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आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे, अर्थ, प्रयोग(Aadhi chod sari ko dhave, Aadhi rahe na sari paave)

“आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे” एक प्रसिद्ध हिंदी कहावत है, जिसका उपयोग अक्सर उस स्थिति में किया जाता है जब कोई व्यक्ति मौजूदा लाभ या अवसर को छोड़कर किसी अनिश्चित या अधिक लाभकारी चीज के पीछे भागता है और अंत में दोनों ही खो देता है।

परिचय: इस कहावत में “आधी” का मतलब है मौजूदा अवसर या संसाधन, और “सारी” का मतलब है बड़ा या अधिक लाभ देने वाला अवसर। यह कहावत हमें सिखाती है कि हमें मौजूदा अवसरों की कद्र करनी चाहिए और अनिश्चितताओं के पीछे नहीं भागना चाहिए।

अर्थ: इस कहावत का अर्थ है कि जो लोग मौजूदा लाभ को छोड़कर अधिक लाभ की अस्थिर आशा में भागते हैं, वे अक्सर दोनों ही खो देते हैं।

उपयोग: इस कहावत का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को लालच या अत्यधिक महत्वाकांक्षा के कारण हानि होती है।

उदाहरण:

-> एक व्यापारी जो अपने मौजूदा ग्राहकों को छोड़कर केवल नए बाजारों में विस्तार पर ध्यान देता है, अंत में वह अपने पुराने ग्राहकों को भी खो देता है और नए बाजार में भी सफल नहीं हो पाता।

समापन: इस प्रकार, “आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे” कहावत हमें लालच और अनिश्चितताओं के पीछे न भागने की सीख देती है। यह कहावत हमें याद दिलाती है कि हमें मौजूदा संसाधनों और अवसरों की कद्र करनी चाहिए और उन्हें समझदारी से उपयोग करना चाहिए।

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आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे कहावत पर कहानी:

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में प्रेमचंद्र नामक एक किसान रहता था। उसके पास एक छोटा सा खेत था, जिसमें वह मेहनत से फसल उगाता था। एक वर्ष उसकी फसल बहुत अच्छी हुई, और वह उसे बाजार में बेचने की योजना बना रहा था।

इसी दौरान, प्रेमचंद्र को पड़ोस के गाँव में एक बड़े व्यापारी से एक आकर्षक प्रस्ताव मिला। व्यापारी ने उसे दोगुनी कीमत पर फसल खरीदने का वादा किया, लेकिन शर्त यह थी कि प्रेमचंद्र को अपनी पूरी फसल उसे बेचनी होगी। प्रेमचंद्र ने अपने स्थानीय बाजार में फसल बेचने का विचार त्याग दिया और उस व्यापारी के वादे पर भरोसा कर लिया।

कुछ दिनों बाद, जब प्रेमचंद्र अपनी फसल लेकर उस व्यापारी के पास पहुँचा, तो उसे पता चला कि व्यापारी ने उसे धोखा दिया था। व्यापारी ने न तो फसल खरीदी और न ही उसे दोगुनी कीमत दी। प्रेमचंद्र वापस अपने गाँव लौटा और उसने पाया कि स्थानीय बाजार में अब उसकी फसल की कोई मांग नहीं थी, क्योंकि बाजार में पहले ही दूसरे किसानों की फसल बिक चुकी थी।

इस घटना ने प्रेमचंद्र को सिखाया कि “आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे” – यानी कि मौजूदा अवसरों को छोड़कर अनिश्चित लाभ के पीछे भागने से अक्सर दोनों ही हाथ से जाते हैं। उसे समझ में आया कि जो कुछ भी हमारे पास है, उसकी कद्र करनी चाहिए और लालच में आकर बड़े और अनिश्चित लाभ के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।

शायरी:

आधी छोड़ दौड़े जब हम, सारी की आस में,

खो बैठे जो था हाथ में, बाजी उल्टी पास में।

हर ख्वाब में बड़े सपने, हर आस में उम्मीदें नई,

जो है पास में खो दिया, लालच में आकर हमने यही।

जो अपना था, वो छोड़ दिया, अनजान राहों में,

लालच के इस खेल में, हार गए अपनी बाहों में।

आधी की कदर न की, सारी का ख्वाब संजोया,

अंत में खाली हाथ, अपनी ही नजरों में खोया।

ये जीवन की रीत है, आधी और सारी की बात,

जो है अपने हाथ में, उसी की होती सबसे बड़ी सौगात।

 

आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।


Hindi to English Translation of आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे – Aadhi chod sari ko dhave, Aadhi rahe na sari paave Proverb:

The proverb “Aadhi chod sari ko dhave, Aadhi rahe na sari paave” is a famous Hindi saying often used in situations where a person abandons current benefits or opportunities to chase after something uncertain or more profitable, only to end up losing both in the end.

Introduction: In this proverb, “आधी” refers to the current opportunity or resource, and “सारी” refers to a larger or more profitable opportunity. This proverb teaches us to appreciate present opportunities and not to chase uncertainties.

Meaning: The meaning of this proverb is that people who leave their current benefits in pursuit of greater, unstable gains often end up losing both.

Usage: This proverb is used when a person suffers losses due to greed or excessive ambition.

Examples:

-> A trader who ignores his existing customers to focus only on expanding into new markets ends up losing both his old customers and fails to succeed in the new markets.

Conclusion: Thus, the proverb “Aadhi chod sari ko dhave, Aadhi rahe na sari paave” teaches us not to chase after greed and uncertainties. It reminds us to value our current resources and opportunities and to use them wisely.

Story of Aadhi chod sari ko dhave, Aadhi rahe na sari paave Proverb in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a farmer named Premchandra. He had a small farm where he worked hard to grow crops. One year, his harvest was exceptionally good, and he planned to sell it in the market.

During this time, Premchandra received an attractive offer from a big trader in a neighboring village. The trader promised to buy the crop at double the price, but the condition was that Premchandra had to sell his entire harvest to him. Premchandra abandoned the idea of selling his crops in the local market and trusted the trader’s promise.

A few days later, when Premchandra went to the trader with his harvest, he found out that the trader had deceived him. The trader neither bought the crop nor paid him double the price. When Premchandra returned to his village, he discovered that there was no demand for his crop in the local market anymore, as other farmers had already sold their produce.

This incident taught Premchandra the meaning of “Aadhi chod sari ko dhave, Aadhi rahe na sari paave” – meaning that by chasing uncertain gains and abandoning present opportunities, one often ends up losing both. He realized the importance of valuing what one has and not getting greedy for bigger, uncertain gains.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs

इस कहावत का उपयोग किस प्रकार से हो सकता है?

यह कहावत उस समय उपयोगी हो सकती है जब किसी को समझाना या प्रेरित करना हो कि किसी कार्य को पूरा मन, भावना, और समर्पण से करना चाहिए।v

क्या इस कहावत का कोई विचार विमर्श है?

जी हां, इस कहावत का विचार विमर्श किया जा सकता है और लोग इसे अपने जीवन में अनुसरण करके सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

इस कहावत का सामाजिक संदेश क्या है?

इस कहावत का सामाजिक संदेश है कि किसी कार्य को हाफ़-हाफ़ में नहीं करना चाहिए, बल्कि पूरा समर्पण और संवेदनशीलता के साथ करना चाहिए।

इस कहावत का इतिहास क्या है?

कहावतों का इतिहास सामान्यत: अज्ञात होता है, लेकिन इस कहावत का उपयोग भारतीय साहित्य और जीवन में बहुत ही पुराने समय से हो रहा है।

इस कहावत को कैसे अपनाया जा सकता है?

इस कहावत को अपनाने के लिए व्यक्ति को अपने कार्यों में पूरी तरह से समर्पित रहना चाहिए और किसी भी कार्य में हाफ़-हाफ़ नहीं करना चाहिए।

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