अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण: आपका स्वागत है! हम “My Non-Violence (मेरी अहिंसा)” नामक अद्भुत पुस्तक के एक और अध्याय का संक्षेप प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसे महात्मा गांधी जी ने लिखा है। इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांत तक ले जाएंगे, और उनकी गहन शिक्षाओं को साझा करेंगे। हर अध्याय में उनके अनमोल विचारों को समझाने का हमारा प्रयास रहेगा।
परिचय:
अध्याय 10 में महात्मा गांधी विश्वविद्यालयों में सैन्य प्रशिक्षण के विषय में अपने विचार व्यक्त करते हैं। एक अल्लाहाबाद विश्वविद्यालय के स्नातक ने उनसे कुछ प्रश्न किए जिनका उत्तर देते हुए गांधीजी ने स्पष्ट किया कि वे सैन्य प्रशिक्षण के विरोधी हैं, विशेषकर जब यह सरकार द्वारा विधित हो।
अध्याय 10 से प्रमुख बिंदु:
- गांधीजी विश्वविद्यालयों में सैन्य प्रशिक्षण के अनिवार्य होने के विचार का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और विचारधारा को हानि पहुंचा सकता है।
- वे मानते हैं कि सैन्य प्रशिक्षण के जरिए सरकार विद्यार्थियों को अपने खिलाफ या अन्य देशों के खिलाफ उपयोग कर सकती है।
- गांधीजी का मानना है कि शारीरिक सांस्कृतिक प्रशिक्षण को शिक्षा का एक हिस्सा माना जाना चाहिए, जबकि सैन्य प्रशिक्षण को नहीं।
निष्कर्ष:
गांधीजी के अनुसार, सैन्य प्रशिक्षण को विश्वविद्यालयों में अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। वे इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता के विरुद्ध मानते हैं और यह मानते हैं कि यह विद्यार्थियों को एक निश्चित दिशा में मजबूर कर सकता है, जो उनकी व्यक्तिगत विचारधारा और स्वतंत्रता को हानि पहुंचा सकता है।
अगले अध्याय में और भी ज्ञानवर्धक जानकारियाँ हैं। हम आपको आमंत्रित करते हैं कि आप अगले अध्याय को भी पढ़ें और महात्मा गांधी जी के अद्वितीय विचारों को समझें।
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