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करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का अर्थ, प्रयोग (Kare karinda naam bariyar ka, Lade sipahi naam sardaar ka)

परिचय: “करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का” यह हिंदी मुहावरा समाज में प्रचलित एक व्यवस्था की ओर इशारा करता है, जहाँ वास्तविक परिश्रम और मेहनत किसी और के द्वारा की जाती है लेकिन श्रेय और सम्मान किसी और को मिलता है।

अर्थ: मुहावरे का अर्थ है कि काम निम्न स्तर के कर्मचारी या सिपाही करते हैं, लेकिन इसका श्रेय उच्च स्तर के अधिकारियों या सरदारों को जाता है। यह सामाजिक और संगठनात्मक ढांचे में व्याप्त असमानता और अन्याय को दर्शाता है।

प्रयोग: यह मुहावरा अक्सर उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जहाँ मेहनत और सफलता का श्रेय उस व्यक्ति को नहीं दिया जाता, जिसने वास्तव में परिश्रम किया हो। यह उन व्यवस्थाओं की आलोचना करता है जहाँ श्रेय और सम्मान केवल उच्च पदों पर बैठे लोगों को ही मिलता है।

उदाहरण:

एक कंपनी में, एक छोटे स्तर के कर्मचारी ने एक नवाचारी परियोजना पर मेहनत की और उसे सफलतापूर्वक पूरा किया। लेकिन जब समय आया तो सारा श्रेय और सम्मान कंपनी के उच्च पदस्थ अधिकारी को मिला।

निष्कर्ष: “करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का” मुहावरा हमें उस व्यवस्था की ओर ध्यान दिलाता है जहाँ प्रयास और परिश्रम के असली कर्ता को उचित श्रेय और सम्मान नहीं मिलता। यह हमें सिखाता है कि हर व्यक्ति की मेहनत का सम्मान करना चाहिए और प्रत्येक को उसके योगदान के अनुसार सम्मानित किया जाना चाहिए।

करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का मुहावरा पर कहानी:

एक बार की बात है, एक राज्य में एक बहादुर सिपाही रहता था, जिसका नाम अभय था। अभय ने अपने राज्य के लिए कई युद्धों में भाग लिया और हमेशा विजयी होकर आया। उसकी अभयता और साहस के किस्से पूरे राज्य में प्रसिद्ध थे। लेकिन जब भी युद्ध जीता जाता, तो सारा श्रेय राज्य के सरदार को मिलता, जो युद्ध में अभय का सेनापति था।

सेनापति, जिसका नाम सुरेंद्र था, वह हमेशा राजा के सामने विजय का श्रेय खुद ले लेता और अभय का नाम तक नहीं लेता। अभय इस बात से दुखी था लेकिन उसने कभी अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं की।

एक दिन, राजा ने एक बड़ा दरबार लगाया और सेनापति सुरेंद्र को उसकी अभयता और युद्ध में जीत के लिए सम्मानित किया। इस दरबार में सभी राज्य के प्रमुख लोग उपस्थित थे।

जब सुरेंद्र को सम्मानित किया जा रहा था, तब एक बुजुर्ग व्यक्ति जो दरबार में उपस्थित था, उसने खड़े होकर कहा, “महाराज, मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ। युद्ध में असली अभयता और साहस दिखाने वाला व्यक्ति अभय है, जिसने अपने प्राणों की बाजी लगाकर राज्य को विजयी बनाया। सेनापति सुरेंद्र को सारा श्रेय मिल रहा है, परंतु असली काम अभय ने किया है। ‘करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का’।”

यह सुनकर राजा ने अभय को दरबार में बुलाया और उसे उचित सम्मान दिया। इस घटना ने सभी को सिखाया कि असली परिश्रम करने वाले को ही उचित श्रेय और सम्मान मिलना चाहिए।

