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भारत की प्रमुख नृत्य शैलियाँ

1. भारत की प्रमुख नृत्य शैलियाँ: परिचय

भारतीय नृत्य संस्कृति अपनी विविधता और अद्वितीयता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह नृत्य भारत की अमूल्य सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को प्रकट करते हैं। चाहे वह भरतनाट्यम हो जो दक्षिण भारत से है, या कथक जो उत्तर भारत का प्रमुख नृत्य रूप है, प्रत्येक नृत्य में अपनी विशेषता, अद्वितीय शैली और गहरा अर्थ होता है। इन नृत्यों में नाटकीय प्रस्तुतियों, संगीत, ताल और भावना का समाहित होना, उन्हें जीवंत और अद्वितीय बनाता है। भारतीय नृत्यों का मूल उद्देश्य जीवन की विभिन्न भावनाओं और कथाओं को दर्शाना है, जो अक्सर पौराणिक और धार्मिक घटनाओं से प्रेरित होते हैं। यह नृत्य न केवल मनोरंजन के लिए होते हैं, बल्कि उनमें छुपे हुए संदेश और जीवन की शिक्षाएं भी होती हैं।

  • भारतीय संस्कृति में नृत्य का महत्व

    भारतीय संस्कृति में नृत्य की अहम भूमिका है। यहाँ के नृत्य प्रकृति, प्रेम, धर्म, और सामाजिक घटनाओं की मानवीय भावनाओं का चित्रण करते हैं। नृत्य यहाँ पर सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं और संविधानों को प्रकट करने का माध्यम भी है। भारतीय नृत्य संस्कृति समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक मूल्यों का संचार करती है और युवा पीढ़ी को हमारी अनमोल परंपरा से जोड़ती है। यह नृत्य हमें अपनी जड़ों से जुड़ाव और समाज में एकता की भावना प्रदान करते हैं, और भारतीय संस्कृति की अद्वितीयता और अमूल्यता को प्रकट करते हैं।
  • नृत्य के प्रकार

    भारत अपनी सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें नृत्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय नृत्यों की विविधता और समृद्धि को देखते हुए, वे मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित होते हैं: शास्त्रीय और लोक। शास्त्रीय नृत्य में भरतनाट्यम, कठक, कुचिपुडी, मोहिनीअट्टम, ओडिसी, सतरिया और मणिपुरी आते हैं। ये नृत्य प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों पर आधारित हैं। वहीं, लोक नृत्य स्थानीय संस्कृतियों और त्योहारों की अनुसूची पर निर्भर करते हैं, जैसे कि गरबा, भांगड़ा, लवणी, ढोल चोलम और अन्य। ये नृत्य प्रत्येक राज्य और समुदाय की विशेषता और उनकी सांस्कृतिक पहचान को प्रकट करते हैं।

