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जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए, अर्थ, प्रयोग (Jo poot darbari bhaye, Dev pitar sabse gaye)

परिचय: “जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए” यह हिंदी की एक पारंपरिक कहावत है, जो व्यक्ति की सामाजिक जिम्मेदारियों और नैतिक मूल्यों के बीच के संतुलन पर बल देती है।

अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग दरबारी या विदेशी बन जाते हैं, उनका धर्म और सांसारिक कर्तव्यों के प्रति समर्पण समाप्त हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि जब व्यक्ति सत्ता या अन्य बाहरी प्रभावों में फंस जाते हैं, तो वे अपने मूल सिद्धांतों और जड़ों से दूर हो जाते हैं।

उपयोग: यह कहावत सामाजिक और नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूकता और सावधानी बरतने के संदर्भ में प्रयोग की जाती है। यह व्यक्तिगत नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारियों के महत्व को रेखांकित करती है।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक व्यक्ति जो पहले अपने समाज और परिवार के प्रति समर्पित था, लेकिन जब वह उच्च पद पर पहुंचा तो उसने अपने मूल सिद्धांतों और जड़ों को भुला दिया।

समापन: इस कहावत से हमें यह सिख मिलती है कि सत्ता और प्रभाव की खोज में अपने मूल मूल्यों और संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए। यह हमें याद दिलाती है कि व्यक्तिगत नैतिकता और सामाजिक दायित्वों का पालन करना आवश्यक है, चाहे व्यक्ति कितना भी ऊंचा क्यों न पहुंच जाए।

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जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए कहावत पर कहानी:

एक बार की बात है, एक गांव में मुनीश नाम का एक साधारण व्यक्ति रहता था। मुनीश अपने परिवार और समाज के लिए हमेशा समर्पित रहता था। उसका जीवन सादगी भरा और धार्मिक आस्थाओं से परिपूर्ण था। वह अपने पूर्वजों की परंपराओं का पालन करता और गांव के विकास में सक्रिय भागीदारी निभाता था।

समय के साथ, मुनीश की प्रतिभा और कठोर परिश्रम ने उसे राजा के दरबार में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। वह राजा का विश्वसनीय सलाहकार बन गया। परंतु, दरबार में आने के बाद, मुनीश की प्राथमिकताएं बदलने लगीं। उसने अपने गांव के लोगों और परिवार की उपेक्षा करना शुरू कर दिया। उसके लिए अब केवल राजा की खुशी और दरबारी जीवन ही महत्वपूर्ण हो गया।

एक दिन, राजा ने मुनीश को एक बड़ी जिम्मेदारी से हटा दिया। उसे अचानक महसूस हुआ कि उसने अपने असली संस्कार और समाज को भूल जाने की भारी कीमत चुकाई है। वह गांव वापस लौटा, लेकिन अब उसके अपने लोग भी उसे पहचानने से इंकार कर रहे थे। उसके अपने परिवार ने भी उसे अपनाने से मना कर दिया।

यह घटना मुनीश के लिए एक बड़ा सबक थी। उसे समझ में आया कि “जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए” का क्या अर्थ है। उसने महसूस किया कि दरबारी जीवन में उसने अपने मूल सिद्धांतों और परिवार से दूरी बना ली थी, जिसका परिणाम उसे अपने जीवन के इस पड़ाव पर भुगतना पड़ा।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सत्ता और प्रभाव में रहते हुए भी हमें अपने मूल संस्कारों और सामाजिक जिम्मेदारियों को नहीं भूलना चाहिए। अपने मूल्यों और सिद्धांतों का त्याग करके प्राप्त की गई सफलता अंततः व्यर्थ हो जाती है।

शायरी:

दरबारी रंग में रंगकर, भूले सब अपने संग,

खो दिया वो प्यार, जो था जीवन का प्रसंग।

जब सिंहासन की चाह में, खो दिए अपनों के नाम,

“जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए”, यही है जीवन का पैगाम।

जगमगाती रोशनी में, खो गई वो आत्मीयता की बात,

जब लौटे वापस घर को, ना मिला कोई साथ।

जो खोदा था गड्ढ़ा औरों के लिए, उसमें गिरे खुद ही आज,

सिखाती है जिंदगी, हर कदम पर अपनापन है राज।

इस कहानी की सीख है, सादगी में छुपा जीवन का सार,

भूले नहीं हम अपना धर्म, चाहे हों चाहे जैसे भी हालात।

 

जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए – Jo poot darbari bhaye, Dev pitar sabse gaye Proverb:

Introduction: “Jo poot darbari bhaye, Dev pitar sabse gaye” is an ancient Hindi proverb highlighting the balance between social responsibilities and ethical values.

Meaning: The proverb means that those who become courtiers or foreigners lose their religion and fail to perform worldly duties properly. It implies that when individuals get entangled in power or external influences, they drift away from their core principles and roots.

Usage: This proverb is used in the context of awareness and caution towards social and moral values. It underscores the importance of personal ethics and social responsibilities.

Examples:

-> Suppose a person who was once dedicated to his community and family, but upon reaching a high position, forgets his fundamental principles and roots.

Conclusion: This proverb teaches us not to forget our core values and ethics in the pursuit of power and influence. It reminds us that adherence to personal morality and social obligations is essential, no matter how high one rises.

Story of Jo poot darbari bhaye, Dev pitar sabse gaye Proverb in English:

Once upon a time, in a small village, lived a simple man named Munish. Munish was always dedicated to his family and society. His life was filled with simplicity and religious faith, adhering to his ancestors’ traditions and actively participating in the village’s development.

Over time, Munish’s talent and hard work earned him a significant position in the king’s court, becoming a trusted advisor. However, after entering the court, Munish’s priorities shifted. He started neglecting his village people and family. The king’s happiness and courtly life became his only concern.

One day, the king removed Munish from a major responsibility. Suddenly, Munish realized the heavy price he paid for forgetting his true values and society. He returned to the village, but now his own people refused to recognize him, and even his family rejected him.

This incident was a major lesson for Munish. He understood the meaning of “जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए” – in the courtly life, he had distanced himself from his core principles and family, which he regretted at this stage of life.

The story teaches us that even while in power and influence, we should not forget our core ethics and social responsibilities. Success gained by abandoning our values and principles ultimately proves futile.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

क्या यह कहावत केवल राजनीतिक सत्ता पर लागू होती है?

नहीं, यह कहावत किसी भी प्रकार की सत्ता या प्रभावशाली स्थिति पर लागू हो सकती है।

क्या इस कहावत का विशेष सामाजिक संदर्भ है?

हां, इस कहावत का संदर्भ सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों के प्रति व्यक्ति की जिम्मेदारी से जुड़ा हुआ है।

क्या इस कहावत का उपयोग बच्चों को सिखाने में किया जा सकता है?

हां, बच्चों को इस कहावत के माध्यम से सफलता प्राप्त करने पर भी विनम्र और जमीन से जुड़े रहने का महत्व समझाया जा सकता है।

क्या इस कहावत का कोई विदेशी समकक्ष है?

इसका अंग्रेजी में समकक्ष हो सकता है “Power corrupts; absolute power corrupts absolutely.”

क्या इस कहावत का उपयोग आत्म-प्रेरणा के लिए किया जा सकता है?

हां, इस कहावत का उपयोग व्यक्तिगत विकास और आत्म-नियंत्रण के महत्व को समझाने के लिए किया जा सकता है।

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