य दिखाई दे।
उदाहरण:यदि कोई व्यक्ति अपने कार्यस्थल पर या अपने समुदाय में अधिक निर्णायक और प्रभावशाली बन जाता है, तो उसे “अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है” कहकर वर्णित किया जा सकता है।

182. कहावत – बुढि़या मरी तो मरी, आगरा तो देखा
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि किसी काम या इच्छा का पूरा होना उस समय पर होता है जब उसका असली महत्व या उत्साह खत्म हो चुका होता है। यह अक्सर देरी से होने वाली प्राप्ति या सफलता के संदर्भ में प्रयोग की जाती है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब कोई व्यक्ति या समाज किसी चीज़ को उस समय प्राप्त करता है जब वह अपनी प्रासंगिकता खो चुका होता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति का सपना था कि वह जवानी में दुनिया घूमे, लेकिन वह उम्र के आखिरी पड़ाव पर जाकर ही यात्रा पर निकल पाया। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “बुढि़या मरी तो मरी, आगरा तो देखा।”

183. कहावत – लिखे ईसा पढ़े मूसा
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि जो कुछ लिखा गया है, वह पढ़ने पर कुछ और ही निकलता है। यह कहावत उन स्थितियों को दर्शाती है जहां लिखावट इतनी खराब होती है कि पढ़ने वाला व्यक्ति सही मतलब नहीं निकाल पाता है।
प्रयोग:अक्सर यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी डॉक्टर, विद्यार्थी, या ऐसे किसी व्यक्ति की लिखावट को पढ़ना कठिन होता है, जिसकी लिखावट स्पष्ट नहीं होती है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक छात्र की परीक्षा की उत्तरपुस्तिका जाँचने वाले शिक्षक को उसकी लिखावट की वजह से उत्तर समझने में कठिनाई हो रही है। ऐसे में शिक्षक कह सकते हैं, “इस छात्र की लिखावट में तो ‘लिखे ईसा पढ़े मूसा’ वाली बात है।”

184. कहावत – अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं-चीं मत कर
अर्थ:इस कहावत का मूल अर्थ यह है कि अनुभवहीन व्यक्ति द्वारा अधिक जानकार व्यक्ति को निर्देश या सलाह देना व्यर्थ और हास्यास्पद होता है। यहाँ ‘अंडा’ अनुभवहीनता का प्रतीक है और ‘बच्चे’ अनुभवी व्यक्ति को दर्शाता है।
प्रयोग:यह कहावत तब उपयोग में लाई जाती है जब कोई नौसिखिया या कम ज्ञान रखने वाला व्यक्ति अधिक जानकार या अनुभवी लोगों को सलाह या निर्देश देता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक नया कर्मचारी जो अभी-अभी कंपनी में शामिल हुआ है, वह अपने वरिष्ठ और अनुभवी सहकर्मी को काम कैसे करना है, इस बारे में सलाह देता है। इस परिस्थिति में वरिष्ठ कर्मचारी कह सकता है, “अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं-चीं मत कर।”

185. कहावत – अपनी पगड़ी अपने हाथ
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इज्जत, प्रतिष्ठा और जिम्मेदारियां खुद संभालनी चाहिए और किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी को आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की प्रेरणा देनी होती है।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति अपने निर्णयों और कार्यों में स्वतंत्र होता है और अपनी जिम्मेदारियों को स्वयं संभालता है, तो उसे कहा जा सकता है कि वह “अपनी पगड़ी अपने हाथ” रखता है।

186. कहावत – अंधा क्या चाहे, दो आंखे
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि हर व्यक्ति की बुनियादी और सबसे महत्वपूर्ण इच्छा वह होती है जो उसके लिए सबसे आवश्यक होती है। जैसे कि एक अंधे व्यक्ति के लिए दो आंखों की कामना सबसे बड़ी और प्राथमिक होती है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब हमें किसी की मूलभूत और सबसे जरूरी इच्छाओं की बात करनी हो। यह कहावत यह भी दर्शाती है कि किसी की सबसे बड़ी कमी उसकी सबसे बड़ी इच्छा बन जाती है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति जो बचपन से ही गरीबी में रहा हो, उसके लिए सबसे बड़ी इच्छा संपन्नता और आर्थिक सुरक्षा होगी। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “अंधा क्या चाहे, दो आंखें।”

