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दाल भात में मूसलचंद अर्थ, प्रयोग(Dal bhat mein moosalchand)

परिचय: “दाल भात में मूसलचंद” एक प्रचलित हिंदी मुहावरा है, जिसका प्रयोग तब किया जाता है जब कोई तीसरा व्यक्ति दो लोगों के मामलों में बेवजह और अनुचित रूप से हस्तक्षेप करता है।

अर्थ: इस मुहावरे का अर्थ है कि दो लोगों के बीच के मामलों में तीसरे व्यक्ति का आना उसी प्रकार अनुपयुक्त होता है, जैसे कि दाल और भात (चावल) में मूसल (एक बड़ा और भारी उपकरण) का होना।

प्रयोग: इस मुहावरे का इस्तेमाल तब किया जाता है जब किसी तीसरे व्यक्ति का हस्तक्षेप अनावश्यक और असंगत होता है, खासकर जब दो लोगों के बीच का मामला हो।

उदाहरण:

-> जब अनुभव और अपर्णा के बीच बातचीत चल रही थी और विकास ने बीच में आकर अपनी राय दी, तो अनुभव ने कहा, “ये तो दाल भात में मूसलचंद वाली बात हो गई।”

-> विशाल और पारुल अपने घरेलू मामले सुलझा रहे थे जब उनका पड़ोसी अचानक आ गया और सलाह देने लगा। विशाल ने कहा, “अरे भाई, ये तो दाल भात में मूसलचंद हो गया।”

निष्कर्ष: “दाल भात में मूसलचंद” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि दूसरों के निजी मामलों में बिना बुलाए या अनावश्यक रूप से दखल नहीं देना चाहिए। यह हमें यह भी बताता है कि हर स्थिति में हस्तक्षेप करना उचित नहीं होता, और कई बार यह और भी जटिलताएं पैदा कर सकता है।

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दाल भात में मूसलचंद मुहावरा पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में विकास और अखिल नाम के दो दोस्त रहते थे। वे बचपन से ही एक-दूसरे के अच्छे मित्र थे और अपने सभी मामलों में एक-दूसरे की राय लेते थे।

एक दिन, उनके बीच एक छोटी सी बात पर मतभेद हो गया। वे इसे सुलझाने के लिए बैठे ही थे कि गाँव का एक अन्य व्यक्ति, मोहन, वहाँ पहुंचा। मोहन ने बिना पूरी बात जाने ही उनके मामले में दखल देना शुरू कर दिया और अपनी राय थोपने लगा।

विकास और अखिल दोनों ही मोहन के इस व्यवहार से परेशान हो गए। विकास ने अखिल से कहा, “देखो, हमारे बीच की बात में मोहन का आना बिल्कुल ‘दाल भात में मूसलचंद’ जैसा है। हम दोनों अपने मामले खुद सुलझा सकते हैं।”

अखिल ने भी सहमति जताई और वे दोनों मोहन को समझा बुझाकर वहाँ से भेज दिया। फिर वे दोनों अपने मामले को आपस में बैठकर शांति से सुलझा लिया।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि दूसरों के निजी मामलों में बिना बुलाए दखल नहीं देना चाहिए। “दाल भात में मूसलचंद” मुहावरा इसी भावना को दर्शाता है, जहां अनावश्यक हस्तक्षेप सिर्फ मामले को और जटिल बना देता है।

शायरी:

दाल भात में मूसलचंद, ये कैसी बेतुकी बात है,

जहां दो दिलों की बात हो, वहां तीसरे का क्या काम है।

कभी-कभी खामोशी भी, बहुत कुछ कह जाती है,

जहां ना हो अपना मामला, वहां चुप्पी ही भली लगती है।

दोस्तों की बातों में, जब तीसरा दखल देता है,

तो उसके बेवजह के बोल, मामले को उलझा देता है।

जैसे हर दास्तान में, हर किरदार की अपनी जगह होती है,

वैसे ही हर बातचीत में, हर व्यक्ति की अपनी भूमिका होती है।

जहां दो दिल मिलते हैं, वहां तीसरे की ना जरूरत होती है,

“दाल भात में मूसलचंद” यही सिखाती है, जहां अपनी बात हो वहां दूसरों की ना ज़रूरत होती है।

