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पर उपदेश कुशल बहुतेरे, अर्थ, प्रयोग(Par updesh kushal bahutere)

परिचय: “पर उपदेश कुशल बहुतेरे” एक प्रसिद्ध हिंदी कहावत है, जो दूसरों को सलाह देने की आसानी और खुद उस पर अमल करने की कठिनाई पर प्रकाश डालती है।

अर्थ: इस कहावत का सीधा अर्थ है कि लोग दूसरों को तो बहुत आसानी से सलाह दे देते हैं, परंतु जब बात खुद उन्हीं सिद्धांतों पर चलने की आती है, तो वे पीछे हट जाते हैं।

उपयोग: इस कहावत का इस्तेमाल आमतौर पर तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति दूसरों को उपदेश तो खूब देता है, परंतु स्वयं उन उपदेशों का पालन नहीं करता।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक व्यक्ति लोगों को स्वास्थ्य का महत्व समझाता है और व्यायाम करने की सलाह देता है, परंतु खुद व्यायाम नहीं करता। ऐसे में इस कहावत का प्रयोग किया जा सकता है।

समापन: इस कहावत से हमें सिखने को मिलता है कि जो उपदेश हम दूसरों को देते हैं, उस पर खुद भी अमल करना चाहिए। यह हमें आत्मनिरीक्षण की ओर प्रेरित करती है और सिखाती है कि केवल उपदेश देना ही काफी नहीं होता, बल्कि उन्हें जीवन में उतारना भी जरूरी है।

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पर उपदेश कुशल बहुतेरे कहावत पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में एक विद्वान पंडित जी रहते थे। वे हर सुबह गाँव के लोगों को अच्छे कर्म और नैतिकता के बारे में उपदेश दिया करते थे। पंडित जी हमेशा कहते, “ईमानदारी और कर्मठता जीवन के मूल आधार हैं।” गाँव वाले उनकी बातें ध्यान से सुनते और उनका सम्मान करते।

लेकिन, पंडित जी की असली परीक्षा तब हुई जब गाँव में अकाल पड़ा। खेत सूख गए और अनाज की कमी हो गई। इस कठिन समय में, पंडित जी ने गाँव वालों से आपस में सहयोग करने का आह्वान किया। हालांकि, जब उनके अपने खेत में थोड़ा अनाज बचा था, तो वे उसे किसी के साथ साझा करने के बजाय छिपाने लगे।

इसे देखकर गाँव के एक युवक ने पंडित जी से कहा, “पंडित जी, आप तो हमें हमेशा सहयोग और ईमानदारी की सीख देते हैं, फिर आप खुद क्यों इस पर अमल नहीं कर रहे हैं?”

पंडित जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने तुरंत अपना अनाज गाँव वालों के साथ साझा कर दिया और कहा, “तुम सही कह रहे हो, मैंने जो उपदेश दिए उन पर खुद अमल नहीं किया। ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’, लेकिन खुद उन पर चलना ही असली चुनौती है।”

इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि केवल उपदेश देना ही पर्याप्त नहीं है; असली विद्वान वही होता है जो अपनी बातों पर खुद भी अमल करता है। अपने उपदेशों को जीवन में उतारना ही वास्तविक ज्ञान का प्रमाण है।

शायरी:

उपदेश बाँटे दुनिया भर में, खुद पर न लागू होय,

“पर उपदेश कुशल बहुतेरे”, सच्चाई यही कहीं खोय।

ज्ञान की बातें आसमान पर, पर जमीन पे कदम न टिके,

जो सिखाया दूसरों को, क्यों खुद वही फिसल दिखे।

बातों की मिठास में, सब खो जाते हैं भूल,

खुद की छाया में छिपे, अपने उपदेश के शूल।

दुनिया दीवानी बनी रहे, ज्ञान की रोशनी का संग,

पर सच्चाई का आइना, खुद को भी दिखाए रंग।

उपदेशों का कारवाँ, चलता रहे यूँ ही बहुत दूर,

पर ज्ञान की असली राह, खुद से ही हो शुरू।

 

पर उपदेश कुशल बहुतेरे शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of पर उपदेश कुशल बहुतेरे – Par updesh kushal bahutere Proverb:

Introduction: “Par updesh kushal bahutere” is a famous Hindi proverb that highlights the ease of advising others and the difficulty of following the same principles oneself.

Meaning: The proverb directly means that people easily advise others but hesitate to follow those same principles themselves. It points out the hypocrisy in the behavior of people who preach but do not practice.

Usage: This proverb is commonly used when someone advises others but fails to apply the same teachings to their own life.

Examples:

For instance, if a person advises others about the importance of health and exercising regularly, but doesn’t exercise themselves, this proverb can be aptly used.

Conclusion: This proverb teaches us that the advice we give to others should also be applied to our own lives. It encourages self-reflection and teaches that merely advising is not enough; it’s important to incorporate those teachings into our own lives as well.

Story of Par updesh kushal bahutere Proverb in English:

In a small village lived a learned man named ‘Pandit Ji’. Every morning, he would preach to the villagers about good deeds and morality. Pandit Ji always said, “Honesty and diligence are the foundations of life.” The villagers listened to him attentively and respected him.

However, Pandit Ji’s true test came when a famine struck the village. The fields dried up and there was a shortage of grains. During these hard times, Pandit Ji urged the villagers to cooperate with each other. Yet, when he had a little grain left in his own fields, he started hiding it instead of sharing.

Seeing this, a young man from the village confronted Pandit Ji, “You always teach us about cooperation and honesty, then why aren’t you practicing it yourself?”

Pandit Ji realized his mistake. He immediately shared his grains with the villagers and said, “You are right, I didn’t practice what I preached. ‘Others are skilled at preaching,’ but the real challenge is to follow those teachings ourselves.”

This story teaches us that merely preaching is not enough; a true scholar is one who also applies his teachings to his own life. Implementing one’s teachings in life is the true testament to wisdom.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

कहावत में ‘पर उपदेश’ का क्या मतलब है?

‘पर उपदेश’ का मतलब है अच्छा या उपयुक्त सलाह या उपदेश।

क्या इस कहावत में एक समृद्धि का संकेत है?

हाँ, यह कहावत सुझाव देती है कि अच्छी सलाह से समृद्धि हो सकती है।

इस कहावत का इस्तेमाल किस प्रकार की जीवन शैली में किया जा सकता है?

इस कहावत को जीवन में सही दिशा में बढ़ने के लिए सही सलाह प्राप्त करने की महत्ता को बताने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

क्या यह कहावत केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही लागू होती है, या सामाजिक स्तर पर भी?

यह कहावत व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर दोनों पर लागू हो सकती है, क्योंकि अच्छी सलाह से समृद्धि समृद्धि का सामाजिक संबंध हो सकता है।

इस कहावत में सलाह देने वाले की क्या भूमिका है?

इस कहावत में सलाह देने वाले को महत्त्वपूर्ण और कुशल बताया गया है, जिससे यह सिद्ध होता है कि सलाह देने वाले की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।

हिंदी कहावतों की पूरी लिस्ट एक साथ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

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