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जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है, अर्थ, प्रयोग (Jeebh aur thaili ko band hi rakhna achcha hai)

परिचय: “जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है” यह हिंदी की एक प्रसिद्ध कहावत है, जो वाणी और धन के संयमित उपयोग की महत्ता को बताती है।

अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि बिना जरूरत के अधिक बोलने और अनावश्यक खर्च करने से बचना चाहिए। यह सिखाती है कि जीभ (वाणी) और थैली (धन) का संयमित उपयोग बड़े लाभ लाता है।

उपयोग: इस कहावत का इस्तेमाल तब किया जाता है जब हमें यह बताना होता है कि सोच-समझकर बोलना और खर्च करना जरूरी है।

उदाहरण:

-> मान लीजिए, एक व्यक्ति जो बिना सोचे-समझे हमेशा बहुत बोलता है और बेतहाशा खर्च करता है, वह अक्सर मुश्किलों में फंस जाता है। वहीं, एक अन्य व्यक्ति जो अपनी बातों और खर्चों पर संयम रखता है, वह अधिक सुखी और संतुष्ट रहता है।

समापन: “जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है” कहावत हमें यह सिखाती है कि वाणी और धन का संयमित उपयोग न केवल हमारे स्वयं के लिए लाभकारी होता है, बल्कि यह हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में भी सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसलिए, हमें अपनी बातों और खर्चों पर सोच-विचार कर संयम बरतना चाहिए।

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जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है कहावत पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में अनुज और विकास नाम के दो दोस्त रहते थे। अनुज बहुत बातूनी था और अपने धन का उपयोग बिना सोचे-समझे करता था। वहीं, विकास बहुत सोच-समझकर बोलता और अपनी कमाई का उपयोग करता था।

एक दिन गाँव में मेला लगा। अनुज ने बिना सोचे-समझे मेले में ढेर सारे पैसे खर्च कर दिए और फिजूल की बातों में उलझकर गाँव के कुछ लोगों से झगड़ा कर बैठा। वहीं, विकास ने समझदारी से अपने पैसे खर्च किए और सभी से मिलजुल कर रहा।

जब मेला समाप्त हुआ, तो अनुज पाया कि उसके पास पैसे नहीं बचे और उसके रिश्ते भी गाँव वालों के साथ खराब हो गए। इसके विपरीत, विकास ने न केवल पैसे बचाए बल्कि गाँव वालों का सम्मान भी प्राप्त किया।

इस घटना से अनुज को समझ में आया कि “जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है।” उसे एहसास हुआ कि बिना सोचे-समझे बोलने और खर्च करने से नुकसान ही होता है। वहीं, विकास की समझदारी ने उसे गाँव में सम्मान और आर्थिक स्थिरता दोनों दिलाई।

निष्कर्ष:

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीभ और थैली का संयमित उपयोग ही हमें सच्ची सफलता और सम्मान दिलाता है। बिना सोचे-समझे बोलने और खर्च करने से हमेशा नुकसान होता है।

शायरी:

बोली और खर्च का, जब संयम से नाता,

सोच समझकर चलो, जीवन में यही सौगाता।

जिसने जीभ को रखा, हमेशा बंधन में,

उसके शब्दों में छुपी, समझदारी की चमक।

थैली की मोहरें, जब बरतीं जाती हैं सोच समझकर,

तब जीवन के रास्ते, लगते हैं और भी सुगम।

बोलो कम, सुनो ज्यादा, सीखो जीवन की राह,

जो खर्चा समझदारी से, वो रहता है सदा साथ।

शब्दों की ताकत है, और धन का है असर,

जब दोनों संभाले जाएँ, तो जीवन में है खुशहाली का सफर।

 

जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है – Jeebh aur thaili ko band hi rakhna achcha hai Proverb:

Introduction: The Hindi proverb “Jeebh aur thaili ko band hi rakhna achcha hai” emphasizes the importance of being prudent in speech and spending. It suggests that talking less and spending judiciously can lead to significant benefits.

Meaning: The proverb literally means that it is better to keep one’s tongue (speech) and purse (spending) controlled. It teaches that restrained use of speech and money brings greater advantages.

Usage: This proverb is used to convey that it’s essential to speak and spend thoughtfully. It’s often cited to advise against unnecessary talk and wasteful expenditure.

Examples:

-> Consider a person who speaks without thinking and spends extravagantly. They often find themselves in trouble. In contrast, another person who exercises restraint in their words and spending tends to live a more contented and happy life.

Conclusion: The proverb “जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है” teaches us that controlled use of words and finances is not only beneficial for ourselves but also positively impacts our social and economic life. Therefore, we should practice restraint and thoughtfulness in our speech and expenditures.

Story of Jeebh aur thaili ko band hi rakhna achcha hai Proverb in English:

In a small village lived two friends, Anuj and Vikas. Anuj was talkative and spent his money without much thought. Vikas, on the other hand, was careful with his words and expenditures.

One day, a fair was held in the village. Anuj spent lavishly without thinking and got into arguments with some villagers over trivial matters. Vikas spent his money wisely and interacted amicably with everyone.

At the end of the fair, Anuj found himself out of money and in strained relationships with the villagers. In contrast, Vikas not only saved money but also earned the respect of the villagers.

This incident made Anuj realize that “it’s better to keep one’s tongue and purse tightly controlled.” He understood that thoughtless speaking and spending only lead to loss. Meanwhile, Vikas’s prudence brought him respect and financial stability in the village.

Conclusion:

This story teaches us that restrained use of words and money brings true success and respect. Thoughtless speaking and spending invariably lead to losses.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

इस कहावत का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

सामाजिक जीवन में यह कहावत संयमित और जिम्मेदार व्यवहार की महत्ता को बताती है।

इस कहावत का व्यक्तिगत विकास में क्या महत्व है?

व्यक्तिगत विकास में इस कहावत का महत्व यह है कि यह हमें अपनी बातों और खर्चों पर संयम रखने की शिक्षा देती है।

क्या यह कहावत बच्चों को सिखाई जा सकती है?

हाँ, बच्चों को यह कहावत सिखाई जा सकती है ताकि वे अपनी बातों और खर्चों में संयमित रहें।

क्या इस कहावत का उपयोग संघर्ष समाधान में किया जा सकता है?

हाँ, इस कहावत का उपयोग संघर्ष समाधान में संयमित बातचीत और विवेकपूर्ण निर्णयों के लिए किया जा सकता है।

क्या इस कहावत का उपयोग सांस्कृतिक संवाद में किया जा सकता है?

हाँ, इस कहावत का उपयोग सांस्कृतिक संवाद में भी किया जा सकता है, जिससे लोग सोच-समझकर बात करें और व्यर्थ खर्च से बचें।

इस कहावत के माध्यम से क्या संदेश मिलता है?

इस कहावत के माध्यम से यह संदेश मिलता है कि जीवन में संयम और वित्तीय जागरूकता रखना महत्वपूर्ण है, जिससे सुखी और संतुलित जीवन जीया जा सके।

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