परिचय: “जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध” यह हिंदी की एक प्रचलित कहावत है, जिसका संबंध उन व्यक्तियों से है जो अपने जीवित पिता का सम्मान और सेवा नहीं करते, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनका श्राद्ध करते हैं।
अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि कुछ लोग अपने जीवित पिता की सेवा और सम्मान नहीं करते, लेकिन जब वे मर जाते हैं, तो उन्हीं लोगों द्वारा उनका श्राद्ध किया जाता है। यह कहावत उनके पाखंड और दिखावे की ओर इशारा करती है।
उपयोग: यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी को उसके जीवनकाल में सम्मान और प्रेम न देकर, उसकी मृत्यु के बाद उसे अनावश्यक रूप से महत्व दिया जाता है।
उदाहरण:
-> मान लीजिए, एक पुत्र अपने जीवित पिता की उपेक्षा करता है और उनकी सेवा नहीं करता। लेकिन जब पिता की मृत्यु होती है, तब वही पुत्र बड़े धूमधाम से उनका श्राद्ध करता है।
समापन: “जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध” कहावत हमें यह सिखाती है कि हमें अपने प्रियजनों की जीवनकाल में ही सम्मान और सेवा करनी चाहिए, न कि उनकी मृत्यु के बाद दिखावा करना चाहिए। यह कहावत हमें वास्तविक संवेदना और समर्पण के महत्व को समझाती है।
जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध कहावत पर कहानी:
एक छोटे से गाँव में प्रेमचंद्र नामक एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने बेटे अभय के साथ रहते थे। प्रेमचंद्र बहुत ही सज्जन और दयालु इंसान थे, लेकिन उनका बेटा अभय उनकी उपेक्षा करता था। वह अपने दोस्तों के साथ घूमने में और अपने शौक पूरे करने में व्यस्त रहता था, अपने पिता की सेवा करने में उसकी रुचि नहीं थी।
प्रेमचंद्र अक्सर अकेले ही अपनी दिनचर्या निभाते और अपने बेटे से थोड़ा प्यार और ध्यान पाने की आशा करते। लेकिन अभय उनकी बातों को अनसुना कर देता।
एक दिन अचानक प्रेमचंद्र की तबियत बिगड़ गई और वे चल बसे। उनकी मृत्यु के बाद अभय को अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने अपने पिता के लिए भव्य श्राद्ध समारोह का आयोजन किया। उसने गाँव वालों को बड़े दान दिए और अपने पिता की याद में भावुक भाषण दिया।
इस पर गाँव के एक बुजुर्ग ने कहा, “बेटा, तुमने तो ‘जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध’ कहावत को सच कर दिखाया। जब तुम्हारे पिता जीवित थे, तब तुमने उनकी उपेक्षा की और अब उनके निधन के बाद तुम यह सब कर रहे हो।”
अभय को समझ आया कि उसे अपने पिता की जीवनकाल में ही उनकी सेवा और सम्मान करना चाहिए था। उसकी यह दिखावटी श्रद्धांजलि अब कोई मायने नहीं रखती थी। उसे इस बात का गहरा अफसोस हुआ।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अपने प्रियजनों की जीवनकाल में ही उनका सम्मान और सेवा करनी चाहिए। उनके निधन के बाद की गई दिखावटी क्रियाएं उनके लिए कोई वास्तविक सम्मान या प्रेम का प्रतीक नहीं होतीं।
शायरी:
जीते जी जो न समझे, मौत पर क्या समझाए,
बेटे ने जब न पूछा, मौत पर क्या बतलाए।
पिता की उपेक्षा की, अब श्राद्ध में खोज रहा,
खोई हुई मोहब्बत, क्या दिखावे में सोज रहा।
जीये जब ना पहचाना, मुए तो याद आए,
जीभ भी जली, हाथ में कुछ ना आए।
सीख यही है जीवन की, हर रिश्ते का मोल समझो,
जो चला गया इस दुनिया से, उसका क्या रोल समझो।
मोहब्बत में फर्क नहीं, जीवन और मौत का,
जियो तो इज्जत दो, मौत पर नहीं होता बात का।
आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।
Hindi to English Translation of जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध – Jiye na maane pitra aur mue karen shraddh Proverb:
Introduction: The Hindi proverb “Jiye na maane pitra aur mue karen shraddh” relates to individuals who fail to honor and serve their father while he is alive but perform his Shraddha rituals after his death.
