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टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए, अर्थ, प्रयोग (Tukda khaye dil bahlaye, Kapde fate ghar ko aaye)

“टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए” यह हिंदी कहावत कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन करने के संघर्ष को दर्शाती है। इस कहावत के माध्यम से, हम उन परिस्थितियों को समझ सकते हैं जहाँ काम केवल बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करता है और कोई अतिरिक्त लाभ नहीं देता।

परिचय: इस कहावत में, ‘टुकड़ा खाना’ का अर्थ है बस इतना काम करना जिससे भूख मिट सके, और ‘कपड़े फाटे घर को आना’ का अर्थ है कि काम से इतनी कमाई नहीं होती कि नए कपड़े तक खरीद सकें।

अर्थ: इस कहावत का तात्पर्य यह है कि कुछ लोगों का काम केवल उनकी दैनिक जरूरतों को पूरा करता है और उन्हें अतिरिक्त सुविधाएं या आराम प्रदान नहीं करता।

उपयोग: इस कहावत का प्रयोग आर्थिक संकट और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कठिन परिश्रम करने वाले लोगों की स्थिति को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक दिहाड़ी मजदूर दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन उसकी कमाई सिर्फ उसके और उसके परिवार के खाने की जरूरतों को ही पूरा कर पाती है। उसके पास नए कपड़े खरीदने की भी सामर्थ्य नहीं होती।

समापन: यह कहावत हमें यह सिखाती है कि कई बार जीवन में केवल जरूरतों की पूर्ति होती है और अतिरिक्त सुख-सुविधाओं की आस नहीं रहती। यह हमें जीवन के कठिन संघर्षों और उनके प्रबंधन के बारे में भी जागरूक करता है।

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टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए कहावत पर कहानी:

एक छोटे से गांव में विकास नाम का एक गरीब किसान रहता था। विकास बहुत मेहनती और ईमानदार था, लेकिन उसकी किस्मत हमेशा साथ नहीं देती थी। उसके पास एक छोटी सी जमीन थी, जिस पर वह अपनी पूरी मेहनत से खेती करता था।

दिन भर के कठिन परिश्रम के बाद भी, विकास की कमाई सिर्फ इतनी होती थी कि वह और उसका परिवार अपना पेट भर सकें। “टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए” – यह कहावत विकास की जिंदगी पर बिल्कुल सटीक बैठती थी। उसके पास नए कपड़े खरीदने तक की सामर्थ्य नहीं थी।

विकास हमेशा सोचता था कि एक दिन उसकी किस्मत बदलेगी और वह अपने परिवार को बेहतर जीवन प्रदान कर पाएगा। लेकिन वह दिन कभी नहीं आया। उसे यह समझ आ गया कि कुछ लोगों की जिंदगी में कड़ी मेहनत के बावजूद केवल बुनियादी जरूरतें ही पूरी होती हैं और अतिरिक्त सुविधाओं की आशा व्यर्थ है।

विकास की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में हर किसी की अपनी-अपनी संघर्ष होते हैं और हर कोई उन संघर्षों से अपने तरीके से जूझता है। यह कहानी उन लोगों के लिए एक सबक है जो हमेशा जीवन में अधिक की आस रखते हैं।

शायरी:

टुकड़ा खाए दिल बहलाए, जीवन का यही तराना है,
कपड़े फाटे घर को आए, हर दिन यही अफसाना है।

मेहनत की रोटी, सपनों की बातें,
फटे कपड़ों में छुपी, जिंदगी की सौगातें।

कठिन है राहें, पर इरादे हैं बुलंद,
जेब खाली हो, पर हौसले हैं चुनौतियों से मुकाबला करने को मुंद।

सपने वो नहीं जो नींद में आए,
सपने वो हैं जो नींद से जगाए।

जिंदगी की इस दौड़ में, हर किसी की अपनी कहानी है,
गरीबी में भी मुस्कान, ये जिंदगी की निशानी है।

 

टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए – Tukda khaye dil bahlaye, Kapde fate ghar ko aaye Proverb:

The Hindi proverb “Tukda khaye dil bahlaye, Kapde fate ghar ko aaye” illustrates the struggle of living life in difficult circumstances. Through this proverb, we understand situations where work only fulfills basic necessities and provides no extra benefits.

Introduction: In this proverb, ‘eating a piece (टुकड़ा खाना)’ means doing just enough work to satisfy hunger, and ‘returning home with torn clothes (कपड़े फाटे घर को आना)’ signifies earning so little that one cannot even afford new clothes.

Meaning: The proverb implies that for some people, work only meets their daily needs and does not provide any additional comforts or luxuries.

Usage: This proverb is used to express the situation of people who work hard to meet economic crises and fulfill necessities.

Examples:

-> Consider a daily wage laborer who works day and night, but his earnings are only enough to feed himself and his family. He does not have the means to buy new clothes.

Conclusion: This proverb teaches us that often in life, only necessities are met, and there is no hope for extra comforts. It also makes us aware of the hard struggles of life and how to manage them.

Story of Tukda khaye dil bahlaye, Kapde fate ghar ko aaye Proverb in English:

In a small village, there lived a poor farmer named Vikas. Vikas was hardworking and honest, but his luck never seemed to favor him. He owned a small piece of land where he diligently worked.

Despite his hard labor throughout the day, Vikas’s earnings were just enough to feed himself and his family. The proverb “टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए” perfectly described Vikas’s life. He couldn’t even afford to buy new clothes.

Vikas always hoped that one day his fortune would change and he would be able to provide a better life for his family. However, that day never came. He realized that in some people’s lives, despite hard work, only basic needs are met, and the hope for additional comforts is futile.

Vikas’s story teaches us that everyone has their own struggles in life and each person battles these struggles in their own way. This story is a lesson for those who always hope for more in life.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

इस कहावत का उपयोग किन परिस्थितियों में किया जा सकता है?

यह कहावत तब इस्तेमाल की जा सकती है जब कोई अस्थायी खुशियों में संतोष पाता है लेकिन अपनी कठिनाइयों का सामना करने से बच नहीं सकता।

क्या इस कहावत का शाब्दिक अर्थ लिया जाता है?

इस कहावत का शाब्दिक अर्थ नहीं लिया जाता; यह प्रतीकात्मक रूप से अस्थायी संतोष और वास्तविक कठिनाइयों के बीच के अंतर को दर्शाता है।

“टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए” कहावत का महत्व क्या है?

इस कहावत का महत्व यह है कि यह हमें सिखाती है कि जीवन में छोटी खुशियाँ तो मिल सकती हैं, लेकिन वास्तविकता का सामना करना अनिवार्य है।

इस कहावत का उपयोग समाज में कैसे किया जा सकता है?

समाज में इस कहावत का उपयोग व्यक्तियों को यह सिखाने के लिए किया जा सकता है कि छोटी-छोटी खुशियों का आनंद लेना चाहिए, लेकिन जीवन की वास्तविक और बड़ी चुनौतियों को भी स्वीकार करना जरूरी है।

क्या इस कहावत का शिक्षाप्रद महत्व है?

हां, इस कहावत का शिक्षाप्रद महत्व यह है कि यह हमें यथार्थवादी रहने और जीवन की अस्थिरताओं के प्रति तैयार रहने की सीख देती है।

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