187. कहावत – अन्त भले का भला
अर्थ:“अंत भले का भला” का शाब्दिक अर्थ है “अंत में जो अच्छा होता है, वही अच्छा होता है।” इसका तात्पर्य यह है कि यदि किसी काम का अंतिम परिणाम सकारात्मक और अनुकूल हो, तो प्रक्रिया के दौरान आई किसी भी बाधा या समस्या को महत्वहीन माना जाता है।
प्रयोग:इस कहावत का प्रयोग अक्सर उन स्थितियों में किया जाता है जहां परिश्रम और संघर्ष के बाद सफलता प्राप्त होती है। यह व्यक्ति को धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने का संदेश देती है।
उदाहरण: मान लीजिए, कोई विद्यार्थी बहुत मेहनत करके एक कठिन परीक्षा में उत्तीर्ण होता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि “अंत भले का भला”, क्योंकि परीक्षा की तैयारी के दौरान हुई सारी कठिनाईयाँ अंत में सफलता प्राप्ति के साथ नगण्य हो जाती हैं।

188. कहावत – अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी
अर्थ:इस कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि एक अंधे सिपाही को एक कानी घोड़ी मिली है। यहाँ ‘विधि’ का तात्पर्य किस्मत या भाग्य से है। इसका आशय यह है कि कभी-कभी भाग्य ऐसी जोड़ी बना देता है जो एक-दूसरे के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं होती।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब दो व्यक्ति या वस्तुएं जो एक-दूसरे के लिए अनुपयुक्त हों, एक साथ आ जाते हैं और इससे अजीब या अनपेक्षित परिणाम सामने आते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए, एक कंपनी ने एक ऐसे प्रोजेक्ट मैनेजर को नियुक्त किया जो तकनीकी ज्ञान से अनजान है और उसे एक ऐसी टीम का नेतृत्व करने के लिए कहा जाता है जो उच्च तकनीकी कौशल रखती है।

189. कहावत – अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को ही दे
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि एक अंधा व्यक्ति रेवड़ी (एक प्रकार की मिठाई) बांट रहा है, लेकिन बार-बार अनजाने में खुद को ही दे रहा है। यह उन परिस्थितियों को दर्शाता है जहाँ निर्णय लेने वाले की अज्ञानता या पक्षपात के कारण अन्याय होता है।
प्रयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी संस्था या व्यक्ति द्वारा निष्पक्षता की कमी के कारण गलत निर्णय लिए जाते हैं, खासकर जब संसाधनों, सम्मान या अवसरों का वितरण हो।
उदाहरण: किसी कंपनी में प्रमोशन के समय, यदि मैनेजर अपने पसंदीदा कर्मचारियों को ही बार-बार प्रमोट करता है, भले ही वे योग्य न हों, तो कहा जा सकता है कि “मैनेजर तो अंधा बांटे रेवड़ी, फिर-फिर अपने को ही दे रहा है।”

190. कहावत – एक ही थैले के चट्टे बट्टे
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि भले ही दो लोग या चीजें बाहर से अलग दिखते हों, उनका मूल स्वभाव या गुणधर्म एक जैसा होता है।
प्रयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब दो व्यक्ति या चीजें बाहरी रूप में भिन्न होते हुए भी उनकी सोच और कार्य में समानता हो।
उदाहरण:मान लीजिए, दो राजनेता जो अलग-अलग दलों से हों लेकिन उनकी नीतियाँ और कार्यप्रणाली एक जैसी हों, तो कहा जा सकता है कि “वे एक ही थैले के चट्टे-बट्टे हैं।”

