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करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत अर्थ, प्रयोग (Karni na kartoot, Ladne ko majboot)

परिचय: “करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत” एक हिंदी मुहावरा है जो उन व्यक्तियों के व्यवहार को उजागर करता है जो वास्तव में तो कुछ करने में सक्षम नहीं होते परंतु विवाद या झगड़े में अत्यधिक सक्रिय और आक्रामक होते हैं।

अर्थ: मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि जिनके पास करने के लिए कोई विशेष कर्म या करतूत नहीं होती, वे लड़ाई या विवाद में बहुत मजबूत होते हैं। यह उन लोगों की मानसिकता को दर्शाता है जो वास्तविक योगदान देने की बजाय झगड़ालू व्यवहार करने में अधिक रुचि रखते हैं।

प्रयोग: यह मुहावरा समाज में उन व्यक्तियों की आलोचना करने के लिए प्रयोग किया जाता है जो उत्पादक और सकारात्मक कार्यों में योगदान देने के बजाय विवादों में अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं।

उदाहरण:

एक कार्यालय में अनुज नामक व्यक्ति हमेशा काम से जी चुराता था लेकिन टीम मीटिंग्स में वह सबसे अधिक बोलता और अक्सर अनावश्यक विवादों को जन्म देता। उसके सहकर्मी अक्सर कहते, “राम तो ‘करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत’ है।”

निष्कर्ष: “करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि जीवन में वास्तविक उपलब्धियाँ और योगदान ही महत्वपूर्ण होते हैं, न कि अनावश्यक विवाद और झगड़े। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपनी ऊर्जा को सकारात्मक कार्यों में लगाएं और वास्तविक कर्म में अपनी महारत दिखाएं।

करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत मुहावरा पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में सुधीर नाम का एक व्यक्ति रहता था, जिसकी खेती की जमीन सबसे उपजाऊ नहीं थी। सुधीर के पास खेती के लिए नए विचार और तकनीकी ज्ञान की कमी थी, परंतु गाँव की सभाओं में वह हमेशा सबसे आगे रहता। वह अक्सर दूसरों की खेती के तरीकों पर आलोचना करता, लेकिन खुद कुछ करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाता था।

एक दिन गाँव में एक बड़ी सभा का आयोजन हुआ, जिसमें सभी किसानों ने अपनी-अपनी खेती की उपज के बारे में चर्चा की। सुधीर ने इस अवसर का उपयोग करते हुए अन्य किसानों की उपज पर सवाल उठाए और उनके तरीकों को निरर्थक बताया। हालांकि, जब उससे उसकी खेती के बारे में पूछा गया, तो उसके पास न तो कोई उपज थी और न ही कोई सकारात्मक योगदान।

इस परिस्थिति को देखते हुए, गाँव के मुखिया ने सुधीर से कहा, “सुधीर, तुम्हारी बातें सुनकर लगता है कि ‘करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत’। तुम विवाद में तो मजबूत हो, लेकिन काम में नहीं।”

मुखिया की बात सुनकर सुधीर को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगाने और खेती के नए तरीकों को सीखने का निश्चय किया। समय के साथ, सुधीर ने अपनी मेहनत और नवाचार से अपनी खेती को उपजाऊ बनाया और गाँव में एक सफल किसान के रूप में पहचान बनाई।

इस कहानी से “करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत” मुहावरे का संदेश स्पष्ट होता है कि केवल विवाद करने की बजाय, वास्तविक कर्म करना और सकारात्मक योगदान देना ही वास्तविक मजबूती है।

शायरी:

बातों में तूफान, करनी में शांत, यही कहानी आज की है,
कहते हैं “करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत”, यही बयानी आज की है।

लड़ाई में शेर, कर्म में खामोश, ऐसे कितने दीवाने हैं,
जिनके काम नहीं बोलते, बस जुबान से ही महान बन जाने हैं।

विवाद में वीर, कर्म में जीरो, कैसे ये दौर चला है,
जिनकी करनी खाली, उनका ही नाम गलियों में बोला है।

जो करते नहीं, बस लड़ते हैं, उनका क्या संग्राम है,
“करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत”, इसमें क्या शान है?

आओ बदलें ये तस्वीर, कर्मों से बनाएं नाम,
करनी से ही होता है महान, यही सच्चा पैगाम।

खाली बातों से नहीं, कर्मों से होती है पहचान,
“करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत”, छोड़ो ये अभिमान।

 

करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of करनी न करतूत, लड़ने को मजबूत – Karni na kartoot, Ladne ko majboot Idiom:

Introduction: “Karni na kartoot, Ladne ko majboot” is a Hindi idiom that highlights the behavior of individuals who, while not capable of doing much in reality, become highly active and aggressive in disputes or conflicts.

Meaning: The literal meaning of the idiom is that those who lack specific actions or deeds become very strong in fights or disputes. It reflects the mentality of people who prefer quarrelsome behavior over making a real contribution.

Usage: This idiom is used to criticize individuals in society who waste their energy in conflicts instead of contributing to productive and positive activities.

Example:

In an office, there was a person named Anuj who always shied away from work but was the most vocal in team meetings and often instigated unnecessary disputes. His colleagues often said, “Anuj is all about ‘Actions not deeds, strong in conflict’.”

Conclusion: The idiom “Karni na kartoot, Ladne ko majboot” teaches us that real achievements and contributions are what matter in life, not unnecessary disputes and conflicts. It motivates us to channel our energy into positive actions and to excel in our actual tasks.

Story of ‌‌Karni na kartoot, Ladne ko majboot Idiom in English:

In a small village lived a man named Sudhir, whose farming land was not the most fertile. Sudhir lacked new ideas and technical knowledge for farming, but he was always at the forefront in the village meetings. He often criticized the farming methods of others but never took steps towards doing something himself.

One day, a big assembly was organized in the village, where all the farmers discussed the yield of their farms. Sudhir used this opportunity to question the yield of other farmers and labeled their methods as pointless. However, when asked about his own farming, he had neither yield to show nor any positive contribution.

Seeing this situation, the village head said to Sudhir, “Listening to you, it seems like ‘Actions not deeds, strong in conflict’. You are strong in disputes but not in work.”

Hearing the head’s words, Sudhir realized his mistake. He decided to channel his energy in a positive direction and to learn new methods of farming. Over time, Sudhir made his farming productive through hard work and innovation and became recognized as a successful farmer in the village.

This story clearly conveys the message of the idiom “Actions not deeds, strong in conflict” that real strength lies in actual work and positive contribution, rather than just engaging in disputes.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

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