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दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम, अर्थ, प्रयोग(Duvidha me dono gaye maya mili na ram)

हर भाषा में अपनी खासियत होती है और हिंदी भाषा में मुहावरे वह खासियत लाते हैं। आज हम “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” इस मुहावरे के बारे में जानेंगे।

अर्थ: “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” मुहावरे का अर्थ होता है कि जब किसी व्यक्ति को दो विकल्प मिलते हैं और वह दोनों में से किसी एक को चुनने में असमर्थ रहता है, जिससे वह दोनों ही मौकों या वस्त्रों को खो देता है।

उदाहरण:

-> अभय ने अपने दो दोस्तों की शादी में जाने की सोची, लेकिन आखिरकार उसने किसी भी शादी में नहीं जाने का निर्णय लिया, और फिर उसे समझ में आया “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम”।

-> पारुल को दो अच्छी नौकरियाँ मिलीं, लेकिन वह उलझन में पड़ गई कि कौन सी चुने। जब तक वह निर्णय ले पाई, दोनों नौकरियाँ चली गईं।

निष्कर्ष: जब कोई व्यक्ति दो चीजों में फंस जाता है और उसे चुनने में कठिनाई होती है, तो अधिकांश समय वह दोनों ही मौकों को खो देता है। इसी बात को इस मुहावरे में प्रकट किया गया है। जैसे किसी को दो अच्छी जॉब्स की पेशकश हो और वह चुनने में असमर्थ रहे, तो हो सकता है वह दोनों जॉब्स को भी खो दे।

इस मुहावरे से हमें यह सीख मिलती है कि कभी-कभी जिंदगी में त्वरित निर्णय लेना जरूरी होता है, वरना हमें वह मौका हाथ से जाने का जोखिम हो सकता है।

Hindi Muhavare Quiz

दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम मुहावरा पर कहानी:

सुरेंद्र एक गाँव में रहता था और वह बहुत ही अच्छा तैराक था। गाँव के लोग अक्सर उसे दो बोटों को साथ में चलाते हुए देखते थे। वह इसमें माहिर था और लोग उसकी इस कला को देखकर हैरान रह जाते थे।

एक दिन, गाँव में एक बड़ा मेला आया। मेले में दो बड़े प्रतियोगिता हो रही थी। पहली तैराकी की, और दूसरी बोट चलाने की। सुरेंद्र को लगा कि यदि वह दोनों प्रतियोगिता में भाग लेता है, तो शायद वह दोनों में ही जीत सकता है।

पहली प्रतियोगिता तैराकी की शुरू हुई। सुरेंद्र ने अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन उसे जल्दी फिनिश लाइन पार करने की जल्दी थी ताकि वह दूसरी प्रतियोगिता में भी भाग ले सके। जब वह पानी से बाहर आया, तो दूसरी प्रतियोगिता की शुरुआत हो चुकी थी।

सुरेंद्र जल्दी-जल्दी बोट में कूद पड़ा, लेकिन उसने अभी अच्छे से सांस नहीं ली थी। वह अधिक समय तक बोट को संतुलित नहीं कर पाया और बोट पलट गई।

सुरेंद्र ने सोचा कि वह दोनों प्रतियोगिता में भाग लेकर दोनों में ही जीत सकता है, लेकिन अंत में वह “दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम”। उसे ना पहली प्रतियोगिता में जीत मिली और ना ही दूसरी में।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि कभी-कभी हमें एक चीज के पीछे भागने की जगह एक ही चीज पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि हम उसमें सफलता प्राप्त कर सकें।

शायरी:

दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम,

जीवन की राहों में, छुपा सजा हर धराम।

चाँद की तलाश में, खो दिए तारे अनगिनत,

मोहब्बत में जिसे खोया, वही बना दर्द का मुक़ाम।

अफसोस है उस लम्हे पर, जब दो राहें आई सामने,

और दिल ने सुनी न किसी की, चल पड़ा अपनी धुन पर आलाम।

ख़्वाब अनेक देखे थे, पर आँखें थीं बंद उस समय,

ज़िंदगी का मतलब समझा, जब मिला खुदा से वो इनाम।

 

दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम – Duvidha me dono gaye maya mili na Ram Idiom:

Every language has its own uniqueness, and in the Hindi language, idioms bring that special touch. Today, we will learn about the idiom “Duvidha me dono gaye maya mili na Ram.”