191. कहावत – बीमार की रात पहाड़ बराबर
अर्थ:कहावत का तात्पर्य है कि जब कोई व्यक्ति बीमार होता है, तो उसके लिए रात का समय बहुत लंबा और कष्टप्रद लगता है, मानो कि वह रात कभी खत्म ही नहीं होगी, जैसे एक पहाड़ की चढ़ाई कभी समाप्त न होने वाली लगती है।
प्रयोग:यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है, जहां व्यक्ति किसी कठिनाई या पीड़ा का सामना कर रहा हो और समय बहुत धीरे-धीरे गुजर रहा हो।
उदाहरण: मान लीजिए, एक व्यक्ति को तेज बुखार है और वह रात भर करवटें बदलता रहता है, उसके लिए वह रात बहुत लंबी और थकान भरी होती है। ऐसी स्थिति में कहा जा सकता है, “बीमार की रात पहाड़ बराबर।”

192. कहावत – बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि एक बुजुर्ग या पुरानी चीज़ को बाहरी सजावट से संवारने का प्रयास। यह उस स्थिति का वर्णन करती है जब आंतरिक गुणों की कमी को बाहरी आडम्बर से छिपाया जाता है।
प्रयोग:यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी पुरानी या अनुपयोगी चीज़ को बाहरी शोभा देकर उसके मूल्य को बढ़ाने की कोशिश की जाती है।
उदाहरण: एक कंपनी ने अपने पुराने उत्पाद की पैकेजिंग बदल दी और उसे नया रूप देकर बाजार में पुनः पेश किया। यहां लोगों ने कहा कि यह तो “बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम” की तरह है।

193. कहावत – बुढ़ापे में मिट्टी खराब
अर्थ:इस कहावत का आशय यह है कि बुढ़ापे में, जब व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमता खो देता है, तो अक्सर समाज में उसका सम्मान और प्रतिष्ठा भी कम हो जाती है।
प्रयोग: यह कहावत विशेषकर उन परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है, जहां बुजुर्ग व्यक्तियों को उनकी बढ़ती उम्र और घटती क्षमताओं के कारण समाज में कम सम्मान मिलता है।
उदाहरण: मान लीजिए, एक वरिष्ठ व्यक्ति जो पहले समाज में बहुत सम्मानित थे, अब बुढ़ापे के कारण उनकी बातों को उतना महत्व नहीं दिया जाता। ऐसे में कहा जा सकता है, “बुढ़ापे में मिट्टी खराब।”

194. कहावत – बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले
अर्थ:इस कहावत का अर्थ है कि जो व्यक्ति बिच्छू से बचने का उपाय या मंतर नहीं जानता, वह बेवजह साँप के बिल में हाथ डालता है, यानी वह बिना सोचे-समझे और तैयारी के खतरनाक स्थितियों में खुद को डाल देता है। यह कहावत हमें सिखाती है कि बिना पूरी जानकारी के किसी भी काम को करना जोखिम भरा होता है।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग अक्सर उन परिस्थितियों में किया जाता है, जहां किसी व्यक्ति को बिना पूरी तैयारी या जानकारी के किसी जोखिम भरे काम में लगे देखा जाता है।
उदाहरण:मान लीजिए, एक व्यक्ति जो शेयर बाजार के बारे में पूरी तरह से अनजान है, वह बिना सोचे-समझे और बिना पूर्व जानकारी के शेयर बाजार में निवेश कर देता है। यहां यह व्यक्ति “बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले” की स्थिति में है, जहाँ वह जोखिम उठा रहा है बिना उसके परिणामों की समझ के।