Meaning: The proverb means that some people do not serve or respect their living fathers, but when the fathers die, these same individuals perform their Shraddha rituals. It points to their hypocrisy and showmanship.
Usage: This proverb is used when someone does not give love and respect to a person during their lifetime but unnecessarily glorifies them after their death.
Examples:
-> For instance, a son neglects his living father and fails to take care of him. However, when the father passes away, the same son conducts a grand Shraddha ceremony.
Conclusion: The proverb “जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध” teaches us that we should respect and serve our loved ones during their lifetime, rather than showing off after their death. It emphasizes the importance of genuine compassion and dedication.
Story of Jiye na maane pitra aur mue karen shraddh Proverb in English:
In a small village lived an elderly man named Premchandra with his son Abhay. Premchandra was kind and gentle, but Abhay neglected him, preferring to spend time with friends and indulge in his hobbies. Premchandra often managed his routine alone, hoping for some love and attention from his son, which he never received.
One day, Premchandra fell ill and passed away suddenly. Abhay, filled with regret, organized a grand Shraddha ceremony for his father. He made generous donations to the villagers and delivered an emotional speech in memory of his father.
An elder in the village remarked, “Son, you have just exemplified the saying ‘जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध.’ You neglected your father when he was alive and now, you’re doing all this after his demise.”
Abhay realized he should have cared for and respected his father during his lifetime. His ostentatious tribute now meant nothing. He deeply regretted not showing his father the love and respect he deserved while he was alive.
This story teaches us the importance of honoring and serving our loved ones during their lifetime. Performative actions after their death do not hold any real value or symbolize genuine respect or love.
I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.
FAQs:
इस कहावत का प्रयोग किस प्रकार की स्थितियों में किया जाता है?
यह कहावत तब प्रयोग की जाती है जब किसी की जीवनकाल में उसकी उपेक्षा की जाती है, लेकिन उसके मरने के बाद उसका अधिक सम्मान किया जाता है।
इस कहावत का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
सामाजिक जीवन में यह कहावत लोगों को यह सिखाती है कि उन्हें अपनों की कद्र जीते जी करनी चाहिए, न कि उनके चले जाने के बाद।
क्या इस कहावत का उपयोग पारिवारिक संबंधों में किया जा सकता है?
हाँ, इस कहावत का उपयोग पारिवारिक संबंधों में उन सदस्यों की कद्र करने की बात को बढ़ावा देने में किया जा सकता है, जिनकी उपेक्षा होती है।
इस कहावत का व्यक्तिगत जीवन में क्या महत्व है?
व्यक्तिगत जीवन में इस कहावत का महत्व यह है कि यह हमें सिखाती है कि हमें अपने आसपास के लोगों की जीते जी कद्र करनी चाहिए।
क्या इस कहावत का उपयोग जीवन की नैतिक शिक्षा में किया जा सकता है?
हाँ, इस कहावत का उपयोग जीवन की नैतिक शिक्षा में किया जा सकता है, जिससे हमें सिखने को मिलता है कि हमें अपनों की जीते जी कद्र करनी चाहिए।
क्या इस कहावत का उपयोग सामाजिक समरसता में किया जा सकता है?
हाँ, इस कहावत का उपयोग सामाजिक समरसता में भी किया जा सकता है, जिससे समाज में आपसी सम्मान और आभार की भावना बढ़े।
इस कहावत के माध्यम से क्या संदेश मिलता है?
इस कहावत के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि हमें अपने आसपास के लोगों की जीवनकाल में उनकी कद्र करनी चाहिए, न कि उनके जाने के बाद।
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