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हिसाब चुकता करना अर्थ, प्रयोग (Hisab chukta karna)

परिचय: हिंदी मुहावरा “हिसाब चुकता करना” व्यापक रूप से उपयोग में आता है जब किसी को अपने पुराने बकाया, गलतियों या किसी प्रकार के ऋण को सुलझाना होता है। यह न केवल आर्थिक लेन-देन में, बल्कि सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों में भी अपनी प्रासंगिकता रखता है।

अर्थ: “हिसाब चुकता करना” का अर्थ है किसी भी प्रकार के बकाया या ऋण का पूरा निपटान करना ताकि दोनों पक्षों के बीच कोई बाकी न रहे। यह अक्सर उस स्थिति को भी दर्शाता है जहाँ अतीत की किसी गलती या विवाद को सुलझा लिया गया हो।

प्रयोग: यह मुहावरा व्यावसायिक संदर्भ में लेन-देन के समापन, सामाजिक रिश्तों में मतभेदों के समाधान, या किसी व्यक्तिगत द्वेष को खत्म करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:

-> व्यावसायिक संदर्भ में: जब एक व्यापारी अपने सप्लायर के साथ सारे बकाया का भुगतान करता है।

-> सामाजिक संदर्भ में: दो मित्र जो लंबे समय से एक गलतफहमी के कारण दूर हो गए थे, जब वे अपनी गलतियों को मानते हैं और सुलह कर लेते हैं।

निष्कर्ष: “हिसाब चुकता करना” मुहावरा जीवन के हर क्षेत्र में अपनी गहराई और व्यापकता के साथ प्रासंगिकता रखता है। यह हमें सिखाता है कि किसी भी प्रकार के बकाया, गलतफहमी या विवाद को समाप्त करके हम अपने जीवन में सुख और शांति ला सकते हैं। यह मुहावरा हमें पुरानी बाधाओं को पार करके एक नई शुरुआत की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है।

हिसाब चुकता करना मुहावरा पर कहानी:

एक छोटे से शहर में दो व्यापारी रहते थे, विनीत और श्याम। वे बचपन के दोस्त थे और एक साथ ही अपना व्यापार शुरू किया था। लेकिन समय के साथ, उनके बीच कुछ मतभेद हो गए और उन्होंने अपने रास्ते अलग कर लिए। इस मतभेद का कारण था एक वित्तीय लेन-देन जो कभी पूरा नहीं हो पाया था। विनीत का मानना था कि श्याम ने उसके पैसे वापस नहीं किए थे, जबकि श्याम का कहना था कि उसने विनीत को उसके पैसे लौटा दिए थे।

यह विवाद इतना बढ़ गया कि उनके बीच कोई बातचीत नहीं होती थी और उनकी दोस्ती टूट गई। एक दिन, शहर के एक बुजुर्ग ने उन्हें एक साथ बैठाया और उनसे अपने मतभेद सुलझाने के लिए कहा। बुजुर्ग ने उन्हें समझाया कि “हिसाब चुकता करना” जरूरी है ताकि वे अपने बीच की दूरियों को मिटा सकें और फिर से दोस्त बन सकें।

विनीत और श्याम ने बुजुर्ग की बात मानी और अपने वित्तीय लेन-देन को फिर से जांचा। इस बार, उन्होंने अपने हिसाब-किताब को साफ-सुथरा किया और पाया कि गलतफहमी के कारण ही यह विवाद हुआ था। विनीत को समझ में आया कि श्याम ने वास्तव में उसके पैसे लौटा दिए थे, लेकिन उसे गलतफहमी हो गई थी।

अपने हिसाब चुकता करने के बाद, विनीत और श्याम ने एक दूसरे से माफी मांगी और फिर से अच्छे दोस्त बन गए। उन्होंने सीखा कि गलतफहमियों को दूर करना और अपने हिसाब को चुकता करना कितना महत्वपूर्ण है।

इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि “हिसाब चुकता करना” न केवल वित्तीय लेन-देन में, बल्कि व्यक्तिगत संबंधों में भी बहुत जरूरी है। यह हमें दिखाता है कि कैसे खुले दिल से बातचीत करके और मतभेदों को सुलझाकर हम अपने रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं।

शायरी:

हिसाब किताब सब चुकता कर दिया,

दिलों में जमी बर्फ पिघला दिया।

गलतफहमियों के बादल छट गए,

दोस्ती के फूल फिर से खिल गए।

दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई,

माफी की बातों में मिठास घुली।

हर शिकवा, हर गिला मिटा दिया,

हिसाब चुकता कर, दोस्ती को जिता दिया।

कहने को हम ‘हरफनमौला’ थे,

पर ‘हिसाब चुकता’ करने में ही सौला थे।

जिंदगी के सफर में ये सबक सीखा,

दिलों को जोड़ने में ही सच्चा विवेक दीखा।

राहत की बातें, दिल से निकली,

‘हिसाब चुकता’ की धुन में हमने जिंदगी सँवारी।

 

हिसाब चुकता करना शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of हिसाब चुकता करना – Hisab chukta karna Idiom:

Introduction: The Hindi idiom “हिसाब चुकता करना” is widely used when someone needs to settle their old dues, mistakes, or any kind of debt. It holds relevance not just in financial transactions, but also in social and personal relationships.

Meaning: “हिसाब चुकता करना” means to settle any kind of outstanding dues or debt so that nothing remains pending between two parties. It often also refers to resolving a past mistake or dispute.

Usage: This idiom is used in the context of concluding transactions in business, resolving differences in social relationships, or ending a personal grudge.

Example:

-> In a business context: When a merchant pays off all dues to their supplier.

-> In a social context: Two friends who had been estranged for a long time due to a misunderstanding, when they acknowledge their mistakes and reconcile.

Conclusion: The idiom “हिसाब चुकता करना” holds relevance in every sphere of life with its depth and breadth. It teaches us that by ending any kind of dues, misunderstandings, or disputes, we can bring happiness and peace into our lives. This idiom inspires us to overcome old barriers and move towards a new beginning.

Story of ‌‌Hisab chukta karna Idiom in English:

In a small town, two merchants, Vineet and Shyam, lived. They were childhood friends and started their business together. However, over time, some differences arose between them, and they went their separate ways. The reason for this discord was a financial transaction that was never completed. Vineet believed that Shyam had not returned his money, while Shyam claimed that he had returned Vineet’s money.

The dispute grew to the point where they no longer spoke to each other, and their friendship was broken. One day, an elder of the town sat them down together and asked them to resolve their differences. The elder explained the importance of “settling accounts” so that they could bridge the gap between them and become friends again.

Vineet and Shyam heeded the elder’s advice and revisited their financial transaction. This time, they cleared up their accounts and found that the dispute had been due to a misunderstanding. Vineet realized that Shyam had indeed returned his money, but he had been mistaken.

After settling their accounts, Vineet and Shyam apologized to each other and became good friends again. They learned how important it is to clear up misunderstandings and settle their accounts.

This story teaches us that “settling accounts” is crucial not only in financial transactions but also in personal relationships. It shows us how open-hearted conversations and resolving differences can strengthen our relationships.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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