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जबान को लगाम देना अर्थ, प्रयोग(Jabaan ko lagaam dena)

परिचय: “जबान को लगाम देना” मुहावरा अपनी बातों को संयमित रखने और विचार-विमर्श के बाद ही बोलने की आदत को दर्शाता है। यह उस स्थिति का वर्णन करता है जब कोई व्यक्ति अपने शब्दों पर नियंत्रण रखता है और सोच-समझकर बोलता है।

अर्थ: इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि अपनी जबान पर लगाम लगाना यानी अपनी बातों को नियंत्रित करना। यह उस व्यक्ति के आत्म-नियंत्रण को दर्शाता है जो अपनी बातों को सोच-समझकर और संयम से बोलता है।

प्रयोग: यह मुहावरा आमतौर पर उन परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जब किसी को अपनी बातों को संभालकर बोलने की सलाह दी जाती है। यह संवाद में संयम और सावधानी बरतने की महत्वपूर्णता को दर्शाता है।

उदाहरण:

-> राजनीति में भाग लेने वाले हर व्यक्ति को अपनी जबान को लगाम देनी चाहिए।

-> गुस्से में अक्सर लोग जबान को लगाम देना भूल जाते हैं, जिससे समस्याएँ और बढ़ जाती हैं।

निष्कर्ष: “जबान को लगाम देना” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि संवाद में संयम और सोच-विचार महत्वपूर्ण होते हैं। अनियंत्रित बोलने से अक्सर गलतफहमियां और समस्याएँ पैदा होती हैं। इसलिए, अपनी बातों को सोच-समझकर और संयमित तरीके से व्यक्त करना चाहिए। यह मुहावरा हमें आत्म-नियंत्रण और विचारशीलता का महत्व समझाता है।

Hindi Muhavare Quiz

जबान को लगाम देना मुहावरा पर कहानी:

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में एक युवा किसान नामक सुभाष रहता था। सुभाष की एक आदत थी – वह बिना सोचे-समझे बोल देता था। उसकी इस आदत से गाँव के लोग अक्सर परेशान रहते थे।

एक दिन गाँव में एक बड़ी समस्या आ गई। सभी गाँववाले एकत्र हुए और समस्या का हल खोजने के लिए चर्चा करने लगे। इसी बीच सुभाष ने बिना सोचे-समझे कुछ ऐसा बोल दिया, जिससे गाँववालों में और भी ज्यादा कन्फ्यूजन और तनाव पैदा हो गया।

गाँव के मुखिया ने सुभाष को समझाया कि उसकी बातों की वजह से समस्या का हल निकालने में और भी कठिनाई आ रही है। उन्होंने उसे “जबान पर लगाम लगाने” की सलाह दी। सुभाष को अहसास हुआ कि उसकी बातों से न केवल उसे, बल्कि पूरे गाँव को परेशानी हो रही है।

इस घटना के बाद, सुभाष ने खुद में बदलाव किया। वह अब बोलने से पहले सोचता, और फिर संयमित तरीके से अपनी बात रखता। उसके इस बदलाव से न केवल उसका खुद का जीवन सुधरा, बल्कि गाँववाले भी उसकी बहुत इज्जत करने लगे।

सुभाष की कहानी हमें यह सिखाती है कि “जबान पर लगाम लगाना” बहुत जरूरी है। यह हमें न केवल अनावश्यक समस्याओं से बचाता है, बल्कि हमारे व्यक्तित्व को भी निखारता है। सोच-समझकर बोलने से हम न सिर्फ अपने आप को बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी सुखद और सकारात्मक माहौल प्रदान कर सकते हैं।

शायरी:

जबान पर लगाम रखो, ये है जिंदगी का गहरा राज,

बोलो तो फूल बिखेरो, ना हो कोई आवाज।

खामोशियाँ भी बोलती हैं, जब लफ्ज़ होते हैं बेवजह,

जबान की ताकत है अनोखी, बोलो पर सोच समझ।

हर शब्द में छुपा है असर, हर बात में छुपी है बात,

जबान का करो सही इस्तेमाल, बनो सभी के लिए सौगात।

जुबान पे जो लगाम रखे, वो है समझदारी का ताज,

बोलो तो बोलो ऐसे, जैसे हो कोई नर्म साज।

शब्दों का जादू है अद्भुत, उसे पहचानो तो सही,

जबान को लगाम देकर, जीवन में बिखेरो खुशियाँ बहुत सही।

 

जबान पर लगाम लगाना शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of जबान को लगाम देना – Jabaan ko lagaam dena Idiom:

Introduction: The idiom “Jabaan ko lagaam dena” illustrates the habit of keeping one’s words measured and speaking only after thoughtful deliberation. It describes a situation where a person controls their words and speaks thoughtfully and with restraint.

Meaning: The literal meaning of this idiom is to control one’s tongue, implying control over one’s words. It reflects the self-control of a person who speaks their words thoughtfully and with restraint.

Usage: This idiom is commonly used in situations where someone is advised to be careful and measured in their speech. It emphasizes the importance of restraint and caution in conversation.

Example:

-> Every person participating in politics should rein in their tongue.

-> In anger, people often forget to rein in their tongue, which leads to increased problems.

Conclusion: The idiom “Jabaan ko lagaam dena” teaches us that restraint and thoughtfulness are important in conversation. Uncontrolled speaking often leads to misunderstandings and problems. Therefore, one should express their words thoughtfully and with restraint. This idiom highlights the importance of self-control and thoughtfulness.

Story of ‌‌Jabaan ko lagaam dena Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a young farmer named Subhash. Subhash had a habit – he would speak without thinking. This habit often troubled the villagers.

One day, a big problem arose in the village. All the villagers gathered to discuss and find a solution. Amidst this, Subhash, without thinking, said something that caused even more confusion and tension among the villagers.

The village head explained to Subhash that his words were making it harder to solve the problem. He advised Subhash to “rein in his tongue.” Subhash realized that his words were causing trouble not just for himself but for the entire village.

After this incident, Subhash changed himself. He now thought before speaking and presented his views in a controlled manner. This change not only improved his own life but also earned him great respect from the villagers.

Subhash’s story teaches us the importance of “reining in one’s tongue.” It not only saves us from unnecessary problems but also enhances our personality. Speaking thoughtfully not only benefits us but also creates a pleasant and positive environment for those around us.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

क्या इस मुहावरे का विपरीत भी है?

हाँ, इस मुहावरे का विपरीत है “जबान को लगाम लगाना” जिसका अर्थ होता है अपनी ज़ुबान को संजीवनी देना, या बोलचाल में आजादी देना।

क्या इस मुहावरे का कोई विशेष ऐतिहासिक संदर्भ है?

नहीं, इस मुहावरे का कोई विशेष ऐतिहासिक संदर्भ नहीं है। यह भाषा में सामान्यत: उपयोग होने वाला एक सांदर्भिक अभिव्यक्ति है।

क्या है मुहावरा “जबान को लगाम देना” का अर्थ?

इस मुहावरे का अर्थ होता है किसी को स्वतंत्रता या आजादी देना, या उसकी स्वतंत्रता को किसी रूप में प्रतिबंधित करना।

क्या इस मुहावरे का उपयोग कला या साहित्य में होता है?

हाँ, इस मुहावरे का उपयोग कला और साहित्य में व्यक्ति के भाषा और विचारों को संरचित रूप से प्रस्तुत करने के लिए होता है।

इस मुहावरे का उपयोग किस तरह के संदर्भों में किया जा सकता है?

इस मुहावरे का उपयोग व्यक्ति के विचारों या विचारशीलता को किसी रूप में प्रतिबंधित करने के संदर्भ में किया जा सकता है, जैसे किसी नेता या सरकारी अधिकारी के बयानों की सीमा लगाने का।

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