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दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते अर्थ, प्रयोग(Daan ki bachhiya ke daant nahi dekhe jate)

परिचय: “दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते” मुहावरे का प्रयोग उस समय होता है जब दान में मिली चीज की गुणवत्ता या मूल्य पर प्रश्न नहीं किया जाता। बछिया यानी एक छोटी गाय, और इस मुहावरे में बछिया के दाँतों का मतलब है उसकी आयु या स्वास्थ्य का आकलन। परंपरागत रूप से, दान में मिली चीज की जाँच-परख न करना ही उचित माना जाता है।

अर्थ: इस मुहावरे का अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति आपको कुछ दान करता है, तो उस उपहार की आलोचना नहीं करनी चाहिए। दान में मिली वस्तु की कीमत या गुणवत्ता पर टिप्पणी करना अनुचित है।

प्रयोग: इस मुहावरे का प्रयोग अक्सर उस स्थिति में किया जाता है जब किसी को उपहार या दान में कुछ मिलता है और वे उसके बारे में शिकायत या आलोचना करते हैं।

उदाहरण:

उदाहरण के तौर पर, यदि किसी ने आपको कोई पुरानी किताब दान में दी और आप उसके पन्नों की गुणवत्ता पर टिप्पणी करते हैं, तो यह कहा जा सकता है कि आप “दान की बछिया के दाँत देख रहे हैं”।

निष्कर्ष: “दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते” मुहावरा हमें सिखाता है कि जब कोई हमें कुछ दान करता है, तो हमें उसकी कीमत या गुणवत्ता पर टिप्पणी करने की बजाय उसके प्रति आभारी होना चाहिए। यह मुहावरा उदारता और कृतज्ञता की भावना को बढ़ावा देता है।

Hindi Muhavare Quiz

दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते मुहावरा पर कहानी:

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक साधारण परिवार रहता था। इस परिवार का मुखिया, प्रेमचंद्र किसान, एक दयालु और उदार व्यक्ति था। उनका परिवार साधारण था, लेकिन वे हमेशा अपने आस-पास के लोगों की मदद करने को तैयार रहते थे।

एक दिन, गांव में एक संत आए। उन्होंने गांव के हर परिवार को आशीर्वाद दिया और बदले में गांव वालों ने उन्हें जो कुछ भी दे सकते थे, वह दान किया। जब संत प्रेमचंद्र के घर पहुंचे, प्रेमचंद्र ने अपनी पुरानी लेकिन कीमती किताब संत को दान में दी।

लेकिन गांव के एक धनी व्यापारी ने यह देखा और व्यंग्य करते हुए कहा, “देखो, प्रेमचंद्र ने कितनी पुरानी किताब दान की है। क्या उसे कुछ बेहतर दान नहीं करना चाहिए था?” संत ने यह सुना और व्यापारी से कहा, “बेटा, ‘दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते’। प्रेमचंद्र ने जो दिल से दिया, वही महत्वपूर्ण है। दान की वस्तु की कीमत या स्थिति पर टिप्पणी करना उचित नहीं है।”

इस पर व्यापारी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने प्रेमचंद्र से क्षमा मांगी। उस दिन से, गांव के लोगों ने भी समझा कि दान करते समय उसकी कीमत या गुणवत्ता नहीं बल्कि देने वाले की भावना महत्वपूर्ण होती है।

इस प्रकार, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि दान की गई चीजों की गुणवत्ता पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए और हमें दान की भावना का सम्मान करना चाहिए।

शायरी:

दान में जो मिला है, उसकी कदर करें हम,

‘दान की बछिया के दाँत’ न देखें, ये नजरिया बदलें हम।

जो दिया है दिल से, उसका मोल नहीं देखते,

दान की कीमत पर, कभी सवाल नहीं करते।

नेकी के फूलों में, काँटे नहीं तलाशते,

जो भी मिला खुदा से, उसे खुशी से बाँटते।

दान की बछिया के, दाँत नहीं गिनते यारों,

दिल से देने वाले, होते हैं सच्चे नवाज़ों।

देने की इस अदा में, बसा है जिंदगी का सार,

दान की बछिया के दाँत, न देखो, ये है प्यार का असर।

 

दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते – Daan ki bachhiya ke daant nahi dekhe jate Idiom:

Introduction: The phrase “Daan ki bachhiya ke daant nahi dekhe jate” is used when one should not question the quality or value of a gift received. In this idiom, ‘cow’ refers to a young cow, and its teeth are used to assess its age or health. Traditionally, it is considered proper not to scrutinize a gift received as a donation.

