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कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना अर्थ, प्रयोग (Kabhi ghee ghana, Kabhi mutthi bhar chana, Kabhi wo bhi manaa)

परिचय: “कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना” एक प्रचलित हिंदी मुहावरा है जो जीवन में उतार-चढ़ाव और समय की अनिश्चितता को दर्शाता है। यह मुहावरा हमें यह सिखाता है कि जीवन में कभी अधिकता होती है, कभी कमी, और कभी-कभी तो वह भी नहीं मिलता जो हमें चाहिए।

अर्थ: इस मुहावरे का अर्थ है कि जीवन में कभी समृद्धि आती है जैसे कि “घी घना”, कभी मामूली संतोष होता है जैसे “मुट्ठी भर चना”, और कभी-कभी वह भी नहीं मिल पाता जिसकी हमें आशा होती है, यानी “कभी वो भी मना”।

प्रयोग: यह मुहावरा जीवन की वास्तविकता को स्वीकारने और उसके अनुसार अपने आप को ढालने की सलाह देता है। यह हमें सिखाता है कि हमें हर परिस्थिति में संतुष्ट और धैर्यवान बने रहना चाहिए।

उदाहरण:

सुभाष एक छोटे व्यवसायी थे। उनके व्यापार में कभी बहुत लाभ होता, तो कभी नुकसान। कभी उन्हें बड़े ऑर्डर मिलते, तो कभी महीनों तक कोई काम नहीं होता। सुभाष ने इस मुहावरे को अपने जीवन का मंत्र बना लिया और हर समय को समान भाव से स्वीकार किया।

निष्कर्ष: “कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना” मुहावरा हमें जीवन के प्रति एक सकारात्मक और समझदारी भरा दृष्टिकोण रखने की सीख देता है। यह हमें बताता है कि जीवन की हर स्थिति में खुश रहना और धैर्य रखना कितना महत्वपूर्ण है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों।

कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना मुहावरा पर कहानी:

एक छोटे शहर में अभय नाम का एक युवक रहता था। अभय एक प्रतिभाशाली लेखक था, लेकिन उसका जीवन आर्थिक उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था। उसकी कहानियाँ कभी-कभी पत्रिकाओं में छपतीं और कभी-कभी उसे महीनों तक कोई काम नहीं मिलता था। उसका जीवन “कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना” की तरह था।

एक साल, अभय की एक कहानी ने बड़ा पुरस्कार जीता और उसे अच्छी खासी राशि मिली। उस साल उसके जीवन में “घी घना” का समय था। अभय ने उस पैसे से अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार किया और अपनी आगे की रचनाओं पर काम करने के लिए एक छोटी सी स्टूडियो भी खरीदी।

लेकिन अगले ही साल, अभय की कोई भी कहानी पत्रिकाओं में नहीं छपी। उसकी आमदनी में गिरावट आई और वह “मुट्ठी भर चना” वाली स्थिति में पहुँच गया। उसे अपनी स्टूडियो का किराया भरने में भी कठिनाई होने लगी।

और फिर एक साल ऐसा आया जब अभय को कोई पुरस्कार नहीं मिला, न ही उसकी कोई कहानी छपी। वह “वो भी मना” की स्थिति में था। उस समय उसे अपनी स्टूडियो भी बेचनी पड़ी और वह बहुत निराश हो गया।

लेकिन अभय ने हार नहीं मानी। उसने अपनी लेखनी को और भी मजबूती से पकड़ा और नई ऊर्जा के साथ लिखना शुरू किया। धीरे-धीरे, उसकी कहानियाँ फिर से छपने लगीं और उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

अभय की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में समय के साथ परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। हमें अच्छे समय का आनंद लेना चाहिए और बुरे समय में धैर्य और संघर्ष के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए। “कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना” मुहावरा हमें जीवन की इसी सच्चाई से अवगत कराता है।

शायरी:

जिंदगी की राहों में, खुशियाँ भी हैं और गम भी,
“कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना”।

सपनों की दुनिया में, हर कदम पे इम्तिहान है,
कभी फूलों का बिस्तर, कभी काँटों का मकान है।

जीवन के इस मेले में, हर रंग का अपना फसाना,
कभी रंग बिरंगे सपने, कभी सब कुछ अफसाना।

धूप छाँव सी जिंदगी, यही तो इसकी पहचान है,
“कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना”।

कभी लब पे हँसी, कभी आँखों में पानी,
जीवन का यही किस्सा, हर इंसानी कहानी।

समय की इस धारा में, जो भी आए स्वीकार है,
जीवन की इस डगर में, हर पल इक उपहार है।

“कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना”, यही तो सिखाता,
जीवन के हर मोड़ पे, खुद से ही जूझ जाता।

इस दुनिया की बाजी में, हर किसी को अपना दाव लगाना,
“कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना”।

 

कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of कभी घी घना, कभी मुट्ठी भर चना, कभी वो भी मना – Kabhi ghee ghana, Kabhi mutthi bhar chana, Kabhi wo bhi manaa Idiom:

Introduction: “Kabhi ghee ghana, Kabhi mutthi bhar chana, Kabhi wo bhi manaa” is a prevalent Hindi idiom that illustrates the ups and downs and uncertainties of life. This idiom teaches us that in life, sometimes we have abundance, sometimes scarcity, and sometimes we don’t even get what we desire.

Meaning: The meaning of this idiom is that in life, sometimes we experience prosperity like “thick ghee,” sometimes moderate contentment like “a handful of chickpeas,” and sometimes we don’t even get what we hope for, which is signified by “sometimes even that is denied.”

Usage: This idiom advises accepting the reality of life and adapting oneself accordingly. It teaches us to remain satisfied and patient in every situation.

Example:

Subhash was a small businessman. His business sometimes made a lot of profit, and sometimes it incurred losses. Sometimes he received large orders, and sometimes he had no work for months. Subhash made this idiom the mantra of his life and accepted every moment with equanimity.

Conclusion: The idiom “Kabhi ghee ghana, Kabhi mutthi bhar chana, Kabhi wo bhi manaa” teaches us to maintain a positive and wise outlook towards life. It tells us how important it is to stay happy and patient in every situation of life, regardless of the circumstances.

Story of ‌‌Kabhi ghee ghana, Kabhi mutthi bhar chana, Kabhi wo bhi manaa Idiom in English:

In a small town lived a young man named Abhay. Abhay was a talented writer, but his life was filled with financial ups and downs. His stories were occasionally published in magazines, and sometimes he wouldn’t find any work for months. His life was like the saying, “Sometimes there’s plenty of ghee, sometimes just a handful of chickpeas, and sometimes even that’s denied.”

One year, one of Abhay’s stories won a big award, bringing him a significant amount of money. That year was a time of abundance for him, symbolized by “plenty of ghee.” With that money, Abhay improved his family’s financial situation and even bought a small studio to work on his future writings.

However, the very next year, none of Abhay’s stories were published. His income declined, leading him to a situation akin to “just a handful of chickpeas.” He started struggling even to pay his studio’s rent.

Then came a year when Abhay received no awards, nor were any of his stories published. He was in a situation where “even that was denied.” He had to sell his studio and became quite despondent.

But Abhay didn’t give up. He held onto his pen even more firmly and started writing with renewed energy. Gradually, his stories began to be published again, and his financial situation improved.

Abhay’s story teaches us that life’s circumstances change over time. We should enjoy the good times and remain patient and persevering through the bad times. The idiom “Sometimes there’s plenty of ghee, sometimes just a handful of chickpeas, and sometimes even that’s denied” makes us aware of this truth of life.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

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