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गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त अर्थ, प्रयोग (Gawah chust, Muddai sust)

“गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त” एक प्रचलित हिंदी मुहावरा है जिसका प्रयोग अक्सर उन परिस्थितियों में किया जाता है जहाँ मुकदमे में शिकायतकर्ता की अपेक्षा गवाह अधिक सक्रिय और तत्पर दिखाई देते हैं। यह मुहावरा उस स्थिति का वर्णन करता है जब मुद्दई (वादी) अपने मामले में उत्साह या रुचि नहीं दिखाता, जबकि गवाह उसके मामले को सक्रियता और चुस्ती से आगे बढ़ाते हैं।

परिचय: इस मुहावरे का उपयोग कई बार व्यंग्यात्मक रूप से किया जाता है ताकि यह दर्शाया जा सके कि किसी मामले में वास्तविक रुचि रखने वाले व्यक्ति से अधिक दूसरे लोग प्रयास कर रहे हैं।

अर्थ: “गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त” का अर्थ है कि जब मुकदमे या विवाद में शिकायतकर्ता अपने मामले को लेकर उदासीन या निष्क्रिय हो, लेकिन गवाह या समर्थक अधिक सक्रिय और चालाकी से काम लेते हैं।

प्रयोग: यह मुहावरा अक्सर न्यायिक प्रक्रियाओं, व्यावसायिक विवादों, या सामाजिक मुद्दों में इस्तेमाल होता है जहाँ मुद्दई की तुलना में गवाह या सहायक अधिक सक्रिय होते हैं।

उदाहरण:

-> एक व्यक्ति जो अपने खिलाफ हुए अन्याय के लिए कोर्ट में केस लड़ रहा था, वह खुद तो मामले में कोई विशेष रुचि नहीं दिखा रहा था, लेकिन उसके दोस्त और परिवार के लोग उसके मामले को लेकर अधिक सक्रिय और चिंतित थे।

निष्कर्ष: “गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि किसी भी मामले या विवाद में सक्रियता और तत्परता महत्वपूर्ण होती है। यह विशेष रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण होता है जहाँ न्याय की मांग की जा रही हो। यह हमें यह भी सिखाता है कि किसी भी स्थिति में अपनी भूमिका और जिम्मेदारियों को समझना और उन्हें निभाना अत्यंत आवश्यक है।

गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त मुहावरा पर कहानी:

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में मुनीश नाम का एक किसान रहता था। मुनीश की जमीन पर उसके पड़ोसी ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया था। मुनीश ने अपनी जमीन वापस पाने के लिए कोर्ट में केस दर्ज किया। लेकिन, मुनीश अपने रोजमर्रा के कामों में इतना व्यस्त रहता कि उसे केस की सुनवाई के लिए कोर्ट जाने का समय ही नहीं मिल पाता।

इस बीच, मुनीश के कुछ दोस्त और रिश्तेदार उसके केस को लेकर काफी चिंतित थे। वे न सिर्फ कोर्ट की हर सुनवाई में उपस्थित रहते, बल्कि वकीलों से मिलकर मुनीश के मामले की ठोस तैयारी भी करते। उन्होंने गवाहों को तैयार किया, जरूरी दस्तावेज इकट्ठा किए और हर संभव प्रयास किया ताकि मुनीश को उसकी जमीन वापस मिल सके।

आखिरकार, जब केस का फैसला आया, तो मुनीश के पक्ष में फैसला सुनाया गया। मुनीश को उसकी जमीन वापस मिल गई, लेकिन उसे एहसास हुआ कि इस जीत का श्रेय उसके अपने प्रयासों से ज्यादा उसके दोस्तों और रिश्तेदारों को जाता है, जिन्होंने उसके मामले को लेकर अधिक सक्रियता दिखाई।

मुनीश के मामले में, वह “मुद्दई” था जो “सुस्त” था, जबकि उसके गवाह और समर्थक “चुस्त” थे। इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि किसी भी मामले में व्यक्तिगत प्रयास के साथ-साथ समर्थन और सक्रिय भागीदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है।

शायरी:

मेहनत हमने की, पर फैसला किसी और का,

जिंदगी में यही तो है सबसे बड़ा सबक यारों का।

गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त, कहानी है पुरानी,

हकीकत में भी देखो, यही किस्सा हर ज़ुबानी।

खेला जो खेल दिल से, वो रह गया खाली हाथ,

मेहनत का मोल नहीं, यही दुनिया की रीत साथ।

लड़ते रहे हम अपनी लड़ाई, बिना किसी शोर के,

पर जीत की माला, गले में पड़ी किसी और के।

यही है जिंदगी का सफर, यही है इसकी मिठास,

गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त, यही है जिंदगी की आस।

 

गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त – Gawah chust, Muddai sust Idiom:

Introduction: “गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त” (Gawah chust, Muddai sust) is a popular Hindi idiom used to describe situations where the person responsible for initiating an action or case shows less enthusiasm or diligence compared to the witnesses or supporters. This idiom illustrates scenarios where the efforts and vigor are primarily displayed by someone other than the principal party involved.

Meaning: The literal meaning of this idiom is that in a situation, such as a legal case, the witness (or supporter) shows more promptness and keenness than the plaintiff (the person who has filed the case). It points to a peculiar situation where the person who should be most concerned and active appears to be indifferent or less active.

Usage: This idiom is often used in contexts where a disparity in enthusiasm and effort between the main party and the supporting members is evident. It serves to highlight the irony in situations where those indirectly involved are more proactive than those directly affected.

Example:

-> In a legal battle, where a person fighting for justice is less active in pursuing his case, whereas his friends and family are more concerned and vigorous in seeking justice on his behalf.

Conclusion: The idiom “गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त” teaches us the importance of being proactive and diligent in any situation, especially where seeking justice or resolution is concerned. It underscores the need for the main party to recognize and fulfill their role and responsibilities, emphasizing the unexpected role reversal between the involved parties.

Story of ‌‌Gawah chust, Muddai sust Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a farmer named Munish. His neighbor had illegally occupied his land. To reclaim his land, Munish filed a case in court. However, Munish was so engrossed in his daily chores that he hardly found time to attend the court hearings.

Meanwhile, Munish’s friends and relatives were quite concerned about his case. They not only attended every court hearing but also met with lawyers to prepare solidly for Munish’s case. They prepared witnesses, collected necessary documents, and made every possible effort to ensure Munish could get his land back.

Eventually, when the verdict was announced, it was in Munish’s favor. Munish got his land back, but he realized that the credit for this victory went more to his friends and relatives, who showed more activity regarding his case, rather than his own efforts.

In Munish’s case, he was the “plaintiff” who was “lethargic,” whereas his witnesses and supporters were “alert.” This story teaches us that along with personal efforts, support, and active participation are equally important in any matter.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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