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चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का अर्थ, प्रयोग (Chit bhi meri pat bhi meri, Anta mere baap ka)

परिचय: हिंदी भाषा समृद्ध है अनेक कहावतों और मुहावरों से, जो हमारी रोजमर्रा की बातचीत में जीवंतता लाते हैं। “चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का” एक ऐसी ही लोकप्रिय कहावत है, जिसका प्रयोग अक्सर व्यंग्यात्मक स्थितियों में किया जाता है।

अर्थ: इस कहावत का सीधा अर्थ है कि जीत भी मेरी हो और हार भी मेरी हो, साथ ही सभी लाभ मेरे हों। यह उन परिस्थितियों को दर्शाता है जहाँ व्यक्ति कोई भी परिणाम हो, अपने पक्ष में ही सब कुछ रखना चाहता है।

प्रयोग: यह कहावत आमतौर पर तब प्रयोग की जाती है जब कोई व्यक्ति ऐसी स्थिति में होता है जहाँ वह सभी लाभ अपने लिए चाहता है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। यह उन लोगों पर व्यंग्य करती है जो सभी लाभ अपने लिए चाहते हैं और दूसरों के हितों की परवाह नहीं करते।

उदाहरण:

राजनीति में अक्सर इस कहावत का प्रयोग देखा जा सकता है, जहाँ नेता चाहते हैं कि हर परिस्थिति में सिर्फ उनकी ही जीत हो। व्यापार में भी जब कोई व्यापारी हर सौदे में केवल अपना फायदा देखता है, तब भी इस कहावत का प्रयोग होता है।

निष्कर्ष: “चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का” एक महत्वपूर्ण कहावत है जो हमें स्वार्थी होने के नकारात्मक पहलुओं की ओर इशारा करती है। यह हमें यह सिखाती है कि हमें हमेशा दूसरों के हितों का भी ध्यान रखना चाहिए और संतुलन बनाकर चलना चाहिए। इस प्रकार, यह कहावत हमारी भाषा और संस्कृति के अमूल्य खजाने में एक अनमोल रत्न है।

Hindi Muhavare Quiz

चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का कहावत पर कहानी:

एक बार की बात है, एक गाँव में सुरेंद्र नाम का एक धनी व्यापारी रहता था। सुरेंद्र की एक आदत थी कि वह हर बात में, हर सौदे में सिर्फ अपना फायदा ही देखता था। उसका मानना था कि व्यापार में या तो आप जीतते हैं या हारते हैं, और उसे हमेशा जीतना ही था।

एक दिन, गाँव में एक मेला लगा। सुरेंद्र ने इसे व्यापार का एक बड़ा अवसर माना और एक खेल का आयोजन किया। खेल था सिक्का उछालने का, जिसमें गाँव वालों को सिक्के के चित या पट आने पर दाँव लगाना था। सुरेंद्र ने घोषणा की कि अगर सिक्का चित आता है तो जीतने वाले को दुगुना पैसा मिलेगा, लेकिन अगर पट आता है तो वह पैसा सुरेंद्र का होगा।

गाँव वाले उत्साहित हो गए और खेल में भाग लेने लगे। लेकिन जल्द ही उन्हें एहसास हुआ कि सुरेंद्र ने खेल के नियम अपने पक्ष में बनाए थे। सिक्के के हर बार पट आने पर वह सारा पैसा अपने पास रख लेता और चित आने पर भी वह किसी न किसी बहाने से इनाम नहीं देता।

इससे गाँव वाले नाराज हो गए और उन्होंने सुरेंद्र का बहिष्कार कर दिया। उन्होंने सुरेंद्र को समझाया कि जीवन में सब कुछ सिर्फ अपने लिए नहीं होता, और दूसरों के हितों का भी ख्याल रखना चाहिए।

सुरेंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने गाँव वालों से माफी माँगी। उसने समझा कि “चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का” जैसी सोच न सिर्फ स्वार्थी है बल्कि यह अन्यायपूर्ण भी है।

इस कहानी से यह सीख मिलती है कि जीवन में संतुलन और न्याय का महत्व होता है, और किसी भी स्थिति में सिर्फ अपने फायदे के बारे में सोचना उचित नहीं है।

शायरी:

