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ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय, अर्थ, प्रयोग (Jyun-jyun bhije kamri, Tyun-tyun bhari hoye)

परिचय: “ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय” एक प्रचलित हिंदी कहावत है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कि जैसे-जैसे मिट्टी की छतरी गीली होती जाती है, उसका वजन उतना ही बढ़ता जाता है। यह कहावत ऋण लेने के परिणाम को दर्शाती है।

अर्थ: इस कहावत का भावार्थ है कि जैसे-जैसे कोई व्यक्ति अधिक ऋण लेता जाता है, उसके ऊपर बोझ उतना ही बढ़ता जाता है।

उपयोग: यह कहावत अक्सर उस समय प्रयोग में लाई जाती है जब किसी को ऋण लेने के परिणामों के प्रति सचेत करना होता है।

उदाहरण:

मान लीजिए एक व्यक्ति ने कुछ व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए बड़ी मात्रा में ऋण लिया और उसे चुकाने में असमर्थ रहा। धीरे-धीरे उसका कर्ज बढ़ता गया और उसके लिए बोझ बन गया।

समापन: “ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय” कहावत हमें यह सिखाती है कि ऋण लेना एक बढ़ता हुआ बोझ हो सकता है। इसलिए, इसे लेने से पहले इसके परिणामों पर गहन विचार करना चाहिए और जितना संभव हो सके, ऋण से बचना चाहिए।

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ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय कहावत पर कहानी:

एक छोटे शहर में विनीत नाम का एक युवक रहता था। उसका सपना था कि वह अपना खुद का व्यवसाय शुरू करे।

विनीत ने अपने व्यवसाय को शुरू करने के लिए बैंक से बड़ी मात्रा में ऋण लिया। शुरुआत में, सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन धीरे-धीरे व्यवसाय में मंदी आने लगी।

जैसे-जैसे व्यवसाय में घाटा होने लगा, विनीत पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया। उसने और ऋण लेकर अपने व्यवसाय को बचाने की कोशिश की, लेकिन इससे उसका कर्ज और भी बढ़ गया।

विनीत ने महसूस किया कि उसने “ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय” कहावत को नजरअंदाज कर दिया था। उसका कर्ज उसके लिए एक असहनीय बोझ बन गया था।

विनीत की कहानी हमें यह सिखाती है कि ऋण लेना एक सावधानीपूर्ण निर्णय होना चाहिए और इसे बहुत सोच-समझकर लेना चाहिए। अधिक ऋण लेना व्यक्ति पर एक भारी बोझ बन सकता है, जिससे उबरना कठिन होता है।

शायरी:

ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय,

कर्ज की यह दलदल, हर कदम पर खाई होय।

लेते-लेते कर्ज जो, भूल बैठे अपनी हद,

बोझ बढ़ता जा रहा, जैसे अंधेरी रात में चाँद।

जिसने सोचा नहीं कभी, कर्ज के इस पार को,

डूबता गया वो और, जैसे डूबता हो सितारा धार में।

कर्ज की इस दौड़ में, खो दिया जीने का सुख,

जीवन चलता रहा, पर मन रहा सदा अशांत।

कर्ज के इस खेल में, जीवन बना एक शतरंज,

हर चाल में हारता, जैसे हारता बाजीगर अपने ही खेल में।

 

ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय – Jyun-jyun bhije kamri, Tyun-tyun bhari hoye Proverb:

Introduction: “Jyun-jyun bhije kamri, Tyun-tyun bhari hoye” is a common Hindi proverb, literally meaning that as a clay umbrella gets wet, its weight increases. This proverb illustrates the consequences of taking on debt.

Meaning: The essence of this proverb is that the more debt a person accumulates, the heavier the burden becomes on them.

Usage: This proverb is often used to caution someone about the consequences of taking on debt.

Examples:

-> Consider a person who took a substantial loan for business purposes and was unable to repay it. Gradually, his debt increased and became a burden for him.

Conclusion: The proverb “ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय” teaches us that taking on debt can become an increasing burden. Therefore, one should deeply consider the consequences before taking on debt and avoid it as much as possible.

Story of Jyun-jyun bhije kamri, Tyun-tyun bhari hoye Proverb in English:

In a small town, there lived a young man named Vineet who dreamed of starting his own business.

Vineet took a substantial loan from the bank to kickstart his business. Initially, everything was going well, but gradually, the business began to decline.

As the business started incurring losses, the burden of debt on Vineet increased. He tried to save his business by taking more loans, but this only added to his debt.

Vineet realized that he had ignored the proverb “ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय.” His debt had become an unbearable burden for him.

Vineet’s story teaches us that taking loans should be a well-considered decision. Accumulating excessive debt can become a heavy burden on a person, making it difficult to recover.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

इस कहावत का व्यावहारिक उदाहरण क्या हो सकता है?

एक व्यावहारिक उदाहरण हो सकता है कि जैसे-जैसे कर्ज बढ़ता जाता है, वह चुकाना उतना ही कठिन होता जाता है।

क्या यह कहावत व्यक्तिगत संबंधों पर लागू होती है?

हाँ, व्यक्तिगत संबंधों में भी यह लागू होती है, जैसे कि संबंधों में छोटी-छोटी गलतफहमियां जब बढ़ती जाती हैं, तो वे बड़े झगड़े का कारण बन सकती हैं।

इस कहावत का सामाजिक संदर्भ क्या है?

सामाजिक संदर्भ में, यह कहावत यह दर्शाती है कि जैसे-जैसे समाज में समस्याएं या मुद्दे बढ़ते जाते हैं, वे अधिक गंभीर और सुलझाने में कठिन होते जाते हैं।

यह कहावत नेतृत्व और प्रबंधन के संदर्भ में कैसे लागू होती है?

नेतृत्व और प्रबंधन में, इस कहावत का तात्पर्य है कि यदि समस्याओं को शुरुआत में ही नहीं सुलझाया जाता है, तो वे बढ़ते हुए अधिक जटिल और कठिनाई भरी हो जाती हैं।

इस कहावत का व्यक्तिगत विकास पर कैसे प्रभाव पड़ता है?

व्यक्तिगत विकास के संदर्भ में, इस कहावत का अर्थ है कि जीवन में छोटी-छोटी समस्याओं को नजरअंदाज करने से वे बड़ी और जटिल समस्याओं में बदल सकती हैं, जिससे व्यक्तिगत विकास प्रभावित होता है।

इस कहावत का मनोविज्ञान पर क्या प्रभाव है?

मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से, यह कहावत यह सुझाव देती है कि जितनी अधिक और लंबे समय तक मानसिक समस्याएं अनसुलझी रहती हैं, उतनी ही वे गंभीर और हानिकारक हो जाती हैं।

इस कहावत का सांस्कृतिक महत्व क्या है?

सांस्कृतिक दृष्टिकोण से, यह कहावत संकेत करती है कि सामाजिक या सांस्कृतिक समस्याएँ, जैसे कि परंपराओं और मूल्यों में बदलाव, यदि उन्हें समय पर नहीं सुलझाया जाता, तो वे समाज में बड़े विभाजन और असंतोष का कारण बन सकती हैं।

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