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न खाये न खाने दे अर्थ, प्रयोग (Na khaye na khane de)

परिचय: “न खाये न खाने दे” एक प्रसिद्ध हिंदी मुहावरा है जो अक्सर सामाजिक और व्यक्तिगत परिस्थितियों में उपयोग किया जाता है। यह मुहावरा एक ऐसे व्यक्ति की प्रवृत्ति को दर्शाता है जो न तो स्वयं किसी चीज का उपयोग करता है और न ही दूसरों को उसका उपयोग करने देता है।

अर्थ: इस मुहावरे का अर्थ है कि कोई व्यक्ति न तो स्वयं किसी चीज का लाभ उठाता है और न ही अन्य लोगों को उससे लाभ उठाने देता है। यह आमतौर पर लालच और स्वार्थ की भावना को दर्शाता है।

प्रयोग: यह मुहावरा तब प्रयोग किया जाता है जब किसी व्यक्ति के स्वार्थी और लालची व्यवहार का वर्णन करना हो। यह अक्सर राजनीति, व्यवसाय, और यहां तक कि पारिवारिक मामलों में भी उपयोगी होता है।

उदाहरण:

-> विनीत ने अपने भाई को बिजनेस में हिस्सेदारी नहीं दी, क्योंकि वह ‘न खाये न खाने दे’ की नीति पर चलता है।

-> सरकारी दफ्तरों में कई बार ‘न खाये न खाने दे’ की प्रवृत्ति देखने को मिलती है, जहाँ अधिकारी न तो स्वयं काम करते हैं और न ही दूसरों को करने देते हैं।

निष्कर्ष: “न खाये न खाने दे” मुहावरा हमारे समाज में लालच और स्वार्थ के प्रतीकात्मक रूप के रूप में उभरता है। यह हमें यह सिखाता है कि स्वार्थ और लालच के चक्रव्यूह से बाहर निकलना और सहयोगी भावना के साथ काम करना ही सच्ची सफलता की कुंजी है।

Hindi Muhavare Quiz

न खाये न खाने दे मुहावरा पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में मुनीश नाम का एक व्यापारी रहता था। उसके पास एक अद्भुत सोने का पेड़ था, जो हर दिन सोने के सिक्के देता था। लेकिन मुनीश बहुत लालची था। वह न तो खुद उन सिक्कों का उपयोग करता था और न ही किसी और को उसका उपयोग करने देता था।

एक दिन, गाँव के लोगों ने मुनीश से उस पेड़ के कुछ सिक्के मांगे ताकि वे अपने गाँव को सुंदर बना सकें। लेकिन मुनीश ने साफ मना कर दिया और कहा, “ये सिक्के केवल मेरे हैं। मैं किसी को भी इनका उपयोग नहीं करने दूँगा।”

गाँववाले निराश हो गए और मुनीश के लालच से दुखी हो गए। उन्होंने तय किया कि वे मुनीश को एक सबक सिखाएंगे। एक रात, उन्होंने चुपके से उसके पेड़ को काट दिया और उसे जंगल में छिपा दिया।

जब मुनीश सुबह उठा, तो उसने पाया कि उसका सोने का पेड़ गायब है। वह बहुत रोया और गाँववालों से मदद मांगी, लेकिन किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। उसे तब एहसास हुआ कि उसका लालच और ‘न खाये न खाने दे’ की नीति ने उसे अकेला कर दिया था।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि लालच और स्वार्थी व्यवहार का अंत हमेशा नकारात्मक होता है। ‘न खाये न खाने दे’ की प्रवृत्ति व्यक्ति को न केवल स्वयं के लिए हानिकारक बनाती है बल्कि उसके आसपास के लोगों के प्रति भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।

शायरी:

खुद न खाया फूलों का, न खिलने दिया बागों में,

जिंदगी ने दिखाया आईना, लालच के आगों में।

रख लिया खजाना सारा, न अपना न पराया,

न खाये न खाने दे, फिर भी खाली हाथ आया।

ख्वाबों में बसे महल, न हकीकत में नींव पाई,

जो चाहा सब खो दिया, इस लालच की राह में आई।

गुजर गए वो दिन सभी, जब खुदगर्जी थी शान में,

अब बैठे हैं अकेले हम, ‘न खाये न खाने दे’ के वीरान में।

 

न खाये न खाने दे शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of न खाये न खाने दे – Na khaye na khane de Idiom:

Introduction: “न खाये न खाने दे” (Neither eats nor lets others eat) is a famous Hindi idiom often used in social and personal situations. This idiom describes the tendency of a person who neither uses something themselves nor allows others to use it.

Meaning: The meaning of this idiom is that a person neither benefits from something themselves nor allows others to benefit from it. It typically represents a sense of greed and selfishness.

Usage: This idiom is used when describing the selfish and greedy behavior of a person. It is often useful in politics, business, and even in family matters.

Example:

-> Vineet did not share the partnership in the business with his brother because he follows the policy of ‘neither eats nor lets others eat’.

-> The tendency of ‘neither eats nor lets others eat’ is often seen in government offices, where officials neither work themselves nor let others work.

Conclusion: The idiom “न खाये न खाने दे” (Neither eats nor lets others eat) emerges as a symbolic representation of greed and selfishness in our society. It teaches us that stepping out of the vicious cycle of selfishness and greed and working with a cooperative spirit is the key to true success.

Story of ‌‌Na khaye na khane de Idiom in English:

In a small village, there lived a trader named Munish. He had a marvelous golden tree that produced gold coins every day. However, Munish was very greedy. He neither used those coins himself nor allowed anyone else to use them.

One day, the villagers asked Munish for some coins from that tree so they could beautify their village. But Munish flatly refused and said, “These coins are mine only. I will not let anyone use them.”

The villagers became disappointed and saddened by Munish’s greed. They decided to teach Munish a lesson. One night, they secretly cut down his tree and hid it in the forest.

When Munish woke up in the morning, he found that his golden tree was gone. He cried a lot and asked the villagers for help, but no one helped him. He then realized that his greed and the policy of ‘neither eats nor lets others eat’ had isolated him.

This story teaches us that the end of greed and selfish behavior is always negative. The tendency of ‘neither eats nor lets others eat’ not only harms the person themselves but also casts a negative impact on those around them.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

इस मुहावरे की उत्पत्ति कैसे हुई?

इस मुहावरे की सटीक उत्पत्ति का इतिहास अज्ञात है, लेकिन यह भारतीय समाज में प्रचलित स्वार्थी और ईर्ष्यालु प्रवृत्तियों को व्यक्त करने के लिए विकसित हुआ होगा।

“न खाये न खाने दे” मुहावरे का महत्व क्या है?

इस मुहावरे का महत्व इसमें है कि यह हमें स्वार्थी व्यवहार के परिणामों के प्रति जागरूक करता है और उदारता व सहयोग के मूल्यों को महत्व देने की प्रेरणा देता है।

इस मुहावरे का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

समाज पर इस मुहावरे का प्रभाव यह है कि यह स्वार्थी व्यवहार के खिलाफ जागरूकता फैलाता है और लोगों को अधिक सहयोगी और उदार बनने के लिए प्रेरित करता है।

“न खाये न खाने दे” मुहावरे को जीवन में कैसे लागू किया जा सकता है?

इस मुहावरे को लागू करने के लिए, व्यक्तियों को अपने व्यवहार का आत्म-मूल्यांकन करना चाहिए और दूसरों के प्रति अधिक उदार और सहयोगी रवैया अपनाना चाहिए।

“न खाये न खाने दे” मुहावरे से हमें क्या सीख मिलती है?

इस मुहावरे से हमें यह सीख मिलती है कि स्वार्थी और ईर्ष्यालु व्यवहार न केवल खुद के लिए नुकसानदेह है बल्कि यह दूसरों के लिए भी हानिकारक होता है।

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