2. शास्त्रीय नृत्य

  • भरतनाट्यम (Bharatanatyam): भरतनाट्यम भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में सबसे प्राचीन और प्रमुख नृत्य शैली है, जो दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु से उत्थित हुई है। इस नृत्य का उल्लेख प्राचीन हिन्दी ग्रंथ ‘नाट्यशास्त्र’ में भी है। भरतनाट्यम नृत्य की विशेषता इसकी ताकट, उद्यम, भावना और तालमेल में है। इसमें नृत्य, अभिनय और ताल का संगम होता है। नृत्यांगना की मुद्राओं और चालों का अद्वितीय संगम इसे अन्य नृत्य शैलियों से अलग बनाता है। भरतनाट्यम के परिदृश्य में संगीत, गायन और ताल की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो नृत्य को और भी आकर्षक बनाते हैं।
  • कथक (Kathak): कथक भारतीय शास्त्रीय नृत्यों में एक महत्वपूर्ण शैली है, जिसकी उत्पत्ति उत्तर भारतीय प्रदेशों में हुई थी। शब्द ‘कथक’ का अर्थ होता है ‘कथा सुनाना’, और इस नृत्य शैली में नृत्य, संगीत और अभिनय के माध्यम से प्राचीन कथाओं और पौराणिक गाथाओं का चित्रण किया जाता है। कथक में तत्परता, घूर्णन (चक्कर) और तत्कार (पैर की झपकी) की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह नृत्य तीन प्रमुख घरानाओं – लखनऊ, जयपुर और बनारस – से संबंधित है, और प्रत्येक घराना अपनी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। कथक का नृत्य और संगीत आज भी लोगों को अपनी ओर मोहित करता है और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • कुचिपुडी (Kuchipudi): कुचिपुडी आंध्र प्रदेश की प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य शैली है। यह नृत्य शैली भारतीय संस्कृति और धर्म की विविधता और समृद्धि को प्रकट करती है। कुचिपुडी में नृत्य, नाट्य और संगीत का संगम होता है और इसमें अभिनय की भी विशेष भूमिका होती है। इस नृत्य की विशेषता में तर्कशील चलना, लयबद्ध ताल और भावपूर्ण मुद्राएं शामिल हैं। कुचिपुडी नृत्यकार अक्सर ताली के एक थाल पर नृत्य करते हैं, जो इस नृत्य की अद्वितीयता को प्रकट करता है। इस नृत्य शैली में पौराणिक कथाओं और भगवान की भक्ति की अभिव्यक्ति की जाती है, जो दर्शकों को अपनी ओर मोहित करती है।
  • कथकली (Kathakali): कथकली केरल की पारंपरिक और प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैली है। इस नृत्य की मुख्य विशेषता उसकी भव्य और रंगीन शृंगार तथा मुखौटे हैं, जो विभिन्न पात्रों की भावनाओं और भाव को प्रकट करते हैं। कथकली में नृत्य, नाट्य और संगीत का संगम होता है। इसकी कथाएं आमतौर पर पौराणिक या धार्मिक होती हैं और इसमें भारतीय धर्म और फिलौसफी की गहराईयों को प्रकट किया जाता है। कथकली नृत्यकारों का प्रशिक्षण विशेष रूप से होता है, जिसमें उन्हें ताल, रस, भाव और मुद्राओं की विशेष जानकारी दी जाती है। इस नृत्य के प्रस्तुतिकरण में अभिनय, नृत्य और संगीत का मेल दर्शकों को अपनी ओर मोहित कर लेता है।
  • ओडिसी (Odissi): ओडिसी ओडिशा राज्य की प्रमुख शास्त्रीय नृत्य शैली है। इस नृत्य का उत्साह और लय संवाद इसे अन्य नृत्य शैलियों से अलग बनाता है। ओडिसी में संगीत, ताल, भाव और अभिनय का समरस संगम है, जिसमें नर्तकी अपनी शरीर की सुंदरता और लचीलेपन से विभिन्न भावनाओं और कथाओं को प्रस्तुत करती है। इस नृत्य की मुद्राएं और पद्मावलियां ओडिशा के प्राचीन मंदिरों की मूर्तियों पर भी देखी जा सकती हैं। ओडिसी नृत्य को चरितार्थ करने के लिए गायन, वाद्य और ताल का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिससे इसकी अद्वितीयता और आकर्षण बढ़ जाता है।
  • मोहिनियाट्टम (Mohiniyattam): मोहिनियाट्टम, केरल का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य रूप है, जिसे “देवस्त्री नृत्य” या “अप्सरा नृत्य” भी कहा जाता है। इस नृत्य में मुख्य रूप से स्त्री नर्तकियाँ प्रदर्शित होती हैं, जिन्हें ‘मोहिनी’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो विश्वास के अनुसार विष्णु भगवान की एक अवतार थी। मोहिनियाट्टम में सुंदरता, श्रृंगार और लास्य जैसे भाव प्रधान हैं। इस नृत्य में धीरे-धीरे गति के साथ लयबद्ध चलने वाले कदम, गहरे अभिनय और संगीत के साथ मिलान से एक अद्वितीय संवाद पैदा होता है। विशेष रूप से इसका वस्त्र और श्रृंगार इसे अन्य नृत्य शैलियों से भिन्न बनाते हैं, जिसमें सफेद वस्त्र, सुंदर मुकुट और आंखों की अद्वितीय मेकअप शैली शामिल है।
  • मणिपुरी (Manipuri): मणिपुरी नृत्य भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर से संबंधित है। इस नृत्य की विशेषता इसमें प्रयुक्त होने वाले सुमधुर संगीत, संवेदनशील अभिनय और लघु और मध्यम गति के चरण हैं। मणिपुरी नृत्य में नायिका के भाव और कृष्ण और राधा के प्रेम-लीलाओं को प्रमुख रूप से प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य का वस्त्र भी बहुत ही अद्वितीय है, जिसमें नर्तकी एक विशेष प्रकार की फैंसी स्कर्ट पहनती है, जिसे ‘फानेक’ कहते हैं, और उसके साथ एक चुनरी पहनती है। इस नृत्य में पायल, झुमके और अन्य आभूषणों का भी महत्व है। मणिपुरी नृत्य के अद्वितीय चरण, संगीत और अभिनय इसे विशेष और संवेदनशील बनाते हैं।
  • सत्त्रिया (Sattriya): सत्त्रिया नृत्य असम राज्य का पारंपरिक नृत्य रूप है, जिसे 15वीं शताब्दी के संत और सामाजिक सुधारक श्रीमंत शंकरदेव द्वारा स्थापित किया गया था। यह नृत्य असम के सत्त्र या मठों में संचारित होने वाली भक्ति भावना को प्रकट करता है। सत्त्रिया नृत्य की अद्वितीयता इसके हाथों, पैरों और मुख की अभिव्यक्तियों में छिपी है, जिससे भक्ति, प्रेम और समर्पण की भावना को प्रकट किया जाता है। इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले वस्त्र और आभूषण भी असम की सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करते हैं। सत्त्रिया नृत्य असमीय संस्कृति की अनमोल धरोहर माना जाता है और यह भारतीय नृत्य के अन्य प्रकारों में अपनी विशेष पहचान बनाए हुए है।