195. कहावत – बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती
अर्थ:कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि एक छोटा बच्चा जब तक रोता नहीं है, तब तक कई बार माँ उसे दूध नहीं पिलाती। इसी प्रकार, यदि किसी को कुछ चाहिए हो तो उसे अपनी आवश्यकता या इच्छा व्यक्त करनी चाहिए। यह कहावत हमें सिखाती है कि बिना अपनी बात कहे, अपने लक्ष्य या इच्छाओं को प्राप्त करना मुश्किल होता है।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी को समझाना होता है कि उन्हें अपनी इच्छाओं या जरूरतों को व्यक्त करना चाहिए। यह कहावत अक्सर कार्यस्थल, शिक्षा, या निजी जीवन में उपयोगी होती है।
उदाहरण: मान लीजिए एक कर्मचारी अपने कार्य में उत्कृष्टता हासिल करता है लेकिन वेतन वृद्धि के लिए कभी नहीं कहता। ऐसे में, उसके सहकर्मी या मित्र उसे सलाह दे सकते हैं कि “बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती,” अर्थात उसे अपनी मांग को व्यक्त करना चाहिए।

196. कहावत – बिल्ली और दूध की रखवाली?
अर्थ:इस कहावत का मूल अर्थ है कि अगर बिल्ली को दूध की रखवाली सौंपी जाए, तो यह अपेक्षा करना व्यर्थ है कि दूध सुरक्षित रहेगा। यहां बिल्ली को दूध की रखवाली सौंपना, ऐसी स्थिति का प्रतीक है जहां विश्वास की जिम्मेदारी उसी पर डाली जाती है जो उसे भंग कर सकता है।
प्रयोग:इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी ऐसे व्यक्ति को किसी महत्वपूर्ण कार्य की जिम्मेदारी दी जाती है, जिसके लिए वह उपयुक्त नहीं होता।
उदाहरण: मान लीजिए एक कंपनी में एक ऐसे व्यक्ति को वित्तीय लेखा-जोखा संभालने की जिम्मेदारी दी गई, जिसका इतिहास धन के दुरुपयोग का रहा हो। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि यह “बिल्ली और दूध की रखवाली?” जैसा है।

197. कहावत – बिल्ली गई चूहों की बन आयी
अर्थ:इस कहावत का मूल अर्थ है कि जब खतरे का कारण चला जाता है, तो लोग आजादी और खुशी महसूस करते हैं। जैसे जब बिल्ली चली जाती है, तो चूहे बिना डर के खुलकर अपने मनोरंजन में लग जाते हैं।
प्रयोग: इस कहावत का उपयोग तब होता है जब डर या खतरे के बाद लोग अपनी आजादी का आनंद उठाते हैं।
उदाहरण: एक स्कूल में, जब शिक्षक कक्षा से बाहर जाते हैं, तो विद्यार्थी खेलने-कूदने लगते हैं और अपनी पसंदीदा गतिविधियों में लीन हो जाते हैं। यहाँ कहा जा सकता है कि “बिल्ली गई चूहों की बन आयी।”

198. कहावत – बिल्ली के सपने में चूहा
अर्थ:कहावत का अर्थ है कि एक बिल्ली, जिसका स्वभाविक शिकार चूहा होता है, वह अपने सपने में भी चूहे के बारे में ही सोचेगी। इसी तरह, व्यक्ति अपनी प्राकृतिक रुचियों और इच्छाओं के अनुरूप ही सोचता और कार्य करता है।
प्रयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब होता है जब किसी व्यक्ति की प्राकृतिक प्रवृत्तियाँ या रुचियाँ उसके कार्यों में प्रतिबिंबित होती हैं।
उदाहरण:मान लीजिए, एक खिलाड़ी जो हमेशा खेलों के बारे में ही सोचता है, यहाँ तक कि उसके सपने भी खेलों से जुड़े होते हैं। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि “बिल्ली के सपने में चूहा” – अर्थात व्यक्ति अपनी स्वाभाविक रुचियों के अनुसार ही सोचता है।

199. कहावत – बारह गाँव का चौधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि चाहे कोई बारह गाँव का चौधरी हो या अस्सी गाँव का राव, अगर वह जरूरत के समय काम न आए, तो उसका कोई महत्व नहीं है। यह मुहावरा दिखावटी प्रतिष्ठा और असली उपयोगिता के बीच के अंतर को रेखांकित करता है।
प्रयोग:यह मुहावरा अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जहाँ उच्च पदस्थ लोगों से अपेक्षाएँ होती हैं लेकिन वे जरूरत के समय निराश करते हैं।
उदाहरण: एक सरकारी अधिकारी जो अपने क्षेत्र के विकास में योगदान नहीं दे पाता, उस पर यह मुहावरा लागू होता है।

