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मौनं स्वीकृति लक्षणम् अर्थ, प्रयोग (Maunam sweekrati lakshanam)

परिचय: “मौनं स्वीकृति लक्षणम्” एक प्राचीन संस्कृत मुहावरा है, जिसका प्रयोग अक्सर हिंदी में भी किया जाता है। यह मुहावरा भारतीय संस्कृति और दर्शन में गहराई से निहित है।

अर्थ: “मौनं स्वीकृति लक्षणम्” का शाब्दिक अर्थ है “मौन ही स्वीकृति का लक्षण है”। इसका भावार्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति किसी प्रस्ताव या विचार के प्रति मौन रहता है, तो इसे उसकी सहमति माना जाता है।

प्रयोग: यह मुहावरा विशेष रूप से उन परिस्थितियों में उपयोगी होता है, जहां किसी के द्वारा उत्तर न देने को उसकी सहमति या अनुमोदन के रूप में लिया जाता है। यह व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन दोनों में प्रासंगिक हो सकता है।

उदाहरण:

एक व्यापार मीटिंग में, जब एक नई परियोजना का प्रस्ताव पेश किया गया और एक वरिष्ठ सदस्य ने कोई आपत्ति नहीं जताई, तो उनके मौन को सहमति के रूप में लिया गया।

निष्कर्ष: “मौनं स्वीकृति लक्षणम्” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि कई बार मौन भी एक प्रकार का संवाद होता है और इसे सहमति या असहमति के रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है। यह हमें यह भी बताता है कि संवाद में हमेशा शब्दों की आवश्यकता नहीं होती; कभी-कभी मौन भी बहुत कुछ कह जाता है। इसलिए, संवाद के सभी रूपों को समझना और उनका सम्मान करना महत्वपूर्ण है।

मौनं स्वीकृति लक्षणम् मुहावरा पर कहानी:

एक समय की बात है, एक गाँव में एक बुद्धिमान पंडित रहते थे। उनके पास गाँव के लोग अक्सर अपनी समस्याएँ लेकर आते थे। पंडित जी की खासियत थी कि वे ज्यादातर समय मौन रहकर ही समाधान देते थे।

एक दिन, गाँव के दो व्यापारी एक विवाद के साथ पंडित जी के पास पहुँचे। विवाद का कारण था एक जमीन का टुकड़ा, जिस पर दोनों व्यापारी अपना अधिकार जता रहे थे। पंडित जी ने ध्यान से दोनों की बातें सुनी और फिर मौन धारण किया।

व्यापारियों ने पंडित जी के मौन को उनकी सहमति मान लिया और यह सोचकर कि पंडित जी ने उनके पक्ष में निर्णय दिया है, खुशी-खुशी वापस लौट गए। लेकिन जब वे वापस गाँव पहुँचे, तो उन्होंने पाया कि पंडित जी का मौन वास्तव में एक संदेश था।

पंडित जी ने बाद में समझाया, “मेरा मौन इस बात का संकेत था कि आप दोनों को अपने विवाद का समाधान स्वयं खोजना चाहिए, बिना किसी बाहरी निर्णय के।” व्यापारियों ने तब जाकर समझा कि “मौनं स्वीकृति लक्षणम्” यानी मौन भी एक प्रकार का संवाद हो सकता है, और कभी-कभी यह खुद के लिए सही निर्णय लेने की प्रेरणा देता है।

इस कहानी से हमें सीखने को मिलता है कि मौन का भी अपना महत्व होता है और यह कई बार सहमति या असहमति का सूचक हो सकता है। इसलिए, हमें हर परिस्थिति में संवाद के सभी रूपों को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

शायरी:

मौन भी बोलता है, जब शब्द सो जाते हैं,
संवाद की एक नई दुनिया, बिना आवाज के खो जाते हैं।

“मौनं स्वीकृति लक्षणम्” कह कर,
बिन कहे, हर बात कह जाते हैं।

जब जुबान पर लग जाए ताला,
मौन नयनों से, सब कुछ कह जाता है।

इकरार भी है, इंकार भी है, मौन में ये सब,
खामोशी का ये संगीत, हर दिल को बहलाता है।

चुप्पी टूटे ना टूटे, मौन से जुड़ जाते हैं,
सहमति की इस भाषा में, दिल से दिल मिल जाते हैं।

मौन रहकर भी, कितना कुछ कह दिया,
इस खामोशी की भाषा ने, दिल को छू लिया।

हर खामोशी में एक कहानी होती है,
“मौनं स्वीकृति लक्षणम्” यही तो सिखाती है।

 

मौनं स्वीकृति लक्षणम् शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of मौनं स्वीकृति लक्षणम् – Maunam sweekrati lakshanam Idiom:

Introduction: “Maunam sweekrati lakshanam” is an ancient Sanskrit idiom that is often used in Hindi as well. This idiom is deeply ingrained in Indian culture and philosophy.

Meaning: The literal meaning of “Maunam sweekrati lakshanam” is that when a person remains silent towards a proposal or idea, it is considered as their agreement.

Usage: This idiom is particularly useful in situations where someone’s lack of response is taken as their approval or endorsement. It can be relevant in both personal and professional life.

Example:

In a business meeting, when a new project proposal was presented and a senior member did not express any objection, their silence was taken as consent.

Conclusion: The idiom “Maunam sweekrati lakshanam” teaches us that sometimes silence too can be a form of communication and can be interpreted as agreement or disagreement. It also tells us that communication does not always require words; sometimes silence can say a lot. Therefore, it is important to understand and respect all forms of communication.

Story of ‌‌Maunam sweekrati lakshanam Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a wise pundit. The villagers often came to him with their problems. The specialty of the pundit was that he mostly provided solutions through his silence.

One day, two traders from the village approached the pundit with a dispute. The cause of the dispute was a piece of land, over which both traders were claiming their rights. The pundit listened attentively to both sides and then maintained silence.

The traders took the pundit’s silence as his agreement and, thinking that the pundit had decided in their favor, happily returned home. However, when they got back to the village, they realized that the pundit’s silence was actually a message.

The pundit later explained, “My silence was a sign that both of you should find a resolution to your dispute on your own, without any external judgment.” It was then that the traders understood that “Silence is a sign of consent” means silence can also be a form of communication, and sometimes it inspires to make the right decision for oneself.

This story teaches us that silence has its own importance and can sometimes indicate agreement or disagreement. Therefore, we should try to understand all forms of communication in every situation.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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