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गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी अर्थ, प्रयोग (Guru se kapat mitra se chori ya ho nirdhan ya ho kodhi)

परिचय: “गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी” यह हिन्दी मुहावरा नैतिकता और चरित्र की शुद्धता पर जोर देता है। यह उन व्यवहारों को उजागर करता है जो न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाज में भी अवांछनीय माने जाते हैं।

अर्थ: मुहावरे का अर्थ है कि गुरु के साथ धोखा, मित्र के साथ चोरी, गरीबी और रोग – ये सभी ऐसे अवस्थाएँ हैं जिनसे व्यक्ति को बचना चाहिए। यह संदेश देता है कि सच्चाई, विश्वास और स्वास्थ्य ही वास्तविक धन हैं।

प्रयोग: यह मुहावरा आमतौर पर तब प्रयोग किया जाता है जब किसी को नैतिकता और चरित्र की शुद्धता का महत्व समझाना हो।

उदाहरण:

-> अनुभव ने जब अपने मित्र से पैसे चुराए, तो उसके गुरु ने उसे समझाया, “गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी” – ये सभी जीवन में नीचे गिरने के कारण हैं।

-> लक्ष्मी ने अपने व्यवसाय में धोखाधड़ी की राह चुनी, जिससे उसकी प्रतिष्ठा में गिरावट आई। उसके पिता ने कहा, “बेटी, ‘गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी’ – ये सब तुम्हें और अधिक दुःख में डाल सकते हैं।”

निष्कर्ष: “गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि नैतिकता और चरित्र की शुद्धता जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति हैं। यह हमें नैतिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है और बताता है कि सच्चाई, विश्वास, और स्वास्थ्य ही व्यक्ति को सच्ची खुशी और समृद्धि प्रदान कर सकते हैं।

गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी मुहावरा पर कहानी:

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में अनुज नामक एक युवक रहता था। अनुज अपने गुरु से बहुत प्रेम करता था और उनसे धनुर्विद्या सीख रहा था। साथ ही, उसका एक मित्र भी था, रोहित, जिसके साथ वह अपने सभी रहस्य साझा करता था।

एक दिन, अनुज को एक सुनहरे मौके का पता चला कि राजा एक प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं जिसका विजेता उनकी सेना का सेनापति बनेगा। अनुज ने इस अवसर को पाने के लिए अपने गुरु से कपट करने का निर्णय लिया। उसने गुरु से कहा कि वह अपने बीमार पिता की देखभाल के लिए गाँव जा रहा है, लेकिन असल में वह प्रतियोगिता में भाग लेने गया।

इसी बीच, रोहित के पास कुछ धन था जिसे उसने अनुज की देखभाल के लिए संभाल कर रखा था। अनुज को जब इस धन की जरूरत पड़ी, तो उसने रोहित से चोरी की।

प्रतियोगिता के दिन, अनुज ने अपने धनुर्विद्या का प्रदर्शन किया, लेकिन उसका मन शांत नहीं था। उसे लगा कि वह विजेता बन सकता है, लेकिन उसकी अंतरात्मा उसे विचलित कर रही थी।

अंत में, जब राजा ने विजेता की घोषणा की, तो अनुज का नाम नहीं था। उसे तब एहसास हुआ कि “गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी” – ये सभी उसके असफलता के कारण थे।

अनुज ने अपनी गलतियों को समझा और अपने गुरु और मित्र से क्षमा मांगी। उसने अपने जीवन में नैतिकता और चरित्र की शुद्धता को महत्व देने का निश्चय किया।

इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि नैतिकता और चरित्र की शुद्धता ही वास्तविक धन हैं और ये ही हमें सच्ची खुशी और समृद्धि प्रदान कर सकते हैं।

शायरी:

गुरु से कपट, मित्र से चोरी, यह कैसी दुनियादारी है,
निर्धनता, बीमारी से भी, यह दुःख भारी है।

चलो चलें उस राह पर, जहां सच की मिसाल हो,
जहां दिलों में प्यार हो, और नियत सवाल हो।

जीवन की इस भागदौड़ में, क्या पाया क्या खोया है,
“गुरु से कपट, मित्र से चोरी”, यह कैसा रोया है।

निर्धन बने या कोढ़ी, पर नीयत में खोट न हो,
इंसानियत की राह में, कोई रोड़ा टोट न हो।

जीवन के इस मेले में, अपनापन कहाँ खो गया,
“गुरु से कपट, मित्र से चोरी”, यह कैसा मोह गया।

आओ फिर से बुनें वो सपने, जहां सच्चाई का घर हो,
जहां हर शख्स के लब पे, सिर्फ और सिर्फ प्यार भर हो।

गुरु के प्रति समर्पण हो, मित्रता में विश्वास हो,
जीवन के हर पड़ाव पर, सच्चाई की आस हो।

“गुरु से कपट, मित्र से चोरी”, यह कहानी पुरानी है,
चलो नया इतिहास लिखें, जहां इंसानियत ही खजानी है।

 

गुरु से कपट, मित्र से चोरी, या हो निर्धन, या हो कोढ़ी शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of गुरु से कपट मित्र से चोरी या हो निर्धन या हो कोढ़ी – Guru se kapat mitra se chori ya ho nirdhan ya ho kodhi Idiom:

Introduction: “Guru se kapat mitra se chori ya ho nirdhan ya ho kodhi” highlights the importance of morality and purity of character in Hindi idiom. It exposes behaviors considered undesirable not only in personal life but also in society.

Meaning: The idiom means that deceiving a guru, stealing from a friend, poverty, and disease are all states that a person should avoid. It conveys the message that truth, trust, and health are the real wealth.

Usage: This idiom is commonly used when it’s necessary to explain the importance of morality and the purity of character.

Example:

-> When Anubhav stole money from his friend, his guru explained to him, “Deception with a guru, theft from a friend, whether impoverished or leprous” – all these are reasons for downfall in life.

-> Lakshmi chose the path of fraud in her business, which led to a decline in her reputation. Her father said, “Daughter, ‘Deception with a guru, theft from a friend, whether impoverished or leprous’ – all these can lead you to more sorrow.”

Conclusion: The idiom “Guru se kapat mitra se chori ya ho nirdhan ya ho kodhi” teaches us that morality and the purity of character are the greatest assets in life. It inspires us to follow the moral path and tells us that truth, trust, and health can provide a person with true happiness and prosperity.

Story of ‌‌Guru se kapat mitra se chori ya ho nirdhan ya ho kodhi Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a young man named Anuj. Anuj deeply loved his guru from whom he was learning archery. He also had a friend named Rohit, with whom he shared all his secrets.

One day, Anuj learned of a golden opportunity that the king was organizing a competition, the winner of which would become the commander of his army. Anuj decided to deceive his guru to seize this opportunity. He told his guru that he was going to the village to take care of his sick father, but in reality, he went to participate in the competition.

Meanwhile, Rohit had some money that he had saved for Anuj’s care. When Anuj needed money, he stole it from Rohit.

On the day of the competition, Anuj showcased his archery skills, but his mind was not at peace. He felt he could win, but his conscience was disturbing him.

In the end, when the king announced the winner, Anuj’s name was not there. He then realized that “Deception with a guru, theft from a friend, being impoverished, or being leprous” – all these were reasons for his failure.

Anuj understood his mistakes and apologized to his guru and friend. He decided to value morality and the purity of character in his life.

This story teaches us that morality and the purity of character are the real wealth and they can provide us with true happiness and prosperity.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

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