परिचय: “ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े” एक प्रचलित हिंदी कहावत है, जिसका अर्थ यह है कि जैसे-जैसे आय बढ़ती है, वैसे-वैसे व्यक्ति को और अधिक मितव्ययी और सावधानीपूर्ण होना चाहिए।
अर्थ: इस कहावत का भाव यह है कि आर्थिक संपन्नता के साथ ही व्यक्ति को अपने खर्चों पर अधिक नियंत्रण रखना चाहिए और अधिक सोच-समझकर खर्च करना चाहिए।
उपयोग: यह कहावत अक्सर तब प्रयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति को अपनी बढ़ती आय के साथ मितव्ययिता और सावधानी के महत्व को समझाना होता है।
उदाहरण:
-> मान लीजिए एक व्यक्ति की आमदनी में अचानक वृद्धि हो जाती है। इस स्थिति में, वह यदि अपने खर्चों में अनावश्यक वृद्धि कर देता है, तो यह कहावत उसे सावधान करती है कि आय बढ़ने के साथ ही खर्चों पर नियंत्रण रखना चाहिए।
समापन: “ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े” कहावत हमें यह सिखाती है कि आर्थिक संपन्नता के साथ सावधानी और मितव्ययिता आवश्यक है। यह व्यक्ति को अपने वित्तीय स्थिति के प्रति जागरूक और सतर्क रहने की प्रेरणा देती है।
ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े कहावत पर कहानी:
एक छोटे शहर में सुरेश नामक एक युवा व्यवसायी रहता था। वह एक साधारण परिवार से आता था और उसने अपने व्यवसाय से अच्छी खासी सफलता हासिल की थी।
सुरेश का व्यवसाय दिनों-दिन फल-फूल रहा था, और उसकी आय में निरंतर वृद्धि हो रही थी। वह अपनी नई संपन्नता से उत्साहित था और उसने लक्ज़री कारें खरीदनी शुरू कर दीं, महंगे रेस्तरां में जाना शुरू किया, और अन्य महंगे शौक पाले।
एक दिन, सुरेश के एक बुजुर्ग पड़ोसी ने उसे “ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े” कहावत याद दिलाई। उन्होंने समझाया कि जैसे-जैसे उसकी आय बढ़ रही है, उसे अपने खर्चों पर अधिक नियंत्रण रखने की आवश्यकता है।
सुरेश ने समझा कि उसके बढ़ते खर्चे आने वाले समय में उसके लिए समस्या बन सकते हैं। उसने अपने खर्चों में कटौती की और अपने आय का एक हिस्सा बचत और निवेश में लगाना शुरू किया।
सुरेश की कहानी हमें सिखाती है कि आर्थिक संपन्नता के साथ सावधानी और मितव्ययिता बहुत आवश्यक हैं। यह कहावत व्यक्ति को आर्थिक रूप से जागरूक और सतर्क रहने की प्रेरणा देती है।
शायरी:
ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े,
आमदनी बढ़ती जाए, पर खर्चे भी तो बुद्धिमानी से चुने।
धन की बरसात में जब, आदमी खो बैठे अपनी समझ,
याद रखे वो इस कहावत को, जैसे शाम को याद आए रोशनी की आगोश।
दौलत बढ़े तो खुशी, पर खर्चों का ना हो ज्यादा शोर,
संभलकर चले जीवन में, जैसे राही चले संभलकर दूर।
धन की यह गाड़ी जब, चले बेलगाम राहों पर,
सोचे इंसान, क्या सच में यही है जिंदगी का सार?
अमीरी की इस दौड़ में, ना खो दें अपना वजूद,
धन के पीछे भागते, ना भूलें जीवन के असली सुख।
आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।
Hindi to English Translation of ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े – Jyun-jyun murgi moti ho, Tyun-tyun dum sikude Proverb:
Introduction: “Jyun-jyun murgi moti ho, Tyun-tyun dum sikude” is a popular Hindi proverb, meaning that as income increases, one should become more frugal and cautious.
Meaning: The essence of this proverb is that with financial prosperity, a person should exercise greater control over their expenses and spend more thoughtfully.
Usage: This proverb is often used to remind someone of the importance of frugality and caution as their income increases.
Examples:
-> Suppose a person suddenly experiences an increase in income. If they unnecessarily increase their expenses, this proverb serves as a caution that one should control their spending as their income grows.
Conclusion: The proverb “ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े” teaches us that caution and frugality are essential with financial prosperity. It inspires individuals to be mindful and vigilant about their financial situation.
Story of Jyun-jyun murgi moti ho, Tyun-tyun dum sikude Proverb in English:
In a small town, there lived a young entrepreneur named Suresh. He came from a modest family and had achieved considerable success in his business.
Suresh’s business was flourishing day by day, and his income was continuously increasing. Excited by his newfound wealth, he started buying luxury cars, dining at expensive restaurants, and indulging in other costly hobbies.
One day, an elderly neighbor reminded Suresh of the proverb, “ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े.” He explained that as Suresh’s income was growing, he needed to exercise more control over his expenses.
Suresh realized that his increasing expenses could become a problem in the future. He cut down on his expenditures and began allocating a portion of his income to savings and investments.
Suresh’s story teaches us that caution and frugality are essential with financial prosperity. This proverb inspires individuals to be financially aware and vigilant.
I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.
FAQs:
इस कहावत से हमें क्या सीख मिलती है?
इस कहावत से हमें सीख मिलती है कि सफलता और समृद्धि के साथ अक्सर अधिक जिम्मेदारियां और चुनौतियां आती हैं।
इस कहावत का व्यक्तिगत जीवन में क्या महत्व है?
व्यक्तिगत जीवन में, यह कहावत इस बात का अनुस्मारक है कि सफलता के साथ अधिक जवाबदेही और दबाव आ सकते हैं।
क्या यह कहावत व्यावसायिक जीवन में भी लागू होती है?
हां, व्यावसायिक जीवन में भी यह कहावत लागू होती है, यह दर्शाती है कि व्यवसाय की वृद्धि के साथ चुनौतियाँ और जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती हैं।
इस कहावत का आध्यात्मिक या धार्मिक संदर्भ में क्या अर्थ है?
आध्यात्मिक या धार्मिक संदर्भ में, इस कहावत का अर्थ यह हो सकता है कि भौतिक समृद्धि के साथ अक्सर आध्यात्मिक चुनौतियाँ और जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती हैं।
क्या यह कहावत युवा पीढ़ी को कुछ सिखा सकती है?
हां, युवा पीढ़ी को इस कहावत से सिखने को मिलता है कि सफलता और समृद्धि के साथ अतिरिक्त जिम्मेदारियां और चुनौतियां भी आती हैं।
“ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े” कहावत का समाज में क्या प्रभाव है?
समाज में, यह कहावत इस बात का प्रतीक है कि समृद्धि और प्रगति के साथ अक्सर समाजिक दायित्व और चुनौतियाँ भी बढ़ती हैं।
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