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बगुला भगत होना, अर्थ, प्रयोग(Bagula bhagat hona)

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परिचय: हिंदी भाषा भरपूर मुहावरों से समृद्ध है, जो हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाने में मदद करते हैं। “बगुला भगत होना” भी ऐसा ही एक रोचक मुहावरा है।

अर्थ: “बगुला भगत होना” का अर्थ है किसी को धर्मिक या साधु-संत जैसा दिखावा करना पर असल में उसका उद्देश्य कुछ और होना, ढोंगी होना।

उत्पत्ति: यह मुहावरा बगुले की प्रवृत्तियों से आया है। बगुला साधु की तरह शांत और धार्मिक दिखाई देता है जब वह मेंढ़ से कीड़े पकड़ने की प्रतीक्षा करता है। लेकिन जब मेंढ़ पास आता है, बगुला तत्पर हो जाता है और उसे पकड़ लेता है।

उदाहरण:

-> मुनीश अक्सर मंदिर में बैठकर भिक्षा मांगता है, लेकिन उसका असली चेहरा तब सामने आता है, जब वह रात को अपनी जमा की हुई रकम से शराब पीता है। वाकई, वह ‘बगुला भगत’ बनता है।

-> कुसुम अपने दोस्तों के सामने बहुत ही सीधी और साध्वी बनती है, लेकिन असल में वह बगुला भगत है।

विवेचना: इस मुहावरे के माध्यम से हमें यह सिखने को मिलता है कि दिखावा और असलियत में बहुत अंतर होता है। हमें किसी के बाहरी रूप को देखकर उसके विषय में निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए।

निष्कर्ष: “बगुला भगत होना” मुहावरा हमें जीवन में सत्य और दिखावे में फर्क समझाता है। यह हमें सत्याचारण की महत्वपूर्णता की ओर इंगीत करता है।

बगुला भगत होना मुहावरा पर कहानी:

रघुनाथपुर गाँव में स्वामी विनीतानन्द नामक एक संत आये। वे अपने आप को बड़ा आध्यात्मिक और दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण बताते थे। वे अपने आप को बहुत ही पवित्र और धर्मिक प्रतिष्ठित करते थे।

गाँववाले उनकी बहुत इज्जत करते थे और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती थी। स्वामी विनीतानन्द का कहना था कि वह लोगों के दुःख-दर्द को दूर कर सकते हैं। लोग उन्हें चाँदी, सोना और पैसे चढ़ाते थे, आशा में कि वे उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे।

लेकिन अभय, गाँव का एक बुद्धिमान लड़का, स्वामी विनीतानन्द को शक की नजरों से देखता था। उसे विश्वास नहीं होता था कि स्वामी जो दिखावे में संत प्रतित होते हैं, वास्तव में वे भी वैसे ही हैं।

अभय ने तय किया कि वह स्वामी विनीतानन्द की सच्चाई का पता लगाएगा। एक रात, अभय ने धर्मशाला के पास छिपकर स्वामी की गतिविधियों का निरीक्षण किया। और जैसा अभय सोच रहा था, वह सच निकला। रात के समय, स्वामी विनीतानन्द चाँदी, सोना और पैसे को एक बोरी में डालकर गुपचुप गाँव से बाहर जा रहे थे।

अभय ने तुरंत गाँववालों को जागाया और स्वामी की असलियत सामने लाई। यह सुनकर सभी हैरान और निराश हो गए कि जिस संत में वे इतना विश्वास करते थे, वह दरअसल “बगुला भगत” निकले।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हर व्यक्ति की बाहरी छवि को देखकर उस पर अंधा विश्वास नहीं करना चाहिए। अक्सर, बहुत सारे लोग अच्छे दिखावे में अपनी असली नियत छुपा लेते हैं।

शायरी:

बगुला भगत की तरह दुनिया में छाए,

मोहब्बत में सच और फरेब का सिलसिला पाए।

हर चेहरे पर मास्क अब अदायगी बन गई,

इश्क़ में सच्चाई का सफर खोता जा रहा है।

आँखों से जो दिखाई दे वो हर बार सच नहीं होता,

दिल की गहराइयों में, असली चेहरा खोता जा रहा है।

 

बगुला भगत होना शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of बगुला भगत होना – Bagula Bhagat Hona Idiom:

Introduction: The Hindi language is enriched with numerous idioms that assist us in understanding various facets of life. “Bagula Bhagat Hona” is one such intriguing idiom.

Meaning:  “Bagula Bhagat Hona” translates to someone pretending to be religious or saintly, but their real intention is different; in essence, being a hypocrite.

Origin: This idiom is derived from the behavior of the heron (Bagula in Hindi). The heron appears calm and saint-like as it waits to catch insects from the water. However, when the prey comes close, the heron swiftly captures it.

Usage:

-> Munish often sits in the temple begging, but his true nature is revealed at night when he drinks alcohol using the collected money. Indeed, he plays the role of a ‘Bagula Bhagat’.

-> Kusum acts very innocent and virtuous in front of her friends, but in reality, she is a ‘Bagula Bhagat’.

Discussion: Through this idiom, we learn that there is a vast difference between appearances and reality. We shouldn’t judge someone based solely on their exterior demeanor.

Conclusion: The idiom “Bagula Bhagat Hona” highlights the distinction between truth and pretense in life. It hints at the importance of leading an authentic life.

Story of ‌‌Bagula Bhagat Hona Idiom in English:

In the village of Raghunathpur, a saint named Swami Vineetanand arrived. He claimed to be highly spiritual and possessed divine powers. He portrayed himself as very pure and of high religious repute.

The villagers held him in high esteem and flocked to him to seek blessings. Swami Vineetanand claimed that he could alleviate people’s sufferings. In hope that he would solve their problems, people offered him silver, gold, and money.

However, Abhay, a wise boy from the village, viewed Swami Vineetanand with suspicion. He couldn’t believe that the Swami, who appeared to be a saint on the surface, was genuinely so.

Abhay decided to uncover the truth about Swami Vineetanand. One night, he hid near the ashram and observed the Swami’s activities. And, as Abhay had suspected, the truth emerged. At night, Swami Vineetanand was secretly leaving the village, packing away the silver, gold, and money he had received into a sack.

Abhay immediately alerted the villagers and exposed the Swami’s true nature. Everyone was shocked and disheartened to find out that the saint, in whom they had placed so much trust, turned out to be a “wolf in sheep’s clothing.”

This story teaches us that we shouldn’t blindly trust someone based on their external appearance. Often, many hide their true intentions behind a facade of goodness.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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