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अति सर्वत्र वर्जयेत्, अर्थ, प्रयोग(Ati sarvatra varjayet)

“अति सर्वत्र वर्जयेत्” एक प्राचीन और प्रसिद्ध हिंदी कहावत है, जिसकी जड़ें भारतीय संस्कृति और दर्शन में गहराई से समाई हुई हैं। इस कहावत का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद होता है – “हर चीज की अति अच्छी नहीं होती”।

परिचय: यह कहावत हमें संतुलन और मध्यमार्ग का पाठ पढ़ाती है। यह हमें बताती है कि जीवन में किसी भी चीज की अति, चाहे वह भोजन हो, व्यायाम हो, काम हो या फिर मनोरंजन, सही नहीं होती।

अर्थ: “अति सर्वत्र वर्जयेत्” का अर्थ है कि किसी भी चीज की अत्यधिकता से बचना चाहिए। अति करने पर स्वस्थ्य, संबंध, कार्य और यहाँ तक की मानसिक संतुलन पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

उपयोग: इस कहावत का प्रयोग अक्सर जीवन में संतुलन बनाए रखने के महत्व को बताने के लिए किया जाता है। यह किसी भी चीज के प्रति समझदारी और संयम बरतने की सीख देती है।

उदाहरण:

-> उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति बहुत अधिक काम करता है और आराम नहीं करता, तो वह जल्दी थकान और स्वास्थ्य समस्याओं का शिकार हो सकता है। इसे “अति सर्वत्र वर्जयेत्” के अनुसार समझा जा सकता है।

समापन: इस कहावत से हमें सिखने को मिलता है कि जीवन में संतुलन बहुत जरूरी है। अति करने से जीवन में कई समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, इसलिए हमें हर क्षेत्र में मध्यमार्गी होना चाहिए।

Hindi Muhavare Quiz

अति सर्वत्र वर्जयेत् कहावत पर कहानी:

एक बार की बात है, एक छोटे शहर में अखिल नाम का एक व्यापारी रहता था। अखिल बहुत मेहनती और लगनशील था, और उसका व्यापार भी अच्छा चल रहा था। लेकिन अखिल की एक समस्या थी – वह हमेशा अत्यधिक काम में व्यस्त रहता था और अपने परिवार और स्वास्थ्य को नजरअंदाज करता था।

अखिल के पिता ने उसे कई बार समझाया कि “बेटा, अति सर्वत्र वर्जयेत्। तुम्हें अपने काम और जीवन में संतुलन बनाकर चलना चाहिए।” पर अखिल ने उनकी बातों को अनदेखा कर दिया।

धीरे-धीरे, अखिल का स्वास्थ्य गिरने लगा, और उसके पारिवारिक संबंध भी प्रभावित होने लगे। एक दिन, अखिल को अचानक से स्वास्थ्य समस्या हुई, और वह अस्पताल में भर्ती हो गया।

अस्पताल में समय बिताते हुए अखिल को एहसास हुआ कि उसके पिता की बातें कितनी सही थीं। उसने महसूस किया कि उसकी अत्यधिक काम की आदत ने उसके स्वास्थ्य और परिवार दोनों को प्रभावित किया है।

इस अनुभव के बाद, अखिल ने अपने जीवन में बदलाव किया और संतुलन बनाने का प्रयास किया। उसने काम और आराम के बीच संतुलन बनाया और अपने परिवार के साथ भी समय बिताना शुरू किया।

इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि “अति सर्वत्र वर्जयेत्” यानी हर चीज की अति बुरी होती है। जीवन में संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है, और हमें हर क्षेत्र में इसका पालन करना चाहिए।

शायरी:

अति की चादर में छिपा, जीवन का सच्चा राज,
“अति सर्वत्र वर्जयेत्”, कहते हैं बुजुर्गों के साज।

ख्वाहिशों की राह में, अति का न हो कोई साथ,
संतुलन ही जीवन की, असली और सच्ची बात।

चांदनी रातों में भी, अति की न हो जाए बात,
जीवन के हर पहलू में, रखो संयम का हाथ।

दिलों की दुनिया में भी, अति से बच के चलना,
जज्बातों की गहराई में, संयम से ही संभलना।

“अति सर्वत्र वर्जयेत्”, ये सीख है अनमोल,
जीवन की हर राह में, इसे बनाए रखना भोल।

 

अति सर्वत्र वर्जयेत् शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of अति सर्वत्र वर्जयेत् – Ati sarvatra varjayet Proverb:

“Ati sarvatra varjayet” is an ancient and famous Hindi proverb, deeply rooted in Indian culture and philosophy. Translated from Sanskrit to Hindi, it means “excess of anything is not good.”

Introduction: This proverb teaches us the lesson of balance and moderation. It tells us that in life, excess of anything, be it food, exercise, work, or entertainment, is not right.

Meaning: “Ati sarvatra varjayet” means one should avoid excess in everything. Excess can negatively affect health, relationships, work, and even mental balance.

Usage: This proverb is often used to emphasize the importance of maintaining balance in life. It teaches the lesson of wisdom and restraint in all aspects.

Examples:

-> For example, if a person works excessively and does not rest, they may quickly face fatigue and health issues. This can be understood as “Ati sarvatra varjayet.”

Conclusion: This proverb teaches us that balance in life is crucial. Excess in any area of life can lead to problems, so we should always follow a middle path in all aspects.

Story of Ati sarvatra varjayet Proverb in English:

Once upon a time, in a small town, there lived a businessman named Akhil. Akhil was hardworking and diligent, and his business was doing well. However, Akhil had a problem – he was always excessively busy with work and neglected his family and health.

Akhil’s father repeatedly advised him, “Son, ‘excess in anything is bad.’ You should maintain a balance between your work and life.” But Akhil ignored his father’s advice.

Gradually, Akhil’s health began to deteriorate, and his family relationships also started to suffer. One day, Akhil suddenly fell ill and was admitted to the hospital.

While spending time in the hospital, Akhil realized how right his father was. He understood that his habit of overworking had affected both his health and family life.

After this experience, Akhil made changes in his life and tried to create a balance. He established a balance between work and rest and began spending time with his family.

This story teaches us that “excess in anything is bad,” which means maintaining balance in life is very important, and we should follow this in every aspect of our lives.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

क्या इस कहावत का उपयोग केवल व्यक्तिगत स्तर पर होता है?

नहीं, यह सामाजिक, राजनीतिक, और आर्थिक परिस्थितियों में भी लागू हो सकता है।

क्या इसका कोई इतिहासिक संदर्भ है?

हाँ, यह सिकंदर महान के द्वारा उक्त किया गया था, जिसने अपनी सेना को समझाया कि अधिकता से बचना आवश्यक है।

क्या इसका कोई सांस्कृतिक महत्व है?

हाँ, यह सांस्कृतिक मूल्यों में संतुलन की महत्वपूर्णता को बताता है और व्यक्ति को सब्र और संयम की ओर प्रेरित करता है।

क्या यह कहावत केवल भारतीय साहित्य में ही प्रमुख है?

नहीं, यह कहावत विभिन्न साहित्य और सांस्कृतिक परंपराओं में व्यापक रूप से प्रचलित है।

क्या इसका कोई विरोधाभास है?

नहीं, यह एक सामान्य और सत्यप्रेमी निर्णय है जो व्यापक रूप से स्वीकृत है।

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