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बेकार से बेगार भली अर्थ, प्रयोग (Bekar se begar bhali)

परिचय: “बेकार से बेगार भली” एक प्रचलित हिंदी मुहावरा है, जो व्यक्ति की जीवनशैली और कार्य नैतिकता पर प्रकाश डालता है। यह मुहावरा हमें जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सिखाता है।

अर्थ: इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है, “बेकार रहने से बेगार (मुफ्त में किया गया काम) करना बेहतर है।” यह यह दर्शाता है कि कुछ न करने से बेहतर है कि कम से कम कोई काम किया जाए, भले ही उसका वित्तीय लाभ न हो।

प्रयोग: इस मुहावरे का प्रयोग तब किया जाता है जब व्यक्ति को काम करने की प्रेरणा देनी हो, यह दिखाने के लिए कि निष्क्रियता से बेहतर है कार्य करना।

उदाहरण:

-> विकास ने छोटी सी नौकरी शुरू की, भले ही वेतन कम था। उसका मानना था, “बेकार से बेगार भली।”

-> अभय ने स्वेच्छा से सामुदायिक सेवा की, यह जानते हुए भी कि इससे उसे कोई आर्थिक लाभ नहीं होगा। उसके लिए, “बेकार से बेगार भली।”

निष्कर्ष: “बेकार से बेगार भली” मुहावरा हमें सिखाता है कि व्यक्ति को हमेशा कुछ न कुछ कार्य में व्यस्त रहना चाहिए। यह जीवन में सक्रियता और उत्पादकता की ओर प्रेरित करता है, यहां तक कि यदि काम से सीधे वित्तीय लाभ न भी हों।

बेकार से बेगार भली मुहावरा पर कहानी:

एक छोटे से गाँव में अनुभव नामक एक युवक रहता था। अनुभव कई महीनों से बेकार था और कोई काम नहीं मिलने के कारण वह बहुत निराश रहता था। उसके दोस्त और परिवार वाले उसे कोई भी काम करने की सलाह देते, लेकिन अनुभव का मानना था कि उसे अपनी योग्यता के अनुरूप ही काम करना चाहिए।

एक दिन, गाँव के एक बुजुर्ग ने अनुभव को बुलाकर कहा, “बेटा, ‘बेकार से बेगार भली’। तुम्हें चाहिए कि तुम किसी भी तरह का काम करो, चाहे वह छोटा ही क्यों न हो।”

अनुभव ने बुजुर्ग की बात मानते हुए गाँव में ही एक छोटी दुकान पर काम करना शुरू किया। शुरुआत में उसे यह काम बहुत छोटा लगा, लेकिन धीरे-धीरे उसने पाया कि इस काम से उसे न सिर्फ आर्थिक मदद मिली बल्कि उसका समय भी सार्थक रूप से व्यतीत होने लगा।

अनुभव की इस सक्रियता ने उसे जीवन में नया उत्साह और आत्मविश्वास दिया। वह समझ गया कि किसी भी काम को छोटा नहीं समझना चाहिए और ‘बेकार से बेगार भली’ का अर्थ है कि कुछ भी करना निष्क्रियता से बेहतर है।

इस कहानी से हमें सिखने को मिलता है कि जीवन में हमेशा सक्रिय रहना और किसी भी तरह के काम को करने की इच्छा रखना महत्वपूर्ण है। यह हमें जीवन में उत्पादकता और सक्रियता की ओर ले जाता है।

शायरी:

बेकार की गलियों में भटकने से, बेगार की राहें भली,

जिंदगी के सफर में ये सीख, हर कदम पर काम आई।

खाली वक्त की आग में जलने से, काम की चिंगारी भली,

‘बेकार से बेगार भली’, ये बात दिल को बहुत भाई।

जो ढूंढता रहा हमेशा, बड़े सपनों की चाह में,

उसे नहीं मिला कुछ भी, बस खाली हाथ और रात में।

हर छोटे काम में भी, बड़ा सबक छुपा होता है,

‘बेकार से बेगार भली’, ये जीवन का फलसफा होता है।

ये शायरी कहती है, हर काम में कुछ न कुछ बात होती है,

बेकार बैठे रहने से, बेगार करना ज्यादा सौगात होती है।

 

बेकार से बेगार भली शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of बेकार से बेगार भली – Bekar se begar bhali Idiom:

Introduction: “बेकार से बेगार भली” (Better to work without pay than to be idle) is a prevalent Hindi idiom that sheds light on a person’s lifestyle and work ethics. This idiom teaches us an important life lesson.

Meaning: The literal meaning of this idiom is, “It is better to work without pay (voluntarily) than to remain idle.” It implies that it’s better to do some work, even if it doesn’t bring financial benefits, than to do nothing at all.

Usage: This idiom is used when motivating a person to work, showing that being active is better than inactivity.

Example:

-> Vikas started a small job, even though the salary was low. He believed, “Better to work without pay than to be idle.”

-> Abhay volunteered for community service, knowing that it would not bring him any financial gain. For him, “Better to work without pay than to be idle.”

Conclusion: The idiom “बेकार से बेगार भली” teaches us that one should always be engaged in some work. It encourages activity and productivity in life, even if the work does not directly result in financial benefits.

Story of ‌‌Bekar se begar bhali Idiom in English:

In a small village, there lived a young man named Anubhav. Anubhav had been jobless for several months, and due to the lack of work, he was quite despondent. His friends and family advised him to take up any job, but Anubhav believed he should work according to his qualifications.

One day, an elder in the village called Anubhav and said, “Son, ‘Better to work without pay than to be idle.’ You should do any kind of work, no matter how small it may seem.”

Heeding the elder’s advice, Anubhav started working at a small shop in the village. Initially, he felt the job was too insignificant, but gradually, he realized that not only did it provide him financial aid, but it also made his time worthwhile.

This active engagement brought new enthusiasm and confidence in Anubhav’s life. He understood that no job should be considered too small and that ‘Better to work without pay than to be idle’ means it’s better to do something than to remain inactive.

This story teaches us that it is important to always stay active in life and to desire to work in any capacity. It leads us towards productivity and activity in life.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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