3. लोक नृत्य

भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं लोक नृत्य। इन नृत्यों में हमारे देश की अनेक पारंपरिक कथाएँ, पुराणिक अवधारणाएँ और सामाजिक मूल्य व्यक्त होते हैं। लोक नृत्य स्थानीय संस्कृतियों, त्योहारों और ऋतुओं के परिवर्तन से जुड़े होते हैं, और वे किसी भी विशेष प्रशिक्षण या शिक्षा के बिना जन-जन में विरासत में पारंपरिक रूप से संचारित होते हैं। हर राज्य, हर समुदाय में अपना खास लोक नृत्य है, जैसे राजस्थान का घूमर, पंजाब का भंगड़ा, गुजरात का गरबा आदि। इन नृत्यों में विशेष धुन, वस्त्र, आभूषण और संगीत होते हैं जो उस विशेष क्षेत्र या समुदाय की पहचान और सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करते हैं। भारत के लोक नृत्य उसकी जीवंत सांस्कृतिक और पारंपरिक धरोहर के संरक्षण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

  • गरबा (Garba): गरबा भारतीय उपमहाद्वीप के गुजरात प्रदेश का प्रमुख लोक नृत्य है, जिसे नवरात्रि महोत्सव के दौरान मनाया जाता है। यह नृत्य देवी दुर्गा की उपासना और सम्मान में किया जाता है। गरबा शब्द ‘गर्भदीप’ से आया है, जिसका अर्थ है एक प्रकार का दीपक। नृत्य के दौरान महिलाएं और पुरुष वृत्ताकार में इकट्ठा होकर तालमेल में धुन पर नाचते हैं। उनके हाथ में डंडिया होती है, जिसे वे ताल के साथ बजाते हैं। गरबा के कोस्ट्यूम और संगीत में गुजराती सांस्कृतिक प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। यह नृत्य न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में गुजराती समुदाय के लोगों द्वारा प्रदर्शित और मनाया जाता है।
  • डांडिया (Dandiya): डांडिया भारत के गुजरात प्रदेश का एक लोकप्रिय नृत्य रूप है, जिसे विशेष रूप से नवरात्रि के अवसर पर प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष और महिला उम्र के लोग वृत्ताकार में खड़े होकर डंडियों की मदद से तालमेल में नाचते हैं। डांडिया नाचते समय उनके हाथों में लकड़ी की छड़ियाँ होती हैं, जिसे वे एक खास तरीके से आपस में बजाते हैं। इस नृत्य में पहने जाने वाले विविध रंगीन और भव्य वस्त्र, चमकदार अभूषण और झूमरों से सजी चुनरियाँ इसे और भी आकर्षक बना देती हैं। डांडिया की ध्वनि, ताल और उत्साह न केवल गुजरात, बल्कि पूरे भारत और विदेश में भी लोकप्रिय है।
  • भांगड़ा (Bhangra): भांगड़ा पंजाब प्रदेश का प्रमुख और अत्यंत लोकप्रिय नृत्य है, जिसे खासकर फसलों की कटाई और उसके प्रति आभार के रूप में मनाए जाने वाले त्योहार ‘वैसाखी’ पर प्रदर्शित किया जाता है। यह नृत्य उत्साह, ऊर्जा और खुशी का प्रतीक है। भांगड़ा को नाचते समय तबले, ढोल और अन्य वाद्य यंत्रों का संगीत इसे और भी जीवंत बना देता है। पुरुष इसे खासकर नाचते हैं, जबकि महिलाएं ‘गिद्धा’ नामक एक अन्य लोकप्रिय पंजाबी नृत्य को प्रदर्शित करती हैं। भांगड़ा की जीवंतता, ताल और उत्साह ने इसे पूरे भारत और विदेशों में प्रसिद्ध बना दिया है।
