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चील के घोसले में माँस कहाँ, अर्थ, प्रयोग (Cheel ke ghosle mein maans kahan)

परिचय: “चील के घोसले में माँस कहाँ” यह हिंदी की एक प्रचलित कहावत है, जो यह बताती है कि कुछ स्थानों या परिस्थितियों में सफलता या जीवन की संभावनाएं नगण्य या नहीं के बराबर होती हैं।

अर्थ: कहावत का शाब्दिक अर्थ है कि चील के घोसले में माँस की संभावना नहीं होती, क्योंकि चील माँस को तुरंत खा जाती है। यहाँ, घोसला उन परिस्थितियों का प्रतीक है जहां जीवन या सफलता की संभावना बहुत कम होती है।

उपयोग: इस कहावत का प्रयोग तब होता है जब किसी ऐसे स्थान या परिस्थिति की ओर संकेत करना होता है जहाँ सफलता या जीवन की संभावनाएं बहुत कम होती हैं।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक छोटा सा व्यवसाय बड़ी कंपनियों के बीच संघर्ष कर रहा है। इस स्थिति में कहा जा सकता है, “चील के घोसले में माँस कहाँ”। यानी उस व्यवसाय के लिए बड़ी कंपनियों के बीच टिक पाना बहुत मुश्किल है।

समापन: इस प्रकार, “चील के घोसले में माँस कहाँ” कहावत हमें यह सिखाती है कि कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जहाँ सफलता या जीवन की संभावनाएं अत्यंत कम होती हैं। यह कहावत हमें यथार्थ का सामना करने और उन परिस्थितियों की पहचान करने की समझ देती है जहाँ संघर्ष करना व्यर्थ हो सकता है।

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चील के घोसले में माँस कहाँ कहावत पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में अनुभव नाम का एक व्यक्ति रहता था। अनुभव ने गाँव के बीचों-बीच एक छोटा सा किराना दुकान खोला था। उसका व्यवसाय अच्छा चल रहा था, लेकिन एक दिन गाँव में एक बड़ी कंपनी ने अपना मेगा स्टोर खोल दिया।

अनुभव को लगा कि वह अपनी मेहनत और ग्राहकों के प्रति अपनी सच्चाई से बड़ी कंपनी का मुकाबला कर पाएगा। लेकिन जल्द ही उसे एहसास हुआ कि ग्राहक बड़े स्टोर की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अनुभव के दोस्त ने उसे समझाया, “अनुभव, ये ‘चील के घोसले में माँस कहाँ’ वाली बात है। तुम्हारे छोटे दुकान के लिए बड़ी कंपनी से मुकाबला कर पाना बहुत मुश्किल है।”

अनुभव ने इस बात को समझते हुए, अपनी रणनीति बदली और अपने दुकान को ऐसे उत्पादों पर केंद्रित किया जो बड़े स्टोर में नहीं मिलते थे। इससे उसके व्यवसाय में फिर से उछाल आया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि “चील के घोसले में माँस कहाँ” कहावत के अनुसार, कुछ परिस्थितियों में सफलता की संभावना बहुत कम होती है। लेकिन समझदारी से निर्णय लेने पर, नए अवसरों की तलाश में सफलता संभव है।

शायरी:

चील के घोसले में माँस की बातें न कर,
यहाँ हर कोशिश रेत की तरह हाथों से फिसलती है।
जहाँ उम्मीदों की किरणें भी धूप में जलती हैं,
वहाँ हर आस का दीपक, अंधेरों में पिघलती है।

कहते हैं बदलाव आता है, मेहनत से हर बार,
पर “चील के घोसले में” सपने भी होते हैं बेकार।
जहाँ जीवन की नैया डगमगाए बिन पतवार,
वहाँ कदम बढ़ाने से पहले सोच, हर बार।

जीवन की इस चाल में, जहाँ चील भी गुरुर करे,
वहाँ हर छोटी कोशिश का, अंत बस यूँ ही गुजरे।
“सौ मन साबुन लाई” पर कोई फर्क न पड़े,
जहाँ सफलता के द्वार पर, निराशा ही ठहरे।

कहती है ये कहावत, जहाँ उम्मीद न हो आस,
वहाँ अपने सपनों को ढूंढना, होता बस व्यर्थ का विश्वास।
चील के घोसले में माँस की तलाश में जो जाए,
वो जीवन की सच्चाई से, अनजान रह जाए।

 

चील के घोसले में माँस कहाँ शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of चील के घोसले में माँस कहाँ – Cheel ke ghosle mein maans kahan Proverb:

Introduction: “Cheel ke ghosle mein maans kahan” is a well-known Hindi proverb, which implies that in certain places or situations, the chances of success or survival are negligible or virtually non-existent.

Meaning: The literal meaning of the proverb is that there is no possibility of finding meat in the nest of a kite (bird of prey), as the kite consumes it immediately. Here, the nest symbolizes those circumstances where the probability of life or success is very slim.

Usage: This proverb is used when referring to a place or situation where the chances of success or survival are extremely low.

Examples:

-> For instance, consider a small business struggling among big corporations. In this situation, one might say, “Cheel ke ghosle mein maans kahan,” meaning it is very difficult for the small business to survive among the big companies.

Conclusion: Thus, the proverb “Cheel ke ghosle mein maans kahan” teaches us that there are situations where the chances of success or survival are minimal. This proverb provides insight into recognizing those circumstances where struggling might be futile and emphasizes the importance of facing reality.

Story of Cheel ke ghosle mein maans kahan Proverb in English:

Once in a small village, there lived a man named Anubhav. Anubhav had opened a small grocery store right in the heart of the village. His business was doing well, but one day, a big company opened its mega store in the village.

Anubhav thought that he could compete with the big company through his hard work and honesty towards his customers. However, he soon realized that customers were getting attracted to the big store. Anubhav’s friend explained to him, “Anubhav, this is a situation of ‘चील के घोसले में माँस कहाँ.’ It is very difficult for your small shop to compete with the big company.”

Understanding this, Anubhav changed his strategy and focused his shop on products that were not available in the big store. This shift brought a resurgence to his business.

This story teaches us that, as per the proverb “चील के घोसले में माँस कहाँ,” there are situations where the likelihood of success is very low. However, with wise decisions and by seeking new opportunities, success can still be achievable.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

इस कहावत का प्रयोग किस प्रकार की स्थितियों में किया जा सकता है?

इस कहावत का प्रयोग ऐसी स्थितियों में किया जा सकता है जहां किसी चीज की बहुत जरूरत होती है, लेकिन वह उपलब्ध नहीं होती।

इस कहावत को किस तरह से समझाया जा सकता है?

इसे ऐसे समझाया जा सकता है कि जरूरत के समय में अक्सर सहायता या संसाधन नहीं मिल पाते।

क्या यह कहावत अन्य भाषाओं में भी प्रचलित है?

हां, इसी तरह की कहावतें अन्य भाषाओं में भी होती हैं, लेकिन शब्दों और भाव में थोड़ा अंतर हो सकता है।

इस कहावत का साहित्य में क्या स्थान है?

साहित्य में इस कहावत का प्रयोग अक्सर व्यंग्य या लोक जीवन की वास्तविकता दिखाने के लिए किया जाता है।

क्या यह कहावत आज के समय में भी प्रासंगिक है?

हां, यह कहावत आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि संसाधनों की कमी एक सामान्य मुद्दा है।

हिंदी कहावतों की पूरी लिस्ट एक साथ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

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