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जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन, अर्थ, प्रयोग (Jo gnwar pingal padhe, Teen vastu se heen, boli, chali, baithki, leen vidhata cheen)

“जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन” यह हिंदी की एक प्रचलित कहावत है, जो कहती है कि केवल शिक्षा प्राप्त कर लेने भर से किसी व्यक्ति की सामाजिक कमियां दूर नहीं होतीं। इस कहावत का संबंध उन गुणों से है जो व्यक्तित्व को समृद्ध बनाते हैं।

परिचय: यह कहावत उस स्थिति की ओर इशारा करती है जब कोई अशिक्षित व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर लेता है, लेकिन फिर भी उसके व्यवहार में कुछ मूलभूत सामाजिक कमियां बनी रहती हैं।

अर्थ: इस कहावत का मतलब है कि शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद कुछ लोग सामाजिक तौर पर संवाद, चाल-ढाल और बैठकी (मीटिंग या सम्मेलन में बैठने का तरीका) में कमी रखते हैं।

उपयोग: इस कहावत का प्रयोग अक्सर उन परिस्थितियों में किया जाता है जहाँ व्यक्ति की शिक्षा और उसके व्यवहारिक गुणों में असंगति दिखाई देती है।

उदाहरण:

-> मान लीजिए एक गांव का व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है लेकिन जब वह शहर में लोगों से मिलता-जुलता है, तो उसके बोलने की शैली, चलने का तरीका और बैठने की मुद्रा में सामाजिक असंगति नजर आती है।

समापन: इस कहावत से हमें यह सिखने को मिलता है कि केवल शिक्षा ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि व्यक्तित्व के विकास में सामाजिक गुणों का होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। एक संपूर्ण व्यक्तित्व के लिए शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक योग्यता का होना भी आवश्यक है।

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जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन कहावत पर कहानी:

एक गांव में अमन नाम का एक युवक रहता था। अमन पढ़ाई में बहुत तेज था और उसने अपने गांव के स्कूल से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। वह हमेशा से ही एक जाने-माने व्यक्ति बनना चाहता था। पढ़ाई पूरी करने के बाद, उसने शहर में जाकर एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर ली।

अमन जब भी कंपनी की मीटिंग्स में जाता, तो वहां के लोग उसकी बोली, उसकी चाल-ढाल और बैठकी को देखकर थोड़ा अजीब महसूस करते। अमन भले ही पढ़ा-लिखा था, लेकिन उसे शहर की सामाजिक आदतों का ज्ञान नहीं था। उसके बोलने का तरीका, चलने की शैली और बैठने की मुद्रा में वह स्थानीयता का प्रभाव लिए हुए था।

एक दिन उसके एक सहकर्मी ने उससे कहा, “अमन, तुम बहुत होशियार हो, लेकिन तुम्हें अपने बोलने, चलने और बैठने की शैली पर भी काम करना चाहिए। इससे तुम्हारी सामाजिक छवि और भी बेहतर बनेगी।”

अमन ने अपने सहकर्मी की बात सुनी और समझ गया कि “जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन” कहावत का क्या अर्थ है। उसने अपनी इन कमियों पर काम करना शुरू किया और धीरे-धीरे वह न केवल एक पढ़े-लिखे व्यक्ति के रूप में, बल्कि एक सुसंस्कृत और सामाजिक रूप से सजग व्यक्ति के रूप में भी उभरा।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक व्यवहार और आदतें भी व्यक्ति के समग्र विकास में महत्वपूर्ण होती हैं। व्यक्तित्व की खूबसूरती केवल ज्ञान से नहीं, बल्कि व्यवहार की सजीवता से भी आती है।

शायरी:

गंवार जो पढ़ ले पिंगल, फिर भी रहे अनजान,

बोली, चाली, बैठकी में, छिपे रहते गांव के निशान।

शिक्षा तो है ज्ञान की धारा, पर व्यवहार भी है जरूरी,

बिना सामाजिक अदब के, हर शिक्षा अधूरी।

जो सीखा है पुस्तकों से, वो तो है बस शुरुआत,

सामाजिक गुणों का अभ्यास, बनाता जीवन को सुगम और साफ़।

बोली में मिठास हो, चाल में गरिमा,

जीवन की इस पाठशाला में, यही सबसे बड़ा रहस्यमय विमा।

पढ़ाई का मोल है अपनी जगह, पर व्यवहार भी तोल,

“जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन”, यही संसार का मोल।

 

जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन – Jo gnwar pingal padhe, Teen vastu se heen, boli, chali, baithki, leen vidhata cheen Proverb:

“Jo gnwar pingal padhe, Teen vastu se heen, boli, chali, baithki, leen vidhata cheen” is a Hindi proverb that suggests that merely acquiring education does not eradicate a person’s social shortcomings. This proverb is related to the qualities that enrich one’s personality.

