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बिन पेंदी का लोटा, अर्थ, प्रयोग(Bin pendi ka lota)

अर्थ: जो व्यक्ति अपने विचार या भावनाओं कोअधिक समय तक स्थिर नहीं रख सकता, उसे ‘बिन पेंदी का लोटा’ कहा जाता है।

उत्पत्ति: जैसा कि मुहावरे में ही दिखाया गया है, एक लोटा जिसमें पेंदी (अधार) नहीं होती, वह आसानी से लुढ़क सकता है। वही स्थिति एक व्यक्ति पर भी लागू होती है, जो आसानी से अपनी जगह, विचार, मान्यता या संकल्पनाओं को बदल देता है।


उपयोग: जब कोई व्यक्ति अकेला अपनी सोच या मान्यता में परिवर्तन करता है बिना किसी ठोस कारण के, तब उसे ‘बिन पेंदी का लोटा’ कहा जा सकता है।

उदाहरण:

-> अनुभव आजकल हर बार अपनी पार्टी की विचारधारा बदल देता है, वह तो बिल्कुल ‘बिन पेंदी का लोटा’ हो गया है।

-> अगर तुम अपनी मान्यताएं हर बार बदलते रहोगे, तो लोग तुम्हें ‘बिन पेंदी का लोटा’ समझेंगे।

निष्कर्ष: जीवन में स्थिरता और ठोसता जरूरी है। ‘बिन पेंदी का लोटा’ मुहावरा हमें यह सिखाता है कि अधिक समय तक अनिश्चितता में रहना या बिना सोचे-समझे अपनी स्थिति को बदलना अच्छा नहीं है। अपनी मान्यताओं और मूल्यों पर विश्वास करना और उन्हें निभाना ही असली जीवन है।

Hindi Muhavare Quiz

बिन पेंदी का लोटा मुहावरा पर कहानी:

सुभाष नगर का प्रसिद्ध व्यक्ति था। हर कुछ समय पर वह अलग-अलग धंधे में हाथ आजमा रहा होता था। पहले वह जूतों का कारोबार करता था, फिर उसने मोबाइल की दुकान खोली, और अब वह गाड़ी बेच रहा था। उसका मानना था कि हर धंधे में अधिक लाभ है।

सुभाष की अदृढ़ता सिर्फ व्यापार में ही नहीं थी, बल्कि उसकी विचारधारा में भी थी। एक समय था जब वह समाजवादी विचारधारा का समर्थन करता था, और अब उसे पूंजीवाद ही ठीक लगता था। लोग उसे देखकर कहते थे, “सुभाष तो बिल्कुल ‘बिन पेंदी का लोटा’ हो गया है।”

एक दिन, सुभाष के पुराने दोस्त विकास नगर वापस लौटा। विकास ने सुभाष को उसकी अस्थिरता पर समझाया। उसने कहा, “सुभाष, जीवन में स्थिरता का महत्व है। हर बार विचारधारा बदलने से तुम्हारी विश्वसनीयता कम हो रही है। अपनी मान्यताओं पर विश्वास करो और उन्हें अपनाओ।”

सुभाष ने विकास की बातों पर गहरा विचार किया और फैसला किया कि वह अब एक ही धंधे में स्थिर रहेगा और अपनी मान्यताओं को भी दृढ़ता से अपनाएगा।

संदेश: जीवन में स्थिरता और अपनी मान्यताओं पर विश्वास होना चाहिए। ‘बिन पेंदी का लोटा’ बनने से बेहतर है कि हम अपने आप को और अपनी मान्यताओं को समझें और उन पर अड़े रहें।

शायरी:

बिन पेंदी के लोटे सा वक़्त फिसलता जाए,

मज़हब, सोच, विचार में, जो जीवन संग ही न आए।

ज़िंदगी के इस मेले में, कुछ ठहरे, कुछ बदले,

कितनों की जो अस्थिरता, मोहब्बत में डूब जाए।

 

बिन पेंदी का लोटा शायरी

आशा है कि आपको इस मुहावरे की समझ आ गई होगी और आप इसका सही प्रयोग कर पाएंगे।

Hindi to English Translation of बिन पेंदी का लोटा – Bin pendi ka lota Idiom:

Introduction: The term ‘Bin pendi ka lota’ refers to a person who cannot maintain their beliefs or emotions consistently for an extended period.

