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ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध, अर्थ, प्रयोग (Jyun nakte ko arsi, Hot dikhaye krodh)

परिचय: “ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध” एक प्रचलित हिंदी कहावत है, जिसका शाब्दिक अर्थ है कि जब किसी दोषी व्यक्ति को उसकी गलतियां दिखाई जाती हैं, तो वह बहुत बुरा मानता है।

अर्थ: इस कहावत का तात्पर्य यह है कि जब किसी व्यक्ति की खामियों या गलतियों को उजागर किया जाता है, तो वह अक्सर गुस्से में या अपमानित महसूस करता है।

उपयोग: यह कहावत तब प्रयोग में आती है जब किसी को उनकी गलतियों का आईना दिखाया जाता है और वे इस पर क्रोधित या असहज महसूस करते हैं।

उदाहरण:

-> मान लीजिए एक व्यक्ति ने कोई गलती की और जब उसे उसकी गलती का अहसास कराया गया, तो उसने क्रोध में उत्तर दिया या बहाने बनाने लगा।

समापन: “ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध” कहावत हमें यह सिखाती है कि अक्सर लोग अपनी गलतियों को स्वीकार करने में हिचकिचाते हैं और जब उनकी गलतियां उजागर होती हैं, तो वे क्रोधित या अपमानित महसूस करते हैं। यह हमें आत्म-चिंतन और स्वीकार्यता की ओर प्रेरित करती है।

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ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध कहावत पर कहानी:

एक छोटे गाँव में अभय नाम का एक युवक रहता था। वह अक्सर छोटी-मोटी शरारतें करता और फिर उन्हें छिपाने की कोशिश करता।

अभय ने एक दिन अपने दोस्त विकास की साइकिल बिना पूछे ले ली और उसे कहीं छोड़ दिया। जब विकास ने अपनी साइकिल के बारे में पूछा, तो अभय ने अनजान बनने की कोशिश की।

गाँव के एक बुजुर्ग ने अभय को विकास की साइकिल ले जाते देख लिया था। जब उन्होंने अभय को इस बारे में बताया, तो अभय ने क्रोध में उत्तर दिया। उसने कहा कि उसे गलत मत समझो और बुजुर्ग की बातों को अनसुना कर दिया।

इस घटना से अभय को “ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध” कहावत का सही अर्थ समझ आया। उसे एहसास हुआ कि जब उसकी गलती उजागर हुई, तो उसे बुरा लगा और वह क्रोधित हो उठा।

अभय की कहानी हमें यह सिखाती है कि अक्सर हम अपनी गलतियों को स्वीकार करने में हिचकिचाते हैं और जब वे उजागर होती हैं, तो हम क्रोधित या अपमानित महसूस करते हैं। यह हमें आत्म-चिंतन और स्वीकार्यता की ओर प्रेरित करता है।

शायरी:

ज्यों नकटे को आरसी, दिखाए जब कोई आईना,

क्रोध में भर जाता है मन, खुद की गलती का ना होता कोई बहाना।

जब कोई उंगली उठाए, अपनी खताओं पर मेरे,

दिल में उठती है हलचल, जैसे तूफान आए बेरहम समंदर में।

आईना दिखाता है सच, पर सच से मुँह मोड़ लेता हूँ,

अपनी ही गलतियों से अंजान, बना फिरता हूँ मैं खुद से खफा।

गलती का आईना जब भी सामने आए,

क्यों जिगर में आग लगे, क्यों दिल बेचैनी से घबराए?

सीख ले, ऐ दिल, हर उस गलती से,

जिसे आईना दिखाए, और तू क्रोध में जले।

 

ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध – Jyun nakte ko arsi, Hot dikhaye krodh Proverb:

Introduction: “Jyun nakte ko arsi, Hot dikhaye krodh” is a prevalent Hindi proverb, which literally means that when the faults of a guilty person are pointed out, they feel very bad.

Meaning: The proverb implies that when someone’s flaws or mistakes are highlighted, they often react with anger or feel humiliated.

Usage: This proverb is used when someone’s mistakes are brought to light, and they respond with anger or discomfort.

Examples:

-> Suppose a person makes a mistake, and when they are made aware of their error, they respond angrily or start making excuses.

Conclusion: The proverb “ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध” teaches us that people often hesitate to accept their mistakes and feel angry or humiliated when their faults are exposed. It encourages self-reflection and acceptance.

Story of Jyun nakte ko arsi, Hot dikhaye krodh Proverb in English:

In a small village lived a young man named Abhay. He often indulged in minor mischiefs and then tried to conceal them.

One day, Abhay took his friend Vikas’s bicycle without asking and left it somewhere else. When Vikas inquired about his bicycle, Abhay pretended to be ignorant.

An elderly man in the village had seen Abhay taking Vikas’s bicycle. When he confronted Abhay about it, Abhay responded in anger. He insisted that he was misunderstood and disregarded the elderly man’s words.

This incident made Abhay realize the true meaning of the proverb “ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध.” He understood that when his mistake was exposed, he felt bad and reacted angrily.

Abhay’s story teaches us that we often hesitate to acknowledge our mistakes, and when they are revealed, we feel angry or humiliated. It encourages self-reflection and acceptance.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

“ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध” कहावत से हमें क्या सीखने को मिलता है?

इस कहावत से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें अपनी कमियों को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें दूसरों पर नहीं थोपना चाहिए।

क्या यह कहावत केवल नकारात्मक संदर्भ में ही इस्तेमाल की जाती है?

हाँ, आमतौर पर यह कहावत नकारात्मक संदर्भ में ही इस्तेमाल की जाती है, जब किसी व्यक्ति को अपनी कमियों का एहसास होते हुए भी वह दूसरों पर दोषारोपण करता है।

“ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध” कहावत का आत्म-विश्लेषण में क्या महत्व है?

आत्म-विश्लेषण में इस कहावत का महत्व यह है कि यह हमें आत्म-मंथन करने और अपनी गलतियों को स्वीकार करने का महत्व समझाती है, बजाय दूसरों पर दोष मढ़ने के।

इस कहावत का समाज में क्या प्रभाव है?

समाज में, यह कहावत इस बात की ओर इशारा करती है कि लोगों को अपनी कमियों के प्रति जागरूक होना चाहिए और उन्हें दूसरों पर नहीं थोपना चाहिए।

क्या यह कहावत नेतृत्व और प्रबंधन के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है?

जी हां, नेतृत्व और प्रबंधन में यह कहावत महत्वपूर्ण है क्योंकि एक अच्छे नेता को अपनी कमियों को स्वीकारना और उन पर काम करना चाहिए, बजाय दोषारोपण करने के।

“ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध” कहावत का व्यक्तिगत विकास में क्या योगदान है?

व्यक्तिगत विकास में इस कहावत का योगदान यह है कि यह हमें आत्म-स्वीकृति और आत्म-सुधार की ओर प्रेरित करती है, जो व्यक्तिगत विकास के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

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