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आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए, अर्थ, प्रयोग(Aas parai jo take, jeevit hi mar jaye)

परिचय: हिंदी की प्राचीन कहावत “आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए” का अर्थ है कि जो व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहता है, वह जीवन में कभी सच्ची सफलता या संतुष्टि प्राप्त नहीं कर सकता।

अर्थ: इस कहावत का सार यह है कि जो व्यक्ति दूसरों की मदद या सहारे की आशा में जीता है, वह वास्तव में अपने जीवन की पूर्णता को नहीं जी पाता।

उपयोग: यह कहावत उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जब हमें यह दर्शाना होता है कि आत्मनिर्भरता ही वास्तविक स्वतंत्रता और संतोष का मार्ग है।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक युवा व्यक्ति जो सिर्फ अपने माता-पिता की संपत्ति पर निर्भर है और खुद कुछ नहीं करता, वह कभी भी खुद की पहचान और सम्मान नहीं पा सकता।

समापन: “आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए” कहावत हमें सिखाती है कि जीवन में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता ही असली सुख और सफलता के आधार हैं। यह हमें प्रेरित करती है कि हम अपनी क्षमताओं पर विश्वास करें और दूसरों पर निर्भर न रहें।

इस पोस्ट में कहावत के अर्थ और उसके प्रयोग को आत्मनिर्भरता के महत्व के संदर्भ में बताया गया है, जो व्यक्तिगत विकास और स्वतंत्रता की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए कहावत पर कहानी:

बहुत समय पहले के दिनों की बात है, एक छोटे से गाँव में अनुज नाम का एक युवक रहता था। अनुज का परिवार बहुत ही गरीब था, लेकिन उसके मन में हमेशा बड़े सपने और आत्मनिर्भर बनने की चाहत थी।

गाँव के बाहर एक समृद्ध व्यापारी रहता था, जिसके पास अपार धन-संपदा थी। गाँव के लोग अक्सर उससे मदद मांगने जाते थे। अनुज के मन में भी यह ख्याल आया कि शायद वह व्यापारी उसकी मदद कर सकता है। लेकिन उसके पिता ने उसे सिखाया था, “आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए।” इसलिए, अनुज ने निर्णय लिया कि वह अपने बलबूते पर ही आगे बढ़ेगा।

अनुज ने मेहनत और लगन से काम करना शुरू किया। वह सुबह जल्दी उठकर खेतों में काम करता और शाम को अपनी पढ़ाई में समय देता। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई और उसके खेत हरे-भरे हो गए। उसने अपनी फसल बेचकर अच्छी खासी आमदनी प्राप्त की।

समय के साथ, अनुज ने अपना व्यवसाय बढ़ाया और अन्य गाँववालों को भी रोजगार दिया। उसने अपने गाँव के विकास में भी योगदान दिया।

निष्कर्ष:

अनुज की कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि “आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए” का अर्थ है कि जो व्यक्ति दूसरों पर निर्भर रहता है, वह कभी भी सच्चे सुख और आत्म-सम्मान का अनुभव नहीं कर सकता। आत्मनिर्भरता ही वास्तविक सफलता की कुंजी है।

शायरी:

खुद की राहों पर चलकर, खुद ही मंजिल तलाशें,

आस पराई जो तके, जीवन के मायने न पाएं।

जो अपने पंखों पर उड़े, आसमान भी झुक जाए,

जो दूसरों की बाट जोहे, सपने हाथ न आएं।

जिनके इरादे मजबूत, वो तूफानों से खेले,

आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए।

खुद की तकदीर के फकीर, अपनी कहानी खुद लिखें,

जो खुद पर यकीन रखे, वो तारे भी तोड़ लाएं।

सपनों की चाह में, खुद से ही राहत पाएं,

आस पराई जो तके, उसके ख्वाब अधूरे रह जाएं।

जो खुद के सहारे चले, वो दुनिया को बदल दे,

अपनी मेहनत के बल पर, नई दुनिया बसाएं।

 

आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए – Aas parai jo take, jeevit hi mar jaye Proverb:

Introduction: The ancient Hindi proverb “Aas parai jo take, jeevit hi mar jaye” implies that a person who depends on others cannot achieve true success or satisfaction in life.

Meaning: The essence of this proverb is that a person who lives in the hope of help or support from others never truly experiences the fullness of life.

Usage: This proverb is used in situations to emphasize that self-reliance is the path to genuine freedom and contentment.

Examples:

-> Consider a young person who relies solely on their parents’ wealth and does nothing on their own. They can never attain their own identity and respect.

Conclusion: The proverb “आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए” teaches us that self-reliance and independence are the real foundations of happiness and success in life. It inspires us to have faith in our abilities and not to depend on others. This post explains the meaning and application of the proverb in the context of the importance of self-reliance, guiding towards personal growth and freedom.

Story of Baap se bair, poot se sagai Proverb in English:

Long ago, in a small village, there lived a young man named Anuj. His family was very poor, but he always harbored big dreams and the desire to be self-reliant.

Outside the village lived a wealthy merchant, who possessed immense wealth. The villagers often went to him seeking help. Anuj too thought that perhaps the merchant could assist him. However, his father had taught him, “One who depends on others is dead even while alive.” Therefore, Anuj decided that he would progress on his own strength.

Anuj started working hard and diligently. He would wake up early in the morning to work in the fields and spend his evenings studying. Gradually, his hard work paid off, and his fields became lush and green. He earned a good income by selling his crops.

Over time, Anuj expanded his business and provided employment to other villagers. He also contributed to the development of his village.

Conclusion:

Anuj’s story teaches us that “One who depends on others is dead even while alive” means that a person who relies on others can never experience true happiness and self-respect. Self-reliance is the key to real success.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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