Introduction: The meaning of the idiom “Duvidha me dono gaye maya mili na Ram” is that when an individual is presented with two options and is unable to choose between them, they end up losing both opportunities or assets.

Usage:

-> Abhay thought of attending the weddings of his two friends, but in the end, decided not to go to either. Later, he realized, “Duvidha me dono gaye maya mili na Ram.”

-> Parul received offers from two good jobs but got confused about which one to choose. By the time she made up her mind, both job offers had expired.

Conclusion: When an individual is stuck between two choices and finds it difficult to decide, most of the time, they end up losing both opportunities. This essence is captured in this idiom. For instance, if someone is offered two great jobs and can’t decide which to take, they might end up losing both.

This idiom teaches us that sometimes, it’s essential to make prompt decisions in life; otherwise, there’s a risk of letting an opportunity slip through our fingers.

Story of ‌‌Duvidha me dono gaye maya mili na ram Idiom in English:

Surendra lived in a village and was an exceptional swimmer. The villagers often saw him managing two boats simultaneously. He was skilled in this, and people would be amazed watching his talent.

One day, a large fair came to the village. In the fair, there were two major competitions. One was swimming, and the other was boat rowing. Surendra thought that if he participated in both competitions, he might win in both.

The swimming competition started first. Surendra performed well, but he was in a hurry to finish quickly so that he could also participate in the next event. By the time he got out of the water, the boat-rowing competition had already started.

Surendra hurriedly jumped into the boat, but he hadn’t caught his breath properly. He couldn’t balance the boat for long, and it capsized.

Surendra thought he could participate and win in both competitions, but in the end, he was caught in a dilemma and lost both opportunities, resonating with the idiom “Duvidha me dono gaye maya mili na Ram.” He neither won the first competition nor the second.

This story teaches us that sometimes, instead of chasing after two things, we should focus our attention on just one to achieve success in it.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

“दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” मुहावरे की उत्पत्ति कैसे हुई?

इस मुहावरे की उत्पत्ति के सटीक इतिहास के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है, लेकिन यह भारतीय संस्कृति में प्रचलित धार्मिक और सांस्कृतिक कथाओं से प्रेरित हो सकता है, जहाँ “माया” और “राम” आध्यात्मिक और भौतिक लाभों का प्रतीक हैं।

क्या इस मुहावरे का प्रयोग आज के समय में भी प्रासंगिक है?

हां, इस मुहावरे का प्रयोग आज के समय में भी बेहद प्रासंगिक है, क्योंकि यह उन स्थितियों को व्यक्त करता है जहाँ लोग विकल्पों के चयन में असमर्थ होते हैं।

क्या “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” मुहावरे से कोई नैतिक शिक्षा मिलती है?

हां, इस मुहावरे से नैतिक शिक्षा मिलती है कि निर्णय लेने में दृढ़ता और स्पष्टता महत्वपूर्ण है। असमंजस में रहने से अंततः कोई भी लाभ नहीं मिलता।

क्या “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” स्थिति से बचने के लिए कोई उपाय है?

हां, दुविधा से बचने के लिए गहन विचार-विमर्श, सलाह लेना, और सूचित निर्णय लेने की प्रक्रिया महत्वपूर्ण है। आत्म-विश्लेषण और लक्ष्यों की स्पष्टता भी महत्वपूर्ण है।

क्या “दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम” स्थिति से बचने के लिए व्यक्तिगत विकास महत्वपूर्ण है?

हां, व्यक्तिगत विकास और आत्म-जागरूकता इस प्रकार की दुविधा से बचने में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताओं को समझने और स्पष्ट निर्णय लेने में सहायता करते हैं।

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