चित भी मेरी, पट भी मेरी, ये कैसा दांव है भाई,

जहाँ हर जीत मेरी, हर हार तेरी, ये कैसी लड़ाई।

खेल में भी न्याय का तकाजा होता है,

जहाँ हर बाजी में इंसाफ का राजा होता है।

खुद की जीत की खातिर, दूसरों को हारा न करो,

जिंदगी के इस खेल में, सबको साथी बना कर चलो।

अंटा भले ही तेरे बाप का, पर खेल तो सबका है,

जीतने की चाह में, ये मत भूलो कि जीवन सबका है।

जीत की इस दौड़ में, ना इंसानियत को हारने दो,

चित भी हो या पट भी, पर प्यार को ना मारने दो।

 

चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का – Chit bhi meri pat bhi meri, Anta mere baap ka Proverb:

Introduction: The Hindi language is enriched with numerous proverbs and idioms, which bring vitality to our everyday conversations. “चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का” is one such popular proverb, often used in satirical situations.

Meaning: The literal meaning of this proverb is that both victory and defeat should be mine, and all the benefits should be mine as well. It reflects situations where an individual wants everything in their favor, regardless of the outcome.

Usage: This proverb is commonly used when a person is in a situation where they want all the benefits for themselves, regardless of the circumstances. It satirizes those who only seek their own benefits without considering the interests of others.

Example:

In politics, this proverb is often seen in use where leaders want victory in every situation. Similarly, in business, when a merchant looks for their benefit in every deal, this proverb is applicable.

Conclusion: “चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का” is an important proverb that points towards the negative aspects of being selfish. It teaches us that we should always consider the interests of others and maintain a balance. Thus, this proverb is a precious gem in the treasure of our language and culture.

Story of ‌‌Chit bhi meri pat bhi meri, Anta mere baap ka Proverb in English:

Once upon a time, there was a wealthy merchant named Surendra in a village. Surendra had a habit of looking for his own benefit in everything, in every deal he made. He believed that in business, you either win or lose, and he always wanted to win.

One day, a fair was organized in the village. Surendra saw this as a great business opportunity and organized a game. The game was about tossing a coin, where the villagers had to bet on heads or tails. Surendra announced that if the coin landed on heads, the winner would get double the money, but if it landed on tails, the money would belong to Surendra.

The villagers were excited and started participating in the game. However, they soon realized that Surendra had rigged the game in his favor. Every time the coin landed on tails, he kept all the money, and even when it landed on heads, he would find excuses not to pay the reward.

This angered the villagers, and they boycotted Surendra. They explained to him that life is not just about oneself, and one should also consider the interests of others.

Surendra realized his mistake and apologized to the villagers. He understood that thinking like “चित भी मेरी पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का” (I win both ways, and the stake is my father’s) is not only selfish but also unjust.

This story teaches us the importance of balance and justice in life, and that it’s not right to think only of one’s own benefits in any situation.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

FAQs:

क्या यह कहावत किसी नकारात्मक भावना को दर्शाती है?

हां, यह कहावत अक्सर लालच और स्वार्थपरता की भावनाओं को दर्शाती है।

क्या इस कहावत का कोई साहित्यिक संदर्भ है?

हां, इस कहावत का उपयोग कई साहित्यिक कृतियों में किया गया है जहां यह व्यक्ति के स्वार्थ और लोभ को दर्शाता है।

इस कहावत को व्यावहारिक जीवन में कैसे लागू किया जा सकता है?

इस कहावत का उपयोग व्यक्ति के ऐसे व्यवहार को समझने और आलोचना करने के लिए किया जा सकता है जो हमेशा अपने हितों को प्राथमिकता देता है।

क्या यह कहावत किसी खास उम्र या पीढ़ी के लिए है?

नहीं, यह कहावत सभी उम्र और पीढ़ियों के लिए लागू होती है।

इस कहावत का विद्यालय और शिक्षा में क्या योगदान है?

विद्यालय और शिक्षा में इस कहावत का उपयोग नैतिक शिक्षा के अंतर्गत किया जा सकता है, जिसमें बच्चों को स्वार्थ और लोभ से बचने और न्यायसंगत व्यवहार करने का महत्व समझाया जाता है।

हिंदी कहावतों की पूरी लिस्ट एक साथ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

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