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अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष?, अर्थ, प्रयोग(Apna sikka khota to parkhaiya ka kya dosh?)

“अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष?” यह हिंदी कहावत अपने आप में गहरी समझ और जीवन के सच्चाई को दर्शाती है। इस कहावत का तात्पर्य यह है कि यदि हमारी चीजें या कार्य सही नहीं हैं, तो इसके लिए दूसरों को दोष देना उचित नहीं है। यह हमें आत्मनिरीक्षण की ओर प्रेरित करता है।

परिचय: इस कहावत का प्रयोग अक्सर तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को यह समझाना होता है कि अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोष देना सही नहीं है। यह कहावत व्यक्तिगत जिम्मेदारी और स्वयं की गलतियों को स्वीकार करने के महत्व पर जोर देती है।

अर्थ: कहावत का सार यह है कि यदि हमारी वस्तु या कार्य में दोष है, तो उसके लिए किसी और को दोषी ठहराना उचित नहीं है। यह हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि कई बार समस्या हमारी खुद की गलतियों से उत्पन्न होती है।

उपयोग: इस कहावत का उपयोग आमतौर पर तब होता है जब हमें किसी को यह याद दिलाना हो कि उन्हें अपनी गलतियों को स्वीकार करना चाहिए और दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए।

उदाहरण:

-> मान लीजिए किसी व्यक्ति ने एक व्यापार में निवेश किया और वह असफल रहा। इसके बाद, वह व्यक्ति बाजार की स्थिति या अन्य लोगों को इस असफलता का कारण बताता है। यहां, “अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष?” कहावत उसे यह समझाने के लिए उपयोगी हो सकती है कि असफलता के लिए खुद की गलतियों को भी समझना चाहिए।

समापन: इस कहावत से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें अपनी गलतियों और कमियों को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें सुधारने की दिशा में काम करना चाहिए। यह हमें यह भी बताता है कि हर समस्या के लिए दूसरों को दोष देना सही नहीं है और हमें खुद में सुधार की ओर ध्यान देना चाहिए।

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अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष? कहावत पर कहानी:

एक गाँव में विकास नाम का एक युवक रहता था। विकास को बहुत बढ़िया मिठाई बनाने का शौक था, और उसने अपनी मिठाई की दुकान खोलने का निर्णय लिया। उसने बड़े उत्साह से दुकान खोली, लेकिन कुछ ही महीनों में उसकी दुकान में ग्राहकों की संख्या कम होने लगी।

विकास ने इसका कारण बाजार की खराब स्थिति, लोगों की बदलती पसंद, और आस-पास की दुकानों के प्रतिस्पर्धा को माना। वह हर दिन दोस्तों और परिवार के बीच इन्हीं बातों का रोना रोता रहता।

एक दिन, उसके दादाजी ने उसे समझाया, “विकास, अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष? तुम्हें अपनी मिठाइयों की गुणवत्ता और स्वाद पर ध्यान देना चाहिए।”

विकास ने दादाजी की बात को गंभीरता से लिया और अपनी मिठाइयों में सुधार करना शुरू किया। उसने नई विधियों को आजमाया, बेहतर सामग्री का उपयोग किया, और ग्राहकों की पसंद को समझने की कोशिश की। कुछ ही समय में, उसकी दुकान पर फिर से ग्राहकों की भीड़ लगने लगी।

विकास ने समझा कि अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोष देने के बजाय खुद में सुधार करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। उसने अपनी सफलता का श्रेय अपने दादाजी की सीख और अपने परिश्रम को दिया। इस तरह, विकास ने कहावत “अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष?” के महत्व को समझा और अपने जीवन में उतारा।

शायरी:

खुद में कमी हो तो इल्जाम क्या दूसरों पर,
सिक्का खोटा है अपना, परखैया का क्या दोष।
दर्पण में खुद को देख, सवाल करो अपने आप से,
क्यों ढूँढते हो दोषी, जब गलती है अपने ही जोश।

