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ऊँट के मुँह में जीरा, अर्थ, प्रयोग(Oont ke munh mein jeera)

ऊँट और जीरा का चित्र, ऊँट के मुहं में जीरा, गाँव का तालाब निर्माण, बुजुर्ग Mohan का संवाद

मुहावरे का अर्थ:“ऊँट के मुहं में जीरा” मुहावरे का अर्थ होता है कि किसी बड़े समस्या या जरूरत के सामने छोटी सी सहायता या उपाय। जैसे ऊँट बहुत बड़ा होता है, और जीरा उसके मुकाबले में बहुत छोटा होता है, बहुत अधिक में से बहुत कम मिलने को”ऊँट के मुहं में जीरा” समझा जाता है।

उदाहरण:

-> जब राम ने अपनी नई कार की कीमत सुनाई, तो राज ने कहा, “तुम्हारे लिए तो यह रकम ‘ऊँट के मुहं में जीरा’ जैसी है।”

->सुनील ने अपने बड़े व्यवसाय में से सिर्फ पाँच हजार रुपये दान में दिए, जो उसके लिए ‘ऊँट के मुहं में जीरा’ जैसा था।

विस्तार में: इस मुहावरे का प्रयोग वहीं होता है जहाँ पर कोई व्यक्ति या संस्था अपनी सामर्थ्य या संपत्ति के मुकाबले में बहुत ही अधिक सामर्थ्यवान हो और फिर भी उसने अपेक्षित रूप से कम सहायता या योगदान किया हो। इसे समझाने के लिए हम ऊँट और जीरा के माध्यम से इसकी तुलना करते हैं, जहाँ पर ऊँट बड़ा होता है और जीरा उसके मुकाबले में छोटा।

ऊँट के मुहं में जीरा मुहावरा पर कहानी:

सुरेंद्र नामक व्यक्ति एक छोटे से गाँव में रहता था। वह गाँव के सबसे समृद्ध व्यक्तियों में से एक था। वह अपने बड़े-बड़े खेतों में अनेक किस्म की फसलें उगाता था और उसका व्यापार भी गाँव के बाहर तक था।

एक दिन, गाँव में अच्छी बारिश होने की सम्भावना थी। गाँववाले बारिश के पानी को संचारित करने के लिए एक नया तालाब बनाने का निर्णय लिया। सभी ने यह तय किया कि वे संयुक्त रूप से धन और सामग्री देंगे ताकि तालाब बन सके।

जब सभी गाँववालों ने अपना योगदान दिया, सुरेंद्र ने भी अपना योगदान दिया, लेकिन वह सिर्फ पाँच सौ रुपये ही दिए। गाँववालों के लिए यह राशि उसकी संपत्ति और समृद्धि के मुकाबले में बहुत ही कम थी।

मोहन, गाँव के एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा, “सुरेंद्र जी, आपके लिए यह राशि तो ‘ऊँट के मुहं में जीरा’ जैसी है। आप तो हमारे गाँव के सबसे समृद्ध लोगों में से एक हैं। क्या आप थोड़ा और योगदान नहीं कर सकते?”

सुरेंद्र ने इस पर विचार किया और उसे समझ में आया कि उसने कितनी अल्प राशि दी थी। वह फिर से अपना योगदान बढ़ाया और गाँव के विकास में अपनी सहायता दी।

इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि हमें हमारी सामर्थ्यानुसार और समाज के हित में योगदान करना चाहिए, न कि हमारी सामर्थ्य के मुकाबले में अल्प।

शायरी:

ऊँट के मुहं में जीरा, सोचो तो सही,

विरली खुशियों में भी छुपा दर्द की गहराई।

विशाल समुंदर में भी होता है एक बूँद का अहम,

जैसे जीवन में छोटी-सी उम्मीद का जीवन-संग्रहम।

 

ऊँट के मुहं में जीरा शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

The idiom “ऊँट के मुहं में जीरा” translates to “Oont ke munh mein jeera”:

Meaning:  A meagre assistance or solution in front of a vast problem or need. The analogy is drawn from the vastness of a camel compared to the minuscule size of a cumin seed. In a situation where there’s a lot and very little is provided or contributed, it’s likened to “Oont ke munh mein jeera.”

Examples:

-> When Ram disclosed the price of his new car, Raj commented, “For you, this amount is like ‘Oont ke munh mein jeera’.”

-> Sunil donated only five thousand rupees from his large business, which for him was like ‘Oont ke munh mein jeera’.

Usage: This idiom is used in scenarios where an individual or institution, despite having vast capabilities or wealth, contributes or assists in a way that is disproportionately small. The comparison is illustrated using a camel and a cumin seed, where the camel is vast, and the cumin seed is tiny in comparison.

Story of ‌‌Oont ke munh mein jeera Idiom:

Surendra was a resident of a small village. He was among the most prosperous individuals in the village. He cultivated various types of crops in his vast fields and also had a business that extended beyond the village boundaries.

One day, there was an anticipation of good rainfall in the village. The villagers decided to construct a new pond to harvest the rainwater. Everyone agreed to collectively contribute funds and materials to make the pond a reality.

When all the villagers gave their contributions, Surendra too made his contribution. However, he gave only five hundred rupees. For the villagers, this amount was paltry compared to his wealth and prosperity.

Mohan, an elderly man from the village remarked, “Mr. Surendra, for you, this amount is just ‘Oont ke munh mein jeera’. You are one of the wealthiest individuals in our village. Can’t you contribute a bit more?”

Upon reflection, Surendra realized the meagerness of his contribution. He then increased his donation and aided in the village’s development.

This story teaches us that we should contribute according to our capabilities and in the interest of society, not less than what we are capable of.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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