इस कहानी के माध्यम से “करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का” मुहावरे का संदेश स्पष्ट होता है कि वास्तविक परिश्रम और मेहनत करने वाले को ही श्रेय और सम्मान मिलना चाहिए।

शायरी:

करे कोई, श्रेय कोई और ले जाए,
ये दुनिया है साहब, यहाँ ऐसा ही होता आए।

सिपाही लड़े जंग, नाम सरदार का छाए,
मेहनतकश की मेहनत अक्सर, यूँ ही बेनाम हो जाए।

दर्द छुपाए हर कारिन्दा, फिर भी मुस्कुराए,
कर्मों की गहराई में, उसका नाम क्यों ना आए।

ख्वाब वो देखे, हकीकत में जो ना पाए,
‘करे कारिन्दा नाम बरियार का’, ये किस्सा पुराना लाए।

जिंदगी की इस दौड़ में, सच्चाई से ना मुंह मोड़,
मेहनत तेरी है, तो नाम भी तेरा ही हो, ये संदेश हर दिल को छू जाए।

सिपाही का संघर्ष, सरदार की शान में ना खो जाए,
असली हीरो की कहानी, हर जुबान पर आए।

ये दुनिया भी ना जाने, कैसे कैसे रंग दिखाए,
‘लड़े सिपाही नाम सरदार का’, ये विडंबना हर कहीं छाए।

 

करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of करे कारिन्दा नाम बरियार का, लड़े सिपाही नाम सरदार का – Kare karinda naam bariyar ka, Lade sipahi naam sardaar ka Idiom:

Introduction: “Kare karinda naam bariyar ka, Lade sipahi naam sardaar ka” is a prevalent Hindi idiom that points towards a system in society where the actual hard work is done by someone else, but the credit and honor are given to another.

Meaning: The essence of this idiom is that the work is done by lower-level employees or soldiers, but the credit goes to higher-level officials or leaders. It highlights the inequality and injustice embedded in social and organizational structures.

Usage: This idiom is often used in situations where the credit and success are not given to the person who has actually put in the effort. It criticizes those systems where credit and honor are only given to those sitting in high positions.

Example:

In a company, a lower-level employee worked hard on an innovative project and successfully completed it. But when the time came, all the credit and honor were given to a high-ranking officer of the company.

Conclusion: The idiom “The worker toils but the credit goes to the elite, the soldier fights but the glory is claimed by the leader” draws our attention to the system where the real contributors of effort and hard work do not receive due credit and honor. It teaches us that the hard work of every individual should be respected, and everyone should be honored according to their contribution.

Story of ‌‌Kare karinda naam bariyar ka, Lade sipahi naam sardaar ka Idiom in English:

Once upon a time, in a kingdom, there lived a brave soldier named Abhay. Abhay participated in many battles for his kingdom and always emerged victorious. His bravery and courage were famous throughout the kingdom. However, whenever a battle was won, all the credit went to the kingdom’s commander, who was Abhay’s leader in the war.

The commander, named Surendra, always took all the credit for the victories in front of the king and never mentioned Abhay’s name. Abhay was saddened by this but never expressed his feelings.

One day, the king held a grand court and honored Commander Surendra for his bravery and victories in the battles. All the prominent people of the kingdom were present in this court.

As Surendra was being honored, an elderly man present in the court stood up and said, “My lord, I want to say something. The person who truly showed bravery and courage in the battles is Abhay, who risked his life to make the kingdom victorious. All the credit is going to Commander Surendra, but the real work was done by Abhay. ‘The worker toils but the credit goes to the elite, the soldier fights but the glory is claimed by the leader’.”

Hearing this, the king called Abhay to the court and gave him the due honor. This incident taught everyone that the real contributor of effort and hard work should receive the appropriate credit and honor.

Through this story, the message of the idiom “The worker toils but the credit goes to the elite, the soldier fights but the glory is claimed by the leader” becomes clear that the real contributor of effort and hard work should indeed receive the credit and honor.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly.

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