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बैठे-ठाले से बेगार भली अर्थ, प्रयोग (Baithe-Thale se begar bhali)

परिचय: ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ यह हिंदी मुहावरा जीवन की एक महत्वपूर्ण शिक्षा देता है। यह मुहावरा समाज में आलस्य और कर्मठता के बीच के अंतर को दर्शाता है।

अर्थ: इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ है कि बिना काम के बैठे रहने से बेहतर है कि कठिन काम किया जाए। ‘बैठे-ठाले’ का अर्थ है बिना काम के आलस में समय बिताना, जबकि ‘बेगार’ से अभिप्राय है बिना वेतन के किया जाने वाला कठिन परिश्रम। इस प्रकार, यह मुहावरा यह संदेश देता है कि सक्रिय और परिश्रमी जीवन निष्क्रियता और आलस्य से कहीं बेहतर है।

प्रयोग: यह मुहावरा अक्सर उस स्थिति में प्रयोग किया जाता है, जहाँ लोग आलस्य के कारण अवसरों को खो देते हैं और इसके विपरीत कठिन परिश्रम करने के महत्व को बताया जाता है।

उदाहरण:

-> विशाल हमेशा घर पर बैठा रहता था, पर जब उसे बिना वेतन के इंटर्नशिप का अवसर मिला, तो उसने सोचा कि बैठे-ठाले से बेगार भली।

-> अनीता ने खाली समय में स्वयंसेवा का काम करना शुरू किया, यह सोचकर कि बैठे-ठाले से बेगार भली।

निष्कर्ष: ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ मुहावरा हमें यह सिखाता है कि आलस्य में समय व्यतीत करने के बजाय कुछ कर्मठ और उपयोगी करना अधिक बेहतर है। यह हमें प्रेरित करता है कि हमें हमेशा सक्रिय रहना चाहिए और जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। इस मुहावरे का मर्म समझना हमारे व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है।

बैठे-ठाले से बेगार भली मुहावरा पर कहानी:

एक बार के जमाने में, एक छोटे से गाँव में विकास नाम का एक युवक रहता था। विकास बहुत ही आलसी था और अक्सर अपना समय बैठे-ठाले गुजार देता था। उसके पिता, जो एक किसान थे, हमेशा उसे काम में हाथ बटाने के लिए कहते, पर विकास हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देता।

एक दिन, गाँव में एक सामाजिक सेवा संस्थान ने युवाओं के लिए एक श्रमदान कार्यक्रम की घोषणा की। यह कार्यक्रम बिना किसी वेतन के था, पर इसमें भाग लेने वाले युवाओं को कई तरह की नई चीजें सीखने का मौका मिलता था। विकास के दोस्तों ने उसे भी इसमें भाग लेने के लिए मनाया। शुरू में तो विकास ने मना कर दिया, पर फिर उसे याद आया कि ‘बैठे-ठाले से बेगार भली।’

विकास ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और उसने महसूस किया कि काम करने में कितनी खुशी मिलती है। उसने सीखा कि किस तरह समुदाय की मदद करना, व्यक्तिगत और सामाजिक विकास में योगदान देता है। उस कार्यक्रम के बाद, विकास ने अपने आलस्य को छोड़ दिया और जीवन में सक्रिय रूप से हिस्सा लेने लगा।

इस कहानी के माध्यम से, ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ मुहावरे का अर्थ स्पष्ट होता है। यह दर्शाता है कि आलस्य से बचकर कठिन परिश्रम करना, चाहे वह बिना वेतन के ही क्यों न हो, जीवन में अधिक संतोष और सीख देता है। विकास की कहानी हमें यह सिखाती है कि कर्मठता और सक्रियता ही वास्तविक सफलता की कुंजी है।

शायरी:

बैठे-ठाले जिंदगी के, खाली पन्ने नहीं भरते,

मेहनत के बिना किस्मत के ताले नहीं खुलते।

बेगार में भी जो मिलता, वह सबक अनमोल है,

इस जहान में आलस्य से बड़ा कोई शूल नहीं।

जो चलते हैं बिना थके, उन्हीं की राहें खुलतीं,

बैठे-ठाले से बेगार भली, ये सच्चाई है पुरानी।

हर कदम पर जो उठाए गए, वही पदचिन्ह महान हैं,

जिन्होंने मेहनत को अपनाया, वही तो इस दुनिया में इंसान हैं।

बैठे-ठाले सपने, सिर्फ ख्वाब बनकर रह जाते,

जो मेहनत करते हैं, वही तो असल में जीवन जी पाते।

 

बैठे-ठाले से बेगार भली शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of बैठे-ठाले से बेगार भली – Baithe-Thale se begar bhali Idiom:

Introduction: The Hindi proverb ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ imparts an important lesson in life. It highlights the difference between laziness and diligence in society.

Meaning: The literal meaning of this proverb is that it’s better to engage in hard work than to sit idly without doing anything. ‘बैठे-ठाले’ means to spend time in laziness without any work, while ‘बेगार’ refers to hard labor done without payment. Thus, the proverb conveys that an active and hardworking life is far better than one of inactivity and laziness.

Usage: This proverb is often used in situations where people lose opportunities due to laziness, and conversely, it highlights the importance of hard work.

Example:

-> Vishal always used to sit at home, but when he got the opportunity for an unpaid internship, he thought ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ (it’s better to work hard than to sit idle).

-> Anita started volunteering in her free time, thinking ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ (it’s better to work hard than to sit idle).

Conclusion: The proverb ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ teaches us that it is better to be diligent and useful instead of spending time in laziness. It motivates us to always stay active and to move forward in life while facing challenges. Understanding the essence of this proverb is very important in our personal and professional lives.

Story of ‌‌Baithe-Thale se begar bhali Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived a young man named Vikas. Vikas was very lazy and often spent his time idly. His father, who was a farmer, always asked him to help with the work, but Vikas always made excuses to avoid it.

One day, a social service organization in the village announced a volunteer work program for the youth. This program was unpaid, but it offered the participants a chance to learn many new things. Vikas’s friends persuaded him to join. Initially, Vikas refused, but then he remembered the proverb ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ (it’s better to work hard than to sit idle).

Vikas participated in the program and realized the joy of working. He learned how helping the community contributes to personal and social development. After the program, Vikas abandoned his laziness and started actively participating in life.

Through this story, the meaning of the proverb ‘बैठे-ठाले से बेगार भली’ becomes clear. It shows that avoiding laziness and engaging in hard work, even if unpaid, brings more satisfaction and learning in life. Vikas’s story teaches us that diligence and activity are the keys to real success.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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