200. कहावत – बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि जैसे बारह साल बाद घूरे (राख का ढेर) के भी दिन बदल सकते हैं, वैसे ही किसी भी व्यक्ति या स्थिति के हालात बदल सकते हैं। यह मुहावरा आशा और सकारात्मकता की भावना को प्रेरित करता है।
प्रयोग:यह मुहावरा अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जब किसी की स्थिति खराब हो और उसे आशा की जरूरत हो।
उदाहरण:किसी छात्र का प्रदर्शन पहले कमजोर हो और बाद में सुधार हो, तो भी इस मुहावरे का इस्तेमाल हो सकता है।

201. कहावत – बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि जिस तरह बासी कढ़ी (पुरानी और ठंडी हो चुकी कढ़ी) में उबाल नहीं आता, उसी तरह पुराने और अप्रचलित विचारों में नयापन या ऊर्जा नहीं होती।
प्रयोग: यह मुहावरा उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जब कोई पुरानी रीति या विचारधारा समकालीन संदर्भ में प्रभावी नहीं होती।
उदाहरण: समाज में कुछ पुरानी प्रथाएँ जो आज के समय में उपयोगी नहीं हैं, उन पर इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है।

202. कहावत – बासी बचे न कुत्ता खाय
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि जैसे बासी खाना न तो इंसानों के काम आता है और न ही कुत्ते खाते हैं, उसी तरह कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनकी किसी को जरूरत नहीं होती।
प्रयोग: यह मुहावरा आमतौर पर उन चीजों, विचारों, या संसाधनों के लिए प्रयोग किया जाता है जो निष्क्रिय या अनावश्यक होते हैं।
उदाहरण:अगर किसी कार्यालय में पुरानी मशीनें पड़ी हों जो अब किसी काम न आती हों, तो इस मुहावरे का प्रयोग हो सकता है।

203. कहावत – बिंध गया सो मोती, रह गया सो सीप
अर्थ:इस कहावत का सीधा अर्थ है कि “जो समय पर काम करता है, वह सफल होता है, और जो चूक जाता है, वह पीछे रह जाता है।” यहाँ ‘मोती’ सफलता और ‘सीप’ असफलता या अवसर को खो देने का प्रतीक है।
प्रयोग:यह कहावत अक्सर उन स्थितियों में इस्तेमाल की जाती है जहाँ किसी को अवसर मिलता है और वह उसका लाभ उठाकर सफलता प्राप्त करता है। इसके विपरीत, जो लोग इन अवसरों को पहचान नहीं पाते या उनका लाभ नहीं उठाते, वे जीवन में पीछे रह जाते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए एक विद्यार्थी के पास परीक्षा की अच्छी तैयारी करने का अवसर है, लेकिन वह इस अवसर का उपयोग नहीं करता और समय व्यर्थ करता है। वहीं, दूसरा विद्यार्थी इस अवसर का लाभ उठाकर कठिन परिश्रम करता है और परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करता है। यहां पहला विद्यार्थी ‘सीप’ का प्रतीक है, जबकि दूसरा ‘मोती’।

204. कहावत – बाप से बैर, पूत से सगाई
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि एक व्यक्ति से वैर रखने के बावजूद, उसके बेटे या परिवार के किसी अन्य सदस्य से अच्छे संबंध या नजदीकी हो। यह समाज में व्यक्तिगत और पारिवारिक संबंधों की जटिलताओं को दर्शाता है।
प्रयोग:यह मुहावरा अक्सर उस स्थिति में प्रयोग किया जाता है जब किसी से व्यक्तिगत रूप से अनबन हो, लेकिन उसी परिवार के दूसरे सदस्य से सद्भावना या मित्रता हो।
उदाहरण:यदि किसी व्यापारी से व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा हो, लेकिन उसके बेटे से अच्छे व्यक्तिगत संबंध हों, तो इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है।

