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ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी, अर्थ, प्रयोग (Oont-Ghode bahe jaye, Gadha kahe kitna pani)

परिचय: “ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी” – यह कहावत अक्षमता और अति-आत्मविश्वास के विषय पर केंद्रित है।

अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जब सक्षम और शक्तिशाली व्यक्ति भी किसी कार्य को नहीं कर पाते, और एक दुर्बल या कम सक्षम व्यक्ति उसी कार्य को करने का दावा करता है, तो यह कहावत प्रयोग में आती है।

उपयोग: यह कहावत अक्सर उन स्थितियों में प्रयोग की जाती है जहाँ कोई व्यक्ति अपनी क्षमता से अधिक काम करने का दावा करता है, खासकर तब जब उससे अधिक सक्षम लोग वही काम नहीं कर पाए हों।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक गाँव में बाढ़ आई और सभी मजबूत और अनुभवी लोग बाढ़ के पानी को पार करने में असफल रहे। इस स्थिति में, एक अनुभवहीन और कमजोर व्यक्ति ने दावा किया कि वह पानी पार कर सकता है। तब लोगों ने कहा, “ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी।”

समापन: इस कहावत से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अपनी क्षमताओं का यथार्थ समझ होना चाहिए और अति-आत्मविश्वास से बचना चाहिए। यह हमें यह भी सिखाती है कि कठिन परिस्थितियों में विनम्रता और संयम बरतना चाहिए और उन कार्यों का चयन करना चाहिए जो हमारी क्षमता के अनुरूप हों।

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ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी कहावत पर कहानी:

एक बार की बात है, राजस्थान के एक विशाल रेगिस्तान के किनारे एक छोटा सा गाँव बसा था। गाँव में एक बहुत ही बुद्धिमान और साहसी घोड़ा था, जिसका नाम था वीरू। वीरू ने अपने जीवन में कई बार रेगिस्तान को पार किया था। उसी गाँव में एक गधा भी रहता था, जिसका नाम था गोपू। गोपू हमेशा वीरू की बहादुरी से प्रेरित होता और खुद भी कुछ बड़ा करने का सपना देखता था।

एक दिन, गाँव में खबर आई कि एक भयंकर तूफान आने वाला है और गाँववालों को रेगिस्तान पार करके सुरक्षित स्थान पर जाना होगा। वीरू ने तुरंत अपना सामान बाँधा और रेगिस्तान की ओर चल पड़ा। गोपू ने भी सोचा कि यह उसके लिए एक सुनहरा मौका है और वह भी वीरू के पीछे-पीछे चल पड़ा।

लेकिन, जैसे ही वे रेगिस्तान में पहुंचे, तेज हवाएं और रेत के तूफान ने उनका स्वागत किया। वीरू अपने अनुभव और साहस के बल पर आगे बढ़ता रहा, लेकिन गोपू के लिए यह यात्रा बहुत कठिन साबित हो रही थी। उसे जल्दी ही अपनी क्षमता का अहसास हो गया और वह थककर बैठ गया।

वीरू ने जब गोपू को थका हुआ देखा, तो उसने उसे समझाया, “गोपू, तुम्हारा हौसला तो अच्छा है, लेकिन तुम्हें अपनी क्षमता का भी ध्यान रखना चाहिए। ‘ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी’ – इस कहावत का मतलब है कि जब शक्तिशाली और सक्षम जीव भी किसी काम को नहीं कर पाते, तो हमें अपनी सीमाओं को समझते हुए कार्य करना चाहिए।”

गोपू ने वीरू की बात समझी और उसे अहसास हुआ कि उसे अपनी सीमाओं को पहचानने की जरूरत है। इस घटना ने गोपू को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया और उसने भविष्य में कभी भी अपनी क्षमता से अधिक काम करने की कोशिश नहीं की।

इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि हमें अपनी क्षमता का सही आकलन करके ही किसी कार्य को करने का प्रयास करना चाहिए और अति-आत्मविश्वास से बचना चाहिए।

शायरी:

बहे जाए ऊंट-घोड़े, गधा सोचे पानी कितना,

हर एक जीवन की यात्रा में, सपने और हकीकत का फसाना।

अपनी सीमा को पहचाने बिना, जो चलता आगे अंधा,

उसकी कहानी में छुपा, गहरा इक सबक सुनहरा।

बड़े-बड़े तूफानों में, जब नाविक भी हारा,

छोटी नाव की बात क्या, जो चली थी किनारा।

हर किसी की अपनी दास्ताँ, हर किसी की अपनी खूबी,

जो समझे खुद को बेहतर, उसकी राह हो जाए तूफानी।

उम्मीदों की उड़ान में, जब अपनी हद से गुजरे,

ऊंट-घोड़े बहे जाएं, गधा सोचे पानी कितना।

 

ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी – Oont-Ghode bahe jaye, Gadha kahe kitna pani Proverb:

Introduction: “Oont-Ghode bahe jaye, Gadha kahe kitna pani” is a popular Hindi proverb focused on the themes of incapacity and overconfidence.

Meaning: The proverb means that when capable and powerful individuals fail to accomplish a task, and a weaker or less capable person claims to be able to do it, this proverb is used.

Usage: This proverb is often used in situations where a person claims to do a task that is beyond their capability, especially when more capable individuals have failed to do the same task.

Examples:

-> Imagine a village hit by a flood, where all strong and experienced individuals failed to cross the floodwaters. In this scenario, an inexperienced and weaker individual claims that he can cross the water. Then people might say, “Oont-Ghode bahe jaye, Gadha kahe kitna pani.”

Conclusion: This proverb teaches us that we should have a realistic understanding of our capabilities and avoid overconfidence. It also instructs us to maintain humility and restraint in challenging situations and choose tasks that are appropriate for our abilities.

Story of Oont-Ghode bahe jaye, Gadha kahe kitna pani Proverb in English:


Once upon a time, on the edge of a vast desert in Rajasthan, there was a small village. In the village lived a very intelligent and brave horse named Veeru. Veeru had crossed the desert several times in his life. There was also a donkey in the village named Gopu. Gopu was always inspired by Veeru’s bravery and dreamed of doing something great himself.

One day, news came to the village of an impending fierce storm, and the villagers needed to cross the desert to reach a safe place. Veeru immediately packed his things and set off towards the desert. Gopu thought it was a golden opportunity for him and followed Veeru.

However, as soon as they reached the desert, they were greeted by strong winds and sandstorms. Veeru continued forward with his experience and courage, but the journey proved to be very difficult for Gopu. He soon realized his limitations and sat down, exhausted.

When Veeru saw Gopu tired, he explained, “Gopu, your courage is good, but you should also be aware of your capabilities. ‘When camels and horses are swept away, a donkey says how much water’ – this proverb means that when even powerful and capable beings cannot do a task, we should work according to our limits.”

Gopu understood Veeru’s words and realized that he needed to recognize his limits. This incident taught Gopu an important lesson, and he never tried to do more than his capacity in the future.

This story teaches us that we should try to undertake tasks only after correctly assessing our capabilities and avoid overconfidence.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

क्या इस कहावत में कोई व्यंग्य होता है?

हां, इस कहावत में व्यंग्य होता है जो अनुभवहीनता और अज्ञानता पर तंज कसता है।

इस कहावत का व्यावहारिक जीवन में क्या महत्व है?

व्यावहारिक जीवन में इस कहावत का महत्व यह है कि इससे हमें सिखने को मिलता है कि किसी भी मुद्दे पर राय देने से पहले सोच-समझकर और जानकारी हासिल करके ही बोलना चाहिए।

इस कहावत का शिक्षा क्षेत्र में क्या उपयोग है?

शिक्षा क्षेत्र में इस कहावत का उपयोग छात्रों को यह सिखाने के लिए किया जाता है कि बिना अध्ययन और जानकारी के किसी भी विषय पर टिप्पणी न करें।

इस कहावत का नैतिक या सामाजिक संदेश क्या है?

नैतिक या सामाजिक संदेश यह है कि समाज में हर किसी को जानकारीपूर्ण और सोच-समझकर बोलना चाहिए और अपनी सीमाओं का सम्मान करना चाहिए।

क्या यह कहावत बच्चों को सिखाने के लिए उपयुक्त है?

हां, यह कहावत बच्चों को सिखाने के लिए उपयुक्त है क्योंकि इससे उन्हें अपने ज्ञान की सीमा को समझने और बिना समझे किसी विषय पर टिप्पणी न करने का महत्व सिखाया जाता है।

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