 

दाल भात में मूसलचंद शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of दाल भात में मूसलचंद – Dal bhat mein moosalchand Idiom:

Introduction: “दाल भात में मूसलचंद” is a popular Hindi idiom used when a third person unfairly and inappropriately interferes in matters between two people.

Meaning: The idiom means that the involvement of a third person in matters between two people is as inappropriate as having a heavy and large tool (pestle) in a simple dish of dal and rice. It signifies unwarranted and incongruous interference.

Usage: This idiom is employed when the interference of a third person is unnecessary and irrelevant, especially in matters concerning two people.

Usage:

-> When Anubhav and Aparna were having a discussion and Vikas intruded with his opinion, Anubhav said, “This is like having a pestle in dal and rice.”

-> Vishal and Parul were resolving their domestic issues when their neighbor suddenly came in and started giving advice. Vishal said, “Oh brother, this is like putting a pestle in dal and rice.”

Conclusion: The idiom “दाल भात में मूसलचंद” teaches us that one should not interfere in others’ private matters uninvited or unnecessarily. It also conveys that intervention is not always appropriate and can sometimes complicate situations further.

Story of ‌‌Dal bhat mein moosalchand Idiom in English:

In a small village, there lived two friends named Vikas and Akhil. They had been good friends since childhood and always sought each other’s advice in all matters.

One day, they had a minor disagreement. As they sat down to resolve it, another villager, Mohan, arrived. Without knowing the whole story, Mohan started interfering in their matter and imposing his opinion.

Vikas and Akhil both got annoyed by Mohan’s behavior. Vikas said to Akhil, “Look, Mohan’s involvement in our matter is just like ‘adding a pestle in dal and rice.’ We can resolve our issues on our own.”

Akhil agreed, and they politely explained to Mohan and sent him away. Then, the two friends calmly resolved their issues by themselves.

This story teaches us not to interfere in others’ private matters uninvited. The idiom “दाल भात में मूसलचंद” reflects this sentiment, indicating how unnecessary interference only complicates matters further.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

क्या इस मुहावरे का उपयोग नकारात्मक रूप से भी किया जा सकता है?

हाँ, कभी-कभी इस मुहावरे का उपयोग नकारात्मक रूप से भी किया जा सकता है, जब किसी को किसी कारण से नकारात्मक तरीके से आलोचना किया जाता है।

इस मुहावरे का उपयोग किस परिस्थिति में हो सकता है?

यदि किसी व्यक्ति ने अपनी भूमिका में कुछ विशेष नहीं किया हो और उसका योगदान सामान्य हो, तो उस परिस्थिति में इस मुहावरे का उपयोग किया जा सकता है।

“दाल भात में मूसलचंद” का अर्थ क्या है?

दाल भात में मूसलचंद” मुहावरा हिंदी में एक उपमहाद्वीपीय कहावत है जिसका अर्थ है ‘सामान्य और साधारित्य में कुछ विशेष या उदार नहीं होता है।’

क्या इस मुहावरे का कोई संबंध प्राचीन कथाओं से है?

नहीं, इस मुहावरे का कोई विशेष प्राचीन संबंध नहीं है, यह आम भाषा में एक सामान्य मुहावरा है।

“दाल भात में मूसलचंद” का इतिहास क्या है?

इस मुहावरे का विशिष्ट इतिहास नहीं है, लेकिन यह हिंदी भाषा में दृष्टांत देने के लिए प्रचलित है।

हिंदी मुहावरों की पूरी लिस्ट एक साथ देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

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