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हाथ सुमिरनी बगल कतरनी अर्थ, प्रयोग (Haath sumirani bagal katarni)

परिचय: “हाथ सुमिरनी बगल कतरनी” यह मुहावरा हिंदी भाषा में उन लोगों के व्यवहार को दर्शाता है जो बाहर से तो धार्मिक या साधु-संत जैसे दिखते हैं लेकिन असल में उनके इरादे कुछ और ही होते हैं।

अर्थ: “हाथ सुमिरनी” का अर्थ है पूजा या प्रार्थना करना और “बगल कतरनी” का अर्थ है चोरी या किसी अनैतिक काम में लिप्त होना। इस प्रकार, यह मुहावरा उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है जो धार्मिकता का ढोंग करते हैं लेकिन वास्तव में अनैतिक कार्यों में संलिप्त होते हैं।

प्रयोग: यह मुहावरा विशेष रूप से उन स्थितियों में उपयोगी होता है जहाँ किसी व्यक्ति के दोहरे चरित्र को उजागर करना होता है। यह समाज में पाखंड और ढोंग के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण:

-> सामाजिक जीवन में: जब कोई व्यक्ति समाज में धार्मिक गुरु के रूप में प्रसिद्ध होता है लेकिन गोपनीय रूप से अनैतिक गतिविधियों में लिप्त होता है, तब लोग कहते हैं कि वह “हाथ सुमिरनी बगल कतरनी” करता है।

-> व्यावसायिक जीवन में: एक व्यापारी जो धार्मिक दान के नाम पर बड़े-बड़े चंदे देता है लेकिन अपने व्यापार में टैक्स चोरी और अन्य अनैतिक कार्य करता है।

निष्कर्ष: “हाथ सुमिरनी बगल कतरनी” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि बाहरी आडम्बर और आंतरिक इरादों में बड़ा अंतर हो सकता है। यह हमें यह भी बताता है कि हमें हमेशा लोगों के कर्मों को उनके शब्दों से ज्यादा महत्व देना चाहिए और सतही धार्मिकता के पीछे छुपे हुए असली चरित्र को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

हाथ सुमिरनी बगल कतरनी मुहावरा पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में एक धर्मात्मा के रूप में प्रसिद्ध पंडित जी रहते थे। उनके भक्तिमय प्रवचन और धार्मिक कृत्यों ने उन्हें गाँव भर में आदर और सम्मान दिलाया था। हर रोज, वे मंदिर में पूजा करते और लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाते।

लेकिन, पंडित जी की एक अन्य आदत थी जो किसी को नहीं पता थी। वे रात के समय गाँव के बाहर एक छोटी सी झोपड़ी में जुआ खेलते और अवैध धन कमाते। उनका यह रूप किसी से छिपा हुआ था और वे दिन में धर्म की बातें करते, रात में अधर्म का सहारा लेते।

एक दिन, गाँव के एक ईमानदार व्यक्ति ने पंडित जी को उस झोपड़ी में जुआ खेलते देख लिया। अगले दिन, जब पंडित जी मंदिर में प्रवचन दे रहे थे, तो उस व्यक्ति ने सभी गाँव वालों के सामने उनकी असलियत बयान कर दी।

गाँव वाले हैरान और निराश हुए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि जो व्यक्ति दिन में धर्म की बातें करता था, वह रात में ऐसे कार्यों में लिप्त हो सकता है। पंडित जी की इस दोहरी जिंदगी ने उन्हें “हाथ सुमिरनी बगल कतरनी” का प्रतीक बना दिया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बाहरी आडम्बर और आंतरिक इरादों में बड़ा अंतर हो सकता है। यह आवश्यक है कि हम अपने कर्मों को अपने शब्दों से मेल खाते हुए रखें और वास्तविक धार्मिकता व नैतिकता का पालन करें।

शायरी:

हाथ में सुमिरनी, बगल में छुपी कतरनी,

दिखावे की दुनिया में, सच्चाई से यारी तोड़ी।

दिन में देवता, रात ने देखा असली चेहरा,

धर्म की आड़ में, अधर्म का खेला जोरदार।

बाहर से संत, भीतर से शैतान बसा,

“हाथ सुमिरनी बगल कतरनी”, ये कैसा रस्ता?

वादे प्यार के, और इरादे कुछ और,

दुनिया ये कैसी, जहाँ नीयत में है शोर।

आड़ में धर्म की, करते रहे सब खेल,

सच का सामना करना, बन गया अब मेल।

जो दिखता नहीं, वही सच में होता प्यारा,

“हाथ सुमिरनी बगल कतरनी”, सच्चाई से है ये सारा।

 

हाथ सुमिरनी बगल कतरनी शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of हाथ सुमिरनी बगल कतरनी – Haath sumirani bagal katarni Idiom:

Introduction: “Haath sumirani bagal katarni” is an idiom in the Hindi language that depicts the behavior of those who appear religious or saint-like outwardly but have different intentions inwardly.

Meaning: “Praying with hands” means engaging in worship or prayer, and “pocketing stealthily” means being involved in theft or unethical activities. Thus, this idiom is used for those who pretend to be religious but are actually engaged in immoral actions.

Usage: This idiom is particularly useful in situations where one needs to expose the dual character of a person. It is also used to raise awareness against hypocrisy and pretense in society.

Example:

-> In social life: When a person, known as a religious guru in society, is secretly involved in unethical activities, people say he is “praying with hands but pocketing stealthily.”

-> In professional life: A businessman who donates large sums in the name of religious charity but commits tax evasion and other unethical acts in his business.

Conclusion: The idiom “Haath sumirani bagal katarni” teaches us that there can be a big difference between outward show and inner intentions. It also tells us that we should always value people’s actions over their words and try to understand the real character hidden behind superficial religiosity.

Story of ‌‌Haath sumirani bagal katarni Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a priest known for his piety. His devotional sermons and religious deeds had earned him respect and honor throughout the village. Every day, he would perform worship in the temple and teach people about religion.

However, the priest had another habit unknown to anyone. At night, outside the village, he would gamble in a small hut and earn illegal money. This side of him was hidden from everyone, and while he spoke of righteousness during the day, he resorted to immorality at night.

One day, an honest villager saw the priest gambling in the hut. The next day, when the priest was delivering a sermon in the temple, that person revealed his true nature in front of all the villagers.

The villagers were shocked and disappointed. They could not believe that the person who preached about morality during the day could engage in such acts at night. The priest’s double life made him a symbol of the idiom “praying with hands but pocketing stealthily.”

This story teaches us that there can be a significant difference between outward show and inner intentions. It is essential that we align our actions with our words and follow genuine religiosity and morality.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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