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बुमुक्षितं किं न करोति पापं अर्थ, प्रयोग (Bumukshitam kim na karoti paapam)

परिचय: “बुमुक्षितं किं न करोति पापं” एक प्राचीन हिंदी मुहावरा है, जो अपने आप में एक गहरा दार्शनिक अर्थ रखता है। यह भारतीय दार्शनिक विचारों और साहित्य में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

अर्थ: इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है, “वह जो मरने की इच्छा रखता है, वह क्या पाप नहीं करेगा?” यह उस स्थिति का वर्णन करता है जहां एक व्यक्ति इतना निराश या हताश हो जाता है कि वह किसी भी तरह के अनैतिक या गलत कार्य करने को तैयार हो जाता है।

प्रयोग: इस मुहावरे का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति की निराशा या हताशा की गहराई को व्यक्त करना हो।

उदाहरण:

-> मुनीश ने अपने घोर निराशा की अवस्था में अपनी सारी संपत्ति जुए में हार दी। वाकई, ‘बुमुक्षितं किं न करोति पापं’।

-> जब व्यक्ति की आत्मा टूट जाती है, तो वह ‘बुमुक्षितं किं न करोति पापं’ की स्थिति में पहुंच जाता है।

निष्कर्ष: “बुमुक्षितं किं न करोति पापं” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि मनुष्य जब हताशा की गहराई में पहुंच जाता है, तो वह अक्सर ऐसे कार्य कर बैठता है, जो न केवल अनैतिक होते हैं बल्कि कभी-कभी हानिकारक भी होते हैं। यह हमें आत्म-संयम और धैर्य की महत्ता को समझाता है।

बुमुक्षितं किं न करोति पापं मुहावरा पर कहानी:

एक समय की बात है, एक छोटे से गाँव में अनुभव नाम का एक युवक रहता था। अनुभव बहुत मेहनती और ईमानदार था, लेकिन किस्मत उसके साथ नहीं थी। उसकी फसल बार-बार बर्बाद हो जाती थी और वह भारी कर्ज में डूब गया।

अनुभव की इस दुर्दशा को देखकर गाँव के कुछ लोगों ने उसे अवैध रूप से धन कमाने की सलाह दी। पहले तो अनुभव ने इनकार कर दिया, लेकिन जैसे-जैसे उसकी परिस्थितियाँ बिगड़ती गईं, उसका मन डोलने लगा। आखिरकार, उसने उन लोगों की बात मान ली और अवैध धंधे में हाथ डाल दिया।

शुरू में, अनुभव को लगा कि उसकी समस्याएं हल हो जाएंगी, लेकिन जल्द ही उसे एहसास हुआ कि उसने गलत रास्ता चुना है। उसके इस निर्णय ने उसे और भी बड़ी मुसीबत में डाल दिया। अब उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा।

यह कहानी “बुमुक्षितं किं न करोति पापं” मुहावरे की गहराई को दर्शाती है। जब अनुभव ने अपनी हताशा और निराशा में गलत निर्णय लिया, तो उसने वह पाप कर दिया, जिसके बारे में वह कभी सोच भी नहीं सकता था। यह हमें सिखाता है कि जीवन में कठिन समय में भी सही निर्णय लेना और आत्म-संयम रखना कितना महत्वपूर्ण है।

शायरी:

जब दिल टूट कर बिखर जाता है, सब कुछ अंधेरा हो जाता है,

‘बुमुक्षितं किं न करोति पापं’, यह सोच भी घबराता है।

हर रास्ते पर चला मैं, ढूंढता रहा मंजिल को,

पर हताशा में भटक गया, खुद से भी लड़ता रहा।

निराशा के अंधेरे में, जब खुद को खो दिया,

‘बुमुक्षितं किं न करोति पापं’, इस सत्य को सोच लिया।

हर दर्द की चिंगारी में, जब अपना सब कुछ जला दिया,

गलत राह पर चल पड़ा, जब अपने सपनों को भुला दिया।

इस शायरी में है छुपा, जीवन का एक गहरा सबक,

हताशा में न खो बैठे, अपने आप को, अपने रब को।

 

बुमुक्षितं किं न करोति पापं शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of बुमुक्षितं किं न करोति पापं – Bumukshitam kim na karoti paapam Idiom:

Introduction: “बुमुक्षितं किं न करोति पापं” is an ancient Hindi idiom with a deep philosophical meaning. It is widely used in Indian philosophical thoughts and literature.

Meaning: The literal meaning of this idiom is, “What sin will not the one desiring death commit?” It describes a situation where a person becomes so despairing or hopeless that they are ready to engage in any kind of unethical or wrong actions.

Usage: This idiom is used to express the depth of despair or desperation of a person.

Example:

-> Munish lost all his property in gambling during his state of extreme despair. Truly, ‘बुमुक्षितं किं न करोति पापं’.

-> When a person’s soul breaks, they reach the state of ‘बुमुक्षितं किं न करोति पापं’.

Conclusion: The idiom “बुमुक्षितं किं न करोति पापं” teaches us that when a person reaches the depths of despair, they often commit acts that are not only unethical but sometimes harmful. It emphasizes the importance of self-restraint and patience.

Story of ‌‌Bumukshitam kim na karoti paapam Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a young man named Anubhav. Anubhav was hardworking and honest, but luck was not on his side. His crops would repeatedly fail, and he found himself deeply in debt.

Seeing Anubhav’s plight, some people in the village suggested he earn money illegally. Initially, Anubhav refused, but as his circumstances worsened, he began to waver. Eventually, he gave in to their advice and got involved in illegal activities.

At first, Anubhav thought his problems would be solved, but he soon realized that he had chosen the wrong path. This decision led him into even greater trouble, and he began to regret his actions.

This story illustrates the depth of the idiom “बुमुक्षितं किं न करोति पापं” (What sin will not the one desiring death commit?). When Anubhav made the wrong decision in his despair and hopelessness, he committed acts he never thought he would. It teaches us the importance of making the right decisions and maintaining self-control, even in difficult times in life.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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