Origin: As illustrated in the idiom itself, a pot without a base (Pendi) can tip over easily. This situation also applies to a person who readily changes their place, thoughts, beliefs, or conceptions.

Usage: When someone frequently changes their mindset or belief without a solid reason, they can be referred to as ‘Bin pendi ka lota’.

Usage:

-> These days, Anubhav keeps changing the ideology of his party; he has truly become a ‘Bin pendi ka lota’. 

-> If you keep altering your beliefs, people will consider you a ‘Bin pendi ka lota’.

Conclusion: Stability and firmness are essential in life. The idiom ‘Bin pendi ka lota’ teaches us that it’s not good to remain in uncertainty for long or change our situation without contemplation. Trusting our beliefs and values and upholding them is what real living is about.

Story of ‌‌Bin pendi ka lota Idiom in English:

Subhash was a well-known figure in Nagar. Every so often, he tried his hand at different businesses. Initially, he was into the shoe business, then he opened a mobile shop, and now he was selling cars. He believed that there’s high profit in every venture.

Subhash’s inconsistency wasn’t just limited to his businesses, but also reflected in his ideologies. There was a time when he supported socialist views, and now he was leaning towards capitalism. People would look at him and say, “Subhash has truly become a ‘Bin pendi ka lota’.”

One day, Subhash’s old friend Vikas returned to Nagar. Vikas spoke to Subhash about his instability. He said, “Subhash, stability in life is essential. Changing your views every time is diminishing your credibility. Have faith in your beliefs and adopt them.”

Subhash pondered deeply over Vikas’s words and decided that from now on, he would remain consistent in one business and firmly adhere to his beliefs.

Message: There should be stability and faith in our beliefs in life. Instead of becoming a ‘Bin pendi ka lota’, it’s better to understand ourselves and our values and stick to them.

 

I hope this gives you a clear understanding of the proverb and how to use it correctly

FAQs:

“बिन पेंदी का लोटा” मुहावरे की उत्पत्ति क्या है?

इस मुहावरे की उत्पत्ति के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन यह हिंदी भाषा के पारंपरिक मुहावरों में से एक है जो व्यक्ति की अस्थिरता और दोलनशीलता को दर्शाता है।

क्या “बिन पेंदी का लोटा” व्यक्ति के चरित्र पर प्रश्न उठाता है?

हां, यह मुहावरा व्यक्ति की स्थिरता और निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लगाता है, जिससे उसके चरित्र पर संदेह हो सकता है।

क्या “बिन पेंदी का लोटा” मुहावरे का आधुनिक समाज में कोई महत्व है?

आधुनिक समाज में भी इस मुहावरे का महत्व है क्योंकि यह व्यक्ति की अस्थिरता और निष्ठाहीनता की प्रवृत्ति को उजागर करता है, जो किसी भी समय प्रासंगिक हो सकता है।

“बिन पेंदी का लोटा” मुहावरे से मिलते-जुलते अन्य मुहावरे कौन से हैं?

“हवा का रुख देखकर दिशा बदलना” और “दो नावों पर पैर रखना” इस मुहावरे से मिलते-जुलते मुहावरे हैं, जो व्यक्ति की अस्थिरता और दोहरी नीति को दर्शाते हैं।

“बिन पेंदी का लोटा” मुहावरे की समकालीन समाज में प्रासंगिकता क्या है?

समकालीन समाज में, जहां व्यक्ति और समूह तेजी से बदलते हैं, इस मुहावरे की प्रासंगिकता उन व्यक्तियों या संस्थाओं की अस्थिरता और परिवर्तनशीलता की पहचान में है।

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