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दिमाग खाना, अर्थ, प्रयोग(Dimag khana)

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हर भाषा में विशेष वाक्यांश होते हैं जो वहाँ की सांस्कृतिक प्रशास्ति को दर्शाते हैं। हिंदी भाषा में भी अनेक मुहावरे हैं जो विशेष अर्थ प्रकट करते हैं। ऐसा ही एक मुहावरा है “दिमाग खाना”।

अर्थ: “दिमाग खाना” का अर्थ है किसी को परेशान करना, बार-बार उससे बिना विचार-समझ बात करना या उसे बिना बात के चिढ़ाना। अक्सर तब प्रयुक्त होता है जब कोई व्यक्ति अन्य को बिना रुके सताता है या अत्यधिक बक-बक करके उसका मनोबल तोड़ता है।

उदाहरण:

-> सुरेंद्र ने मुनीश को बार-बार अपनी बेतुकी बातों से सताया, जिस पर मुनीश ने कहा, “अब और मत बोल, तुम मेरा दिमाग खा रहे हो।”

-> “रोज-रोज यह बिना सिर-पैर की बातें करके तुम मेरा दिमाग खा रहे हो।”

विस्तार: जब किसी व्यक्ति के बिना मतलब की बातें या अनवरंत परेशानी से हमारी सहनशीलता की सीमा पार हो जाती है, हम कहते हैं कि वह व्यक्ति हमारा ‘दिमाग खा रहा है’। इस मुहावरे का प्रयोग अक्सर उन समयों पर होता है जब हम अपनी असहमति या असंतोष को व्यक्त करने में असमर्थ अनुभव करते हैं।

निष्कर्ष: जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब हमें लगता है कि किसी ने हमारा दिमाग खा लिया

दिमाग खाना मुहावरा पर कहानी:

अनुज और अमन दो भाई थे। अनुज बड़ा था, जबकि अमन उससे दो साल छोटा था। दोनों ही अच्छे छात्र थे और अपनी पढ़ाई में मन लगाए रहते थे।

अमन की एक आदत थी कि वह बार-बार अनुज के पास जाकर उससे बेतुकी बातें करता रहता। चाहे अनुज पढ़ाई में व्यस्त हो, सो रहा हो या किसी अन्य कार्य में लगा हो, अमन हमेशा उसे परेशान करता रहता।

“भैया, आपको पता है आज मेरे सपने में क्या आया?” “भैया, आज मुझे स्कूल में किसने मारा, आपको पता है?” “भैया, आप मुझसे ज्यादा तेज दौड़ सकते हैं क्या?” ऐसी-ऐसी अनगिनत बातें अमन पूछता रहता था।

एक दिन, जब अनुज अपनी जरूरी परीक्षा की तैयारी में मगन था, अमन ने उसे बार-बार बुलाकर अपनी नई खिलौने की कहानी सुनाई। अनुज ने धैर्य रखने की पूरी कोशिश की, लेकिन अब उसकी सीमा पार हो चुकी थी।

अचानक, वह उठा और अमन से बोला, “तुम मेरा दिमाग खा चुके हो! कृपया मुझे अब पढ़ने दो।”

अमन चौंक गया। वह समझ गया कि उसकी बेतुकी बातों से अनुज परेशान हो गया है। वह माफी मांगने लौटा और प्रण किया कि अब वह बिना जरूरत के अपने भैया को परेशान नहीं करेगा।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अन्य की जरूरतों और समय का सम्मान करना चाहिए। “दिमाग खाना” मुहावरा अक्सर तब प्रयोग होता है जब हम किसी को अधिक परेशान करते हैं और उसकी सहनशीलता की सीमा पार हो जाती है।

शायरी:

जब तू पास हो, फिजाओं में बहार है,

तेरी बातों में छुपा, कुछ अजीब इक इश्क़ का अहसास है।

तेरी हर बेतुकी बात मेरा दिमाग खाती है,

मगर फिर भी तेरी आवाज़ में वो ख़ास बात जो पास लाती है।

 

दिमाग खाना शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of दिमाग खाना – Dimag khana Idiom:

Every language has unique phrases that reflect its cultural essence. Hindi, too, boasts numerous idioms that convey specific meanings. One such idiom is “Dimag khana” which translates to “eating one’s brain.”

Introduction: “Dimag khana” literally means to “eat someone’s brain,” but its colloquial usage implies annoying someone, incessantly talking to them without consideration, or irking them without reason. It’s often used when someone is persistently bothering another or dampening their spirit through incessant chatter.

Usage:

-> Surendra kept bothering Munish with his nonsensical talks, to which Munish exclaimed, “Stop talking, you’re eating my brain!”

-> “Every day with your pointless talks, you are eating my brain.”

Detail: When someone’s baseless talks or constant nagging pushes our patience to the limit, we say that person is “eating our brain.” This idiom is frequently used during times when we find it difficult to express our disagreement or dissatisfaction.

Conclusion: There are several instances in life when we feel someone has indeed “Dimag khana.”

Every language has unique phrases that reflect its cultural essence. Hindi, too, boasts numerous idioms that convey specific meanings. One such idiom is “Dimag khana” which translates to “eating one’s brain.”

Story of Dimag khana Idiom in English:

Anuj and Aman were two brothers. Anuj was the elder one, while Aman was two years younger. Both were good students and were always engrossed in their studies.

Aman had a habit of constantly approaching Anuj and engaging him in pointless conversations. Whether Anuj was busy studying, sleeping, or involved in some other task, Aman would always find a way to disturb him.

“Brother, do you know what I dreamt of today?” “Brother, do you know who hit me in school today?” “Brother, can you run faster than me?” These were the endless questions Aman would ask.

One day, when Anuj was deeply engrossed in preparing for an important exam, Aman repeatedly interrupted him to narrate the story of his new toy. Anuj tried to remain patient, but he had reached his breaking point.

Suddenly, he stood up and told Aman, “You’ve completely eaten my brain! Please let me study now.”

Aman was taken aback. He realized that his incessant chatter had annoyed Anuj. He apologized and promised not to disturb his brother unnecessarily in the future.

The story teaches us that we should respect others’ needs and time. The phrase “eating one’s brain” is often used when we excessively bother someone, pushing their patience to the limit.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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