Meaning: The meaning of this idiom is that when someone gives you something as a donation, you should not criticize that gift. Commenting on the value or quality of a donated item is inappropriate.

Usage: This idiom is often used in situations where someone receives a gift or donation and then complains or criticizes it.

Example:

For instance, if someone gives you an old book as a donation, and you comment on the quality of its pages, it can be said that you are “looking at the teeth of the gifted cow.”

Conclusion: The idiom “Daan ki bachhiya ke daant nahi dekhe jate” teaches us that when someone donates something to us, we should be grateful for it instead of commenting on its value or quality. This idiom promotes a sense of generosity and gratitude.

Story of ‌‌Daan ki bachhiya ke daant nahi dekhe jate Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a modest family. The head of the family, Premchandra, a farmer, was a kind and generous man. Although their means were modest, they were always ready to help their neighbors.

One day, a saint visited the village. He blessed every family, and in return, the villagers offered him whatever they could as donations. When the saint reached Premchandra’s house, Premchandra donated an old but valuable book to the saint.

However, a wealthy merchant of the village saw this and sarcastically commented, “Look at the old book Premchandra has donated. Shouldn’t he have given something better?” Hearing this, the saint replied to the merchant, “Son, ‘one shouldn’t look at the teeth of a gifted calf.’ What Premchandra gave from the heart is what matters. It’s not appropriate to comment on the value or condition of a donated item.”

Realizing his mistake, the merchant apologized to Premchandra. From that day on, the villagers also understood that when donating, it’s not the value or quality of the gift that’s important, but the sentiment of the giver.

Thus, this story teaches us that we should not comment on the quality of donated items and should respect the spirit of donation.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

क्या दान में दी गई हर चीज को बिना शिकायत के स्वीकार करना चाहिए?

आमतौर पर हां, लेकिन कुछ अपवाद भी हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, अगर दी गई चीज खराब या खतरनाक हो, तो उसे लेने से इनकार करना उचित है.

कब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है?

जब कोई किसी मुफ्त में मिली चीज की बुराई कर रहा हो या उसमें कमियां निकाल रहा हो, तब उसे याद दिलाने के लिए. या फिर जब हम खुद ऐसी स्थिति में हों और किसी उपहार पर उसकी कमियों के बारे में सोचने लगें.

इस कहावत का क्या अर्थ है?

इसका अर्थ है कि जब आपको कोई उपहार या दान मिलता है, तो उसमें खामियां तलाशना ठीक नहीं है. आपको उसे खुशी से स्वीकार करना चाहिए और देने वाले की उदारता की सराहना करनी चाहिए.

क्या इस कहावत को हमेशा सच माना जा सकता है?

हर कहावत की तरह, कुछ स्थितियों में इसका अपवाद भी हो सकता है. जैसे, अगर कोई जानबूझकर खराब चीज दे रहा है या किसी गलत मकसद से दान कर रहा है, तो सतर्कता जरूरी है.

क्या इसका मतलब है कि दान में दी गई चीजों की गुणवत्ता का बिलकुल ध्यान नहीं रखना चाहिए?

नहीं, इसका मतलब यह नहीं है. दान देने वाले को भी कोशिश करनी चाहिए कि वह अच्छी क्वालिटी की चीजें ही दें. लेकिन अगर कभी-कभार कोई खामी रह जाए, तो उस पर हद से ज्यादा राग न करने की सलाह दी जाती है.

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