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नाक पर मक्खी न बैठने देना, अर्थ, प्रयोग(Naak par makhi na baithne dena)

परिचय: “नाक पर मक्खी न बैठने देना” यह एक लोकप्रिय हिंदी मुहावरा है, जिसका प्रयोग अक्सर उन व्यक्तियों के लिए किया जाता है, जो खुद को बहुत बड़ा समझते हैं और अन्यों की तुलना में खुद को श्रेष्ठ मानते हैं।

अर्थ: जब कोई व्यक्ति अपनी महत्वकांक्षाओं या अहंकार में इतना डूबा होता है कि वह अन्य लोगों को अपने पास आने या अपनी उचाई तक पहुँचने की अनुमति नहीं देता, तो उस स्थिति को इस मुहावरे के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

प्रयोग:

-> अभय सफलता पाने के बाद इतना अहंकारी हो गया कि अब वह अपने पुराने दोस्तों से मिलने से भी कतराता है, मानो उसने “नाक पर मक्खी न बैठने दिया” हो।

-> पारुल अपनी नई नौकरी के चलते अपने पुराने साथियों को भूल चुकी है, जैसे उसने “नाक पर मक्खी न बैठने दिया” हो।

विशेष टिप्पणी: यह मुहावरा हमें यह सिखाता है कि सफलता, समृद्धि या उचाई पाने के बाद भी हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। अहंकार से दूर रहकर ही वास्तविक सफलता प्राप्त होती है।

निष्कर्ष: “नाक पर मक्खी न बैठने देना” यह मुहावरा हमें यह समझाता है कि अहंकार में डूबने से हम अपने आस-पास के लोगों और समाज से दूर हो जाते हैं। इसलिए, हमें सदा विनम्र और सजीव रहना चाहिए।

Hindi Muhavare Quiz

नाक पर मक्खी न बैठने देना मुहावरा पर कहानी:

एक गाँव था जिसमें प्रथम नामक एक युवक रहता था। वह गाँव का सबसे अधिक पढ़ा-लिखा और समझदार माना जाता था। किसी भी समस्या का समाधान प्रथम के पास ही होता था। इसी कारण, उसकी इज्जत और पहचान गाँव में काफी बढ़ गई थी।

लेकिन समय के साथ, प्रथम में अहंकार घुसने लगा। उसने सोचा कि वह अब गाँव में सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ व्यक्ति है। उसकी यह सोच उसकी हर बात और हरकत में दिखाई पड़ने लगी। गाँववाले जब भी किसी समस्या के लिए उसके पास जाते, वह उन्हें तुच्छ समझकर उपेक्षा करता। उसका अहंकार इतना बढ़ गया कि वह सोचने लगा कि वह इतना बड़ा हो गया है कि अब उसकी नाक पर मक्खी भी न बैठ सकती।

एक दिन गाँव में मेला लगा। प्रथम अपने अहंकार में डूबे हुए तौर-तरीके से मेले में पहुँचा। लेकिन वहां कुछ अजीब हुआ। जब वह मेले में घूम रहा था, तभी एक मक्खी उसकी नाक पर बैठ गई। प्रथम ने जितना भी प्रयास किया, मक्खी उसकी नाक से हटी नहीं। सभी गाँववाले उसे देखकर हंसने लगे।

इस घटना से प्रथम को समझ में आ गया कि अहंकार में डूबने से किसी को भी नीचा दिखाने का परिणाम खुद की बेइज्जति हो सकती है। वह समझ गया कि “नाक पर मक्खी न बैठने देना” यह सिर्फ एक मुहावरा ही नहीं, बल्कि जीवन में अहंकार और गर्व से दूर रहने की एक बड़ी सीख है।

शायरी:

नाक पर मक्खी न बैठने का अहंकार था उसको,

जिस जहाँ को चूमती थी हवाएँ, अब वहाँ तक न सका।

हर चीर में अपने आप को शाह जानता था,

ज़िंदगी ने जब आईना दिखाया, तो अदना सा वो रहा।

अहंकार में डूबे जिन्हें खुद को शेर समझते,

जिंदगी की गलियों में, उन्हें अक्सर कुत्ते मिलते।

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of नाक पर मक्खी न बैठने देना – Naak par makhi na baithne dena Idiom:

Introduction: “Naak par makhi na baithne dena” is a popular Hindi idiom, often used for individuals who consider themselves very significant and superior compared to others.

Meaning: When an individual is so engrossed in their ambitions or pride that they don’t allow others to come near or reach their level, this situation is described using this idiom.

Usage:

-> After achieving success, Abhay became so arrogant that he now avoids meeting his old friends, as if he has “not let a fly sit on his nose.”

-> Due to her new job, Parul has forgotten her old colleagues, as if she “didn’t let a fly sit on her nose.”

Special Note: This idiom teaches us that even after attaining success, wealth, or heights, we shouldn’t forget our roots. Genuine success is achieved by staying away from arrogance.

Conclusion: The idiom “Naak par makhi na baithne dena” reminds us that drowning in pride distances us from the people and society around us. Therefore, we should always remain humble and grounded.

Story of Naak par makhi na baithne dena Idiom in English:

There was a village where a young man named Pratham lived. He was considered the most educated and wise in the village. Pratham had a solution for every problem. Because of this, his respect and recognition in the village had grown significantly.

However, with time, pride began to creep into Pratham. He began to think of himself as the most important and superior person in the village. This belief started reflecting in everything he said and did. When villagers approached him with problems, he began to dismiss them, thinking them beneath him. His arrogance grew to such an extent that he believed he had become so significant that even a fly couldn’t land on his nose.

One day, a fair was held in the village. Pratham, drenched in his arrogance, arrived at the fair with a pompous demeanor. But something unexpected happened there. As he was wandering around the fair, a fly settled on his nose. No matter how hard Pratham tried, the fly wouldn’t budge from his nose. All the villagers began to laugh at the sight.

From this incident, Pratham realized the consequences of belittling others due to arrogance. It can lead to one’s own humiliation. He understood that “not letting a fly sit on the nose” isn’t just a proverb, but a valuable lesson in life about staying away from pride and arrogance.

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

क्या इस मुहावरे का कोई आधारभूत सिद्धांत है?

हां, यह मुहावरा हमें यह सिखाता है कि हमें अपमानजनक या अनुचित बातों को अपने सामने बिना किसी प्रतिक्रिया के स्वीकार नहीं करना चाहिए।

क्या इस मुहावरे का कोई विशेष समय या समाजिक समस्या से संबंधित है?

नहीं, यह मुहावरा समय या समाजिक समस्या से संबंधित नहीं है, बल्कि यह व्यक्तिगत अनुभवों और व्यवहार के साथ संबंधित है।

क्या इस मुहावरे का कोई विरोधी अर्थ हो सकता है?

नहीं, यह मुहावरा केवल नकारात्मक अर्थ में ही प्रयोग होता है।

क्या इस मुहावरे का कोई धार्मिक अथवा आध्यात्मिक संदेश है?

नहीं, इस मुहावरे का कोई धार्मिक अथवा आध्यात्मिक संदेश नहीं है।

क्या इस मुहावरे का कोई इतिहासिक प्रासंग है?

नहीं, यह मुहावरा किसी विशेष इतिहासिक घटना से संबंधित नहीं है।

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यह मुहावरा जानवर पर मुहावरे पेज पर भी उपलब्ध है।

यह मुहावरा मानव शरीर के अंगों पर आधारित मुहावरे पेज पर भी उपलब्ध है।

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