Introduction: This proverb points to situations where an uneducated person obtains education but still retains some fundamental social deficiencies in their behavior.

Meaning: The proverb means that despite gaining education, some people lack in social aspects such as communication, mannerisms, and posture (in meetings or gatherings).

Usage: This proverb is often used in scenarios where there’s a disparity between a person’s education and their behavioral traits.

Examples:

-> Consider a person from a village who acquires higher education, but when he interacts with people in the city, his way of speaking, walking, and sitting posture shows a social mismatch.

Conclusion: This proverb teaches us that education alone is not enough; social qualities are equally important in the development of one’s personality. For a well-rounded personality, it is essential to have both education and social competencies

Story of Jo gnwar pingal padhe, Teen vastu se heen, boli, chali, baithki, leen vidhata cheen Proverb in English:

In a village lived a young man named Aman. Aman was academically brilliant and had received higher education from a school in his village. He always aspired to be a well-known person. After completing his studies, he moved to the city and secured a job in a big company.

Whenever Aman attended company meetings, people there found his speech, demeanor, and posture a bit odd. Although Aman was educated, he lacked knowledge of urban social customs. His manner of speaking, walking style, and sitting posture still carried the influence of his rural upbringing.

One day, a colleague said to him, “Aman, you are very smart, but you should also work on your way of speaking, walking, and sitting. It will enhance your social image.” Aman listened to his colleague and realized the meaning of the proverb “जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन.” He began working on these shortcomings and gradually evolved not just as an educated person but also as a cultured and socially aware individual.

This story teaches us that along with education, social behavior and habits are also crucial for a person’s holistic development. The beauty of a personality comes not only from knowledge but also from the liveliness of one’s behavior.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

इस कहावत का समाज में क्या प्रभाव है?

समाज में इस कहावत का प्रभाव यह है कि यह हमें याद दिलाती है कि अचानक प्राप्त ज्ञान या धन से व्यक्ति का स्वभाव और सादगी प्रभावित हो सकती है।

यह कहावत व्यक्तिगत विकास पर कैसे लागू होती है?

व्यक्तिगत विकास पर यह कहावत लागू होती है क्योंकि यह दर्शाती है कि ज्ञान की अचानक प्राप्ति व्यक्ति के मूल स्वभाव और व्यवहार को बदल सकती है।

इस कहावत का शिक्षा क्षेत्र में क्या महत्व है?

शिक्षा क्षेत्र में इस कहावत का महत्व यह है कि यह हमें बताती है कि ज्ञान के साथ-साथ व्यक्तित्व विकास पर भी ध्यान देना चाहिए।

इस कहावत का आत्म-सुधार में क्या उपयोग है?

आत्म-सुधार में इस कहावत का उपयोग यह है कि यह हमें सिखाती है कि ज्ञान अर्जित करते समय हमें अपनी मूल पहचान और सरलता को नहीं खोना चाहिए।

इस कहावत का नैतिक शिक्षा में क्या महत्व है?

नैतिक शिक्षा में इस कहावत का महत्व यह है कि यह हमें सिखाती है कि सफलता और ज्ञान के साथ विनम्रता और सादगी को भी बनाए रखना चाहिए।

यह कहावत युवा पीढ़ी को कैसे प्रेरित कर सकती है?

युवा पीढ़ी को यह कहावत प्रेरित कर सकती है कि वे ज्ञान और सफलता प्राप्त करते समय अपनी सादगी और वास्तविकता को न खोएं।

इस कहावत का आधुनिक समाज में क्या प्रभाव हो सकता है?

आधुनिक समाज में इस कहावत का प्रभाव यह हो सकता है कि यह लोगों को याद दिलाए कि सफलता और ज्ञान के साथ अपनी मौलिकता और सादगी को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

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