  • लवणी (Lavani): लवणी महाराष्ट्र राज्य का एक प्रमुख और पारंपरिक नृत्य शैली है, जिसे उत्साह, शोध और प्रेम की भावनाओं के लिए प्रसिद्ध किया गया है। यह नृत्य विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, और इसमें तेज ताल, झपके और जटिल चरण के कदम होते हैं। लवणी गाने के लिए तालमेल बजाया जाता है जिसमें ढोलकी का प्रमुख भूमिका होती है। इस नृत्य में पहने जाने वाले रंगीन और आकर्षक वस्त्र, घुंघरू और अन्य अलंकरण इसे और भी आकर्षक बना देते हैं। लवणी का परिणाम महाराष्ट्रीय संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत में एक महत्वपूर्ण स्थान है, और यह आज भी वहाँ की सांस्कृतिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • घूमर (Ghoomar): घूमर, राजस्थान का पारंपरिक नृत्य है, जिसे विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य में महिलाएँ विशेष रूप से तैयार होकर, राजस्थानी घाघरा पहनकर और घूंघट ओढ़कर नृत्य करती हैं। घूमर नामक नृत्य ‘घूमना’ के क्रिया के आधार पर नामकरण हुआ है, क्योंकि इसमें नर्तकी घूमती रहती है। इस नृत्य का प्रमुख उद्देश्य सामुदायिक समरसता और अनुराग को बढ़ावा देना है। घूमर को प्रदर्शित करते समय तालमेल और संगीत का महत्वपूर्ण भूमिका होता है, और यह नृत्य विशेष रूप से त्योहारों और खास अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है। आज भी घूमर नृत्य राजस्थानी संस्कृति की एक महत्वपूर्ण पहचान बनी हुई है।
  • चौ (Chhau): चौ भारतीय उपमहाद्वीप में प्रसिद्ध एक मास्क डांस है, जो विशेष रूप से झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में निभाया जाता है। इस नृत्य में प्रदर्शित कथा अधिकतर पुराणिक और धार्मिक होती है। चौ नृत्य में प्रयुक्त मुखौटे उस विशेष पात्र की भावना और नैतिकता को प्रकट करते हैं। यह नृत्य समूह में होता है, जिसमें उचित संगीत, ताल और तालिका के साथ नृत्यकारी कूदते, घूमते और युद्ध के अनुकरण करते हैं। चौ नृत्य की तीन प्रमुख शैलियाँ हैं – सरैकेला चौ, पुरुलिया चौ और मयूरभंज चौ, जो उनके क्षेत्रीय विविधताओं के आधार पर नामकरण होती हैं।
  • तामाशा (Tamasha): तामाशा महाराष्ट्र का प्रमुख लोक नृत्य और मंचन शैली है, जिसे विशेष रूप से उसकी जीवंत अभिव्यक्तियों और लोकप्रिय गानों के लिए जाना जाता है। यह कला शैली १६वीं शताब्दी में मुघल आक्रमणकारियों और महाराष्ट्रीय सेनानियों के बीच संघर्ष के समय विकसित हुई थी। तामाशा के प्रदर्शन में अधिकतर महिला कलाकार होती हैं, जिन्हें ‘तामाशाची बाई’ कहा जाता है। उनके गीत और नृत्य आम तौर पर प्रेम, धर्म, समाजिक मुद्दे और राजनीतिक घटनाक्रमों पर आधारित होते हैं। तामाशा का यह संगीन प्रदर्शन आज भी महाराष्ट्र में अपार प्रशंसा और प्रियता प्राप्त है।

4. अन्य प्रमुख नृत्य

  • नृत्य की अनजानी पहचान: नृत्य, एक ऐसी भाषा है जिसे शब्दों की जरूरत नहीं होती। यह हमें अपनी अदृश्य और अकथनीय भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम प्रदान करता है। हर गति, हर मुद्रा और हर ताल में एक अदृश्य गाथा समाहित होती है जो केवल दृष्टिगोचर नहीं होती, बल्कि अनुभूत होती है। जब ताल और लय संगीत के साथ मेल खाते हैं, तब नृत्य से जीवन की सबसे गहरी भावनाओं का संवाद होता है। फिर चाहे वह भरतनाट्यम हो या भांगड़ा, कथक हो या कुचिपुडी, प्रत्येक नृत्य शैली अपनी अद्वितीय पहचान और संवाद लाती है। नृत्य, जीवन के विभिन्न पहलुओं की अनजानी पहचान को उजागर करता है, जो अक्सर हमारी आंखों से ओझल हो जाती है। यह हमें अपनी संस्कृति, परंपरा और मानवता की गहरी समझ प्रदान करता है।
  • भारतीय नृत्य की अंतर्राष्ट्रीय पहचान: भारतीय नृत्य का जादू न सिर्फ भारतीय समुदायों तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि यह विश्वभर में लोकप्रिय हो रहा है। भारतीय नृत्य, जैसे कि भरतनाट्यम, कथक, ओडिसी और कुचिपुडी ने विश्व संगीत और नृत्य महोत्सवों में अपनी उपस्थिति दर्ज की है। भारतीय नृत्य की तकनीक, अभिव्यक्ति और अद्वितीयता को पश्चिमी कला प्रेमियों ने भी स्वीकार किया है।
  • इन नृत्य शैलियों का जादू इतना प्रभावशाली है कि कई अंतर्राष्ट्रीय कलाकार और शिक्षक भारत आकर इनमें माहिर होने के लिए प्रशिक्षण ले रहे हैं। भारतीय प्रवासी समुदाय ने भी अपने नृत्य की पारंपरिक विरासत को विदेशों में प्रस्तुत करके इसे विश्वविद्यालयों और कला मंचों पर प्रोत्साहित किया है।
  • आज, जब भी हम अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय नृत्य की बात करते हैं, हमें गर्वित महसूस होता है कि भारतीय नृत्य ने अपनी अद्वितीय शैली, संवाद और भावनाओं के साथ विश्व में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया है।

5. उत्तर भारत के नृत्य

  • रासलीला (Raas Leela): उत्तर प्रदेश का धार्मिक नृत्य: रासलीला, भारतीय संस्कृति और पारंपरिक नृत्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, विशेष रूप से उत्तर भारत में प्रचलित है। यह नृत्य श्री कृष्ण और राधा की प्रेम कथा को प्रस्तुत करता है और वृन्दावन की गोपियों के साथ उनके दिव्य नृत्यों को चित्रित करता है। रासलीला के इस नृत्य में, भावनात्मक अभिव्यक्ति, संगीत और तालमेल से भरपूर चरण कदम, दर्शकों को एक अन्य जगत में ले जाते हैं। यह नृत्य भक्ति, प्रेम और समर्पण की अद्वितीय मिश्रण को प्रकट करता है और उसकी माध्यम से भगवान कृष्ण के प्रति मानवीय प्रेम और उनके दिव्यता की महसूस होती है।
  • झूमर (Jhumar): झूमर, पश्चिमी भारत के राज्य पंजाब और हरियाणा का प्रमुख लोक नृत्य है। यह नृत्य प्राधिकृत रूप से पंजाबी और हरियाणवी समाज में मनाए जाने वाले त्योहारों और अन्य सामाजिक अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है। झूमर का नाम ही इस नृत्य की विशेषता को दर्शाता है, जहाँ नृत्यांगना अपने सिर पर झूमर धारण करती हैं और वे तालमेल में झूमते हुए नाचती हैं। इस नृत्य में संगीत, ताल और नृत्य का समंजस्यपूर्ण संयोजन होता है, जो दर्शकों को आकर्षित करता है। झूमर नृत्य में जीवन की सामान्य घटनाओं, प्रेम, विच्छेद और संघर्ष की कथाओं को प्रस्तुत किया जाता है, जो समाज की सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करता है।

