परिचय: “आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ” यह हिंदी कहावत जीवन की अनित्यता और भौतिक संसार की अस्थायिता पर प्रकाश डालती है, विशेषकर उन रोगों और पीड़ाओं के संदर्भ में जो जीवनभर साथ रहती हैं।
अर्थ: इस कहावत का अर्थ यह है कि जीवन में जो भी बीमारियाँ या पीड़ाएं आती हैं, वे हमारे जन्म के साथ आती हैं और हमारे मरणोपरांत ही समाप्त होती हैं। यह उन रोगों और तकलीफों का जिक्र करता है जो व्यक्ति के जीवन का अभिन्न अंग बन जाती हैं।
उपयोग: इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है, जब जीवनभर की बीमारियों या पीड़ाओं का वर्णन करना हो। यह हमें यह सिखाती है कि कुछ दुख और पीड़ाएं ऐसी होती हैं जिन्हें हम अपने जीवन में स्वीकार कर लेते हैं और वे हमारे साथ ही रहती हैं।
उदाहरण:
-> मान लीजिए एक व्यक्ति जो जन्म से ही किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। उसका जीवन इस बीमारी के साथ बीतता है और यह बीमारी उसके जीवन का एक हिस्सा बन जाती है। यहाँ, “आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ” कहावत उसके जीवन की सच्चाई को बयां करती है।
समापन: इस कहावत से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में आने वाली कुछ पीड़ाएं और बीमारियाँ ऐसी होती हैं जो हमारे साथ हमेशा रहती हैं। यह हमें यह भी सिखाती है कि जीवन की अस्थायिता को समझना और इसके साथ सहजता से जीना महत्वपूर्ण है। यह हमें जीवन के प्रति एक गहरी समझ और स्वीकार्यता की ओर ले जाती है।
आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ कहावत पर कहानी:
एक छोटे से गांव में अभय नाम का एक युवक रहता था। अभय बचपन से ही एक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित था, जिसका कोई इलाज नहीं था। उसका जीवन हर दिन इस बीमारी के साथ एक संघर्ष था। बचपन से ही उसके दोस्त और पड़ोसी उसे देखकर कहते, “बेचारा अभय, उसकी बीमारी तो जान के साथ ही आई है और जनाजे के साथ ही जाएगी।”
अभय ने कभी भी अपनी बीमारी को अपनी हिम्मत के आगे बाधा नहीं बनने दिया। वह अपनी बीमारी के साथ ही सामान्य जीवन जीता रहा। उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक छोटी सी दुकान खोली। वह अपनी बीमारी के बावजूद प्रत्येक दिन मुस्कुराते हुए अपने ग्राहकों का स्वागत करता।
एक दिन, एक बुजुर्ग व्यक्ति उसकी दुकान पर आए और अभय की कहानी सुनकर उसे प्रेरित किया। बुजुर्ग ने कहा, “तुम्हारा जीवन एक मिसाल है, अभय। तुमने दिखा दिया कि ‘आई है जान के साथ, जाएगी जनाजे के साथ’ कहावत का मतलब केवल दुख और निराशा नहीं है, बल्कि यह भी है कि कैसे व्यक्ति अपने दुखों के साथ भी जीवन का सामना कर सकता है।”
अभय ने इसे अपने जीवन का मंत्र बना लिया। वह अपनी बीमारी को अपने साहस और जीवन जीने की इच्छा के आगे छोटा समझने लगा। उसकी यह सोच और जीवन जीने की उसकी शैली ने पूरे गांव को प्रेरित किया। लोग उसे देखकर कहते, “देखो, अभय कैसे अपनी बीमारी के साथ भी जीवन को खुशी-खुशी जी रहा है।”
इस प्रकार, अभय ने सभी को यह सिखाया कि जीवन के संघर्षों का सामना करने में ही जीवन की सच्ची सुंदरता और सार्थकता निहित है। उसकी कहानी एक मिसाल बन गई कि “आई है जान के साथ, जाएगी जनाजे के साथ” वाली बीमारी भी जीवन के सफर का हिस्सा है, और इसे खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए।
शायरी:
आई है जान के साथ, जाएगी जनाजे के साथ,
इस जिंदगी की राह में, दर्द की यही तो बात।
गम के सागर में डूबे, फिर भी चलते रहे हम,
हर दर्द का सामना किया, बिन कहे, बिना लहू के नम।
जिंदगी के मेले में, दर्द का एक मेला भी है,
हर खुशी के पीछे, एक आँसू का खेला भी है।
इस दर्द की दास्तान में, जीवन की राहत छुपी,
आंसू बहाने से ही, कलेजे को आरामत छुपी।
इस सफर में अकेले हम, लेकिन साथ है दर्द का,
आंसू एक नहीं, कलेजा टूक-टूक, यही है मर्ज का।
सफर यह कठिन है, पर अंजाम की फिक्र नहीं,
जो दर्द मिला है, उसके हर आंसू की सिक्र नहीं।
जीवन की इस दौड़ में, दर्द हमारा साथी है,
आंसू एक नहीं, और कलेजा टूक-टूक, यही तो बाती है।
आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।
Hindi to English Translation of आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ – Aai hai jaan ke saath jayegi janaze ke saath Proverb:
Introduction: The Hindi proverb “Aai hai jaan ke saath jayegi janaze ke saath” reflects on the impermanence of life and the transitory nature of the material world, especially in terms of lifelong afflictions or illnesses.
