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अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं, अर्थ, प्रयोग(Apne ghar mein diya jalaakar tab masjid mein jalate hain)

“अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं” यह हिंदी कहावत आत्म-प्राथमिकता और नैतिकता के महत्वपूर्ण सिद्धांत को स्पष्ट करती है।

परिचय: यह कहावत व्यक्तिगत जिम्मेदारियों और समाज के प्रति दायित्वों के बीच संतुलन का महत्व बताती है। इसका आशय यह है कि व्यक्ति को पहले अपने घर या निजी जीवन की समस्याओं का समाधान करना चाहिए, उसके बाद ही समाज या अन्य लोगों की मदद करनी चाहिए।

अर्थ: कहावत “अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं” का अर्थ है कि पहले अपनी आंतरिक या निजी समस्याओं को संभालना चाहिए और फिर बाहरी या सामाजिक मुद्दों का समाधान करना चाहिए।

उपयोग: इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब व्यक्ति को यह समझाने की आवश्यकता होती है कि वे अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को नजरअंदाज न करें और पहले अपने घर या निजी जीवन को संवारें।

उदाहरण:

-> मान लीजिए एक व्यक्ति सामाजिक कार्यों में बहुत सक्रिय है लेकिन उसके अपने घर में कई समस्याएं हैं जिनका वह समाधान नहीं कर रहा है। यहाँ, “अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं” कहावत उसे उसकी प्राथमिकताओं का आईना दिखाती है।

समापन: इस कहावत से हमें यह सिखने को मिलता है कि सबसे पहले अपने निजी और घरेलू जिम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए। यह हमें बताती है कि अपने घर की देखभाल किए बिना समाज की भलाई में योगदान करना संतुलनहीन होता है।

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अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं कहावत पर कहानी:

एक छोटे गांव में विकास नाम का एक व्यक्ति रहता था। विकास बहुत ही सामाजिक और मिलनसार व्यक्ति था, और वह अक्सर गांव के सामुदायिक कार्यों में सक्रिय रहता था। वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए आगे रहता था, चाहे वह सामुदायिक उत्सव हो या किसी की निजी समस्या।

हालांकि, विकास अपने घरेलू जीवन की अनदेखी करता था। उसके घर में कई समस्याएं थीं – उसके बच्चों को उसके समय और ध्यान की जरूरत थी, और उसकी पत्नी घरेलू कामकाज में अकेली पड़ गई थीं। लेकिन विकास इन सबसे अनजान, सिर्फ सामुदायिक कार्यों में ही व्यस्त रहता था।

एक दिन, उसके एक अच्छे मित्र ने उसे समझाया, “विकास, तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो, लेकिन याद रखो ‘अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं’। पहले अपने घर की समस्याओं को सुलझाओ, फिर समाज के लिए कुछ करो।”

विकास को अपने मित्र की बातें समझ में आईं, और उसने अपने घर की ओर ध्यान देना शुरू किया। उसने अपने बच्चों के साथ समय बिताना शुरू किया, अपनी पत्नी की मदद की, और घरेलू समस्याओं को हल किया।

जब उसका घर सुख-शांति से भर गया, तब उसने फिर से सामुदायिक कार्यों में हिस्सा लेना शुरू किया। इस बार, उसने सुनिश्चित किया कि उसके सामुदायिक कार्य उसके घरेलू जीवन को प्रभावित न करें। विकास ने समझ लिया था कि सच्ची खुशी और संतुष्टि तभी मिलती है जब आप अपने निजी और सामाजिक जीवन के बीच संतुलन बना पाते हैं।

शायरी:

अपने घर के दीये जलाने से पहले,
दूसरों के घर की रोशनी नहीं देखी जाती है।
“अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं”,
यही जिंदगी की हकीकत बयां करती है।

खुद के आंगन में अंधेरा, दूसरों के घर रोशन,
इस फलसफे में छिपी जिंदगी की दास्तां सुन।
पहले अपने घर को संवार, फिर दुनिया को रोशन कर,
“अपने घर में दीया जलाकर”, इस मिसाल को अमल में ला।

अपने दिल की गलियों में पहले उजाला कर,
फिर दुनिया के दर्द का मरहम बन, फैला ये ज्योति हर तरफ।
“अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं”,
इस सीख में छिपा, जीवन का सारा अर्थ है।

 

अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं – Apne ghar mein diya jalaakar tab masjid mein jalate hain Proverb:

The Hindi proverb “Apne ghar mein diya jalaakar tab masjid mein jalate hain” clearly illustrates the principles of self-priority and morality.

Introduction: This proverb emphasizes the importance of balancing personal responsibilities and societal duties. It implies that one should first resolve the problems of their own home or personal life before helping others in society.

Meaning: The proverb “Apne ghar mein diya jalaakar tab masjid mein jalate hain” means that one should first handle their own internal or personal issues before addressing external or social matters.

Usage: This proverb is used when it is necessary to remind someone not to neglect their personal responsibilities and first to put their own house or personal life in order.

Examples:

-> Suppose a person is very active in social work but has several problems in his own home that he is not resolving. Here, the proverb “Apne ghar mein diya jalaakar tab masjid mein jalate hain” reflects a mirror to his priorities.

Conclusion: This proverb teaches us that one should first fulfill their personal and domestic responsibilities. It tells us that contributing to the welfare of society without taking care of one’s own home leads to an imbalance.

Story of Apne ghar mein diya jalaakar tab masjid mein jalate hain Proverb in English:

In a small village, there lived a man named Vikas. Vikas was very sociable and friendly, often actively involved in community activities. He was always ready to help others, whether in community festivals or personal issues.

However, Vikas neglected his family life. There were several issues at home – his children needed his time and attention, and his wife was overwhelmed with household chores. Unaware of these, Vikas remained busy only with community work.

One day, a close friend advised him, “Vikas, you are doing great work, but remember ‘light a lamp in your own home before lighting one in the mosque.’ First, resolve the issues at your home, then do something for society.”

Vikas understood his friend’s advice and started focusing on his family. He began spending time with his children, helping his wife, and resolving domestic issues.

Once his home was filled with peace and happiness, he resumed participating in community activities. This time, he ensured that his community work did not affect his family life. Vikas had realized that true happiness and satisfaction come only when you can balance your personal and social life.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

क्या इस कहावत का कोई ऐतिहासिक संदर्भ है?

नहीं, इसका कोई विशेष ऐतिहासिक संदर्भ नहीं है, लेकिन यह आम जीवन की सटीकता को दर्शाने वाली है।

क्या इस कहावत में सामाजिक संदेश है?

हाँ, इसमें सामाजिक दृष्टिकोण से यह सिखने को मिलता है कि हमें अपने परिवार और समाज के साथ मिलकर बदलाव लाना चाहिए।

क्या इस कहावत का अर्थ है कि धर्मिक स्थानों का अपमान करना ठीक है?

नहीं, इसका अर्थ है कि अपने आदर्शों को पहले अपने जीवन में अपनाएं, और फिर उन्हें समाज में बाँटें।

क्या इस कहावत में धार्मिक संदेश है?

हाँ, इसमें धार्मिक संदेश है कि अपनी आत्मा को समझने और सुधारने का प्रयास अपने घर में ही शुरू करें।

क्या इस कहावत में सभी धर्मों के लिए सामंजस्य है?

हाँ, इसमें सभी धर्मों के लिए सामंजस्य है, क्योंकि यह एक आत्मिक स्थिति को बढ़ावा देने वाली है।

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