6. पश्चिम भारत के नृत्य

  • तिप्पनी (Tippani): तिप्पनी, गुजरात राज्य के खांडेश प्रदेश का पारंपरिक लोक नृत्य है। इस नृत्य का नाम ‘तिप्पनी’ यानी हथौड़ी पर आधारित है, क्योंकि नृत्यिकाएँ इसे हाथ में लेकर नाचती हैं। यह नृत्य मुख्यत: महिलाओं द्वारा किया जाता है और इसमें वे तालमेल में हथौड़ी को जमीन पर मारती हैं, जिससे एक विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। तिप्पनी नृत्य का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन और सांस्कृतिक परंपरा को जिन्दा रखना है। इस नृत्य में वेशभूषा, गायन और संगीत का महत्वपूर्ण योगदान है, जो इसे और भी आकर्षक बनाता है।
  • गौरी नृत्य (Gauri Dance): गोवा की पारंपरिक नृत्य शैली, गौरी नृत्य, भारत के कुछ हिस्सों में प्रसिद्ध, मां गौरी की उपासना और उसकी महिमा को प्रकट करने वाला एक पारंपरिक नृत्य है। इस नृत्य के माध्यम से, मां गौरी की कथाएँ और उनकी अद्भुत शक्तियाँ प्रस्तुत की जाती हैं। नृत्यिकाएँ आमतौर पर भव्य वेशभूषा में सजी होती हैं, और उनका मुख विशेष रूप से सजाया जाता है, ताकि वे मां गौरी की छवि को प्रकट कर सकें। संगीत, ताल और गायन इस नृत्य को और भी जीवंत बना देते हैं। गौरी नृत्य का मुख्य उद्देश्य दर्शकों को मां गौरी की महिमा और उनके अद्भुत कारणों से परिचित करना है।

7. पूर्व भारत के नृत्य

  • झीजिया (Jhijhia): झीजिया भारतीय राज्य बिहार का पारंपरिक नृत्य है, जिसे विशेष रूप से बरसात के मौसम में प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य का मुख्य उद्देश्य वरुण देवता, जल के देवता, की पूजा करना है। नृत्यिकाएँ अकेले या समूह में झीजिया नृत्य को प्रदर्शित करती हैं और सिर पर एक खास प्रकार की टोकरी धारण करती हैं। इस टोकरी में दीपक और आध्यात्मिक चिह्न होते हैं। झीजिया नृत्य में ताल, गायन और नृत्य का संगतन दर्शकों को प्राकृतिक शक्तियों और उनकी महिमा की ओर आकर्षित करता है। यह नृत्य विशेष रूप से वर्षा ऋतु के आगमन की प्रसंशा और जल के महत्व को प्रकट करने के लिए किया जाता है।
  • संथाल नृत्य (Santhal Dance): संथाल नृत्य भारत के संथाल जनजाति द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जो मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, और ओडिशा जैसे राज्यों में निवास करते हैं। यह नृत्य उनकी सांस्कृतिक धरोहर और समाजिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। संथाल नृत्य में पुरुष और महिला दोनों शामिल होते हैं और इसे ताल, ढोल, और बाँसुरी के संगीत के साथ प्रदर्शित किया जाता है। नृत्यकारी अपने पैरों की ताल-मेल में, उछाल-कूद में और अपने शरीर के हर हिस्से को संगीत के साथ समाहित करते हैं। यह नृत्य संथाल समुदाय के जीवन, प्रेम, लड़ाई, और मौसमी परिवर्तनों की कथाओं को प्रकट करता है। यह नृत्य उनके त्योहारों, उपज, और अन्य सामाजिक घटनाओं पर प्रदर्शित किया जाता है और यह समाज को एकत्रित करने में भी योगदान करता है।

8. दक्षिण भारत के नृत्य

  • यक्षगान (Yakshagana): यक्षगान दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक का पारंपरिक थिएटर-शैली नृत्य-गीत रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह नृत्य धर्मिक कथाओं और पुराणिक घटनाओं पर आधारित है। यक्षगान में विविध और रंगीन वेशभूषा, मुखौटे, और मेलोदियस संगीत का समाहार होता है, जिससे प्रदर्शन को और भी आकर्षक बनाया जाता है। प्रदर्शन में गायन, नृत्य और अभिनय का संगम होता है, जिससे किसी भी कथा को जीवंत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। यक्षगान के प्रदर्शन अक्सर रात्रि में होते हैं और ये कई घंटों तक चल सकते हैं। इस पारंपरिक कला की मौलिकता और अद्वितीयता ने इसे विशेष पहचान दिलाई है।
  • तेय्यम (Theyyam): तेय्यम दक्षिण भारतीय राज्य केरल की पारंपरिक और पौराणिक अनुष्ठानिक नृत्य-पूजा शैली है। इसे मुख्य रूप से मालाबार तट पर प्रदर्शित किया जाता है। तेय्यम में नर्तक देवता या देवी का रूप धारण करते हैं और वे उन्हें पूजते हैं और उनके गाने-बजाने के साथ नृत्य करते हैं। तेय्यम के प्रदर्शन में विविध और रंगीन वेशभूषा, चेहरे पर रंगीन चित्रकला, और प्रमुख मुखौटे होते हैं। यह नृत्य और पूजा, सामाजिक समस्याओं के समाधान के रूप में, समुदाय की संवेदना और भावनाओं का प्रकटीकरण करता है। तेय्यम नृत्य के माध्यम से भूमिका निभाने वाले व्यक्ति देवता का अवतार माने जाते हैं और लोग उनसे आशीर्वाद और सलाह मांगते हैं।
  • करगाट्टम (Karagattam): करगाट्टम तमिलनाडु राज्य का प्रमुख और पारंपरिक नृत्य रूप है, जिसे ‘कलश नृत्य’ के रूप में भी जाना जाता है। इस नृत्य में, नर्तक अपने सिर पर एक भारी कलश या घड़ा रखते हैं और उसके साथ तालमेल के साथ नाचते हैं। करगाट्टम का मुख्य उद्देश्य देवी मरियम्मन – एक स्थानीय देवी की पूजा करना है। नृत्य की अद्वितीयता इसमें है कि नृत्य के दौरान कलश को संतुलित रखना है, जो नृत्य की कौशल और समर्पण को प्रकट करता है। विभिन्न गीतों, तालों और ताल-मेल के साथ, यह नृत्य दर्शकों को प्रभावित करता है और उन्हें तमिल संस्कृति की गहरी जड़ों से जुड़ने का अहसास दिलाता है।

