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समरथ को नहिं दोष गोसाईं अर्थ, प्रयोग (Samrath ko nahi dosh gosai)

परिचय: “समरथ को नहिं दोष गोसाईं” यह मुहावरा समाज में शक्तिशाली लोगों के आचरण पर एक विचारशील टिप्पणी है। इसका प्रयोग अक्सर उन परिस्थितियों में होता है जहां शक्तिशाली लोगों द्वारा किए गए कार्यों की आलोचना नहीं की जाती, भले ही वे कार्य अनुचित हों।

अर्थ: मुहावरे का सीधा अर्थ है कि जो व्यक्ति शक्तिशाली या समर्थ होता है, उसे उसके कर्मों के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता, चाहे वह कितने भी गलत कार्य क्यों न करे।

प्रयोग: यह मुहावरा व्यंग्यात्मक रूप से समाज में असमानता और अन्याय पर प्रकाश डालता है। इसका उपयोग उन स्थितियों में किया जाता है जहां शक्तिशाली लोगों द्वारा किए गए अनुचित कामों को नज़रअंदाज किया जाता है या उन्हें स्वीकार किया जाता है।

उदाहरण:

एक बड़ी कंपनी के CEO ने कुछ अनैतिक निर्णय लिए, जिससे कंपनी को तो लाभ हुआ लेकिन समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। फिर भी, उनकी स्थिति और प्रभाव के कारण उन्हें कोई दोष नहीं दिया गया। इस स्थिति को “समरथ को नहिं दोष गोसाईं” मुहावरे के माध्यम से समझा जा सकता है।

निष्कर्ष: “समरथ को नहिं दोष गोसाईं” मुहावरा हमें समाज में विद्यमान शक्ति के असमान वितरण और उसके परिणामों के प्रति सचेत करता है। यह हमें याद दिलाता है कि न्याय और समानता की दिशा में काम करना हम सभी की जिम्मेदारी है। हमें अपने समाज में शक्ति के संतुलन को समझने और उसे सुधारने की दिशा में प्रयास करना चाहिए, ताकि हर व्यक्ति को न्याय मिल सके।

समरथ को नहिं दोष गोसाईं मुहावरा पर कहानी:

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में दो व्यापारी रहते थे। एक का नाम था सुभाष और दूसरे का नाम था मुनीश। सुभाष बहुत धनी था और उसके पास बहुत सारी जमीन और संपत्ति थी। वहीं, मुनीश एक साधारण व्यापारी था जो अपनी मेहनत और ईमानदारी से अपना जीवन यापन करता था।

एक दिन, गाँव में एक बड़ा मेला लगा। सुभाष ने अपनी संपत्ति और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए मेले में सबसे बड़ी और सबसे अच्छी जगह पर अपनी दुकान सजाई। वहीं, मुनीश को मेले में एक छोटी सी जगह मिली, जो बहुत ही अनुपयुक्त थी।

मेले के दिन, सुभाष ने अपने सामान की कीमतें बहुत बढ़ा दीं। उसने सोचा कि चूंकि उसकी दुकान सबसे अच्छी जगह पर है, लोग मजबूरी में उससे ही सामान खरीदेंगे। वहीं, मुनीश ने अपने सामान की कीमतें न्यायसंगत रखीं। लेकिन, क्योंकि उसकी दुकान एक अनुपयुक्त जगह पर थी, बहुत कम लोग उसके पास आए।

मेले के बाद, गाँव के लोगों ने सुभाष के अनुचित व्यवहार के बारे में शिकायत की। लेकिन, सुभाष के पास सत्ता और प्रभाव होने के कारण, किसी ने भी उसे कुछ नहीं कहा। इस परिस्थिति को देखकर मुनीश ने बस इतना कहा, “समरथ को नहिं दोष गोसाईं।”

इस कहानी के माध्यम से, हमें यह सिखने को मिलता है कि समाज में अक्सर शक्तिशाली और प्रभावशाली लोग अपने कर्मों के लिए दोषी नहीं ठहराए जाते, चाहे वे कितने ही गलत क्यों न हों। यह मुहावरा हमें शक्ति के असमान वितरण और उसके प्रभावों के प्रति सचेत करता है।

शायरी:

शक्तिशाली की गलियों में, न्याय की बातें खो जाती हैं,

“समरथ को नहिं दोष गोसाईं”, ये कहानियां रोज सुनाई देती हैं।

जहाँ सत्ता की चादर ओढ़, हर गलती माफ हो जाती है,

वहीं इंसाफ की राह में, आम आदमी की आवाज दब जाती है।

बड़े-बड़े महलों में, अन्याय के दीप जलते हैं,

सच्चाई की राहों में, कितने ही सपने पलते हैं।

दुनिया कहती है शक्तिशाली को, कभी दोष नहीं,

पर दिल के कोने में, यह बात किसी को रोष नहीं।

इस दौर में समरथ की, सच्चाई को भी तराजू में तोला जाता है,

“समरथ को नहिं दोष गोसाईं”, ये सबक फिर से बोला जाता है।

लेकिन याद रखना, हर रात की सुबह होती है,

अंधेरे में भी, उम्मीद की किरण रोशन होती है।

 

समरथ को नहिं दोष गोसाईं शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of समरथ को नहिं दोष गोसाईं – Samrath ko nahi dosh gosai Idiom:

Introduction: The idiom “समरथ को नहिं दोष गोसाईं” is a thoughtful commentary on the conduct of powerful individuals in society. It is often used in contexts where the actions of powerful people are not criticized, even if those actions are unjust.

Meaning: The direct meaning of the idiom is that a person who is powerful or capable is not held accountable for their actions, no matter how wrong those actions may be.

Usage: This idiom sarcastically highlights inequality and injustice in society. It is used in situations where the inappropriate actions of powerful people are ignored or accepted.

Example:

The CEO of a large company made some unethical decisions that benefited the company but had a negative impact on society. However, due to his position and influence, he was not blamed. This situation can be understood through the idiom “समरथ को नहिं दोष गोसाईं.”

Conclusion: The idiom “समरथ को नहिं दोष गोसाईं” alerts us to the unequal distribution of power in society and its consequences. It reminds us that it is everyone’s responsibility to work towards justice and equality. We should strive to understand and improve the balance of power in our society so that justice can be served to every individual.

Story of ‌‌Samrath ko nahi dosh gosai Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived two merchants. One was named Subhash, and the other was Munish. Subhash was very wealthy, owning a lot of land and property. On the other hand, Munish was an ordinary merchant who made his living through hard work and honesty.

One day, a big fair was held in the village. Using his wealth and influence, Subhash decorated his shop in the largest and best location at the fair. Munish, however, was allotted a small, unsuitable spot for his shop at the fair.

On the day of the fair, Subhash significantly raised the prices of his goods. He thought that since his shop was in the best location, people would be forced to buy from him. Munish, on the other hand, kept his prices reasonable. But because his shop was in an unsuitable location, very few people came to him.

After the fair, the villagers complained about Subhash’s inappropriate behavior. However, because Subhash had power and influence, no one said anything to him. Witnessing this situation, Munish simply said, “The powerful are not blamed.”

Through this story, we learn that often in society, powerful and influential people are not held accountable for their actions, no matter how wrong they may be. This idiom alerts us to the unequal distribution of power and its effects.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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