परिचय: “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” यह हिंदी मुहावरा एक ऐसी स्थिति को व्यक्त करता है जहां व्यक्ति किसी भी निर्णय पर पहुंचे, उसका परिणाम नकारात्मक होता है। इस मुहावरे का प्रयोग उस परिस्थिति में होता है जहां कोई भी कार्यवाही व्यक्ति के लिए अनुकूल नहीं होती।
अर्थ: “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” का सीधा अर्थ है कि व्यक्ति किसी दुविधा में फंस जाता है जहां उसके पास ऐसे विकल्प नहीं होते जिनसे वह बच सके। यह एक ऐसी स्थिति का वर्णन करता है जहां हर संभव कदम नुकसानदायक होता है।
प्रयोग: इस मुहावरे का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति अपने आप को ऐसी स्थिति में पाता है जहां उसके पास चुनने के लिए कोई सुखद विकल्प नहीं होता।
उदाहरण:
-> “राजनीति में उस स्थिति में वह फंस गया था जहां ‘छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे’ जैसी स्थिति बन गई थी।”
-> “अगर मैं इस नौकरी को छोड़ दूं तो आर्थिक संकट है, न छोड़ूं तो मानसिक तनाव, वाकई में ‘छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे’ की स्थिति है।”
निष्कर्ष: “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” मुहावरा हमें जीवन की ऐसी दुविधाओं के बारे में बताता है जहां व्यक्ति के पास अनुकूल विकल्पों का अभाव होता है। यह मुहावरा हमें सिखाता है कि कभी-कभी जीवन में हमें ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जहां हर निर्णय का परिणाम कठिन होता है।
छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे मुहावरा पर कहानी:
एक छोटे से गाँव में, सुरेंद्र नाम का एक किसान रहता था। सुरेंद्र अपने खेतों में बहुत मेहनत से काम करता था, लेकिन उस वर्ष अचानक सूखा पड़ गया। स्थिति ऐसी थी कि अगर सुरेंद्र खेती करता तो बीज और पानी की कमी के कारण फसल बर्बाद हो जाती, और अगर नहीं करता तो उसका परिवार भूखा रह जाता। यह उसके लिए “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” जैसी स्थिति बन गई।
सुरेंद्र ने सोचा कि वह गाँव के जमींदार से मदद मांगेगा, लेकिन जमींदार ने बदले में उसकी जमीन का एक बड़ा हिस्सा मांग लिया। अब सुरेंद्र के सामने दोहरी समस्या थी – या तो वह अपनी जमीन गंवा दे या अपने परिवार को भूखा रखे।
सुरेंद्र ने बहुत सोच-विचार के बाद एक तीसरा रास्ता चुना। उसने अपने खेतों में सूखा प्रतिरोधी फसलें लगाईं और पास के गाँव से कम ब्याज पर कर्ज लेकर सिंचाई की व्यवस्था की। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई, और उसने न केवल अपने परिवार का पेट भरा बल्कि जमीन भी बचा ली।
इस कहानी के माध्यम से हमें यह सीखने को मिलता है कि “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” जैसी स्थितियों में भी, कभी-कभी तीसरा विकल्प खोजना संभव होता है। यह हमें बताता है कि कठिनाइयों में भी धैर्य और सोच-समझकर कदम उठाने से समस्या का समाधान निकल सकता है।
शायरी:
जिंदगी के इस मोड़ पर, फंस गया हूं ‘छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे’,
हर राह पर लगता है, जैसे मेरी किस्मत से जुदा मेरे कदम हो गए।
हर फैसला जैसे कोई सवाल है, हर जवाब नया इम्तिहान लगता है,
जीवन की इस दौड़ में, हर दिशा बेमानी सी लगती है।
छोड़ूं तो खाली हाथ, न छोड़ूं तो दिल पर बोझ,
हर दोराहे पर खड़ा, सोचता हूँ यह कैसा रोज़।
इस दुनिया की राहों में, कई बार ऐसे मोड़ आते हैं,
जहां हर कदम पर लगता है, जैसे सब कुछ खो जाते हैं।
जीवन के इस सफर में, ‘छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे’,
हर पल एक नयी चुनौती, हर रास्ते पर नया सवेरे।
पर इसी कश्मकश में, कहीं न कहीं छुपा है जीवन का राज़,
कि हर मुश्किल भी देती है, नया जीने का एक अंदाज़।
आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।
Hindi to English Translation of छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे – Chhode to mare, na chhode to mare Idiom:
Introduction: “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” (Chhode to mare, na chhode to mare) is a Hindi idiom that expresses a situation where no matter what decision a person makes, the outcome is negative. This idiom is used in scenarios where any action taken is unfavorable for the person.
Meaning: The literal meaning of “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” is that a person finds themselves in a dilemma where they have no options that could save them. It describes a situation where every possible step is detrimental.
Usage: This idiom is used when a person finds themselves in a situation where they have no pleasant options to choose from.
Example:
-> “He found himself in such a situation in politics where it became a case of ‘छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे’.”
-> “If I leave this job, I face financial crisis, and if I don’t, then mental stress, truly a ‘छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे’ situation.”
Conclusion: The idiom “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” tells us about life’s dilemmas where a person lacks favorable options. It teaches us that sometimes in life, we face situations where every decision leads to a difficult outcome.
Story of Chhode to mare, na chhode Idiom in English:
In a small village, there lived a farmer named Surendra. Surendra worked hard in his fields, but that year, a sudden drought struck. The situation was such that if Surendra cultivated his land, the crop would fail due to lack of seeds and water, and if he didn’t, his family would go hungry. He found himself in a “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” (Damned if you do, damned if you don’t) situation.
Surendra thought of seeking help from the village landlord, but the landlord demanded a large portion of his land in return. Now Surendra faced a double dilemma: lose his land or let his family starve.
After much thought, Surendra chose a third option. He planted drought-resistant crops in his fields and arranged for irrigation by taking a loan at a low interest rate from a nearby village. Gradually, his hard work paid off, and he managed not only to feed his family but also to save his land.
This story teaches us that even in “छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” situations, sometimes it is possible to find a third option. It shows that solutions can be found even in difficulties with patience and well-thought-out steps.
I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly
FAQs:
क्या इस मुहावरे का कोई विशेष इतिहास है?
हाँ, यह मुहावरा भारतीय साहित्य और लोककथाओं में प्रचलित है और इसे अक्सर जीवन की कठिनाईयों को व्यक्त करने के लिए उपयोग किया जाता है।
इस मुहावरे का उपयोग कहाँ हो सकता है?
यह मुहावरा विशेषकर कठिन परिस्थितियों में या किसी मामूली से गहरे दिल के मुद्दे पर चर्चा करते समय उपयोग हो सकता है।
“छोड़े तो मरे, न छोड़े तो मरे” मुहावरे का अर्थ क्या है?
यह मुहावरा एक स्थिति को बयान करता है जिसमें कोई व्यक्ति किसी भी स्थिति में मुसीबत में है, जिसे उसे ना तो छोड़ने का अधिकार है और ना ही उसे बचाने का कोई विकल्प है।
इस मुहावरे का उपयोग कैसे किया जा सकता है?
इस मुहावरे का उपयोग किसी के जीवन में आ रही किसी सीधी या मुश्किल परिस्थिति को विवेचना करते समय किया जा सकता है।
क्या इस मुहावरे का कोई सामाजिक संदेश है?
हाँ, इस मुहावरे के माध्यम से समझाया जा सकता है कि कभी-कभी जीवन में हमें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसमें हमारे पास विकल्प कम होते हैं।
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