गिर कर खुद को संभालना, यही तो है जिंदगी की राह,
दूसरों के कंधों पर ना डालो अपनी खताओं का बोझ।
हर नाकामी में छिपा है एक सबक अनमोल,
सीखो, सुधारो खुद को, यही है जीवन का सबसे बड़ा होश।

तकदीर का रोना रोकर, क्या हासिल होगा यारों,
जब खुद के हाथों में है, अपनी किस्मत का फैसला।
‘अपना सिक्का खोटा’, तो खुद ही बदलो इसे,
जिंदगी है तुम्हारी, इसकी बागडोर भी तुम्हारे हाथों में ही है।

 

अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष? शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of अपना सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष? – Apna sikka khota to parkhaiya ka kya dosh? Proverb:

The Hindi proverb “Apna sikka khota to parkhaiya ka kya dosh?” embodies profound understanding and truths of life. This proverb implies that if our things or actions are not right, it’s not just to blame others. It encourages us to introspect.

Introduction: This proverb is often used to explain to someone that blaming others for their own mistakes is not right. It emphasizes the importance of personal responsibility and acknowledging one’s own faults.

Meaning: The essence of the proverb is that if there is a flaw in our item or action, it’s not appropriate to blame others. It prompts us to consider that often problems arise from our own mistakes.

Usage: This proverb is typically used when reminding someone that they should accept their mistakes and not blame others.

Examples:

Suppose a person invested in a business and it failed. Afterwards, the person blames market conditions or other people for the failure. Here, the proverb “Apna sikka khota to parkhaiya ka kya dosh?” can be used to make him understand that he should also recognize his own mistakes in the failure.

Conclusion: This proverb teaches us that we should accept our mistakes and shortcomings and work towards improving them. It also tells us that blaming others for every problem is not right and we should focus on self-improvement.

Story of Apna sikka khota to parkhaiya ka kya dosh? Proverb in English:

In a village, there lived a young man named Vikas. Vikas had a passion for making exquisite sweets and decided to open his own sweet shop. He opened the shop with great enthusiasm, but within a few months, the number of customers started declining.

Vikas attributed this decline to the poor market conditions, changing preferences of people, and competition from nearby shops. He would often complain about these issues to his friends and family every day.

One day, his grandfather advised him, “Vikas, if your own coin is faulty, how can you blame the examiner? You should focus on the quality and taste of your sweets.”

Taking his grandfather’s advice seriously, Vikas began to improve his sweets. He experimented with new methods, used better ingredients, and tried to understand the preferences of his customers. In a short time, his shop again started attracting a crowd of customers.

Vikas realized that instead of blaming others for his mistakes, it was more important to improve himself. He credited his success to his grandfather’s wisdom and his own hard work. Thus, Vikas understood and applied the significance of the proverb “Apna sikka khota to parkhaiya ka kya dosh?” (If one’s own coin is faulty, how can the examiner be blamed?) in his life.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

क्या इस कहावत का कोई ऐतिहासिक संदर्भ है?

हाँ, इसे भारतीय साहित्य और नीति शास्त्र में बार-बार उद्धृत किया गया है।

इस कहावत का उदाहरण क्या हो सकता है?

यदि कोई व्यक्ति अपने कार्य में कोई गलती करता है और उसे उसका पहले से अवगत था, तो वह अपनी गलती को सुधारने की कोशिश करेगा।

क्या इस कहावत का कोई विपरीतार्थक उपयोग हो सकता है?

नहीं, इस कहावत का सीधा संबंध आत्मनिरीक्षण और स्वीकृति के साथ है, इसलिए इसका कोई विपरीतार्थक उपयोग नहीं हो सकता।

क्या इस कहावत का कोई साहित्यिक संदर्भ है?

हाँ, कई कहानियों और कविताओं में इस कहावत का सुझाव दिया गया है।

क्या इस कहावत का उपयोग सामाजिक संदेश देने के लिए किया जा सकता है?

हाँ, इसे सामाजिक न्याय, सही और गलत की पहचान के लिए संदेश देने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

हिंदी कहावतों की पूरी लिस्ट एक साथ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

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