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जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे, अर्थ, प्रयोग(Jab baad hi khet ko khaye to rakhwali kaun kare)

परिचय: “जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे” यह हिंदी मुहावरा समाज में व्याप्त विसंगतियों और विरोधाभासों को दर्शाता है। यह मुहावरा उस स्थिति को व्यक्त करता है जब सुरक्षा प्रदान करने वाला ही खतरा बन जाए।

अर्थ: इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि जब बाड़, जो खेत की सुरक्षा के लिए होती है, वही खेत को नुकसान पहुँचाए तो खेत की रक्षा कैसे की जाए। अलंकारिक रूप से, यह मुहावरा उस परिस्थिति को दर्शाता है जहाँ विश्वास किये गए व्यक्ति या संस्था ही अविश्वसनीय और हानिकारक सिद्ध हो।

उपयोग: यह मुहावरा अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जहाँ सुरक्षा और भरोसे के लिए नियुक्त व्यक्ति या संस्था ही नुकसान पहुँचाती है।

उदाहरण:

-> जब किसी संस्था में भ्रष्टाचार हो और उसके अधिकारी ही भ्रष्ट हों, तब इस मुहावरे का प्रयोग किया जा सकता है: “जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे।”

-> पुलिस विभाग में अपराधियों के साथ मिलीभगत होने पर भी इस मुहावरे का प्रयोग होता है।

समापन: यह मुहावरा हमें यह सिखाता है कि जब जिम्मेदारी और विश्वास का दुरुपयोग होता है, तो उस परिस्थिति को संभालना बेहद कठिन हो जाता है। यह हमें जागरूक रहने और अपने आसपास की स्थितियों को समझने की प्रेरणा देता है।

Hindi Muhavare Quiz

जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे कहावत पर कहानी:

बहुत समय पहले, रामपुर नामक एक छोटा सा गांव था। इस गांव की खासियत थी उसका विशाल गढ़, जिसकी रक्षा के लिए गांववालों ने एक बहादुर पहरेदार नियुक्त किया था, जिसका नाम था विशाल।

विशाल को सभी गांववाले बहुत सम्मान देते थे। उसकी निष्ठा और बहादुरी की वजह से गांव में कभी कोई चोरी या डकैती नहीं हुई थी। लेकिन समय के साथ, विशाल के मन में लालच जाग उठा।

एक रात, विशाल ने गढ़ के खजाने को लूटने का फैसला किया। उसने अपने ही गढ़ की सुरक्षा तोड़ी और खजाने को लूट लिया। सुबह होते ही, जब गांववालों को इस बात का पता चला, तो वे हैरान और निराश हुए।

गांव के मुखिया ने कहा, “जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे?” उनका इशारा था कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाए, तो सुरक्षा का क्या अर्थ रह जाता है।

इस घटना के बाद, गांववालों ने बहुत सोच-समझकर एक नया पहरेदार चुना। उन्होंने सीखा कि किसी पर अंधा विश्वास करना कितना खतरनाक हो सकता है।

इस कहानी के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि जिम्मेदारी और विश्वास का सही ढंग से आकलन करना जरूरी है। यह कहानी हमें बताती है कि जब सुरक्षा का माध्यम ही खतरे का कारण बन जाए, तो उस स्थिति को संभालने के लिए समझदारी और सतर्कता आवश्यक है।

शायरी:

बाड़ जब खुद खेत को खाने लगे,
रक्षक ही भक्षक बन जाए तो क्या कहें।
विश्वास की चादर में छुपे वो फरेब,
जिससे हर आशा, हर उम्मीद रह जाए बेबस।

दिल में दर्द की चुभन, आँखों में नमी,
जब अपने ही साजिश में लिपटे हों हर कहीं।
वो जो थे कभी अपने, अब लगते हैं अजनबी,
इस दुनिया की रीत, ये अजीब त्रासदी।

बाड़ की यह कहानी है एक आईना,
जहां विश्वास का किला, बना रेत का महल।
कैसे करें भरोसा, किस पर करें यकीन,
जब अपने ही संग दे बेवफाई का रंगीन।

ये शायरी हमें बताती, जीवन की सच्चाई,
कि जब बाड़ ही खेत को खाए, तो रखवाली कौन करे भाई।
अपनों के चेहरे में छुपे, उनके असली रंग,
दिखाती है यह दुनिया, विश्वास का असली दंग।

 

जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of जब बाड़ ही खेत को खाए तो रखवाली कौन करे – Jab baad hi khet ko khaye to rakhwali kaun kare Proverb:

Introduction: The Hindi proverb “Jab baad hi khet ko khaye to rakhwali kaun kare” highlights the contradictions and anomalies prevalent in society. It expresses the situation where the protector becomes the threat.

Meaning: The literal meaning of this proverb is that if the fence, which is meant to protect the field, itself damages the field, then how can the field be protected? Figuratively, it represents situations where the person or institution trusted to provide security and reliability proves to be untrustworthy and harmful.

Usage: This proverb is often used in situations where the person or institution appointed for security and trust causes harm.

Examples:

-> When there is corruption in an institution, and its officers are corrupt, this proverb can be used: “Jab baad hi khet ko khaye to rakhwali kaun kare.”

-> It is also used in situations like collusion between criminals and the police department.

Conclusion: This proverb teaches us that when responsibility and trust are misused, managing the situation becomes extremely difficult. It inspires us to stay vigilant and understand the situations around us.

Jab baad hi khet ko khaye to rakhwali kaun kare Proverb in English:

Long ago, there was a small village named Rampur. This village was known for its massive fortress, which was guarded by a brave sentinel named Vishal.

Vishal was highly respected by all villagers. Due to his loyalty and bravery, there had never been any theft or robbery in the village. But over time, greed crept into Vishal’s heart.

One night, Vishal decided to loot the treasure of the fortress. He breached the security of his own fortress and stole the treasure. In the morning, when the villagers discovered this, they were shocked and dismayed.

The village head said, “When the fence itself eats the crop, who will guard it?” implying that when the protector becomes the predator, what’s the point of such security.

After this incident, the villagers carefully chose a new guard. They learned that blind trust in someone could be dangerous.

This story teaches us the importance of properly assessing responsibility and trust. It tells us that when the means of security itself becomes a source of danger, wisdom and vigilance are necessary to manage the situation.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQ:

इस कहावत का रोज़मर्रा की बातचीत में कैसे इस्तेमाल किया जाता है?

इसे अक्सर तब इस्तेमाल किया जाता है जब कोई विश्वासघाती या धोखेबाज व्यक्ति उस स्थिति में हो जहां उसे संरक्षण या नेतृत्व करना हो।

क्या अन्य संस्कृतियों में इसी तरह की कहावतें हैं?

जी हां, विभिन्न संस्कृतियों में ऐसी कहावतें होती हैं जो नेतृत्व और विश्वास के दुरुपयोग पर प्रकाश डालती हैं।

यह कहावत नैतिकता और नेतृत्व के बारे में क्या सिखाती है?

यह हमें सिखाती है कि नेतृत्व की स्थिति में ईमानदारी और विश्वास का होना कितना महत्वपूर्ण है।

क्या इस कहावत का लिंग, राजनीति या सामाजिक मुद्दों पर प्रभाव है?

हां, इसे अक्सर उन स्थितियों में इस्तेमाल किया जाता है जहां सत्ता का दुरुपयोग होता है, चाहे वह लिंग, राजनीति, या सामाजिक मुद्दों में हो।

यह कहावत सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में कैसे प्रासंगिक है?

यह सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ में अत्यंत प्रासंगिक है, जहां सत्ता का दुरुपयोग और विश्वास का खंडन अक्सर होता है।

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