9. उत्तर-पूर्व भारत के नृत्य

  • बिहू (Bihu): बिहू असम राज्य का प्रमुख और पारंपरिक नृत्य है, जिसे विशेष रूप से असमीय संस्कृति के त्योहार ‘रोंगाली बिहू’ के समय मनाया जाता है। यह नृत्य नवीनतम धान की फसल के आगमन की खुशी में प्रदर्शित किया जाता है। बिहू नृत्य में, पुरुष और महिलाएं तालमेल में नाचते हैं, जिसमें जोश, उत्साह और प्रेम की भावनाओं का मिश्रण होता है। इस नृत्य के साथ एक विशेष प्रकार की धुन और ताल होती है, जो बिहू के गानों के साथ संगत होती है। इस नृत्य को देखने और अनुभव करने में एक अद्वितीय आनंद आता है, जो असम की सांस्कृतिक धरोहर की अद्वितीयता को प्रकट करता है।
  • नांगा नृत्य (Nangma Dance): नांगा नृत्य, जिसे नंगमा नृत्य भी कहा जाता है, लद्दाख और तिब्बती समुदाय के लोगों में लोकप्रिय है। यह एक पारंपरिक नृत्य है जिसे विशेष रूप से त्योहारों और अन्य सांस्कृतिक अवसरों पर प्रदर्शित किया जाता है। नांगा नृत्य के संगीत में वाद्य यंत्र, जैसे कि ढमामा, ड्रम्स और फ्ल्यूट, का समावेश होता है जो नृत्य को और भी आकर्षक बनाता है। नृत्यकार इस नृत्य में धार्मिक और लोक कथाओं को प्रस्तुत करते हैं, जो समुदाय की पारंपरिक धरोहर और मान्यताओं को प्रकट करते हैं। नांगा नृत्य, उसके संगीत और अनुप्रियता से लद्दाख और तिब्बती संस्कृति की समृद्धि और गहराई को दर्शाता है।
  • थांगता (Thangta): थांगता, मणिपुर राज्य का पारंपरिक मार्शल आर्ट है, जिसे हथ्यारों और नृत्य के संयोजन के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। “थांग” का अर्थ है “तलवार” और “ता” का अर्थ है “स्पीयर”। यह विधा मुख्यतः दो हथ्यारों, तलवार और ढाल का उपयोग करके प्रदर्शित की जाती है। यह मार्शल आर्ट नकली युद्ध के स्थानीय प्रदर्शन में उम्मीदवारों के बीच नकली लड़ाई के रूप में होता है। थांगता के चरण और हुंकार न केवल युद्ध की तकत को प्रकट करते हैं, बल्कि उसे एक अद्वितीय नृत्य रूप में भी बदल दिया जाता है, जिसमें संगीत और ताल का महत्वपूर्ण भाग है। यह नृत्य मणिपुर की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है और वहां के लोगों की वीरता और साहसिकता को प्रकट करता है।

