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ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय अर्थ, प्रयोग (Aise boodhe bail ko kaun baandh bhus dey)

परिचय: “ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय” यह हिंदी मुहावरा उन स्थितियों को दर्शाता है जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु की उपयोगिता समाप्त हो चुकी होती है, और उसे रखने में कोई लाभ नहीं दिखता। यह अक्सर उस समय प्रयोग किया जाता है जब किसी चीज़ या व्यक्ति को अनुपयोगी मान लिया जाता है।

अर्थ: मुहावरे का अर्थ है कि जब कोई बैल बूढ़ा हो जाता है और खेती या अन्य कामों में उसका योगदान नहीं रह जाता, तो उसे भुस (चारा) देने में कोई रुचि नहीं लेता। यहाँ बैल केवल एक उदाहरण है, इसे व्यापक रूप से जीवन के किसी भी पहलू में लागू किया जा सकता है।

प्रयोग: यह मुहावरा तब प्रयोग किया जाता है जब किसी चीज़ या व्यक्ति का महत्व या उपयोगिता समाप्त हो जाती है और उसे और अधिक सहायता या संसाधन देने की इच्छा नहीं होती।

उदाहरण:

-> एक पुरानी मशीन जो अब काम नहीं करती, “ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय?”

-> एक रिटायर्ड कर्मचारी जिसे कंपनी ने सेवानिवृत्ति के बाद और कोई जिम्मेदारी नहीं दी, “ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय?”

निष्कर्ष: “ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय” मुहावरा हमें यह सिखाता है कि जीवन में हर वस्तु और व्यक्ति का अपना एक समय होता है। जब उनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है, तो समाज उन्हें अनुपयोगी मान लेता है। यह हमें व्यक्तिगत और सामाजिक संसाधनों के मूल्य और उपयोगिता के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है, साथ ही यह भी याद दिलाता है कि हमें अपने आस-पास के लोगों और चीज़ों की कद्र करनी चाहिए।

ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय मुहावरा पर कहानी:

एक बार की बात है, एक छोटे से गाँव में सुरेंद्र काका नामक एक बुजुर्ग व्यक्ति रहते थे। सुरेंद्र काका अपने जीवन में बहुत कुछ कर चुके थे और गाँव के लोग उनकी समझदारी और अनुभव की बहुत इज्जत करते थे। लेकिन, समय के साथ उम्र ने अपनी चाल दिखाई और सुरेंद्र काका अब वह सब कुछ नहीं कर पाते थे जो वे कभी किया करते थे।

गाँव में एक नई पंचायत का चुनाव होने वाला था और कुछ लोगों ने सुरेंद्र काका को भी चुनाव लड़ने का सुझाव दिया। सुरेंद्र काका ने इस प्रस्ताव पर विचार किया लेकिन फिर एक दिन सबको इकट्ठा करके कहा, “बच्चो, ‘ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय’। मेरा समय अब बीत चुका है। मैं अब उस ऊर्जा और क्षमता को नहीं रखता जो इस पद की मांग है।”

सुरेंद्र काका के इस निर्णय ने सभी को एक गहरा सबक सिखाया। उन्होंने समझाया कि हर व्यक्ति के जीवन में एक समय होता है जब उसे अपनी सीमाओं को स्वीकार करना पड़ता है और युवा पीढ़ी को आगे बढ़ने का मौका देना पड़ता है।

सुरेंद्र काका की इस समझदारी ने गाँव के लोगों को यह भी सिखाया कि जीवन में सम्मान के साथ पीछे हटना कभी-कभी आगे बढ़ने से भी बड़ी जीत होती है। उनके इस निर्णय ने यह भी दर्शाया कि व्यक्ति को हमेशा अपने और समाज के भले के लिए सोचना चाहिए, चाहे उसके लिए कितनी भी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।

शायरी:

जिंदगी की राहों में, कुछ बूढ़े पन्ने पलटते हैं,

“ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय”, सब कहते हैं।

उम्र की दहलीज़ पे खड़े, हर सपना बिखरता जाए,

यादों की गलियों में जब, हर लम्हा महकता आए।

समय की धारा में बहते, कुछ अरमान रह जाते हैं,

बूढ़े होंठों पे हंसी के, फूल खिलते जाते हैं।

अनुभवों की गठरी से, जीवन की सीख मिलती है,

“ऐसे बूढ़े बैल को”, हर दिल से श्रद्धा सिलती है।

सम्मान की चादर ओढ़े, उम्र के सागर में बहते हैं,

ज्ञान के मोती लुटाते, हर दिल को राह दिखाते हैं।

ये जीवन का फलसफा है, सबको समझ आता है,

“ऐसे बूढ़े बैल को”, हर कोई गले लगाता है।

 

ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of ऐसे बूढ़े बैल को कौन बाँध भुस देय – Aise boodhe bail ko kaun baandh bhus dey Idiom:

Introduction: “Aise boodhe bail ko kaun baandh bhus dey” is a Hindi proverb that illustrates situations where an individual or object’s utility has ended, and keeping it is deemed unbeneficial. This is often used when something or someone is considered to be of no use anymore.

Meaning: The proverb means that when a bull becomes old and can no longer contribute to farming or other work, nobody is interested in feeding it fodder. Here, the bull is just an example; this can be applied broadly to any aspect of life.

Usage: This proverb is used when the importance or usefulness of something or someone has ended, and there is no desire to provide further assistance or resources.

Example:

-> An old machine that no longer works, “Who would tie up an old bull and feed it fodder?”

-> A retired employee whom the company has not given any responsibilities after retirement, “Who would tie up an old bull and feed it fodder?”

Conclusion: The proverb “Aise boodhe bail ko kaun baandh bhus dey” teaches us that every object and individual has their own time in life. When their usefulness ends, society deems them useless. It encourages us to think about the value and utility of personal and social resources and also reminds us to appreciate the people and things around us.

Story of ‌‌Aise boodhe bail ko kaun baandh bhus dey Idiom in English:

Once upon a time, in a small village, there lived an elderly man named Surendra Kaka. Surendra Kaka had accomplished much in his life, and the villagers greatly respected his wisdom and experience. However, as time passed, age showed its effects, and Surendra Kaka could no longer do all the things he once could.

A new panchayat election was approaching in the village, and some people suggested that Surendra Kaka should also run for election. Surendra Kaka considered this proposal but then one day gathered everyone and said, “Children, ‘who would tie up an old bull and feed it fodder?’ My time has now passed. I no longer possess the energy and capability required for this position.”

Surendra Kaka’s decision taught everyone a profound lesson. He explained that there comes a time in everyone’s life when one must accept their limitations and give the younger generation a chance to move forward.

Surendra Kaka’s wisdom taught the villagers that sometimes, stepping back with honor can be a greater victory than moving forward. His decision also showed that one should always think for the welfare of oneself and society, even if it requires making significant sacrifices.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

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