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खुदा गंजे को नाखून न दे अर्थ, प्रयोग (Khuda ganje ko nakhun na de)

परिचय: “खुदा गंजे को नाखून न दे” एक प्रसिद्ध हिंदी मुहावरा है, जो व्यंग्यात्मक ढंग से उस स्थिति का वर्णन करता है जब किसी व्यक्ति को उसकी आवश्यकता या उपयोगिता से अधिक कुछ मिल जाता है, जिसका वह सही उपयोग नहीं कर सकता।

अर्थ: मुहावरे का अर्थ है कि यदि किसी को वह चीज़ दी जाए जिसकी उसे जरूरत नहीं है या जिसका वह उपयोग नहीं कर सकता, तो वह व्यर्थ है। यह अक्सर उस परिस्थिति पर लागू होता है जहाँ संसाधनों का अनुचित आवंटन होता है।

प्रयोग: यह मुहावरा तब प्रयोग किया जाता है जब किसी को ऐसी चीज़ मिल जाती है जिसका उसे कोई फायदा नहीं होता या जिसे वह समझदारी से उपयोग में नहीं ला सकता।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक व्यक्ति जो कभी किताब नहीं पढ़ता, उसे एक महंगी और दुर्लभ पुस्तक उपहार में मिल जाती है। यहाँ “खुदा गंजे को नाखून न दे” मुहावरे का प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि उस व्यक्ति के लिए वह पुस्तक किसी काम की नहीं है।

निष्कर्ष: “खुदा गंजे को नाखून न दे” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि संसाधनों और उपहारों का सही और उचित उपयोग महत्वपूर्ण है। यह हमें यह भी बताता है कि हर व्यक्ति की जरूरतें और क्षमताएँ अलग होती हैं, और इसी के अनुसार उन्हें संसाधन प्रदान किए जाने चाहिए।

खुदा गंजे को नाखून न दे मुहावरा पर कहानी:

एक बार की बात है, एक गाँव में दो भाई अनुभव और अनुज रहते थे। अनुभव एक उत्साही किसान था, जबकि अनुज ने गाँव के स्कूल में शिक्षक के रूप में काम किया। दोनों भाई अपने-अपने क्षेत्र में काफी कुशल थे।

एक दिन, गाँव में एक धनी व्यापारी आया, जिसने गाँव के हर व्यक्ति को एक उपहार देने का निश्चय किया। व्यापारी ने अनुभव को एक सेट किताबें दीं, जो कृषि और खेती पर आधारित थीं, और अनुज को एक नया हल।

अनुभव और अनुज दोनों ही अपने उपहारों से हैरान थे। अनुभव ने सोचा, “मैं तो खेती करता हूँ, मुझे हल की जरूरत है, ना कि इन किताबों की।” वहीं, अनुज सोचने लगा, “मैं तो एक शिक्षक हूँ, मुझे किताबों की जरूरत है, ना कि इस हल की।”

दोनों भाइयों ने अपने उपहारों का आदान-प्रदान करने का निश्चय किया। इसके बाद, अनुभव को उसके खेती के लिए नया हल मिला, और अनुज को पढ़ाई के लिए नई किताबें मिलीं।

इस घटना से गाँव वालों ने सीखा कि “खुदा गंजे को नाखून न दे”। यानी कि उपहार या संसाधन किसी को भी दिए जा सकते हैं, लेकिन वे तभी मूल्यवान होते हैं जब उन्हें सही व्यक्ति को दिया जाए, जो उनका सही उपयोग कर सके। अन्यथा, वे केवल एक बेकार वस्तु की तरह होते हैं, जिसका कोई अर्थ नहीं होता।

शायरी:

खुदा गंजे को नाखून क्यों दे, सवाल ये बड़ा है,

समझे जो इसे, वही इसका जवाब खड़ा है।

सजावट बाहरी, कभी अंतर को ना बदल पाए,

जो असली है, वो रूप बदल के भी सच बयां कर जाए।

हर उपहार में छुपा एक मकसद होता है,

जरूरत से ज्यादा, कभी फायदा नहीं होता है।

खुशी उसी में है, जो हमें सही लगे,

जो ना भाए दिल को, उसे क्या रखें संगे।

खाल ओढ़ ले चाहे कोई स्यार सिंह की,

असलियत छुपाए न छुपे, यही सच्चाई दिल की।

जीवन की इस दौड़ में, सच्चाई से क्या घबराना,

“खुदा गंजे को नाखून न दे”, इसे ही तो मानना।

 

खुदा गंजे को नाखून न दे शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of खुदा गंजे को नाखून न दे – Khuda ganje ko nakhun na de Idiom:

Introduction: “Khuda ganje ko nakhun na de” is a popular Hindi idiom that sarcastically describes a situation where a person receives more than what they need or can use, rendering it useless. This idiom is directly related to the idea that superficial changes do not alter one’s inherent nature or qualities.

Meaning: The idiom means that if a jackal wears the skin of a lion, it still does not become a lion. Similarly, a person, no matter how much they try to show themselves as powerful or influential without possessing the actual qualities or abilities, does not change their inherent nature.

Usage: This idiom is often used in situations where a person attempts to achieve greatness or success without the actual capabilities or qualities. It criticizes the systems where acknowledgment and respect are given only to those in higher positions without recognizing the real contributors.

Example:

-> In a company, a junior employee worked hard on an innovative project and successfully completed it. But when the time came, all the credit and recognition went to the company’s senior officer.

Story of ‌‌Khuda ganje ko nakhun na de Idiom in English:

Once upon a time, in a village, lived two brothers, Anubhav and Anuj. Anubhav was an enthusiastic farmer, while Anuj worked as a teacher in the village school. Both were quite skilled in their respective fields.

One day, a wealthy trader visited the village and decided to gift something to every villager. He gave Anubhav a set of books based on agriculture and farming, and Anuj received a new plow.

Both brothers were surprised by their gifts. Anubhav thought, “I am a farmer, I need a plow, not these books.” Meanwhile, Anuj thought, “I am a teacher, I need books, not this plow.”

The brothers decided to exchange their gifts. Afterwards, Anubhav got a new plow for his farming, and Anuj received new books for his teaching.

From this incident, the villagers learned that “God doesn’t give nails to the bald” meaning gifts or resources can be given to anyone, but they are only valuable when given to the right person who can use them properly. Otherwise, they are just like a useless object with no meaning.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

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