10. अन्य विशेष नृत्य

  • कालबेलिया (Kalbelia): कालबेलिया राजस्थान का पारंपरिक नृत्य है, जिसे वहाँ के सांप पकड़ने वाले समुदाय ‘कालबेलिया’ द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इस नृत्य में नर्तकियां काले रंग की पोशाक पहनती हैं, जिस पर सफेद और लाल रंग की कढ़ाई होती है। यह पोशाक सांप की तरह फंदराने वाली होती है। नृत्य में तेज और लयबद्ध गति होती है, और इसमें सांप की चाल को अनुकरण किया जाता है। कालबेलिया नृत्य को UNESCO ने मानवता की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दी है। यह नृत्य राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और उसकी पारंपरिक जीवन शैली को प्रकट करता है।
  • तांडव (Tandava): तांडव, हिन्दू धर्म में भगवान शिव के वीर और क्रोधित रूप का प्रतीक है, जिसे वह नृत्य के माध्यम से प्रकट करते हैं। यह नृत्य प्रलय की प्रतीक्षा में सृजन, संहार और पुनर्निर्माण के चक्र को दर्शाता है। तांडव नृत्य में तेज और उत्तेजना भरी गतियाँ होती हैं और इसमें उच्च शैली की ताकत और ऊर्जा का अभिवादन किया जाता है। इस नृत्य को देखकर भगवान शिव के महाकाव्यीय और वीरता पूर्ण चरित्र का अहसास होता है, जिससे वह संपूर्ण ब्रह्मांड के संहार और पुनः सृजन के महत्व को प्रकट करते हैं। तांडव नृत्य हिन्दू संस्कृति में एक बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, जो जीवन और मृत्यु के अनंत चक्र को चित्रित करता है।

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Budhimaan Team

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गुरु गुड़ ही रहा, चेला शक्कर हो गया अर्थ, प्रयोग (Guru gud hi raha, chela shakkar ho gya)

परिचय: “गुरु गुड़ ही रहा, चेला शक्कर हो गया” यह हिन्दी मुहावरा शिक्षा और गुरु-शिष्य के संबंधों की गहराई को दर्शाता है। यह बताता है

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"गुड़ और मक्खियों का चित्रण", "सफलता के प्रतीक के रूप में गुड़", "Budhimaan.com पर मुहावरे का सार", "ईर्ष्या को दर्शाती तस्वीर"
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गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी अर्थ, प्रयोग (Gud hoga to makkhiyan bhi aayengi)

परिचय: “गुड़ होगा तो मक्खियाँ भी आएँगी” यह हिन्दी मुहावरा जीवन के एक महत्वपूर्ण सत्य को उजागर करता है। यह व्यक्त करता है कि जहाँ

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"गुरु से कपट मित्र से चोरी मुहावरे का चित्रण", "नैतिकता और चरित्र की शुद्धता की कहानी", "Budhimaan.com पर नैतिकता की महत्वता", "हिन्दी साहित्य में नैतिक शिक्षा"
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गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी अर्थ, प्रयोग (Guru se kapat mitra se chori ya ho nirdhan ya ho kodhi)

परिचय: “गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी” यह हिन्दी मुहावरा नैतिकता और चरित्र की शुद्धता पर जोर देता है।

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"गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे मुहावरे का चित्रण", "मानवीय संवेदनशीलता को दर्शाती छवि", "Budhimaan.com पर सहयोग की भावना", "हिन्दी मुहावरे का विश्लेषण"
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गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे अर्थ, प्रयोग (Gud na de to gud ki-si baat to kare)

परिचय: “गुड़ न दे तो गुड़ की-सी बात तो करे” यह हिन्दी मुहावरा उस स्थिति को व्यक्त करता है जब कोई व्यक्ति यदि किसी चीज़

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"गुड़ खाय गुलगुले से परहेज मुहावरे का चित्रण", "हिन्दी विरोधाभासी व्यवहार इमेज", "Budhimaan.com पर मुहावरे की समझ", "जीवन से सीखने के लिए मुहावरे का उपयोग"
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गुड़ खाय गुलगुले से परहेज अर्थ, प्रयोग (Gud khaye gulgule se parhej)

परिचय: “गुड़ खाय गुलगुले से परहेज” यह हिन्दी मुहावरा उन परिस्थितियों का वर्णन करता है जहां व्यक्ति एक विशेष प्रकार की चीज़ का सेवन करता

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"खूब मिलाई जोड़ी इडियम का चित्रण", "हिन्दी मुहावरे एक अंधा एक कोढ़ी का अर्थ", "जीवन की शिक्षा देते मुहावरे", "Budhimaan.com पर प्रकाशित मुहावरे की व्याख्या"
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खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी अर्थ, प्रयोग (Khoob milai jodi, Ek andha ek kodhi)

खूब मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी, यह एक प्रसिद्ध हिन्दी मुहावरा है जिसका प्रयोग अक्सर उन परिस्थितियों में किया जाता है जहां दो व्यक्ति

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