205. कहावत – बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि जहां पिता मेढकी नहीं मार सकते, वहीं उनका बेटा तीरंदाज़ बन गया है। यह बताता है कि प्रतिभा या क्षमता अनुवांशिकता से परे हो सकती है और हर पीढ़ी अपनी अनूठी प्रतिभा लेकर आती है।
प्रयोग: यह मुहावरा तब प्रयोग किया जाता है जब किसी परिवार में किसी सदस्य की क्षमता उसके पूर्वजों से बिलकुल अलग हो। यह युवा पीढ़ी की असाधारण प्रतिभा और संभावनाओं की सराहना करता है।
उदाहरण: एक परिवार में जहाँ सभी सदस्य कला या संगीत से दूर थे, वहां एक युवा उत्कृष्ट संगीतकार बन गया, तो कह सकते हैं “बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़।”

206. कहावत – बाप बड़ा न भइया, सब से बड़ा रूपइया
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि पैसा, परिवार के सदस्यों से भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। इसमें यह संकेत मिलता है कि आज के समाज में लोग रिश्तों से ज्यादा धन को महत्व देते हैं।
प्रयोग: यह मुहावरा उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जहाँ धन के लिए लोग अपने नैतिक मूल्यों और पारिवारिक रिश्तों को भुला देते हैं।
उदाहरण:जब कोई व्यक्ति अपने परिवार से ज्यादा धन को महत्व देता है, तब इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है।

207. कहावत – जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि जब बाड़, जो खेत की सुरक्षा के लिए होती है, वही खेत को नुकसान पहुँचाए तो खेत की रक्षा कैसे की जाए। अलंकारिक रूप से, यह मुहावरा उस परिस्थिति को दर्शाता है जहाँ विश्वास किये गए व्यक्ति या संस्था ही अविश्वसनीय और हानिकारक सिद्ध हो।
प्रयोग:यह मुहावरा अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जहाँ सुरक्षा और भरोसे के लिए नियुक्त व्यक्ति या संस्था ही नुकसान पहुँचाती है।
उदाहरण: जब किसी संस्था में भ्रष्टाचार हो और उसके अधिकारी ही भ्रष्ट हों, तब इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है: “जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे।”

208. कहावत – बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा
अर्थ:इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि एक बाँझ महिला प्रसव की पीड़ा को नहीं समझ सकती, क्योंकि उसने कभी उसे अनुभव नहीं किया होता। व्यापक रूप से, इसका अर्थ है कि जिसने कभी किसी विशेष परिस्थिति का अनुभव नहीं किया हो, वह उसे पूरी तरह से नहीं समझ सकता।
प्रयोग:यह मुहावरा उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जब किसी व्यक्ति को यह बताना होता है कि वे किसी विशेष स्थिति या दुःख को पूरी तरह से नहीं समझ सकते क्योंकि उन्होंने उसे व्यक्तिगत रूप से नहीं अनुभव किया है।
उदाहरण:जब कोई धनी व्यक्ति गरीबी की समस्याओं पर बात करता है तो लोग कह सकते हैं, “बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा।”

209. कहावत – अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
अर्थ:“अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता” एक लोकप्रिय हिंदी मुहावरा है, जिसका अर्थ होता है कि अकेले व्यक्ति की शक्ति सीमित होती है और वह बड़े कार्य को अकेले नहीं कर सकता। यह मुहावरा यह बताता है कि सामूहिक प्रयास से ही बड़े और कठिन कार्य संभव होते हैं।
प्रयोग: इस मुहावरे का प्रयोग तब होता है जब किसी कार्य को पूरा करने में सामूहिक प्रयास की आवश्यकता हो। यह विशेषकर उन परिस्थितियों में प्रयोग होता है जहाँ अकेले काम करने से विफलता का सामना करना पड़ता है।
उदाहरण:“किसी भी टीम गेम में, सभी खिलाड़ियों को मिलकर खेलना होता है क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।”

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