Meaning: The proverb means that the illnesses or sufferings that come into our lives are there from birth and end only after death. It refers to those diseases and afflictions that become an integral part of a person’s life.
Usage: This proverb is used to describe lifelong illnesses or sufferings. It teaches us that some sorrows and pains are such that we accept them in our lives and they stay with us.
Examples:
-> Consider a person who has been afflicted with a serious illness since birth. His life passes with this illness, and it becomes a part of his existence. Here, the proverb “Aai hai jaan ke saath jayegi janaze ke saath” aptly describes the reality of his life.
Conclusion: This proverb teaches us that some pains and illnesses in life are such that they always stay with us. It also teaches us the importance of understanding the transience of life and living with ease amidst it. This proverb leads us towards a deeper understanding and acceptance of life.
Story of Aai hai jaan ke saath jayegi janaze ke saath Proverb in English:
In a small village, there lived a young man named Abhay. From childhood, Abhay suffered from a rare disease with no cure, making each day a struggle. People often remarked, “Poor Abhay, his illness came with life and will leave only with death.”
Abhay never let his illness become a barrier to his courage. He led a normal life, completed his education, and opened a small shop. Despite his illness, he greeted his customers with a smile every day.
One day, an elderly man visited his shop and was inspired by Abhay’s story. He said, “Your life is an example, Abhay. You’ve shown that the proverb ‘It came with life, will go with death’ doesn’t just signify sorrow and despair but also how one can face life despite their sufferings.”
Abhay made this his life’s mantra. He began to see his illness as minor compared to his bravery and zest for life. His perspective and approach to life inspired the entire village. People would say, “Look at Abhay, how happily he lives life despite his illness.”
Thus, Abhay taught everyone that the true beauty and meaning of life lie in facing its struggles. His story became an exemplar that illnesses that ‘come with life and leave with death’ are part of life’s journey and should be embraced wholeheartedly.
I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly
FAQs:
क्या इस कहावत का अनुसरण करना मानवीय संबंधों में महत्वपूर्ण है?
हाँ, इसका अनुसरण करना माता-पिता और परिवार संबंधों को महत्वपूर्णता देता है और इससे समर्थन और समर्पण की भावना बनी रहती है।
किस परिस्थिति में इस कहावत का अपनाना उचित है?
यह कहावत उन समयों में उपयुक्त है जब हमें अपने माता-पिता के साथ रहकर उनका साथ देना चाहिए, विशेषकर उनके बुढ़ापे की समय में।
क्या इस कहावत का आम रूप से उपयोग होता है या यह किसी विशेष परिस्थिति के लिए है?
इस कहावत का आम रूप से भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इसका महत्व बढ़ जाता है, जैसे अपने परिवार के साथी की आवश्यकता होने पर।
यह कहावत किसी के लिए प्रेरणा स्रोत हो सकती है?
इस कहावत से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अपने प्रियजनों के साथ संबंध बनाए रखने में उत्साह और समर्पण दिखाना चाहिए।
इस कहावत का इस्तेमाल किस प्रकार की स्थिति में हो सकता है?
इसे उन समयों में उपयोग कर सकते हैं जब किसी को अपने परिवार के सदस्य के साथ होने का समर्थन दिखाना हो।
हिंदी कहावतों की पूरी लिस्ट एक साथ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें